Seemaon Se Pare
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About this ebook
इस पुस्तक में लेखक ने अपनी बाईक से की गई लगभग 10000 किलोमीटर की एक रोमांचक यात्रा का वर्णन किया है, जिसमें वो वाराणसी से प्रारंभ कर उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, जम्मू कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और मध्यप्रदेश के कई स्थानों का भ्रमण करते हैं। इस पुस्तक में लेखक ने अपने यात्रा अनुभवों के साथ स्थानों के इतिहास पर भी प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
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Book preview
Seemaon Se Pare - Abhishek Verma
सीमाओं से परे
एक यात्रा: इतिहास के पन्ने पलटते हुए
AUTHORS CLICK PUBLISHING
Area no.55, Ashok Vihar, Phase 2,
Bilaspur, Chhattisgarh 495001.
www.authorsclick.com
Copyright © 2024, Abhishek Verma
All Rights Reserved
ISBN: 978-81-19368-71-6
Printed in India
No part of this book may be reproduced, transmitted, or stored in a retrieval system, in any form or by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, manual, photocopying, or otherwise, without permission in writing from the author.
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सीमाओं से परे
एक यात्रा: इतिहास के पन्ने पलटते हुए
अभिषेक वर्मा
अनुक्रमणिका
––––––––
1. यात्रा का विचार कैसे आया?
2. यात्रा की तैयारियां
3. प्रभु राम की अयोध्या और तहजीब का शहर लखनऊ
4. कुमाऊँ का प्रवेश द्वार हलद्वानी
5. झीलों का जिला नैनीताल और कैंची धाम
6. कुमाऊँ की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा और रानीखेत
7. पवित्र नगरी हरिद्वार की यादें और योग नगरी ऋषिकेष
8. महादेव की नगरी केदारनाथ की कुछ यादें
9. देहरादून और पर्वतों की रानी मसूरी
10. हरा भरा शहर शिमला
11. सेव का खेत कुल्लू और वैली ऑफ गॉड मनाली
12. खतरनाक दरों का बर्फीला रास्ता मनाली से लेह
13. अविश्वसनीय लद्दाख
14. लेह से श्रीनगर तक का एडवेंचर
15. झीलों और बगीचों का शहर श्रीनगर
16. मां वैष्णोदेवी दर्शन कटरा
17. स्वर्ण मंदिर का शहर अमृतसर
18. सुनहरा शहर जैसलमेर और शापित कुलधरा
19. नीला शहर जोधपुर
20. तीर्थराज पुष्कर और अजमेर, किशनगढ व खाटू श्याम जी के दर्शन
21. वीरभूमि चित्तौरगढ़
22. महाकाल नगरी उज्जैन
23. कुछ गलतियां और टिप्स
24. मेरा अनभव
1. यात्रा का विचार कैसे आया?
जीवन एक यात्रा है और इस यात्रा में भी कई छोटी छोटी यात्राएं हैं। जब यातायात के साधन विकसित नहीं हुए थे, तब भी हमारे पूर्वज पगडंडियों से पैदल चलकर लंबी दूरियां तय करते थे और वास्तव में देखा जाए यही यात्राएं सभ्यता के विकास, संस्कृतियों के जुड़ाव, व्यापार एवं मानव के उत्थान का आधार रही है। जब भी हम किसी नई जगह पर जाते हैं नए लोगों से मिलते हैं तो हम कुछ न कुछ सीखते हैं। कई यात्राएं तो ऐसी रही है जिसने संपूर्ण विश्व