Lal Kile ki Pracheer se Bharat ke Pradhanmantri : Bhag-2 (1976-2000) (लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रंधानमंत्री : भाग-2 (1976-2000)
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'लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री' शीर्षक से तीन भागों में प्रकाशित इस पुस्तक से आपको निःसंदेह तत्कालीन परिस्थितियों, सरकारों तथा प्रधानमंत्रियों के विजन से अवगत होने का अवसर प्राप्त होगा।
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Book preview
Lal Kile ki Pracheer se Bharat ke Pradhanmantri - Dr. Ramesh Pokhriyal 'Nishank'
इंदिरा गांधी
19 नवम्बर, 1917-31 अक्टूबर, 1984
(कार्यकाल)
14 जनवरी, 1966 से 24 मार्च, 1977
14 जनवरी, 1980 से 31 अक्टूबर, 1984
15 अगस्त, 1976 को
लाल किले के प्राचीर से
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
भारत के निवासी मेरे भाई-बहनों, प्यारे बच्चों,
जब भी मैं यहाँ झंडा फहराती हूँ तो उस दिन की याद आती है, जब पहली दफ़े आजाद भारत का झंडा यहाँ जवाहर लाल नेहरू ने फहराया था। वो बात याद आती है कि किस मुसीबत और कष्ट और कुर्बानी से यह देश गुजरा, किन आशाओं को ले के हमने यहाँ पर अपना झंडा फहराया। आज जब हम पीछे देखते हैं इन वर्षों की तरफ, तो यह देखते हैं कि जो रास्ता अपने सामने हमने रखा था, उस पर काफी दूर हम आगे बढ़े हैं। साथ ही साथ भूल भी हुई है, गलतियां भी हुई हैं, काम में कमी भी हुई है। और जितना ही हम आगे बढ़े, उतना ही हमने देखा कि रास्ता आगे का कितना ज्यादा लम्बा है, यह देखा कि कुछ माँगें अगर पूरी होती हैं तो बहुत-सी माँगे नई खड़ी हो जाती हैं। लेकिन यह जीवन का ऐसा ही रास्ता होता है। हमारी कोशिश रही है कि जो आदर्श हमारे महान नेताओं ने हमारे सामने और देश के सामने रखे, उसी पथ पर हम कदम आगे बढ़ायें।
आजादी अनेक प्रकार की होती है। हमने पूर्ण स्वराज्य के लिए लड़ा और उसे प्राप्त किया और यह उचित ही था, क्योंकि दूसरे किसी प्रकार की स्वतंत्रता को सच्चे मायने में स्वतंत्रता नहीं कह सकते हैं। पूर्ण स्वराज के मायने केवल यह नहीं है कि आप अपने प्रतिनिधि को चुनें, केवल मायने यह नहीं है कि जो अखबार लिखना चाहें, चाहे वह बहुत ही कम लोगों की आवाज उठाते हों, वह इज्जत मिले उनको। पूर्ण स्वराज्य के मायने हैं कि स्वराज्य के फल, स्वराज्य के नतीजे भारत के घर-घर तक पहुँचे। उन लोगों तक पहुँचे जिनकी आवाज नहीं उठ सकती, उन लोगों तक पहुँचे जिनको शायद ठीक से मालूम भी नहीं है कि वे क्या चाहते हैं, उन लोगों तक पहुँचे जो आज तक सब सुविधाओं से वचिंत रहे हैं। उस स्वराज्य की तरफ हम अपने देश को आगे ले जाने की कोशिश कर रहें हैं, लेकिन यह रास्ता बनाने में बहुत रोड़े आने वाले हैं। किसी न किसी वर्ग के, किसी न किसी गुट के या किसी न किसी व्यक्ति के हित पर कुछ थोड़ा सा धक्का लगता है। हम चाहते हैं कि सबके जीवन में सुधार लाएं, बड़े सा बड़ा हो चाहे वह छोटे से छोटा हो। लेकिन आज आप सोचें तो आपको खुद यह मालूम होगा कि जिसके पास आज भी है, उसको अगर और ज्यादा मिलता जाता है तो जिसके पास नहीं है उसे कैसे कुछ मिल सकेगा? यही कारण है कि हमारा कार्यक्रम है तो सब भारतीयों के लिए, लेकिन ज्यादा ध्यान उन वर्गों पर दिया जाता है, जो कमजोर कहलाते हैं। चाहे किसी कारण कमजोर हों - जाति के कारण, आर्थिक स्थिति के कारण, देश के किसी पिछड़े हुए इलाके में रहने के कारण।
तो हर कदम पे किसी न किसी से टक्कर खानी होती है। वह टक्कर हमने खाई, लेकिन हमने अपने पैर डगमगाने नहीं दिए और आज मुझे खुशी होती है, यह कह के कि इन पिछले वर्षों में कितनी उन्नति हमारे देश ने की है।
