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मीटिंग विद द "प्राइम" मिनिस्टर
मीटिंग विद द "प्राइम" मिनिस्टर
मीटिंग विद द "प्राइम" मिनिस्टर
Ebook230 pages2 hours

मीटिंग विद द "प्राइम" मिनिस्टर

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About this ebook

इस ब्रह्मांड में ऐसा कोई काम नहीं है, जो किसी भी जीवित व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता है. अथक प्रयास से, यहां तक कि सबसे कठिन कार्यों को सरल बनाया जा सकता है. इसलिए हमें अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए और असफल होने पर भी कभी निराश नहीं होना चाहिए! लेकिन कई बार ऐसा भी होता है, अपने काम को साबित करने के लिए, हम विभिन्न प्रकार के अनुचित तरीकों को अपनाने के बारे में सोचना शुरू करते हैं! कभी-कभी, इस प्रकार की विधि को अपनाकर, किसी को धोखाधड़ी और नुकसान का सामना करना पड़ता है. जिसका परिणाम बहुत घातक भी हो सकता है! इसलिए सही दिशा में और सच्चे दिमाग के साथ किया गया प्रयास हमेशा सफल होता है और हम अपने जीवन में संतुष्टि और खुशी प्राप्त कर सकते हैं. 

Languageहिन्दी
Release dateOct 16, 2023
ISBN9798890084989
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    मीटिंग विद द "प्राइम" मिनिस्टर - विनोद कुमार गुप्ता

    राष्ट्रपति भवन का विशाल हॉल बहुत ही सुन्दर तरीके के सजा हुआ था ! आज राष्ट्रिय पुरस्कारों के वितरण का दिन था ! बड़ा सा झूमर हॉल के बीचों–बीच लगा हुआ था ! वहां तरह-तरह की सजावट के लिए विलक्षण मूर्तीयाँ रखी हुई थी ! रौशनी से तमाम मूर्तियाँ जगमगा रही थी ! हॉल के मध्य एक बड़ी सी कुर्सी लगी थी ! उसके आजू-बाजू दो-दो, सुसज्जित दरबान खड़े हुए थे ! मेहमानों का जमावड़ा लगा हुआ था ! चारों ओर बहुत ही खुशनुमा माहौल था | राष्ट्रपति अपनी जगह पर पधार चुके थे और पुरस्कार वितरण का सिलसिला शुरू हो चूका था ! रह रहकर तालियों की आवाज आ रही थी ! देश के बड़े-बड़े नेता और अभिनेता आ चुके थे और अपना-अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे ! हम सब जिन्हें पुरस्कार मिलना था, हमें भी एक तरफ बैठाया गया था ! इस वर्ष सिर्फ दस महानुभावो को ही यह पुरस्कार मिलाना तय हुआ था !

    उस दिन मैं जल्दी उठ गया था और तैयार होकर बैठ गया था ! सुबह से ही फोन का बजना शुरू हो चूका था ! मुझे पद्मश्री मिलने के उपलक्ष्य में, मेरे रिश्तोदारों की तरफ से बधाइयों का तांता लगा हुआ था ! मैं फ़ोन सुन-सुनकर परेशान हो गया था लेकिन एक ख़ुशी थी, कि अथक प्रयासों के उपरान्त, इस प्रकार के क्षण मेरे जीवन में आये थे ! ख़ुशी से मैं भी बहुत उत्साहित हो रहा था !

    पुरस्कारों के वितरण का कार्यक्रम, श्याम को होना था लेकिन मैं सुबह से ही तैयार होकर बैठ गया था ! वो दिन बहुत ही खुशनुमा था ! एक-एक पल, एक-एक वर्ष के बराबर लग रहा था ! मैं इसी सोचा में था कि वो पल कब आएगा जब मुझे पद्मश्री मिलेगी ! लेकिन समय था कि कट ही नहीं रहा था ! घर के आस-पास हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गई थी ! हवा चलने से पेड़ो के हिलने की मध्यम-मध्यम आवाज मेरे कानो में पड़ रही थी ! मिटटी की सौंधी-सौंधी खुशबु से सारा वातावरण महक गया था ! आस पड़ोस में पूजा में बजने वाली घंटी की ध्वनि मन को बहुत आनंद दे रही थी ! घर में ऐसा लग रहा था मानो आज कोई उत्सव का आयोजन होने वाला है ! पुरस्कार को पाने की उत्सुकता में मुझे अपने आपको गर्व महसूस हो रहा था ! अपने पूरे परिवार में मैं ही ऐसा व्यक्ति था जिसको पद्मश्री मिलने जा रही थी!

