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Lal Kitab: Most popular book to predict future through Astrology & Palmistry
Lal Kitab: Most popular book to predict future through Astrology & Palmistry
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Lal Kitab: Most popular book to predict future through Astrology & Palmistry

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About this ebook

Prastut pustak 'Lal Kitab' ko ek vishishth granth ke roop mein prastut kiya gaya hai. Ismein jyotish evam hasthrekha shastra ka mishran hai. Inn dono kalaaon ka nichodh ismein diya gaya hai. Ismein-1. Griho ke bure prabhav. 2. nakshatron ke bure prbhav. 3. maanglik dosh. 4. kaalsarp dosh tatha kundli dosh, ko dur karne ke upaaye vistaar mein samjhaaye gaye hain. Aise anek dosh jo manushya ki janam kundli mein paaye jaate hain jiske kaaran manushya ki pragati mein badhayein aati hain, durghatnayen hoti hain, aadi se bachne ke upaaye sujhaye gaye hain. Yeh ek atyant pathneeye pustak hai.(The present book 'Lal Kitab' has been presented as a special text. There is a mixture of astrology and palmistry.In both the arts, squeezing is given in it. In -1 Bad effects of planets 2. Bad effects of constellations 3. Mangal Defect 4. Measures to overcome Kalsarup defects and horoscope defects are explained in detail. Solutions to the faults which are found in the birth horoscope of human beings due to obstacles in human progress, accidents occur, etc. Are also given in the book. This book is very helpful.) #v&spublishers
Languageहिन्दी
Release dateNov 7, 2012
ISBN9789350573631
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Lal Kitab - EDITORIAL BOARD

ज्ञान

लाल किताब एवं

भारतीय ज्योतिष सम्बन्धी नवीन अनुभव

यह निश्चित नहीं है कि प्राचीन काल में किस युग से हमारे महर्षियों ने अपनी साधना तथा गहरे अनुभव द्वारा ज्योतिष सम्बन्धी सिद्धान्त प्रतिपादित किये, किन्तु जो भी व्यक्त किया, वह ग्रहों के सूक्ष्म अवलोकन तथा उनके गहरे अधययन के आधार पर ही निर्भर था। उसी ज्ञान को महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों में समेट कर आगे आने वाले समय के लिये एक धरोहर के रूप में प्रस्तुत किये जिससे भारतीय ज्योतिष सारे संसार में प्रख्यात हुई। लाल किताब भी एक ऐसा ही विशिष्ट ग्रन्थ है जो फ़ारसी में लिखा गया था तथा जो ज्योतिष के फ़लित पक्ष जैसे सन्तान, विवाह, स्वास्थ्य, आयु, जीवन निर्वाह की विधि तथा साधन आदि के बारे में चर्चा करता है और समस्याओं के समाधान हेतु अद्भुत टोटके और उपायों द्वारा अशुभ फ़ल प्रदान करने वाले ग्रहों के प्रभाव को घटाने हेतु प्रयत्न भी बतलाता है।

हमने भी कुछ ऐसे टोटकों का समय-समय पर वर्णन किया है, किन्तु हमारा झुकाव भारतीय ज्योतिष की विशेषताओं की ओर अधिक रहा है। इसी कारण हमने मांगलिक दोष, कालसर्प योग तथा हस्त रेखाओं द्वारा फ़लादेश के महत्त्व को दशार्ते हुए इस ज्ञान को आगे बढ़ाने की चेष्टा की है, जिसके द्वारा ज्योतिष सीखने व समझने वालों को लाभ हो सकता है तथा भारतीय ज्योतिष के महत्त्व को समझने का अवसर मिल सकता है।

आशा है पाठक हमारे विनम्र प्रयत्न से लाभ उठाकर जीवन को सुखमय बनायेंगे।

कुण्डली देखते समय प्रत्येक घर से फलादेश का आँकलन

हमारे विचार में यह नितान्त आवश्यक है कि ज्योतिष सीखने से पूर्व कुण्डली के बारह घर जातक की किन-किन विशेषताओं तथा सम्बन्धों आदि को दशार्ते हैं, उन्हें ठीक तरह से समझ लेना चाहिए। आप की सुविधा हेतु वह सब हमने निम्न चार्ट में अंकित किया है।

ग्रहों की उच्च नीच राशि में स्थिति के पीछे यह तथ्य है कि जब ग्रह उच्च राशि में बैठा होता है तब उसकी किरणें अच्छी तरह से प्राप्त होती हैं और जब नीच राशि में होता है तब उसकी किरणें अच्छी तरह से प्राप्त नहीं होती हैं उच्च एवं नीच राशि के बारे में कुछ विद्वानों का मत है कि जब ग्रह उच्च राशि में स्थित होता है और वक्री हो जाता है तब अच्छा फल नहीं देता। अगर ग्रह नीच राशि में है फिर भी वक्री है तो अच्छा फल करेगा। हमारे अनुभव से वक्री ग्रह अच्छा फल नहीं देते हैं। नीचे अंकित है कौनसा ग्रह किस राशि में उच्च एवं नीच का होता है:-