के इतिहास को ही बदल कर रख दिया है। अगर कोलंबस समुद्र में भटककर अमेरिका न पंहुचा होता और वास्कोडिगामा को भारतीय उपमहाद्वीप का समुद्री मार्ग ना मिलता, तो क्या इतिहास वैसा ही होता है जैसा कि आज है। यात्रा करना मानव का स्वभाव है क्योंकि हमारे आदि पूर्वज तो घुमंतू ही थे, ये यात्राएं ही मानव को एक दूसरे से जोड़कर ज्ञान के आदान प्रदान करने और जंगली मानव को ज्ञानी मानव बनाने में सहायक हुई हैं। लेकिन आजकल के भौतिक युग में मानव ने खुद को सीमाओं में बांध लिया है, उसे खुद के लिए एक दिन निकलने के लिए भी दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर मन के अंदरूनी हिस्से में देखा जाए तो यात्रा करना तो सभी को पसंद होता है, मुझे भी है। मुझे बाइक से यात्रा करना ज्यादा अच्छा लगता है क्योंकि इससे आप हर छोटी बड़ी जगह जा सकते हैं, अगर आप ट्रेन या प्लेन से यात्रा करते हैं तो सीधे जहा जाना है वहीं पहुंचते हैं रास्ते में न जानें कितने पर्यटन स्थल छूट जाते हैं। इसलिए यात्रा के लिए बाइक मेरी पहली पसंद है, में कार से भी यात्रा करने से बचता हूं क्योंकि में उतना अच्छा ड्राइवर नहीं हूं और कार से अकेले यात्रा करना भी मज़ेदार नहीं है व भीड़भाड़ वाले पर्यटन स्थल पर ट्रेफिक एक बड़ी समस्या है, बाइक ट्रैफिक में नहीं फसती। मुझे बाइक से घूमने का शौक तो बचपन से है जब मुझे साइकिल चलाना भी नहीं आता था तब से। और यह शौक मुझे मेरे पापा को देख कर आया है मेरे पापा को भी बाइक चलाने का शौक है। बचपन में मैं और मेरा छोटा भाई अतुल पापा के साथ जब भी नाना के घर जाते थे तो हम हमेसा बाइक से ही जाते थे, हमारे नाना का घर विदिशा जिले में है जो कि हमारे घर से लगभग 180 किलोमीटर दूर है। उस समय हमे ये यात्रा करने में लगभग 8 10 घंटे लग जाते थे क्योंकि हम दोनो भाई बहुत छोटे थे इसलिए पापा संभाल कर गाड़ी चलाते थे और उस समय रोड़ भी इतने अच्छे नहीं थे, और कई जगह हमे खिलाने पिलाने रुकते थे इसलिए ज्यादा समय लगता था। वह बाइक यात्रा मेरे जीवन के सर्वश्रेष्ठ अनुभवों में से एक है, ये बिलकुल किसी पिकनिक जैसा फील देता था।
बचपन में जब स्कूल जाना होता था तो मम्मी के कई बार उठाने पर ही में उठता था। लेकिन जब नाना के घर जाना होता था तो मम्मी के उठाने से पहले ही खुद ही उठ जाता, नाना के घर जाने से ज्यादा उत्सुकता रास्तों की रहती थी। जल्दी जल्दी तैयार होते और बहुत खुशी से सभी तैयारियां करते। सुबह सुबह मम्मी कुछ हल्का नाश्ता बनाती, थोड़ा बहुत खा कर घर से निकलते थे। मुझे आज भी याद है पापा बाइक चलाते मेरा छोटा भाई अतुल बीच में बैठता और में उसके पीछे अपने हाथ से पापा के पेट को पकड़ कर बैठ जाता था। आपस में बात करते हुए अतुल रोड में रास्ते में आने जाने वाले ट्रक गिनते थे और लड़ते थे कि पहले किसने देखा, पहले किसने देखा। अक्सर जब पता चल जाता था कि कल जाना है तो हमारी छोटी बहन शाम को ही हम लोगों को उसकी रखी हुई टॉफी देती थी हम दोनों जेब में भरकर रखते थे ताकि गाड़ी पर