एक कार्यक्रम हमने जनता के सामने रखा। उसमें कुछ सरकार के कर्त्तव्य थे और कुछ जनता के कर्त्तव्य थे। क्योंकि एक नया अनुशासन आया, क्योंकि एक नई भावना - आशा की, उम्मीद की जनता के दिलों में उत्पन्न हुई, तो हमने इस कार्य में सहयोग दिया। मैं यह नहीं कहती हूँ कि वह कार्य पूरा हो गया या जितना हम समझते थे, जितना हम सोचते थे, वह भी पूरा हुआ। ऐसा नहीं हुआ। लेकिन तब भी ठोस, और जोरदार कदम आगे बढ़े हैं और काम चालू है। यह सब जगह बराबर तो नहीं है, जहाँ भी जनता जागरूक है, जहाँ के कार्यकर्ता मजबूत हैं, वहाँ पे वह काम और तेजी से आगे बढ़ा है। आप सब को तो मालूम है कि उत्पादन कितना बढ़ा। करीब 7 प्रतिशत हमारे देश की उन्नति हुई है। इसी प्रकार से जो हमारे गरीबों को घर देने का कार्यक्रम था, उसमें 70 लाख परिवारों को घर मिले हैं। बिजली बहुत बढ़ी है, दो हजार मेगावाट तक। सिंचाई का कार्यक्रम तेजी से बढ़ा है और हमारी आशा है कि और तेजी से बढ़ेगा। जमीन सुधार का कार्यक्रम भी जितना हम चाहते थे उतना अभी भी नहीं हुआ। यह कोई नया कार्यक्रम नहीं है, बहुत पुराना है लेकिन अभी भी जहाँ पे जमीन बँटवारा होता है, वहाँ पे नये प्रश्न उठ खड़े होते हैं। क्योंकि दूर-दूर जगह हैं। सब जगह हमारी आँख भी नहीं पहुँच सकती और ठीक से उसकी खबर लोग समय पर नहीं देते हैं, तो बहुत सी गलतियां भी होती हैं। यह सब मुझे मालूम है और इसीलिए हर साल यहाँ और जहाँ भी मैं बोलती हूँ मैं इसी बात पे जोर देती हूँ कि जब तक जनता, चाहे वह किसान हों, चाहे वह मजदूर हों, चाहे वह गरीब हों या कोई और नागरिक हों, जब तक वह स्वयं इसको हाथ में नहीं लेंगे कि जहाँ भी अन्याय हो उसकी तरफ ध्यान दिलाकर, केवल शिकायत के रूप में नहीं, सुझाव दिलाएं कि यह यहाँ पे गलती हुई है हम और आप मिल के इस गलती को सुधार सकते हैं। यह भावना थोड़ी बहुत बढ़ी है। हम कह सकते हैं कि पिछले साल में जो जनता का सहयोग मिला, जो जनता में जागृति हुई, वह पहले से कहीं ज्यादा है। लेकिन मैं यह नहीं कहना चाहती हूँ कि पहले कभी काम नहीं हुआ। अगर पहले बहुत मजबूत बुनियाद इस देश के उपयोग और कृषि के कार्य की नहीं डाली गई होती, तो यह उन्नति हम इस पिछले वर्ष में नहीं कर सकते थे। साथ ही यह भी सच है कि वह बुनियाद होते हुए भी, अगर अनुशासन नहीं आता, और जनता के दिल में यह सहयोग की भावना नहीं आती, तो कितनी भी मजबूत बुनियाद रखें, उसे हम एक सुन्दर भारत नहीं बना सकते। आपको याद होगा कि उसके पहले कितनी अनुशासनहीनता हो रही थी, चाहे स्कूल कालेज हों, चाहे कारखानों में, चाहे हमारे शहरों की सड़कों पर हो, एक आर्थिक कठिनाई के जमाने में, आवश्यक वस्तुओं की जब पहले से ही कमी थी, वह कमी और बढ़ी क्योंकि उत्पादन रुक गया, सब तरफ हड़ताल के नारे उठे, क्रांति के नारे उठे। आपको मालूम है कि हम भी क्रांति में विश्वास करते हैं। गांधी जी को मैं मानती हूँ कि वह सबसे बड़े क्रांतिकारी इस देश के थे। लेकिन उनकी क्रांति का रास्ता था अहिंसा का रास्ता, मैत्री का रास्ता, शांति का रास्ता। अगर उनके रास्ते से हम भटक जाते तो हम चाहे कितने ही बहादुर हों, कितने ही योग्य हों, तो शायद आज भी यह भारत स्वतंत्र नहीं होता।
लेकिन, क्योंकि हम गांधी जी के रास्ते पर पैर टिका कर आगे बढ़े तो हमने देश को स्वतंत्र कराया, हमने लोकतंत्र की नींव डाली। हर प्रकार से देश की मजबूती और शक्ति को बढ़ाया। चाहे लोग कितने ही आरोप लगाएं, कितनी ही भारत की निन्दा करें, कोई नहीं है दुनिया में जो यह कह सकता है कि आज भारत जितना मजबूत है, हर प्रकार से, वैसा कभी भी वह नहीं रहा है। कोई यह नहीं कह सकता कि बिना इस ताकत के भारत आगे बढ़ सकता है। बिना ताकतवर हुए हम या अपना उद्योग बढ़ा सकेंगे या जनता को कुछ सुख और आराम दे सकेंगें।
हम समझते थे कि एक दफे आजादी की लड़ाई लड़ी तो हमेशा के लिए हम आजाद हो गए, लेकिन हम क्या देखते हैं कि कभी-कभी तो फौजी हमले भी होते रहते हैं, लेकिन उससे भी खतरनाक हैं जो गुप्त तौर से हमले होते हैं, जो दिखाई नहीं देते हैं। अब यह देश और समाज विरोधी आवाजें पहले भी हम सुन रहे थे, लेकिन इस पिछले वर्षों में बहुत सी आवाजें खुले तौर पर निकली हैं। इन लोगों ने भारत की सहायता नहीं की, लेकिन उन देशों की सहायता की जहाँ पर या तो फौजी सरकारें थीं या दूसरे प्रकार की कोई ऐसी सरकार थीं जहाँ जनता की आवाज बिलकुल नहीं उठ सकती थी। उस जमाने में ऐसे देशों की; ऐसी हुकूमतों को मदद हुई है। किसी ने आवाज नहीं उठाई कि कहाँ पे हत्या हुई है, एक आदमी की नहीं, दो आदमियों की नहीं, कहीं सैकड़ों में, कहीं हजारों में, कहीं लाखों में। यह लोग आज हैं कि भारत की तरफ आँख दिखाते हैं।