    कुछ समय उपरांत सबसे आखिर में मेरा नाम पुकारा गया ! बहुत अदब से एक दरबान ने मुझे चलने का संकेत दिया और मैं उठकर चला! सर्वप्रथम मैंने प्रधानमन्त्री को प्रणाम किया ! उन्होंने मेरे इस प्रणाम का उत्तर बहुत ही शालीनता से दिया और मैं पुरस्कार प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ गया ! कुछ ही पल में राष्ट्रपति जी के समक्ष प्रस्तुत हो गया! उन्होंने सबसे पहले मेरे कोट पर एक तमगा टांग दिया और एक प्रमाणपत्र मेरे हाथ में जैसे ही थामना चाह……..वो एक दम मेरे हाथों से गिर गया……….और अलार्म बज गया और इतना सुंदर स्वप्न टूट गया !

    दोस्त, काश यह स्वप्न कभी सच हो जाये तो मजा आ जाये ! मैंने अपने दोस्त को स्वप्न के विषय में बताते हुए कहा…….

    बहुत ही सुंदर स्वप्न देखा…..तूने ! अब चल…..ऑफिस जाने का समय हो चूका है ! दोस्त ने कहा…….

    इस प्रकार के राष्ट्रिय पुरस्कार प्राप्त करने के लिए समाज में हो रहे कार्य से हटकर कुछ अलग सा करना होता है ! बहुत से लोग तो इस पुरस्कार को पाने की चाह में ही अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देते हैं, फिर भी वो कामयाब नहीं हो पाते हैं ! मैंने कहा…….

    तो क्या हम इसको पाने की अपनी इच्छा को भी प्रकट नहीं कर सकते ? उसने पूछा……

    कर सकतें हैं……मेरे दोस्त अब चल……तेरे इस पुरस्कार के चक्कर में अगर लेट हो गए तो मेरा खडूस अधिकारी मेरी आधी छुट्टी काट लेगा और डांट सुनाएगा सो अलग ! मैंने कहा और हम जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाने लगे…….

    तू ठीक कह रहा है…..मेरे ऑफिस में भी यही हाल है ! उसने कहा और कुछ समय में हम दोनों ऑफिस पहुँच गए……

    आ गए तुम…….हरी ? आज आने में बहुत देर कर दी ? अधिकारी ने मुझसे पूछा…….

    सर, आज मेरे दोस्त ने देर करवा दी ! वो रात में देखे हुए अपने स्वपन के विषय में बताने लगा था, इसलिए कुछ देर हो गई | मैंने कहा…..

    थोडा ध्यान रखो……लेकिन तुम्हारे दोस्त ने ऐसा कैसा स्वप्न देखा है ? उन अधिकारी ने पूछा…….

    महोदय, उसने देखा कि उसे राष्ट्रिय पुरस्कार, पद्मश्री दिया जा रहा है ! मैंने उन्हें बताया……..

    उन्होंने मेरी बात सुनकर बहुत जोर से ठहाका लगाया और बहुत देर तक तो वो हँसते रहे ! मैं भी वहीँ पर बिलकुल शांत खड़ा रहा | बहुत देर के बाद जब उनकी हंसी रुकी तो बोले……

    तुम्हारा दोस्त क्या करता है ?

    महोदय, अपने विभाग में वो भी मेरी तरह ही क्लर्क है | मैंने बताया…….

    अच्छा……..क्या नाम है तुम्हारे दोस्त का ? उन्होंने फिर पूछा……

    नारायण है उसका नाम !