बैठे-बैठे खाई जा सके, हमारे घर से लगभग 30 किलोमीटर दूर बुधनी में नर्मदा नदी के पुल को पार करते समय हम लोग पुल पर रुककर नदी में सिक्के डालते थे, हर हर नर्मदे कहकर आगे बढ़ जाते थे। इसके बाद ही रास्तों का असली मजा शुरू होता था क्योंकि यहां से अब्दुल्लागंज से थोड़े पहले तक विंध्याचल के बहुत घने जंगल है, और रातापानी अभ्यारण क्षेत्र से होकर भी गुजरना पड़ता है। जंगल से मोहम्मद अल्वी साहब का एक शेर याद आता है।
वो जंगलों में दरख़्तों पे कूदते फिरना,
बुरा बहुत था, मगर आज से तो बेहतर था।
जब हम इन रास्तों से जाते थे तो हरी भरी पहाड़ियां, झरने और बंदरों के बैठे हुए झुंड देखकर बड़ा मजा आता था। कभी-कभी हम लोग बुधनी से चना, चिरौंजी ले जाते थे ताकि बंदरों को खाने के लिए डाल सकें। जब रातापानी अभ्यारण से गुजरते थे तो कई जगह बोर्ड पर बाघ की पेंटिंग बनी होती थी और लिखा रहता था, सावधान जंगली जानवर रोड क्रॉस कर सकते हैं
यह देखकर मन में बड़ी उत्सुकता होती थी कि कोई जंगली जानवर, बाघ, शेर, तेंदुआ तो नहीं दिखे पर बंदरों के अलावा मैंने उन जंगलों में कभी किसी और जानवर को नहीं देखा। जब हम अब्दुल्लागंज पहुंच जाते थे तो यहां पर रूक कर कुछ हल्का-फुल्का खाते पीते थे। उसके बाद हम अक्सर खाना खाने के लिए रायसेन में रुका करते थे, वहां रुकने के दो फायदे ते एक तो खाने का सही समय हो जाता था और 900 साल पुराने रायसेन के किले को घूमने का मौका मिलता था। एक बार जब अतुल और में पापा के साथ इस किले में घूम रहे थे तो, पापा ने बताया था कि इस किले के बारे में एक किवदंती प्रसिद्ध है की इस किले के राजा राजबसंती कर के रूप में अपनी प्रजा से लोहे के टुकड़े लेता था। क्योंकि उन के पास एक पारस नाम का पत्थर था जिसे अगर लोहे से छुआ दिया जाए तो वह सोने का बन जाता था। ये सुनकर अतुल ने बहुत सारे पत्थर इकट्ठा किए और उन्हें हमारी गाड़ी से छुआ कर देखने लगा, गाड़ी तो सोने की नही हुई पर ऐसी कहानियों से किलों के बारे में एवं नई जगहों के बारे में जानने की उत्सुकता पैदा हुई। रास्तों का लुफ्त उठाते हुए हम लोग विदिशा पहुंच जाते हैं वहां पर कभी कभार सांची के स्तूप, उदयगिरि की गुफाएं, हेलिओडोरस स्तंभ जैसी प्राचीन कला को देखते। देखकर आश्चर्य होता था की इतनी पुरानी चीज़े आज तक बची हुई हैं, पापा इन सब चीजों का वर्णन इतने अच्छे से करते हैं कि अपने आप ही ऐतिहासिक चीजों के बारे में एवं देश के नए-नए स्थानों को घूमने की रुचि बढ़ती गई। जब मैं छोटा था तो मुझे बाइक चलाने का बहुत मन करता था और पापा यह बात जानते थे, वह कभी-कभी मुझे गाड़ी पर आगे बैठा कर गाड़ी का हैंडल पकड़ा देते थे, मैं बहुत खुश होता था, मुझे लगता था में बाइक चला रहा हूं। मेरा हमेसा मन करता था की जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो बाइक से बहुत दूर दूर जाऊंगा। जब मैं बाइक चलाना सीख गया तो मैं घर से कॉलेज और कोचिंग करने के लिए होशंगाबाद बाइक से आने लगा पर लंबी दूरी की यात्रा करने की अनुमति घर