राहु-केतु छाया ग्रह हैं इसलिए इनकी कोई राशि नहीं है। राहु बुध के घर में अच्छा फल करता है, क्योंकि बुध एक शुभ ग्रह है और राहु महापापी है लेकिन राहु-केतु जिसकी राशि में बैठते हैं प्राय: वैसे हो जाते हैं। केतु मोक्ष देने वाला ग्रह है और गुरु धार्मिक ग्रह है इसलिए गुरु की राशि में केतु अच्छा फल करता है। ग्रहों के उच्च-नीच के बारे में विचार है कि जिस जातक ने पिछले जन्म मे पिता की सेवा की है या राजा के प्रति पूरा वफादार रहा है उसका सूर्य उच्च का होता है। अगर और विस्तार से देखें तो सूर्य ग्रह मेष राशि के १० अंश तक उच्च होता है। वह नक्षत्र केतु का है केतु को मोक्ष का कारक माना गया है। सूर्य आत्मा है इसलिए आत्मा का अन्तिम लक्ष्य परमात्मा से मिलना है। जिनका चन्द्रमा उच्च होता है उन्होंने पूर्व जन्म में माता की सेवा या बुजुर्गों की सेवा की है। चन्द्रमा वृष राशि में ३ अंश पर परम उच्च का होता है। वह नक्षत्र कृतिका है जो सूर्य का नक्षत्र है, चन्द्रमा मन माना गया है। मन जिस काम में जितना अधिक लग जाये व्यक्ति उतना अधिक तरक्की करता जाता है। इसलिए कृतिका नक्षत्र में जब चन्द्रमा आता है तब जातक संसार का सुख भोगते हुए परमात्मा की तरफ झुकाव हो जाता है अर्थात् मन, सत्य और रज दोनों की तरफ हो जाता है।

मंगल के बारे में कहा जाता है कि जिन्होंने पूर्व जन्म में अपने भाई बन्धु की बहुत सेवा की है उनका मंगल उच्च का होता है। मंगल मकर राशि में २८ अंश पर परमोच्च होता है। मंगल एक सेनापति ग्रह है और जब एक सेनापति दुश्मनों के बीच में फँस जाता है और अपना कला कौशल दिखा कर कामयाब हो जाता है तभी उसकी बहादुरी का पता चलता है। इसलिए मंगल मकर राशि में उच्च का होता है। बुध के बारे में कहा जाता है कि जिसने पूर्व जन्म में बहन, बुआ, मौसी की बहुत सेवा की है उनका बुध उच्च का होता है। बुध कन्या राशि के हस्त नक्षत्र में १५ अंश पर परमोच्च होता है बुध एक बुद्धि का ग्रह है और हस्त नक्षत्र चन्द्रमा का नक्षत्र है। जब जातक बहुत अधिक बुद्धिमान बन जाता है तो कई बार वह अपनी बुद्धि से ऐसी चीज बनाता है जिससे साधारण व्यक्ति को बहुत दु:ख उठाना पड़ता है। जैसे आज के युग में बहुत बड़े-बड़े खतरनाक हथियार एवं औजार बनाये गये हैं जो व्यक्ति के जीवन से सुख चैन छीन लेते हैं। लाल किताब कहती है कि व्यक्ति जितना अधिक ज्ञानवान तथा बुद्धिमान बनता गया है उतना भगवान से दूर होता गया है इसलिए आज मनुष्य सुख चैन से दूर है।

गुरु कर्क राशि में उच्च का होता है कहा जाता है कि वह जातक पूर्व जन्म में सन्त था या बहुत ही तपस्या करने वाला होगा और उसने तथा ब्राह्मणों की बहुत सेवा की होगी। गुरु को धन, जायदाद का कारक माना गया है। गुरु पुष्य नक्षत्र में अर्थात् कर्क राशि में ५ अंश पर परमोच्च होता है। शनि अभाव, रिक्तता, दु:ख, तकलीफ का ग्रह है और गुरु ज्ञान तथा धर्म का, यदि गुरु चन्द्रमा के राजसी राशि में बैठा है लेकिन पुष्य नक्षत्र में है तो वह व्यक्ति अपने जीवन में जो कुछ कमायेगा वह परोपकार में लगा देगा और अपना जीवन साधारण रूप से बितायेगा।

शुक्र ग्रह मीन राशि के २७ अंश अर्थात् रेवती नक्षत्र में परमोच्च का होता है। शुक्र संसार में सब प्रकार की सुख-सुविधा देने वाला ग्रह है उसे मीन राशि का स्वामी गुरु पारलौकिक सुख प्रदान करता है अब अगर शुक्र गुरु के मीन राशि में बैठकर बुध का ज्ञान प्राप्त कर ले तो उसका सारा जीवन बदल जाता है और ऐसा जातक छोटे-मोटे सुखों में न फँसकर अपने जीवन में बहुत ही उन्नति करता है।