लेकिन आपको याद होगा कि यह पहली दफा नहीं है। जब गांधी जी जीवित थे तो उनके बारे में भी अनेक प्रकार की बातें कही जाती थीं। उनके बाद जवाहरलाल नेहरू के बारे में कही जाती थीं और उसके बाद मेरे ऊपर हमला शुरू नहीं हुआ था, तो भारत के बारे में कही जाती थीं। भारत अणु शक्ति का विस्फोट क्यों करें बड़ा भारी खतरा सारी दुनिया को हो रहा है और दूसरे देश चाहे बम पर बम बनाकर जमा करे, चाहे अरबों रूपये खर्च करें, लेकिन उनसे कोई खतरा नहीं है, उनकी कोई निंदा नहीं है। उल्टे और कोशिश हो रही है कि उनको हथियार बेचें जाएं। लेकिन हम अगर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कुछ काम करते हैं, तो वह गलत काम होता है।
जब हमने इस्पात का काम शुरू किया तो यह कहा गया कि गरीब देश में, जहाँ गाँवों में इतनी कठिनाई है, वहाँ इस देश को इस्पात और लोहे की क्या आवश्यकता है। अब आप जानते हैं कि किसी भी आधुनिक देश की बुनियाद है इस्पात। इससे किसान की जरूरतें पूरी होती हैं कारखानों की जरूरतें पूरी होती हैं और हजार तरीकों से साधारण जनता की माँगे उससे पूरी होती है। आज यह सब काम, यह बुनियाद, यह नींव अगर जवाहरलाल नेहरू ने नहीं डाली होती तो हम सब तरफ से भीख माँगते होते। लेकिन बहुत सी चीजों की आज भी जरूरत है, तब भी हम भीख किसी से नहीं माँगते।
कुछ ही साल पहले लोग कहते थे कि भारत अपनी जनता को कभी भी नहीं खिला सकेगा। लेकिन आपको मालूम है कि इस बार यहाँ 12 करोड़ टन अनाज पैदा हुआ है इस साल हमारी कठिनाई यह नहीं थी कि अनाज नहीं है, यह कठिनाई थी कि उसको रखें कैसे? कहाँ पे रखें। यह सच है कि अबकी अच्छी वर्षा हुई, लेकिन यह भी सच है कि अगर सरकारी सहायता नहीं मिलती और अगर हमारे मेहनती किसान भाई वह सहायता लेने को और नये तरीकों को अपनाने के लिए तैयार नहीं होते तो यह उत्पादन नहीं हो सकता था। कुछ जगह वर्षा की कमी हुई है सूखा पड़ा है, विशेषकर दक्षिण भारत में, तमिलनाडु में, और दूसरी जगह, और कुछ जगह जरूरत से ज्यादा वर्षा हो रही है। तो हमारे किसानों को इससे भी भारी कष्ट है। मेरी पूरी सहानुभूति उनके साथ है। लेकिन हमको मालूम है कि सबका ये सामना कर लेंगे। हमको यह भी मालूम है कि कैसे वे मजबूत हो रहे हैं। उनको नई जानकारी से विज्ञान और तकनीक द्वारा उनकी ताकत को हम बढ़ा रहे हैं। ताकि हर चीजों का वे सामना कर सकेंगे। आगे देखना यह है कि पहाड़ी इलाकों की क्या आवश्यकता है? रेगिस्तान की क्या आवश्यकता है? जहाँ बहुत बारिश पड़ती है, बाढ़ आती है, वहाँ की क्या आवश्यकता है? इस प्रकार से हमारी योजनाएं बनेंगे तो देश समाज आगे बढ़ेगा। यह नहीं कि सब कहें कि इस्पात का कारखाना हो जाए या कोई और बड़ा कारखाना हो जाए लेकिन जो सामान हमारे पास है, उसका कैसे पूरा-पूरा उपयोग किया जाए। यह सोच जब हम फैला सकेंगे, तब और तेजी से हमारा देश और हमारी जनता आगे बढ़ सकेगी।
आज हमारे सार्वजनिक कारखाने हैं, जिनकी बड़ी निन्दा हमारे समाचार पत्रों में होती थी। हमारे बड़े-बड़े उद्योगपति हमेशा कहा करते थे कि सरकार से तो कारखाने चल ही नहीं सकते, उसमें तो नुकसान ही नुकसान है। हमने देखा कि उनमें से बहुतों ने बहुत मुनाफा किया है और उनका उत्पादन बढ़ा है। आज जो वृद्धि हुई है हमारे उत्पादन में, वह इन्हीं सार्वजनिक क्षेत्र के कारखानों के द्वारा हुई और हमारी पूरी आशा है कि जो थोड़े से है, जहाँ की आमदनी संतोषजनक नहीं है, वह भी तेजी से अपना काम सुधारेंगे, पूरी इसकी कोशिश हो रही है। तो हर समय, हर तरफ हमको देखना है और यह तब होगा जब प्रत्येक नागरिक अपने कर्त्तव्य को समझेगा। मैं अपने मजदूर भाइयों और बहनों को बता देना चाहती हूँ कि उनके काम से यह सुधार और यह वृद्धि हुई है।