से नहीं मिली। कालेज में पढ़ाई के दौरान मेरी उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में नौकरी लग गई व मेरी पहली पोस्टिंग बनारस में हुई जो कि मेरे घर से लगभग 750 किलोमीटर दूर था। पहली बार किसी लंबी दूरी की बाइक यात्रा यहां से घर तक की बाइक यात्रा थी जिसकी प्रेरणा मुझे मेरे मित्र और मेरे सहकर्मी लक्ष्मीनारायण गुर्जर को देखकर मिली, वह भी मेरे पड़ोसी जिले भोपाल का रहने वाला था। गुर्जर उस समय मेरा रूममेट था, जब लॉकडाउन लगा था बस और ट्रेन सब बंद थी तब वह गुर्जर ही था जिसने बाइक से भोपाल तक जाने की हिम्मत की थी। उसी को देखकर मैं भी प्रेरित हुआ। जब में कपसेटी में पोस्टेड था, वहां से में पहली बार बाइक से घर आया था। बाइक के मीटर में यह दूरी 792 किलोमीटर की थी जो कि मैंने 15 घंटे में तय की और रास्ते में मैहर में शारदा माता और जबलपुर में भेड़ाघाट भी घूमा। इस यात्रा के दौरान मुझे काफी अच्छा लगा और आत्मविश्वास जागृत हुआ कि मैं संपूर्ण भारत में बाइक से यात्रा कर सकता हूं। वैसे तो में कई स्थानों पर हवाई मार्ग और रेल मार्ग द्वारा भ्रमण कर चुका हूं लेकिन अब मेरी इच्छा थी कि में बाइक से अपने पूरे देश की यात्रा करूं, । पर इसमें भी एक समस्या थी एक साथ मुझे इतनी लंबी छुट्टी नहीं मिल सकती थी कि मैं संपूर्ण भारत यात्रा एक बार मैं कर सकूं। इसलिए मैंने इसे पूरा करने के लिए सबसे पहले उत्तर भारत की यात्रा करने का विचार बनाया इसके लिए मेने कागज पर 7300 किलोमीटर की यात्रा का रूट मैप तैयार किया और उत्तर प्रदेश के वाराणसी से प्रारंभ कर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान होते हुए मध्यप्रदेश मेरे घर होशंगाबाद से होकर वाराणसी तक की यात्रा करने की ठानी। और इसके लिए मेने मई और जून महीने को चुना क्योंकि इस समय उत्तर के राज्यो में सभी मार्ग खुल जाते हैं और मैंने इसके लिए तैयारियां शुरू कर दीं।
*****
2. यात्रा की तैयारियां
यात्रा की प्लानिंग करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण था, कि यह निर्धारित करूं की छुट्टियां कब से लेना है। उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव होने के कारण 15 मई तक मुझे छुट्टी मिलना मुश्किल था, इसलिए मैंने अपनी यात्रा को चुनाव के बाद करने की निर्णय लिया, इसके लिए मैंने पापा मम्मी से चर्चा करने के बाद 30 दिवस का उपार्जित अवकाश का प्रार्थना पत्र 18 मई से लिखा। लेकिन प्रार्थना पत्र लिखने का मतलब यह नहीं की 18 मई से मुझे छुट्टी मिल ही जाती, यह सब तात्कालिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि आपके क्षेत्र में किसी वीआईपी का आगमन या कोई त्यौहार या कोई विशेष स्थिति होती है तो कोइ विशेष परिस्थिति न होने के कारण छुट्टी में कुछ देरी हो सकती है, हालांकि छुट्टी तो मिल ही जाती है। इसलिए मैंने यात्रा के लिए तैयारी शुरू कर दीं, सबसे पहले मैंने यूट्यूब पर ऐसे लोगों की वीडियो देखी जिन्होंने बाइक से भारत यात्रा की थी, लेकिन इतने कम समय