शनि तुला राशि के २० अंश पर स्वाति नक्षत्र में परमोच्च होता है कहा जाता है कि शनि उनका ही उच्च होता है जिन्होंने पिछले जन्म में गरीबों की या दुखियों की बहुत ही सेवा की है। शनि को साधन हीन, धनहीन माना जाता है जबकि तुला राशि जिसका स्वामी शुक्र है संसार की सब सुख-सुविधा की चीज़ें प्रदान करता है। कहा जाता है कि शनि काला और अन्धोरा है इसलिए इसके अन्दर अज्ञान भरा हुआ है अगर किसी अज्ञानी व्यक्ति को शक्ति और पैसा मिल जाये तो वह फायदे की जगह उस पैसे को गलत जगह लगा सकता है लेकिन शनि विशाखा नक्षत्र के पास पहुँचता है तो ज्ञान के पास पहुँच जाता है इसलिए शनि तुला राशि में परम उच्च का माना जाता है।

ग्रहों की दृष्टियों का प्रभाव

ग्रहों की दृष्टियों को ज्योतिष में महत्त्वपूर्ण माना गया है और जिस ग्रह की दृष्टि जहाँ पर जाती है वह अपने कारक के अनुसार अच्छा बुरा फल उस ग्रह और राशि को प्रदान करती है। जिस तरह से ग्रह जिस जगह बैठते हैं वैसे फल करते हैं उसी तरह उनकी दृष्टि जहाँ पर जाती है वह भी वैसा ही फल देती है। जैसे सूर्य अपने से सप्तम दृष्टि से देखता है अर्थात् जहाँ पर बैठा है उसके सामने देखता है चन्द्रमा भी सप्तम दृष्टि से देखता है मंगल जहाँ पर बैठा है चतुर्थ सप्तम और अष्टम दृष्टि से देखता है। मंगल को सेनापति माना गया है इसलिए रक्षा करना मंगल का काम है इस कारण चतुर्थ दृष्टि से देखता है। अष्टम स्थान मौत का एवं चोट का भी है इसलिए मंगल, अष्टम दृष्टि से भी देखता है बुध जहाँ पर बैठा है अपने सामने वाले घर को सप्तम दृष्टि से देखता है। गुरु जहाँ पर बैठता है वहाँ से पंचम, सप्तम और नवम दृष्टि से देखता है। पंचम घर सन्तान, मन्त्र, साधना, प्रेम, मन्त्री पद, खेल, लेखन और बुद्धि का है सप्तम घर प्रतिध्वनि, रोज का रोजगार है और नवम घर भाग्य और धर्म तथा नीति नियम का है इन सब चीजों को देने वाला गुरु ग्रह है इसलिए गुरु को पाँच सात एवं नवम दृष्टि प्रदान की गयी हैं। शुक्र जहाँ पर बैठता है वहाँ से सप्तम दृष्टि देखता है। शनि जहाँ पर बैठता है वहाँ से तीसरी सातवीं और दशम दृष्टि से देखता है तीसरा घर सेवा भाव का है। ज्योतिष में शनि को सेवक माना गया है तथा काम काज का स्वामी भी। हाथ में भाग्य रेखा शनि पर्वत पर जाती है इसलिए शनि की दृष्टि तीसरा सातवाँ एवं दसवीं मानी गयी है। राहु केतु छाया ग्रह हैं किन्तु इनकी भी दृष्टि पंचम, सप्तम और नवम मानी गयी है। ग्रह अगर मित्र ग्रह को देखता है तो शक्तशिाली बनता है अगर शत्रु ग्रह को देखता है तो उसकी शक्ति को कम करता है अगर किसी भी ग्रह को उसके दो शत्रु देखते हो तब उसकी बहुत सी शक्ति कम हो जाती है। गुरु और शनि के बारे में हमारे अनुभव में आया है कि गुरु जहाँ पर देखता है वहाँ खुशहाल बनता है और अमृत की वर्षा करता है लेकिन जहाँ पर बैठता है वहाँ यदि शत्रु राशि में भी हो तो मधयम फल करता है। शनि जहाँ पर बैठता है वहाँ पर अच्छा फल करता है लेकिन जहाँ पर देखता है वहाँ पर खराबी पैदा कर सकता है शनि की दृष्टि को विनाशक एवं विस्फोटक दृष्टि भी माना गया है। इसलिए किसी भी ग्रह की दृष्टि देखने के पहले यह देख लेना चाहिए कि उसके घर में कौन से ग्रह बैठे हैं तथा वह ग्रह स्वयं किस राशि एवं नक्षत्र में बैठा है वैसा ही प्रभाव उसकी दृष्टि में होगा।

लाल किताब के अनुसार ग्रह कैसे फल करते हैं?

प्राचीन ज्योतिष मे लेख है कि जब कोई ग्रह जिस राशि में भी बैठ जाता है तो अधिकतर वैसा ही फल करता है निम्न कुण्डली को देखिये।