कुछ घंटे बाद आज ही शाम को मैं यहाँ से श्रीलंका जा रही हूँ। आप को मालूम है कि जहाँ पर एक बड़ा सम्मेलन गुटनिरपेक्षता का, हो रहा है। वहाँ भी मुख्य प्रश्न हम सबके सामने यही है कि अपनी आजादी को कैसे सुरक्षित रखें। आजादी केवल सीमा की नहीं, लेकिन आजादी अपनी विचारधारा की है, आजादी अपनी दिशा की, आजादी अपने को मजबूत करने की, अपने देश में विकास और उन्नति करने की है। क्योंकि हम सब के एक ही प्रश्न हैं, अगर हम एक दूसरे की सहायता करते हैं, एक दूसरे से सहयोग करते हैं, तो एक बड़ी भारी ताकत हो जाती है। गुरूदेव ने कहा कमजोरी की ताकत - कमजोर लोग भी अगर दृढ़ता से मजबूती से कुछ करें तो एक जबरदस्त ताकत हो जाती है। हमारा भी अनुभव यही रहा है। आजादी के आंदोलन के जमाने में क्या ताकत थी भारत की जनता की? तब केवल गरीबी और गुलामी का डर था, लेकिन क्योंकि हम एक हो गए, क्योंकि हम न निन्दा से, न मजाक से, अपने रास्ते से हटे तो यह एक दुनिया की उस समय की सबसे बड़ी शक्ति से ज्यादा हमारे गरीब किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों, की ताकत उनसे भी बड़ी हो गई, फौज से भी बड़ी हो गई। यह ताकत आज के गरीब देशों में हमको लानी है। मुश्किल यह है कि कुछ देश ऐसे हैं, जो दूसरे के कहने में आ जाते हैं। वह समझते हैं कि अगर कुछ मदद मिल जाए तो अभी मदद ले लें। वह यह नहीं देखते कि यह मदद कैसी है? अगर उनकी स्वतंत्रता पर जरा भी आँच आए, तो उस मदद से वे मजबूत नहीं हो सकते हैं, भविष्य में भी वे मदद ही माँगते रहेंगे। हमने भी मदद ली है सब देशों से, इस प्रकार की सरकारी विचारधाराओं के देशों से और मजबूती से लेकिन एक चीज में हम डट कर रहे। हमारी नीति, हमारी विचारधारा यह है कि हर प्रकार से हम अपने देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं और इसको देखते हुए, बिना थोपे हुए, जो मदद हमें देना चाहता है उसकी मदद हमको स्वीकार है। लेकिन किसी भी शर्त पर हम मदद नहीं लेना चाहते हैं। यह शुरू से हमने कहा और इसी पर हम डटे रहे और आगे भी। इस पर भी अगर हमारी निन्दा है तो इसलिए नहीं कि यहाँ पर कुछ कदम लिए गए या कुछ थोड़े से लोग मंद हैं या समाचारपत्रों पर कुछ पाबंदी है। बल्कि इसलिए है कि वह देख रहे हैं कि एक गरीब देश किस दृढ़ता से आगे बढ़ रहा है, किसी दूसरे की परवाह न करते हुए और इसी तरह से हमको आगे बढ़ना है। जो हमारी निन्दा करते हैं, मैं तो उनसे एक ही बात कहना चाहती हूँ कि जितनी वे निन्दा करेंगे, जितनी कोशिश करेंगे हमे कमजोर करने की, यह हमारी ताकत बनेगी, उसी से हम और मजबूत होंगे और उससे भी ज्यादा तेजी से अपने रास्ते पर चलते रहेंगे।
आपने यह पिछले वर्षों में भी देखा कि जब भी हम पर हमला हुआ, हम उससे डरे नहीं। विरोधी लोग टूट पड़े, पर उसका सामना करते हुए हम आगे बढ़े। यह देश, भारत का इतिहास, एक संघर्ष का इतिहास रहा है, मुसीबतों का इतिहास रहा है। और यह हमारा भारत एक सहनशीलता का देश रहा है। शांति का देश रहा है। लेकिन साथ-साथ यह याद रखें कि यह वीरता का देश रहा है, दृढ़ता का देश रहा है, आदर्शों का देश रहा है। आज प्रत्येक नागरिक को यह हमारा इतिहास याद रखना है। यह सोचना है कि नए भारत के वे प्रतिनिधि हैं, नये भारत के वे प्रतीक हैं, नए भारत के वे चेहरें हैं। चाहे हमारे होनहार बच्चे हों, चाहे बूढ़े, आज यह जिम्मेदारी हर एक के कंधों पर है। मुझे भरोसा है कि भारत का हर नागरिक इन बातों को समझने की कोशिश करेगा। कौन प्रशंसा करता है, कौन बुराई करता है, यह सब जीवन में बहुत छोटी-सी बातें हैं। प्रश्न हमारे सामने एक ही है कि किस रास्ते पर हम देश को आगे ले जा सकते हैं। किसी को अच्छा लगे या बुरा लगे - यह दृष्टिकोण से हमको आगे बढ़ना है। एक बात और हमारे सुन्दर बच्चे ठीक से नहीं पढ़ेंगे, खेलकूद में रूचि नहीं लेंगे तो उनका शरीर न मजबूत बन सकता है, न उनका मन मजबूत हो सकता है। अगर यह युवा पीढ़ी मजबूत नहीं हुई, अगर यह रचनात्मक कार्य में नहीं पड़ी, अगर उनमें देश प्रेम, देश भक्ति नहीं हुई, तो फिर यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी, सबसे बड़ी हानि देश की होगी।