में इस रूट की इतनी लंबी यात्रा किसी ने नही की थी। इसलिए मैंने कई अलग अलग लोगों की विडियो देखी, ब्लॉग पढ़े जिससे मुझे तैयारी करने में मदद मिली। मेरी यात्रा में कौन-कौन सी चीजें मेरे लिए उपयोगी होंगी, उनकी जानकारी मुझे मिली व रास्ते में पड़ने वाली समस्याओं से मैं अवगत हुआ। बहुत सारी वीडियो देखने और ब्लॉग पढ़ने के बाद मैंने जरूरी चीजों की लिस्ट बनाई और उन्हें खरीदना शुरू किया, सबसे जरूरी चीज बाइक राइडिंग, संबंधी गैजेट्स थे जोकि हर कहीं मिल भी नहीं रहे थे। बनारस में भी सिर्फ एक दो ही दुकान थी जिस पर ये सब चीज मिलती थी, वहां पर भी मैं गया लेकिन कीमतें बहुत ज्यादा और ऑप्शन बहुत कम थे, इसलिए मैंने ऑनलाइन खोजना शुरू किया। पहले मैंने कुछ संपर्कों के जरिए दिल्ली में दुकानों पर पता करवाया यहां पर रेट तो ठीक-ठाक थे पर साइज और क्वालिटी यहां से चेक करना और गलत सामान आ जाने पर वापस होने की कोई गारंटी ना होने और सारे पैसे पहले मांगने के कारण मेने यहां से भी समान नहीं खरीदा। अब मैं अमेजॉन फ्लिपकार्ट जैसे शॉपिंग प्लेटफार्म पर इन सब चीजों के लिए सर्च करने लगा यहां पर जिस रेंज में चाहिए था और जिस क्वालिटी का चाहिए था बहुत सारे विकल्प उपलब्ध थे। मैंने राइडिंग जैकेट जिसमें की चेस्ट और पीठ पर 2 लेवल सुरक्षा के लिए हार्ड रबर मौजूद थी, घुटने और पैर की सुरक्षा के लिए नी कैप, कोहनी और हाथ के लिए एल्बो गार्ड, हार्ड ग्लव्स, पेट्रोल रखने का केन, गाड़ी को सुधारने के लिए बेसिक उपकरण, गाड़ी में हवा भरने के लिए पंप आदि की खरीददारी की। एक तरफ तो में ये सब तैयारी बड़े जोर सोर से कर रहा था, पर जब तक छुट्टी कन्फर्म नही हुई मन में एक कसक बनी रही की छुट्टी कब होगी? इन सब चीजों के अलावा मैंने खाने पीने के लिए कुछ कॉफी के पैकेट, कुछ सूप के पैकेट, बेसिक दवाइयां और सूखे मेवे भी लिए।
न्यूज पर देखने पर पता चला की मनाली लेह मार्ग और लेह से श्रीनगर मार्ग पर बर्फबारी हो रही है व इसके कारण कई रास्ते बंद है। इस बात ने मेरी फिक्र को और बढ़ा दिया क्योंकि न मेरे पास समय था और न मुझे अब तक यह भी पता था कि मुझे कब से जाना है। मैने सोच रखा था अगर उस तरफ के रोड बर्फबारी के चलते बंद रहते हैं, तब भी में जहां तक संभव होगा वहां तक की यात्रा करूंगा, लेकिन बर्फबारी कारण अपनी यात्रा को कैंसिल नहीं करूंगा। मैं अपना बैग पैक करता रहा, कुछ जोड़ी पैंट शर्ट, टी-शर्ट, ठंडी के लिए पर्याप्त कपड़े रखे, इसके अलावा कैंपिंग टेंट, स्लीपिंग बैग आदि रखें ताकि में यात्रा के दौरान कैंपिंग का भी लुफ्त उठा सकू। खाने पीने की कुछ सूखी चीजें एवं दिनचर्या में उपयोग होने वाली कुछ जरूरी चीजें भी मैंने पैक की। 15 मई तक मेरी सब तैयारी कंप्लीट हो चुकी थी। मैंने यात्रा का एक कच्चा मैप पहले ही बनाया था कि मैं कहां-कहां जाऊंगा अब उसे और मोडिफाइड करके मैंने अपनी यात्रा शेड्यूल की। इस यात्रा में मैं नर्मदा नदी के उत्तर में बसे राज्यों को कवर करने वाला था, समय थोड़ा काम था इसलिए मैंने यह डिसाइड किया कि भले ही रात में भी गाड़ी चलाना पड़े लेकिन जिस स्थान पर जितना समय मैंने प्लान किया है उससे ज्यादा नहीं दूंगा और कोशिश करूंगा कि समय की बचत करूं।