    अच्छा वो नारायण…….बहुत से लोगो से उसकी बहुत तारीफ सुनी है | लेकिन अपने नौकरी के अलावा कुछ और भी काम करता है ? उन्होंने कहा……

    कुछ नहीं | बस वो मेरी तरह ही…….अपनी नौकरी, मन लगाकर कर रहा है ! मैंने बताया……

    हरी……उससे कहना कि मन लगाकर सरकार और देश के उत्थान के लिए अपनी सम्पूर्ण समर्पण से सेवा करें | ऐसे स्वप्न देखने से कुछ नहीं होता ! इसके लिए जी तोड़ परिश्रम करना पड़ता है ! चलो बहुत हो चूका…..अब जाकर अपने काम में लग जाओ | उन्होंने डांटते हुए कहा…….

    मैं भी अपने स्थान पर आकर अपने काम में लग गया और मन ही मन सोचने लगा कि उन्होंने मेरे दोस्त का ऐसा मजाक क्यों बनाया है ! सबको स्वप्न देखने और उसको साकार रूप देने का पूर्ण अधिकार है ! अगर इंसान अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अथक परिश्रम करे और थोड़ी सी किस्मत उसका साथ दे तो जग जीत सकता है ! जिनको इस प्रकार के पुरस्कार प्राप्त होते हैं वो भी तो हमारे में से ही आते हैं ! फिर भी मैं उससे कहूँगा कि वो अपने काम पर ध्यान दे और इस प्रकार के स्वप्न कभी भी साकार नहीं होते !

    हमारे बहुत वर्ष ठीक से, बिना किसी विघ्न के व्यतीत हो गए ! फिर एक दिन रोज जी तरह वो और मैं किसी स्थान पर मिले !

    हरी…….आज मौसम बहुत ही सुहावना हो रहा है ! तुझे नहीं लगता कि हमें कहीं पर घुमने चलना चाहिए ? नारायण ने पूछा…….

    कहाँ चलना चाहता है ! अब तो यहीं पर ठण्ड का मौसम आने वाला है ! मैंने कहा……

    हाँ…..यार ये तो है ! मैं तो भूल ही गया था कि तेरी तो शादी हो चुकी है और एक छोटा सा बच्चा भी है ! शायद, तू उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जा सकता ! नारायण ने कहा…….

    अरे ऐसी बात नहीं है ! मुझे घर पर थोडा काम है इसलिए मैं नहीं जा सकता ! अगर तू कहे तो कुछ दिनों के बाद चल सकते हैं ! मैंने उससे कहा……

    कोई बात नहीं…..भाई ! जैसी तुम्हारी मर्जी ! उसने कहा……

    अरे……तुझे क्या हो गया है ? मैं कुछ दिनों से ध्यान दे रहा हूँ कि तू कुछ-कुछ अजीब-अजीब सी बातें करने लगा है ! मैंने कहा…….

    नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है ! बस मेरे अन्दर से कुछ-कुछ आवाज आ रही है ! नारायण ने कहा…….

    क्या कोई बात है ? मैंने पूछा…….

    जाने दे यार…….अगर शनिवार चलें तो कैसा रहेगा ? उसने मुझसे पूछा…….

    हाँ…..तब चल सकते हैं ! लेकिन जाना कहाँ चाहता है….तू ? मैंने पूछा…….

    कहीं ऐसी जगह चला जाये…..जहाँ शांति की अनुभूति हो ! उसने कहा……

    फिलहाल तो घर चलते हैं ! अभी तो बहुत दिन है, शनिवार आने में ! एक-दो दिन में जगह का भी चयन कर लेंगे ! मैंने कहा और अपने-अपने घर की तरफ चल दिए……

    तू ठीक कह रहा है ! उसने कहा……

    मैं घर आ गया ! बहुत सा काम बहुत दिनों से स्थगित होता आ रहा था, उसको करने के कारण ही मैंने नारायण को कहीं चलने से मना कर दिया था ! अगले दो दिन मैं बहुत व्यस्त रहने वाला था ! जब मैं सोमवार को ऑफिस गया तो ज्ञात हुआ कि नारायण ऑफिस नहीं आया ! श्याम को ऑफिस से आते हुए मैं उसके घर जाकर, ऑफिस ना आने का कारण जानना चाह !