फौजें देश की सीमा को सुरक्षित रखती हैं और हम सब का कर्त्तव्य है कि हम अपनी सेनाओं पर गर्व करें। लेकिन सेना तभी बहादुरी से लड़ सकती है, जब, उसके पीछे एक बहादुर मजबूत देश रहे। तो आज के दिन हम अपने इतिहास को देंखें और साथ ही साथ अपने भविष्य को देखें। हम यह निर्णय करें कि देश किस दिशा में जाएगा, कितना मजबूत होगा, कितनी प्रगति करेगा। यह किसी दूसरे की जिम्मेदारी नहीं है, यह किसी दूसरे की मदद से नहीं होगा, यह हमें अपने हाथ और पैर से, अपने दिल की मजबूती से अपने दिमाग की तेजी से हम सब को आपको और हमको मिलके करना है। और यह भावना अगर होगी तो इस भारत को कभी कोई पीछे नहीं हटा सकता। मुझे पूरा विश्वास है कि यह जो थोड़ा सा अनुशासन आया है इसको हम और अपनी शक्ति से बढ़ा सकेंगे।
कुछ चर्चा बहुत है कि यहाँ जो आपातकाल की घोषणा हुई, यह न कभी वापस आएगी। यह कोई नहीं देखता कि कई महीनों से उसमें ढील दी जा रही। और ढील का नतीजा क्या हुआ? क्या जो लोग झूठे हैं उन्होंने जरा भी यह मालूम किया कि हिंसा और इस प्रकार के आन्दोलन से, काम रोकने से देश की हानि होती है? या वे उसी रास्ते पर आज भी चलने को तुले हुए हैं? यह प्रश्न हमको पूछना है। हमारे हाथ में नहीं है कि क्या होगा, यह उन लोगों के हाथ में है जो देश को तोड़ने में लगे थे, जो देश में अनुशासहीनता फैलाने में लगे थे, जो ऐसे गुटों को और व्यक्तियों को प्रोत्साहन दे रहे थे, जिन्होंने कभी भी न लोकतंत्र में विश्वास रखा है, न जिस प्रकार की स्वतंत्रता में हम विश्वास करते हैं या गुटनिरपेक्षता में विश्वास करते हैं या साम्प्रदायिकता से लड़ने में विश्वास करते हैं, जो कभी भी हमारी विचारधाराओं से सहमत नहीं रहे उनको हमने आन्दोलनों में प्रोत्साहन दिया था।
तो हमको यह देखना है कि जब हम आगे बढ़ रहे हैं, जब बहुत वर्षो बाद पहली दफ़े गरीबों के लिए कार्यक्रम आरम्भ हुए हैं और सफलता से आगे बढ़ रहे हैं, चाहे जितनी तेजी हम चाह रहे थे, उतनी नहीं हैं। इतने बड़े देश में कोटि-कोटि की जनता में अगर 70 लाख परिवारों के लिए मिले तो बहुत छोटा है। लेकिन जहाँ एक को भी पहले नहीं था तो 70 लाख बड़ा भी है। अगर हम कहें कि नहीं वह 70 लाख भी नहीं चाहिए तो फिर दूसरे लोगों को कैसे मिलेगा?
तो यह समय है जब इन चीजों में गहराई से हमको विचार करना है। हम नहीं चाहते कि सरकार की तरफ से या किसी संस्था की तरफ से जोर हो और न हमने इसकी कोशिश भी की है। हम चाहते हैं कि हर एक, अपने दिल से सोच कर, अनुशासन, देश सेवा, इन सब में लगे। आप सब को तो मालूम है कि गांधी जी हमेशा कहते थे कि कोई अधिकार नहीं है, जो कर्त्तव्य से नहीं निकलता है। इस प्रकार से अधिकार आएंगे, अपना कर्त्तव्य समझ कर, तब सच्चा लोकतंत्र आ सकेगा। एक लोकतंत्र जिसमें गरीब से गरीब की आवाज सुनी जाए, जिसमें कोई भी केवल अपने आर्थिक या सामाजिक बलबूतों के कारण दूसरों पर हावी न हों, जिसमें हर एक जाने कि अगर हमारे अधिकार हैं तो हमारे जो गरीब भाई और बहन हैं और जहाँ हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना है, उतना ही उनके अधिकारों के लिए भी लड़ना है। यह भावना आएगी, तब अधिकार सबको मिल सकते हैं। जब तक हम सोचते हैं कि कुछ लोगों को अधिकार मिलने चाहिए, कुछ लोगों की आवाजें उठनी चाहिए, दूसरों का चाहे कुछ भी हों, इसी तरह से हमने अपनी आजादी खोई थी और इस भूल में हमको फिर से नहीं पड़ना है।
तो मैं यही आपसे कहूँगी कि हम याद रखें कि यह भारत बलिदान की भूमि है। आज उस प्रकार का बलिदान नहीं चाहिए, आज हिम्मत चाहिए कि हम हिम्मत से, दृढ़ता से जिएँ, एक नया जीवन बनायें अपने देश के लिए और अगर इस महान कार्य में सब लगेंगे, तो हम अपने देश को बहुत ऊँचा उठा सकेंगे और याद रखिए कि देश के मायने धरती या पेड़ या पहाड़ नहीं हैं, क्योंकि उनसे भी हम प्रेम करते हैं और उनको हम सुन्दर बनाने में, सुधारने में लगे हैं, लेकिन जब देश कहते हैं, तो इस देश की कोटि-कोटि जनता है, उसको ऊपर उठाना है।
उनके घरों में सुख और आराम पहुँचाना है, उनकी इच्छाओं को हर प्रकार का सौंदर्य हमको देना है। इस महान यात्रा में हमारे संग आप कदम से कदम, मिला के चलें, यही आज के दिन मेरी आपसे कामना है।
आपको मैं इस दिन की शुभकामनाएं देती हूँ और भविष्य के लिए शुभकामनाएं देती हूँ। मेरे संग मिलकर सब बच्चे, बड़े, बूढ़े, नौजवान जयहिंद… सब बोलेंगे।
जयहिन्द ! जयहिन्द ! जयहिन्द !!!!