16 मई को शाम को मुझे पता चला कि मेरी छुट्टी हो गई, मेरी छुट्टी 18 तारीख से थी। मुझे 17 मई को यहां से निकलना है, पुलिस विभाग में आप छुट्टी से एक दिन पहले 12:00 बजे के बाद रवानगी करके जा सकते हैं। मतलब मुझे 17 की दोपहर में यहां से अपनी यात्रा शुरू करनी थी, इसके लिए मैंने आज अपनी गाड़ी को सर्विस कराने के लिए दे दिया ताकि रास्ते में कोई दिक्कत ना आए। अपनी यात्रा की सारी पैकिंग में खुद कर रहा था घर से दूर रहने का कहीं ना कहीं अफसोस रहता है क्योंकि अगर में घर होता तो सारी पैकिंग मम्मी करती, मुझे किसी बात की फिक्र की जरूरत नहीं होती कि मैं कोई भी भूल जाऊंगा या मुझे क्या पैक करना है और क्या नहीं यह सारा काम मम्मी खुद कर लेती और खाने पीने की चीजें एवं अन्य जरूरत के सभी सामान मां रख देती। मैंने अपने दोनों बैग पूरे तरीके से पैक तो कर लिए थे सब कुछ हो जाने के बाद भी मन में ऐसा लग रहा है कि कुछ भूल ना जाऊं, मैं अपने बैग को बार-बार चेक कर रहा था, कई सामान अभी मैंने बैग में नहीं रखे थे जैसे मोबाइल का चार्जर, ब्लूटूथ, डेली यूज की कुछ चीजें। इतना ज्यादा लगेज बाइक पर ले जाने की भी समस्या थी, छोटा बैग तो मैं पीठ पर टांग के ले जा सकता था लेकिन जो ट्रॉली बैग था उसे रखने की समस्या थी, इसके लिए मैंने दो रबड़ की डोरी से बैग को गाड़ी के पीछे बांध कर देखा तो वह सही से बंध रहा था। ट्रॉली बैग में मैं ने उन चीजों को रखा जिन्हें निकालने की जरूरत मुझे कभी-कभी थी जैसे कैंपिंग टेंट, स्लीपिंग बैग, कपड़े, सर्दी के कपड़े, गाड़ी सुधारने के उपकरण, दवाइयां आदि, और छोटे बैग में मैं ने उन चीजों को रखा जिनका उपयोग मुझे यात्रा के दौरान करना था, जैसे की खाने-पीने की चीज, पानी की बोतल, रुमाल, मंजन ब्रश, मोबाइल चार्जर आदि।
कल दोपहर में अपनी यात्रा शुरू करने वाला था, और कल शाम अयोध्या में रूकने वाला था, और कल रात में ही अयोध्या के दर्शन करने वाला था, जिन दोस्तो और सीनियर अधिकारियों को मेरी यात्रा के बारे में पता था उन्होंने कॉल कर बधाई दी और कुछ सुझाव दिए। आज रात मेरे लिए काफी लम्बी और उत्सुकता से भरी बीती, मैंने रात में ही वे सभी चीज बाहर रखी थी जो मुझे कल पहन कर जाना था।
*****
3. प्रभु राम की अयोध्या और
तहजीब का शहर लखनऊ
इस यात्रा की सबसे खास बात यह थी कि 7300 किलोमीटर की यात्रा मुझे अकेले ही करनी थी, लगभग एक महीना मुझे घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करना था। आगे आने वाली परिस्थितियों का बिल्कुल भी अनुमान नहीं था, यह सोच रहा था कि जैसा-जैसा रूट में बनाया है सब कुछ वैसा होता चला जाए। आज मेरी उस लंबी यात्रा की शुरुआत होने वाली थी जिसका इंतजार मुझे लंबे अरसे से था, वैसे तो मैने दोनो बैग की पैकिंग कल ही कर ली थी, लेकिन फिर भी मन में कहीं ना कहीं ऐसा लग रह था