इस कुण्डली में बुध मंगल की राशि में बैठा है इसलिए बुध करीब ५० प्रतिशत मंगल की तरह फल देगा और अपनी दशा/अन्तरदशा में भी अधिकतर वैसा ही फल देगा। मंगल के फल के साथ बुध जिस घर का स्वामी है वैसा फल भी देगा और दिया भी है। बुध सूर्य के साथ बैठा है, इस कुण्डली में सूर्य छठे घर का स्वामी है। छठे घर का स्वामी जहाँ पर जाता है वहाँ अच्छा फल नहीं करता है। बुध विद्या का कारक है इसलिए इसकी दशा में जातक ने अच्छी विद्या प्राप्त की। बुध चतुर्थ एवं सप्तम घर का स्वामी है। चौथा घर जगह, जमीन, जायदाद, वाहन का भी है यह सब बुध ने अपनी दशा अन्तरदशा में जातक को दिया। बुध दूसरे घर में बैठा है, दूसरा घर परिवार, वाणी तथा धन का माना गया है। बुध की दशा, अन्तरदशा में परिवार में बढ़ोतरी हुई तथा धन के लिए भी ठीक रहा। मंगल इस कुण्डली के लिये शुभ है। बुध मंगल के घर में तथा केतु के नक्षत्र अश्विनी में बैठकर वैसा ही बन गया। अगर चन्द्र लग्न से विचार करें तो सूर्य सप्तम घर का स्वामी बन जाता है तथा बुध पंचम और आठवें घर का स्वामी बन गया। इसलिए बुध भी शुभ हो गया। चन्द्र लग्न से बुध पाँचवें घर का स्वामी है। इस कारण जातक ने बुध के समय में (दशा में) अच्छी शिक्षा प्राप्त की। जातक के दूसरे घर में सूर्य बैठा है जो छठे घर का स्वामी है इस कारण माता-पिता से दूर रहना पड़ा। माता-पिता के मकान से उसे कोई खुशी नहीं मिली है।

लाल किताब ने भी मेष राशि से मीन राशि तक घरों के तथा भावों के हिसाब से राशियों का प्रभाव माना है उसके पीछे यह तर्क है कि मेष राशि जातक का सिर है। वृष राशि मुँह तथा चेहरा, मीन राशि जातक का पैर एवं तलवा माना गया है। अब लाल किताब के अनुसार जो ग्रह जिस घर में बैठा है उस घर को पक्का राशि मान लिया है। जैसे कि ऊपर की कुण्डली में दिखाया गया है इस कुण्डली में राहु पंचम में बैठा है तो प्राचीन ज्योतिष ने उसे कर्क राशि माना है जबकि लाल किताब उसे सिंह राशि मानती है। मंगल चन्द्र से प्रभावित होगा क्योंकि मंगल चन्द्र के घर में बैठा है लेकिन इतना ही देख लेने से बुरा फलादेश में फिर बदलाव होगा क्योंकि मंगल राहु के साथ बैठा है तथा शनि केतु के साथ बैठा है। मंगल के ऊपर गुरु की पंचम दृष्टि है अब मंगल अपनी दशा/अन्तरदशा में जिस घर का स्वामी है वैसा भी फल देगा। मंगल हिम्मत, हौसला, भाग्य, तीसरा बच्चा, परिवार, धन, विद्या के घर का स्वामी है। मंगल विद्या, बुद्धि एवं सन्तान के घर में स्थित है अत: वैसा ही फल करेगा। बुध जैसे जगह, जमीन, पत्नी, साझेदारी के घर का स्वामी है। सूर्य छठे घर का स्वामी है इसलिए परिवार में कुछ बीमारी, मतभेद या लड़ाई-झगड़े का फल भी देगा। छठे घर की दशा में या प्रभाव में जातक किसी के अधीन होकर काम कर सकता है। मंगल राहु के साथ बैठा है, राहु के अन्दर अलगावपन, स्वार्थपन आदि होता है इसलिए ऐसा प्रभाव भी होगा। मंगल खून है, राहु गन्दगी है इसलिए खून में कुछ खराबी होगी। राहु के अन्दर विदेशीपन भी है। पहले लोग एक बड़ी नदी पार करके जब काम करने के लिए जाते थे उसे विदेश माना जाता था क्योंकि उस समय छोटे-छोटे राजाओं का राज्य था। मंगल की दशा, अन्तरदशा में कष्ट, परेशानी आ सकती है क्योंकि मंगल को शनि देख रहा है। शनि बारहवें घर तथा ग्यारहवें घर का स्वामी है। साथ में शनि मंगल का शत्रु है। शनि को दु:ख दर्द, तकलीफ का कारक माना गया है। शनि को देहात गाँव माना गया है। शनि की दशा में जातक देहात में (गाँव में) रहता था बुध को शहर माना गया है। मंगल को केतु देख रहा है इसलिए केतु का फल भी मंगल की दशा, अन्तरदशा में प्राप्त होगा। मंगल पुष्य नक्षत्र में बैठा है जिसका स्वामी शनि है इसलिए शनि से प्रभावित होकर मशीनरी का, लोहे का काम करेगा। जातक ने शनि की दशा में मंगल के अन्दर में टाइप मशीन चलाना शुरू किया जो २००१ तक चलाता रहा। शनि, मंगल तकनीकी ग्रह हैं इस कारण जातक कम्प्यूटर चलाता है। कम्प्यूटर का राहु से भी सम्बन्ध है इसलिए कोई फलादेश करते समय इस व्याकरण को समझ लें तभी सही फलादेश पर पहुँचा जा सकता है। अत: यह समझ लें कि ग्रह जिस राशि में जिस भाव में जिस नक्षत्र में बैठ जाता है और वैसा फल करता है।