बोलो - भारत माता की… जय।
मोरारजी देसाई
29 फरवरी, 1896-10 अप्रैल, 1979
(कार्यकाल)
24 मार्च, 1977-28 जुलाई, 1979
15 अगस्त, 1977 को
लाल किले के प्राचीर से
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई
बहनों और भाइयों,
तीस साल पहले अंग्रेज इस देश को इसी दिन छोड़ गए। भारत आजाद हुआ। जवाहर लाल जी ने इस ऐतिहासिक जगह पर हमारा आजाद झंडा फहराया और इसी दिन गांधी जी ने कलकत्ता में शांति की स्थापना की। इसी ऐतिहासिक भूमि पर हम आज यहाँ आजादी के तीस साल हुए हैं। जैसे हर साल तीस साल से जो सलामी देते आये, वो हम देते हैं। तीस साल हमारे गुजरे। इसमें कई ऊँच-नीच हमने देखे, कभी गम और खुशियाँ मनाई। कई मुसीबतों से भी गुजरे। हमने कुछ तरक्की भी की। खासकर के उद्योग में, शिक्षा में हम काफी आगे बढ़े हैं और खेती में भी हमने कुछ किया। मगर इस तीस साल में हमारे ऊपर तीन हमले भी हुए। लड़ाइयों में से हम अच्छे ढंग से बाहर निकले कुछ मजबूत भी हुए और हमारे देश के स्वाभिमान को काफी मौकों पर बताया। हमने तरक्की की, लेकिन सबको पहुँची नहीं। खासकर के साठ-सत्तर फीसदी लोगों को उसका लाभ बहुत कम मिला। मैं किसी का दोष निकालना नहीं चाहता। दोष हमारा सबका ही है, लेकिन जो कुछ हुआ उससे हमें सीखना तो चाहियही, क्योंकि हम सीखते नहीं जाएंगे और वो ही गलतियाँ दोहराते आयेंगे, तो जिस मकसद के लिये हमने आजादी हासिल की थी वो मकसद हमारे देशवासियों को सबको सुखी बनाना, प्रसन्न बनाना और दुनिया में हम सब देशों में हमारी भारतीय संस्कृति को ऊँचे उठायें और हम उन्नत मस्तक से सारी दुनिया के उपयोग में आयें ये मकसद हमारा पूरा नहीं हुआ है। तीस साल में पूरा होना पिछले इतिहास को देखते हुए सम्भव भी नहीं था, लेकिन सबसे ज्यादा जो हमारी कमी रही वो कमी थी, हम कुछ गांधी जी के रास्ते से भटक गये, कुछ पश्चिम के अनुकरण में पड़ गए। वो भी थोड़ा सा स्वाभाविक तो था, परन्तु हमारे देश की संस्कृति के लिये जो गौरव हमें होना चाहिये, वो गौरव पूरा आज भी हमें नहीं होता है। इसीलिए हम इस रास्ते से भटक गए। देश की परिस्थिति कुछ काफी गए छह साल में बिगड़ी। लोकतंत्र खतरे में पड़ा, दुनिया में हमारी इज्जत बिल्कुल गिर गई। लोगों को ऐसा अनुभव होने लगा इस देश में लोकतंत्र चल नहीं सकता है और भारतीय लोग लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते। काफी इससे नुकसान पहुँचा, भय का वातावरण छाया रहा, काफी जुलम भी हुआ। दो साल तक इमरजेंसी ऐसे लादी गयी जो लादना नहीं चाहिये था। इसमें जिन्होंने लादी उनके दिल में भी शक नहीं रहना चाहिये और कुछ लोग कुबूल भी करते हैं। गलती करना इतना खराब नहीं है जितना की गलती पर कायम रहना, उसका बचाव करना और फिर से करते रहना। इमरजेंसी के दौरान जनता को काफी कष्ट उठाना पड़ा, भय से घिरे हुए रहे और देश कहाँ पहुँचेगा इसमें निरंतर।
परन्तु, जैसे ही चुनाव जाहिर किया गया और जिन लोगों को बंद रखे थे, उनकी तादाद हजारों की संख्या में थी, लाख से भी ज्यादा होगी उनको भी छोड़ना शुरू किया गया और तब से देश में एक नई हवा फैली, देश में निराशा हटने लगी। भय का वातावरण हटा, पूरा हटा ऐसा तो मैं नहीं कह सकता। भय एकदम नहीं जाता मगर जो अंतिम चोटी पर पहुँच गया था वो काफी कम हो गया है। चुनाव में जनता ने जो जनता पार्टी जनता के कहने से बनी हिन्दुस्तान में गये कई सदियों में एक नया दौर शुरू हुआ। हम आपस में लड़ते आये पंद्रह सदी से और इसीलिए हम कमजोर हो गये थे। हमारी लड़ाइयाँ रहीं। हम एक का दो-दो का चार बनाना जानते थे मगर दो का एक नहीं बना सकते थे। इसीलिए हमारी हालत ऐसी हुई। आजादी के बाद भी यही हालत राजकीय दलों की रही और दलों को भी रही। हर एक ने यही एक का दो होना, टुकड़े होना यही चालू रहा। पहली बार वे दौर बदला। पाँच दल एक हुए और एक बने और इससे भी ज्यादा जो बात बनी है वो ये हुई कि सबने अपनी-अपनी पहले की बातें छोड़कर गांधी जी का रास्ता कबूल कर लिया और इसी रास्ते पर जाने का निश्चय किया और राजघाट पर जाके जो लोग चुने गये थे उन्होंने वहाँ शपथ भी लिया। इससे एक