    आज क्यों नहीं आया तू ? मैंने नारायण से पूछा……

    ऐसे ही नहीं आया…….भाई ! उसने कहा…….

    तबियत तो ठीक है ? मैंने फिर पूछा……..

    हाँ ठीक है लेकिन यहाँ कुछ दिनों से मेरा मन नहीं लग रहा है ! इसलिए मैंने तुझसे कहा था, कहीं चलने के लिए ! नारायण ने कहा……

    कोई बात नहीं……अभी चार दिन ऑफिस आ ! फिर दो दिन की छुट्टी में कहीं घुमने का कार्यक्रम बनाते हैं ! मैंने कहा……

    क्या बात चल रही है……बेटा ? नारायण की माँ ने कहा……

    कोई बात नहीं माँ जी…..नारायण का मन नहीं लग रहा है | मैंने कहा……

    हाँ, कुछ दिनों से, ये बहुत अजीब-अजीब हरकत कर रहा है ! घर में ठीक से बात भी नहीं कर रहा है ! पता नहीं अचानक इसके व्यवहार में इतना बदलाव कैसे आ गया है ! नारायण की माँ ने कहा……

    हाँ….माँ ! मैंने भी महसूस किया है कि कुछ तो कारण है कि इसका व्यवहार बदल गया है ! पहले वो बहुत हंसी मजाक करता रहता था और अब वो बहुत ही गंभीर रहने लगा है ! आप चिंता न करें ! आने वाले दो दिनों की छुट्टी में हम कहीं बाहर घुमने जा रहे हैं, स्थान और वातावरण परिवर्तन से सब ठीक हो जायेगा ! मैंने माँ से कहा……

    वो ठीक ही कह रहा है | मैंने बहुत कोशिश करके देख लिया है लेकिन ये है की कुछ नहीं बताता ! पता नहीं किस उधेड़बुन में लगा रहता है ! अब तू ही इसे समझा सकता है ! लो चाय पीओ और बातें करो, मुझे थोड़ा काम है, इतने मैं उसे निपटा लेती हूँ ! माँ ने कहा और अन्दर चली गई……

    बता यार…..क्या हो गया है तुझे ? इतना हंसी मजाक करने वाला, अचानक गंभीर कैसे हो गया ? कुछ तो कारण है जो तू हम सबसे छुपा रहा है ! मैंने उससे पूछा……

    तूने बिलकुल सही पहचना…….लेकिन मैं अपने अंतर्मन की व्यथा तुम्हे वहीँ बताऊंगा, जहाँ हम घुमने चलेगें | नारायण ने कहा…….

    तेरी जैसी इच्छा…….अब मैं चलता हूँ ! एक बात और है जो मैं तुझसे कहना चाहता हूँ कि कल से तू रोजाना ऑफिस आएगा ! मैंने तुझसे वादा किया है कि हम दो दिनों की छुट्टी में कहीं घुमने का कार्यक्रम अवश्य बना लेंगे !

    ठीक है…….दोस्त ! मैं कल से ऑफिस जरुर आऊंगा ! उसने कहा…….

    मैं, नारायण की माँ से आज्ञा लेकर अपने घर आ गया !

    आज कहाँ रह गए थे ? पूजा ने पूछा…….

    हाँ, मैं तुम्हे फ़ोन करके बताना भूल गया कि मैं नारायण के घर जा रहा हूँ ! मैंने कहा……

    क्यों ?

    उसको पता नहीं क्या हो गया है ? कुछ दिन पहले तक तो बहुत हंसी मजाक करता था लेकिन कुछ दिन पहले से, वो न तो ऑफिस आ रहा है और न ही उस प्रकार से हंसी मजाक कर रहा है ! अचानक क्या हो गया कि वो अपने आप में ही खोया रहता है ! न ही घर में अपनी माँ से

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