लाल किताब और ज्योतिष में बदलाव की आवश्यकता

ज्योतिष तथा लाल किताब एक ऐसी विद्या है जो मनुष्य के चिह्नों या ग्रहों के हिसाब से फलित करते हैं कि जो ग्रह जहाँ पर बैठा है वैसा ही फल करेगा लेकिन कई बार ऐसा नहीं होता क्योंकि कई जगह पर लाल किताब ने सिर्फ कारक को ही लिया है। किन्तु फलित करते समय भाव, भावेश और कारक सभी पर विचार करना चाहिए। यदि सभी आयाम पर धयान देंगे तभी सही फल प्राप्त होगा। ज्योतिष में बहुत से ऐसे योग हैं जो एक-दूसरे को भंग करते हैं इसलिए फलित में अन्तर आता है। मनुष्य की प्रारम्भ से यही कामना रही है कि उसका जीवन सुखी हो। इसी सुख की तलाश में मनुष्य दिन प्रतिदिन रहता है। हमारे शास्त्रों और ऋषि मुनियों ने भी हमारे जीवन को खुशहाल रहने के लिये बहुत खोज की तथा उसको धर्म के साथ जोड़ दिया कि मनुष्य उसको अपनाये और उसके दु:ख तकलीफ दूर होते जायें। धर्म से इस कारण जोड़ा गया क्योंकि उस समय देश की अधिकतर जनता अनपढ़ थी जैसे तुलसी को धर्म से जोड़ा गया कि अपने घर में तुलसी का पौधा लगाया जाये तथा रोज नहा धोकर जल चढ़ाया जाये और २.३ पत्ते रोज खाये जायें तो बीमारी परेशान कम करेगी। तुलसी लगाने से घर में शुद्ध हवा आयेगी और सारे परिवार के लिए तन्दुरुस्ती पैदा होगी। पुराण में लक्ष्मी माता ने तुलसी को अपनी बहन माना है। इसी प्रकार अगर बड़ी सी ताम्बे की गड़वी में रोज नहाकर सूर्य भगवान को जल चढ़ाया जाये तो जल के बीच में सूर्य की जो किरणें शरीर के ऊपर पड़ती हैं वहाँ पर बीमारी समाप्त होती है तथा आरोग्यता बढ़ती है। आँख की रोशनी बढ़ती है। लाल किताब में लिखा है कि अगर किसी का सूर्य, चन्द्रमा, राहु, शनि या केतु के साथ बैठा है तो ऐसे जातक को सूर्य छिपने के बाद दूध-दही-चावल नहीं खाना चाहिए क्योंकि रात को शनि का राज्य है और इस कारण दही खाने से दिमाग मोटा हो जायेगा। वेद में भी लिखा है कि सूर्य छिपने के बाद में दही नहीं खाना चाहिए। इस प्रकार ज्योतिष तथा लाल किताब में बहुत से नीति नियम बनाये हैं जिसको अपनाने से मनुष्य अपने जीवन में आने वाले कष्ट से बच सकता है। । हमारे ऋषि पातंजलि ने जब योग के बारे में लिखा था उस समय इतना शहरीकरण नहीं था और न ही अधिकतर लोग आराम वाला काम करते थे। लेकिन आज शहरीकरण कितना बढ़ गया है जिसमें अधिकतर लोग सारा दिन ऑफ्रिस में बैठकर काम करते हैं जिससे उनकी शरीर की कसरत नहीं हो पाती है। इसलिए आज योग की बहुत आवश्यकता है। मनुष्य अच्छा कर्म करके अपने ५०% कष्ट तो कम कर सकता है जिस तरह से कोई व्यक्ति बीमार नहीं होना चाहता है तो समय से पौष्टिक खाना खाये। नींद पूरी और योग का अभ्यास करे, अच्छा सोच-विचार रखे। सकारात्मक सोचे तो उसकी बीमारी भी कम होगी। उसी प्रकार हमारे रीति-रिवाज हमारे ऋषि-मुनियों ने बनाये हैं जिन्हें अपनाने से मनुष्य की ५०% परेशानियाँ कम हो जाती हैं। ज्योतिष में चन्द्रमा को मन का कारक माना गया है और जब चन्द्रमा शनि राहु केतु से पीड़ित होता है तब मनुष्य के दिल में छोटी-छोटी बातें चुभ जाती हैं और मनुष्य बहुत परेशान हो जाता है। कई बार इतनी परेशानी आ जाती है कि रात को नींद तक नहीं आती है। धर्म-ग्रन्थ ज्योतिष बताती है कि इस संसार में जो कुछ हो रहा है वह भगवान की आज्ञा से हो रहा है। मनुष्य दिन-रात मेहनत करके कमाये और कमाने के बाद अपने परिवार का पालन करे उसके बाद गरीबों और अपाहिजों की भी सेवा करे तथा अपने जीवन में ऐसी चीज़ अपनाये जिसके कारण उसकी दिमागी परेशानी कम हो और जो भी काम करे उसमें उन्नति करता जाये। इन कमियों को पूरा करने के लिए ज्योतिष ने विभिन्न नियम/उपाय बताये हैं जिसके करने से मनुष्य के दु:ख तकलीफ और कष्ट दूर होते हैं। कई लोगों के तर्क होते है कि लोग उपाय बिल्कुल नहीं करते फिर भी ठीक क्यों होते हैं। इसके लिए आप सोचें कि मनुष्य अपने परिवार में रहता है और सब परिवार के लिए एक जैसा खाना बनता है। कुछ लोग उस खाने को खाकर बीमार हो जाते हैं जबकि कुछ लोग बिल्कुल ठीक रहते हैं। उसी प्रकार अध्यापक कक्षा में सभी बच्चों को एक साथ पढ़ाता है, फिर भी उनमें से कुछ प्रथम श्रेणी में, कुछ द्वितीय श्रेणी में, कुछ तृतीय श्रेणी में तथा कुछ फेल तक हो जाते हैं। यहाँ पर पता चलता है कि मनुष्य विधि के विधान से बँधा हुआ है और अपने जीवन में उन्नति करने के लिए जितना विधि- विधान का पालन करेगा उसे उतनी राहत अवश्य मिलेगी चाहे देर से मिले। कुछ लोग पहले से सावधान रहते हैं और वे अपने जीवन में बीमारी नहीं आने देते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जब बीमारी इतनी बढ़ जाती है और उनका कोई चारा नहीं चलता है तब जाकर अस्पताल में पड़ जाते हैं और बिस्तर पर पड़े अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं। अपनी किस्मत को कोसने के स्थान पर पहले नियमों के अपनाना चाहिए जिससे जीवन में कष्ट कम होते जायें। समय के हिसाब से लाल किताब और ज्योतिष में भी कुछ बदलाव की जरूरत है। जिससे आज के समय में उपयोग करके लाभ उठाया जा सके। ज्योतिष एक बड़ी विद्या है और देखा जाये तो जिस तरह से डाक्टरी का कोर्स करने में ५ साल का समय लगता है, वकालत करने में ३ साल का, उसी प्रकार ज्योतिष को समझने और अनुभव करने में समय लगता है लेकिन अगर एक बार अच्छी तरह से समझ लिए जाये तो उसकी बहुत सी परेशानी दूर हो सकती है फिर इनसान सब्र, सन्तोष का जीवन जीना शुरू कर सकता है। जैसे हवन करना बहुत लाभदायक है, क्योंकि जब घर में हवन होता है उस समय घर में सारा धुआँ फैलता है और पहले से जमा गर्म हवा निकल जाती है और छोटे-छोटे कीटाणु मर जाते हैं। कमरे में ताजी हवा आ जाती है। इससे घर शुद्ध हो जाता है और फिर घर में बीमारी भी पैदा नहीं होती। इसी प्रकार अपनी दिनचर्या में सुधार करके ज्योतिष का नियम/उपाय करके मनुष्य अपने जीवन में आने वाले कष्ट से बच सकता है। इसी प्रकार उपाय करके ग्रह के कष्ट से बचा जा सकता है। कुछ लोग कहते हैं कि पण्डित जी हम तरक्की करने वाले देश ज्योतिष/धर्म/अध्यात्म को नहीं मानते फिर भी बहुत तरक्की पर हैं और खुशहाल हैं। ज्योतिष/धर्म/अध्यात्म इनसान के अन्दर सब्र सन्तोष का पालन करवाते हैं और यह बताते हैं कि उसके जीवन में आज जो कष्ट है वह ग्रह के कारण है। कुछ समय बाद अच्छे ग्रह आयेंगे और आपकी सब परेशानी दूर हो जायेगी। समय एक जैसा नहीं रहता है जो कष्ट परेशानी है यह कुछ समय तक ही है। इससे जातक आगे की आशा पर उस कष्ट को भोग लेता है और आने वाले अच्छे समय की तैयारी करता है। अपना अच्छा, बुरा, लाभ, हानि परमात्मा पर छोड़ देता है। रामायण में ठीक ही कहा है:

सुनहु भरत भावी प्रबल विलखि कहत मुनि नाथ -I

हानि लाभ जीवन मरन यश अपयश विधि हाथ - II

यह श्लोक उस समय का है जब भगवान राम वनवास चले जाते हैं और राजा दशरथ की मौत हो जाती है। जब भरत जी बहुत दु:खी होते हैं तब उनके गुरु बताते हैं कि इस संसार में जो कुछ यश/अपयश, लाभ-हानि हो रहा है वह विधि की आज्ञा से हो रहा है। इसलिए जातक अपने जीवन में अच्छा काम करता जाये, बुरे समय, बुरी परिस्थितियों से न घबराये।

इससे यह पता चलता है कि जातक जितना प्रकृति के निकट होगा उतने ही सरल स्वभाव का होगा। ईर्ष्या, क्रोध कम करेगा। उतना खुशहाल होता जायेगा। अपने भाग्य को ठीक रखने के लिये सूर्योदय से एक घन्टा पहले सोकर उठना चाहिए। जिससे सूर्य की पहली किरण आपके घर पर जब आये, तब तक आपके घर में साफ-सफाई हो चुकी हो। ऐसी सूर्य की किरण आपके लिए यश/स्वास्थ्य और धन लेकर आयेगी। सूर्योदय के पहले उठने तथा नहा लेने से ग्रहों का राजा सूर्य कुण्डली में अच्छा फल देना शुरू कर देता है और जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद में उठता है उसका सूर्य खराब हो जाता है।

क्या लाल किताब का फलादेश सही लागू होता है?