नया दौर शुरू हुआ। मगर ये नया दौर शुरू हुआ है। काफी काम करना हमारे लिए जरूरी है। हमारी सबकी जिम्मेवारी बढ़ती है खासकर के जिनके हाथ में राज की बागडोर दी गयी है जनता ने दी है बढ़े उत्साह से दी है, बड़े उमंग से दी है, बड़ी आशाओं को लेकर दी है। उनका कर्त्तव्य सबसे ज्यादा है उनको अपने जीवन से देश की ऐसी सेवा करनी होगी कि जिससे जनता भी उसके बराबर दो कदम आगे रहे वो निर्भय बनें और देश ऐसा ऊँचा उठे कि दस साल के भीतर हम सारी दुनिया में सबसे सुखी बन जाएं। ये काम हमें सबको करना है। काफी इसमें दिक्कतें हैं। जो काम छह-सात साल में हुआ इससे कई मुसीबतें पैदा कर दी गयी हैं, कई खराबियाँ हुई हैं वो सारी दुरूस्त किए बगैर काम शुरू करने में कठिनाइयाँ हैं।
हम इसके काम में लगे हुए हैं। उसको हमें बराबर तेजी से पार करना है। जितना जल्दी हो उतना जल्दी हमें इन खराबियों को दूर करके आगे का रास्ता तेजी से हमें पकड़ना है। मैं आशा करता हूँ कि इस सबमें हमारा सबका साथ रहेगा। जनता का साथ रहेगा और जिनको राज चलाने के लिए सुपर्द किया है वो जनता की सेवा के काम में हमेशा लगे रहेंगे न कि हुकम करने के काम में। यही राज चलाने वालों का काम है।
हमारी कई कठिनाइयाँ हैं खासकर के जो हमारा पिछड़ा वर्ग है और इसकी संख्या कम नहीं है, बहुत बड़ी है। वो पिछड़ा न रहे उसके दिल में उमंग हो, निर्भयता हो, किसी प्रकार का डर न हो, कुछ चिंता न रहे वो सबके बराबर बन जाएं बल्कि आगे निकले मैं तो आशा करता हूँ ऐसी हालत हमें पैदा करनी है, खासकर के हमारे हरिजन भाइयों पर कई जगह अभी भी जुल्म हो रहा है। हाँ, जो लोग पहले, पाँच महीने पहले तक विरोधी पक्ष को बदनाम किया करते थे हर एक चीज में वो लोग आज भी उसी उद्यम में लगे हुए हैं, मगर इसकी मैं चिंता नहीं करता। हमारा काम बराबर रहेगा, जो लोग ऐसा काम करेंगे उनको भी सुधरना पड़ेगा, समझना पड़ेगा यही विश्वास पे हम चलते हैं, परन्तु हरिजनों पर जुल्म हो सकता है, इसका इंकार कोई नहीं कर सकता। जहाँ तक अस्पृश्यता पूरी-पूरी जाती नहीं है वहाँ तक ऐसी हरकतें होती रहेंगी। तीस साल में इस दिशा में जितना काम हमें करना चाहिये उतना काम हमने नहीं किया इसमें हम सब जिम्मेवार हैं। पाँच साल में ये कलंक हमें खत्म करना है, धो देना है। यही कलंक की वजह से हमने आज तक काफी दुःख उठाए हैं। इस पाप का बदला हमें भुगतना ही पड़ता है। ये छोटा पाप नहीं था बहुत बड़ा पाप इस देश में हुआ और हम करते रहे। आज भी उसमें से हम पूरे निकले नहीं हैं। इसमें से हमें निकलना है और पाप से हमें बचना है और उसका प्रायश्चित भी हमें पूरा करना है। वो नहीं करेंगे वहाँ तक देश को सुखी बनाने की ताकत हममें आ नहीं सकती है।
इसीलिए पाँच साल में इसको पूर्ण खत्म कर देना है। इतना ही नहीं मगर हमारे सब देशवासी एक के बराबर सब सरीखे बनें इस ढंग से हमें बराबर हवा करनी है और हर एक के दिल में ऐसी भावना बनी रहे ऐसा ख्याल होता रहे, ऐसा अनुभव होता रहे इस तरीके से हमारा काम हमें करना है। सरकारी अधिकारियों को अपना रुख बदलना पड़ेगा। बदलना चाहिये। मैं उनको इतना दोष नहीं देता जितना दोष जो लोग उनको हुक्म देने वाले हैं उनको दिशा दिखलाने वाले हैं, उनको देता हूँ। हमारा दोष होगा जो हम राजतंत्र को पूरा-पूरा लोगों की सेवा में न कर दें ये दोष हमारा होगा मगर अधिकारियों को भी ये सोचना होगा, उनका भी कर्त्तव्य है कि वो लोग बिगड़े इससे उनको नहीं बिगड़ना चाहिये वो लोगों के सेवक हैं। लोगों के पैसे उनको मिलते हैं सेवा करने के लिये, ये सेवा उनको पूरी करनी चाहिये, वो सबके सब बराबर अपना काम करें, ये ज़ुल्म सारा खत्म हो जाएगा, कोई जुल्म नहीं कर पायेगा ऐसी हवा हम कर सकते हैं। इसीलिए उन सबको हमने हिदायतें दी हैं कि इस तरीके से करो और नहीं करेंगे वो कसूरवार होंगे, वो शिक्षा के पात्र बनेंगे इसमें भी मुझे कोई शक नहीं है। इस ढंग से हमें आगे बढ़ना है और देशवासियों को पूरा-पूरा विश्वास दिलाना है और उनके दिल में विश्वास हो तभी हमारा काम ठीक होगा ऐसा मैं मानता हूँ। इसीलिए जनता से भी मेरी प्रार्थना है कि जनता इसमें बराबर जागरूक रहे, निर्भयता से काम करे और जब तक जनता निर्भयता से काम नहीं करती तब तक राज चलाने वाले भी कुछ हिल जाते हैं। जनता जागरूक रहेगी निर्भय होके अपनी बात बराबर कहेगी तब भी कभी गलत तरीके से काम नहीं कर सकेंगे।
करने का काम करेंगे तो उनको हटना पड़ेगा तेजी से हटना पड़ेगा यही जनता की शक्ति हम पैदा करना चाहते हैं और इसीलिए हम ये चाहते हैं कि हमारे देहातों में हमारी अस्सी फीसदी जनता रहती है। वहाँ हमारी बेकारी काफी है। गाँव से लोग भाग-भाग कर शहरों में आते हैं। शहरों में गंदी बस्तियाँ बसती हैं और बढ़ती रहती हैं और जिम्मेवारी इसीलिए बढ़ती जाती है। जो लोग ऐसी बस्तियों में रहते हैं, अच्छा नहीं रह सकते। मैं भी ऐसी बस्तियों में रहूँ तो मैं भी ऐसा बन ही जाऊँ कि इसलिए ऐसी बस्तियों को हमें बिल्कुल ठीक कर देना है। मगर ऐसी बस्ती बने नहीं, इसलिए देहातों को हमें ऐसा बनाना है, ऐसा उनका विकास करना है कि जिससे देहातों में से कोई शहर की तरफ न दौड़े। मगर शहरवासी अपनी तंदरूस्ती के लिये देहातों में जाएं, ऐसी हवा हमें पैदा करनी है। इसीलिए बहुत बड़ा काम हमें करना है। काम मुश्किल है। मगर काम है, करने लायक है और मुश्किल काम में हम उम्मीद से आगे बढ़ें, तब ये काम हम कर सकते हैं। निराशा का कोई कारण नहीं है। निराशा इंसान को मारने वाली होती है। निराशा इंसान को खत्म कर देती है। भय का वातावरण निराशा पैदा करता है। भय के वातावरण से निकलना है। इसलिए राजतंत्र को जनता को पूरी सहायता पहुँचानी है, जिससे जनता निर्भय बने। यही काम राजतंत्र का सबसे ज्यादा जरूरी है। ऐसा मैं मानता हूँ। ये जब तक नहीं होगा तब तक हमारा सब काम ढीला चलेगा पूरा हम नहीं कर पायेंगे। ऐसा मैं मानता हूँ। इसीलिए इस काम की ओर हम लगे हुए हैं।
कई कठिनाइयाँ होती हैं। जनता पार्टी बनी है, नई बनी है इसमें भी जो पहले की बातें हैं उसमें से कुछ आ जाए तो हमको ये नहीं समझना चाहिये जनता पार्टी कमजोर हो जाती है, जनता पार्टी इसमें से मजबूत होके निकलेगी। बराबर मजबूत होगी और इसे कोई तोड़ नहीं पायेंगे ये मेरा विश्वास है। और इसमें मैं जनता की सहायता चाहता हूँ। आपको कोई भी गुमराह करना चाहे, उसमें आप नहीं फंसे, यही मेरी आपसे प्रार्थना है। आपको कोई भी शंका आशंका हो। मुझसे पूछें मुझे कहो मैं उसका बराबर खुलासा करूंगा और जहाँ दुरूस्ती करनी हो वहाँ मैं, और मेरी साथी दुरूस्ती करेंगे, यही विश्वास में आपको दिला सकता हूँ। इसीलिए चाहिये कि आप जागृत रहें आप बेखौफ रहें आप बिलकुल निर्भय रहें और हमें जो सही बातें हैं कहते रहें। आप का अधिकार है कि हमें हमारी गलतियाँ आप बता दें। हमारा काम है कि हम आपकी बात सुनें सही बात आपको बतायें, गलतियाँ हों, हम उनको कबूल करें और दुरूस्त करें। ये हमारा काम है। मगर इस काम में हमारा पूरे पूरा सहकार होना चाहिये। हिन्दुस्तान एक परिवार सा बन जाए यही सपना मैं तो देख रहा हूँ और पूरा होगा इसी विश्वास से उसकी ओर कदम हम उठा रहे हैं। हम एक परिवार बन जाएं, तभी हिन्दुस्तान एक होगा और तभी हिन्दुस्तान सारी दुनिया को अपने जीवन से सहायता कर सकेगा मददगार हो सकेगा। दुनिया की सेवा करने के लिए हमें लायक बनना है। हमें औरों से सेवा लेने के बजाय औरों की सेवा करनी है। सेवा लेते हैं वो भी इसीलिए लेते हैं कि हम ज्यादा सेवा करने के लायक बन जाएं और वो ही सेवा दुनिया की हम करें तभी ही गांधी जी का सपना पूरा हो सकेगा। गांधी जी चाहते थे इस देश में रामराज्य हो, रामराज्य का मतलब यही है कि जो राज चलाने वाले हैं वो तकलीफें उठायें परन्तु जनता को तकलीफें न उठाने दें। वो अपने जीवन से लोगों को बराबर सब बातें समझायें और जीवन में सादगी रखें। हमेशा सेवा करना वो न भूले! वो सेठ न बन जाएं, सेवक हमेशा रहे और जनता उनको सेवक बनाये रखे ऐसी शक्ति जनता में पैदा करे यही अपना काम है। इसीलिए तो मैं बार-बार जनता से प्रार्थना करता हूँ कि हमारी कोई कमी है तो आप उस कमी को बताने में कभी कमजोर न रहें, पूरी ताकत से हमें बतायें। मैंने एकबार ये भी कहा था कि मेरी