हर मनुष्य के चेहरे अलग-अलग किस्म के बने हैं और सबकी किस्मत भी अलग किस्म की होती है। अनुभव यह कहता है कि प्राचीन ज्योतिष और लाल किताब दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं। किसी में कुछ चीजें अच्छी हैं और किसी में कुछ। किसी में कोई चीज़ कहीं पर लागू होती है तो कहीं पर लागू नहीं होती। लाल किताब अस्त ग्रह और वक्री ग्रह पर फलित करते समय नहीं विचार करती है और न हीे चन्द्र लग्न की कुण्डली से विचार करके फलित करती है। लाल किताब ने लग्न को मेष राशि मान कर ग्रह जिस भी घर में बैठे हैं उन्हीं से फलित कर दिया है। साथ में दशा/अन्तरदशा पर भी धयान नहीं दिया सिर्फ अपने वर्ष फल और गोचर के ग्रहों से फलित कर दिया है। जबकि प्राचीन ज्योतिष सब पर विचार करके साथ में नवाँश कुण्डली और चलित कुण्डली पर भी विचार करके फलित करती है। लाल किताब में हर ग्रह के दो रूप दिये गये हैं कि यदि ग्रह अच्छा है तो ऐसा होगा और यदि ग्रह खराब है तो ऐसा होगा। लेकिन उसके नियम नहीं बताये हैं कि एक ही ग्रह एक घर में किस तरह अच्छा हो जाता है और कैसे खराब हो जाता है। इसलिए आम व्यक्ति पढ़ कर परेशान हो जाता है जितना भी आसान तरीके से बातें लिखी होंगी उतना अधिक लोग पढ़ कर लाभ उठा पायेंगे। अगर लग्न में सूर्य बैठा है या मंगल बैठा है तो लाल किताब ने अच्छा माना है अगर उसके साथ शनि, राहु, केतु बैठे हैं या उनकी दृष्टि में है तब वह ग्रह कमज़ोर एवं खराब माना जाता है। अगर कोई ग्रह अपने शत्रु राशि या नीच राशि में बैठा हुआ है तो भी ग्रह खराब ही माना जाता है। चाहे लाल किताब में राशियों को नहीं माना जाता है सिर्फ घरों को माना जाता है लेकिन अनुभव में ऐसा आया है कि शत्रु राशि और नीच राशि के बारे में तथा खराब ग्रह के बारे में लाल किताब ने संकेत में लिखा है। प्राचीन ज्योतिष में लग्न और चन्द्र लग्न दोनों को फलित करते समय धयान रखा है। कई जगह चन्द्र लग्न से फलित इतना सटीक बैठता है जितना लग्न से फलित नहीं बैठता है। चन्द्र लग्न से गजकेसरी योग, अनफा, सुनफा और दुरूधर योग एवं इसके अतिरिक्त अन्य कई योग बनते हैं। प्राचीन ज्योतिष विद्या लग्न, चन्द्र लग्न और सूर्य लग्न तीनों को फलित करते समय विचार करके फलित करती है। साथ में ग्रहों से कई योग बनते हैं उनका पूरा धयान रखती है। साथ में यह भी देखती है कि कौन सा ग्रह कुण्डली में किस नक्षत्र में बैठा है वैसा फल अपनी दशा/अन्तरदशा में करेगा। हमारे हिसाब से जब किसी कुण्डली का फलित करते हैं तो ४०% फल दशा/ अन्तरदशा से ज्ञात होता है। ३०% फल गोचर के ग्रहों से तथा ३०% फल लाल किताब के वषर्फल से पता चलता है। अब अगर एक चीज से फलित करेंगे तब फल लागू नहीं होगा। जिस तरह लाल किताब ने हर घर में ग्रह बिठा कर उसका फलित कर दिया है और वह फलित सिर्फ ३०% तक लागू होता है। उनमें से कुछ पर तो यह फलित बिल्कुल सही लागू होता है और कुछ पर बहुत कम और कुछ पर नहीं लागू होता है। जैसे किसी के गुरु सप्तम में बैठा है तब लाल किताब ने लिखा है ऐसे जातक के शयन कक्ष में मूर्ति लगी होती है। किसी कुण्डली की सही जाँच पड़ताल करते समय यह फलित बताना चाहिए तथा उपाय के तौर पर शयनकक्ष में से मूर्ति हटा देनी चाहिए। उसे या तो धर्म स्थान पर रखवा दें या बहते पानी में प्रवाहित करवा देनी चाहिए। मूर्ति के स्थान पर कैलेण्डर लगा सकते हैं। इसी प्रकार यदि किसी के अष्टम में शनि बैठा है तो उसके पैरों में चोट लग सकती है या पैरों से सम्बन्धित बाधा/रुकावट आ सकती है। यदि मशीनरी, ट्रांसपोर्ट आदि का कार्य करेगा तो घाटा खायेगा क्योंकि शनि इन चीजों का पक्का कारक है और आठवाँ घर खराब है। यह फलित अनुभव से देखा है कि ५०% तक लागू होता है लेकिन कईयों पर लागू नहीं होता। हो सकता है कि उनकी कुण्डली चन्द्र कुण्डली से अच्छी हो गयी हो या दशा अच्छी चल रही हो। इसलिए फलित करते समय अगर कुछ फलित लाल किताब से मिल जाता है और कुछ फलित प्राचीन ज्योतिष से मिल जाता है पूरा फलित लागू न होने के कारण अधिकतर लोग नहीं मानते क्योंकि अधिक जटिल रूप में लाल किताब लिखी गयी है इसलिए यह सबके समझ में नहीं आती है और लोग इसको मानने को तैयार नहीं होते हैं। कुछ चीजों के दान को भी मना किया गया है तथा यदि अष्टम में ग्रह बैठे हैं और दूसरा खाली है तब धर्म स्थान में जाने की मनाही करता है कि इससे अष्टम में सोये हुए ग्रह जाग जायेंगे और खराबी पैदा करेंगे। अगर लाल किताब में जो कुछ लिखा है उसको विस्तार से समझकर तथा उपायों को वैज्ञानिक तरीके से समझाया जाये तो लोग अवश्य मानेंगे। जैसे लाल किताब में लिखा है कि जब श्मशान घाट के आसपास से जायें तो रुपया-दो रुपया गिरा दिया करें। इससे दैवीय सहायता प्राप्त होती है। यह उपाय तान्त्रिक है लेकिन दैवीय सहायता कैसे मिलेगी? श्मशान घाट शंकर भगवान का घर है। जिस प्रकार ब्रह्मा ही ने पैदा किया, विष्णु भगवान ने पालन किया तथा शंकर भगवान ने समाप्त कर दिया इसीलिए श्मशान घाट में शंकर भगवान की मूर्ति स्थापित की जाती है। शंकर भगवान बहुत कल्याणकारी एवं दानी हैं इसलिए जल्दी खुश हो जाते हैं। शिव का मतलब होता है कल्याणकारी। उन्होंने सम्पूर्ण सृष्टि को बचाये रखने के लिए जहर पी लिया था। इसलिए उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। ताम्बे का पैसा सूर्य है जो आत्मा से सम्बन्ध रखता है और जातक श्मशानघाट के अन्दर ताम्बे का पैसा गिरा देता है जब उसके ऊपर भगवान शंकर दैवीय शक्ति प्रदान कर देते हैं। लाल किताब में बहुत सारे उपाय इतने आसान तरीके से लिखे है जो बहुत कम पैसे खर्च करके किये जा सकते हैं। अगर इस किताब के वैज्ञानिक तरीकों को अच्छी तरह से समझाया गया हो तो इसे बहुत से लोग मानना शुरू कर देंगे। इसी कारण हमने इसको बहुत आसान तरीके से लिखा है और समयानुसार जिस तरह हर चीज़ में बदलाव की जरूरत होती है उसी प्रकार से लाल किताब में भी कर दी गयी है। लाल किताब १९३७ से १९५२ में लिखी गयी थी उस समय अधिकांश लोग नदी नहर का पानी पीते थे उस पानी को शुद्ध रखने के लिए लाल किताब चलते पानी में कच्चा कोयला, ताँबें का पैसा जल में प्रवाह करने को लिखा है लेकिन अब लोग नल का या टंकी का पानी काम में लेते हैं। नदी, नहर का पानी तो अब जानवर भी कम पीते हैं अगर ऐसे उपाय करवायें जाये जिसमें जन-जन का कल्याण हों, जैसे मरीज की दवा कराई जाये, किसी गरीब लड़की की शादी में मदद की जाये, गरीब बच्चों को पढ़ाया जाये, अन्धो, लूले-लंगड़े तथा अपने कमज़ोर रिश्तेदारों एवं दोस्तों की मदद की जाये तो यह उपाय भी वैसा ही लाभ देगा। हमारे उपाय ऐसे हों जिसे आसानी से किया जा सके तथा समय और पैसे का खर्च भी कम हो तो बहुत लोग इससे लाभ उठाना शुरू कर देंगे। जैसे सूर्य के उपाय के तौर पर लिखा है कि अगर व्यक्ति नमक कम खाता है तो उसका सूर्य अच्छा है। नमक को शनि माना गया है जो सूर्य का दुश्मन है। अधिक नमक खाने से हड्डी गलना शुरू हो जाती है और अधिक नमक शरीर के अन्दर उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) बढ़ा देता है अर्थात् अधिक नमक से शरीर को नुकसान होता है। इसलिए लाल किताब में लिखा है कि कुण्डली में अच्छे सूर्य की पहचान है कि वह व्यक्ति नमक कम खाता है। आँख का सम्बन्ध प्राचीन ज्योतिष ने सूर्य चन्द्रमा से माना है और एक आँख सूर्य की, एक आँख चन्द्रमा की मानी गयी है क्योंकि दिन में रोशनी सूर्य की और रात में रोशनी चन्द्रमा की होती है। इस संसार में मनुष्य अपनी आँख से देख कर सब काम करता

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