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कौस्तुभ
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कौस्तुभ

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About this ebook

1949-51 के दौरान लिखी गई पांडुलिपि खो गई थी लेकिन लेखक की मृत्यु के बाद 2022 में मिली।
कवियों की खूबसूरती से गढ़ी गई कविताएँ बालिका (अभगिनी वनिता), महिलाओं (नारी का अहंकार), विधवा (विधवा) और उनके प्रति समाज के दृष्टिकोण का प्रतिबिंब हैं, जो अब भी प्रचलित हैं। ऐसी कई कविताएँ हैं जो मानव स्वभाव का भी सोच-समझकर वर्णन करती हैं। किसान पर कविता -(कृषक से)
स्वतंत्रता दिवस 1950 पर कविता, चाँद के साथ चर्चा (चाँद से..); दार्शनिक कविताएँ: व्हील चेयर, मुर्दा घर, एक था विष्णु, पार्वती स्मृति (अपनी प्यारी पत्नी की मृत्यु के बाद लिखी गई), एएजी, ताजमहल पढ़ने लायक हैं।
युद्ध के प्रभावों पर तीन कविताएँ (युद्ध से..) जीवन की सत्यता को दर्शाती हैं। चार गीत (हिंदी कविताएँ) हिंदी विद्वानों का स्वाद बढ़ाते हैं।
कविताएँ समकालीन कवियों के प्रभाव को दर्शाती हैं। इस संग्रह से न केवल हिन्दी के शोधार्थियों को बल्कि समस्त हिन्दी प्रेमियों और समाज को लाभ होगा क्योंकि भाषा और शैली उत्कृष्ट है।

Languageहिन्दी
Release dateDec 5, 2022
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    कौस्तुभ - नरसिंह श्रीवास्तव

    © Narsingh Srivastava 2022

    All rights reserved

    All rights reserved by author. No part of this publication may be reproduced, stored in a retrieval system or transmitted in any form or by any means, electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise, without the prior permission of the author.

    Although every precaution has been taken to verify the accuracy of the information contained herein, the author and publisher assume no responsibility for any errors or omissions. No liability is assumed for damages that may result from the use of information contained within.

    First Published in November 2022

    ISBN: 978-93-5628-989-5

    BLUEROSE PUBLISHERS

    www.bluerosepublishers.com

    info@bluerosepublishers.com

    +91 8882 898 898

    Cover Design:

    Aveek

    Typographic Design:

    Rohit

    Distributed by: BlueRose, Amazon, Flipkart

    हमारे पूज्य पिता जी स्व. डॉ. नरसिंह श्रीवास्तव जी की किशोरावस्था (17 से 19 वर्ष आयु) में रचित कविताओं का एक छोटा सा संग्रह घर में मिला। ये रचनाएं 1949-1951 के बीच की हैं जब वह बस्ती (उत्तर प्रदेश) में इंन्टरमीडियेट के छात्र थे।

    यह कहना प्रासंगिक होगा कि पूज्य पिता जी ने 8वीं कक्षा तक हिन्दी की शिक्षा प्राप्त ही नहीं की। अंग्रेजी व उर्दू विषय थे। गांव में रहते हुए, संसाधनों के अभाव के बावजूद अंग्रेजी विषय में 'star' (80%) प्राप्त किया।

    'कौस्तुभ मणि' देवताओं और असुरों के द्वारा समुद्र मन्थन में प्राप्त चौदह मूल्यवान वस्तुओं में से एक थी।इस कविता संग्रह का नाम 'कौस्तुभ' रखना सर्वथा उचित है क्योंकि यह संग्रह रचनाकार के स्वर्गवासी होने के 6 वर्षों बाद, काफी खोजने के बाद मिला।

    रचनाएं 'अभागिनी वनिता', 'विधवा' स्त्रियों की समकालीन स्थिति को व्यक्त करता है। अन्य कविताएँ कवि की भावनाओं की अभिव्यक्ति है।

    कुछ अन्य अप्रकाशित कविताएं जो 1990 के उपरान्त लिखी गई, को भी इस कविता संग्रह में लिया गया है।

    आशा है कि सुधी पाठक तन्मयता और खुले हृदय से इसे स्वीकार करेंगे। यही हमारे स्वर्गीय पूज्य पिताजी डॉ. नरसिंह श्रीवास्तव (5 अगस्त 1932-21 फरवरी 2016) को तहेदिल से श्रद्धांजलि होगी।

    अनिल कुमार श्रीवास्तव

    और परिवार गण

    अनुक्रमणिका

    ईश स्तवन

    कविता साकार

    समर्पण

    भूमिका के बहाने

    अभागिनी वनिता

    विधवा

    परिवर्तन

    प्रतिक्रिया

    नारी का अहंकार

    निराशा

    पुकार

    भाव

    पूछ लो मेरे हृदय से

    किसान से !

    कल्पना

    मैं कविता भी करता हूँ

    मौन रहूंगा कब तक आखिर कभी बोल ही दूंगा।

    मुस्कान

    गीत

    पलायन

    आशंका

    मानव का मन

    आज हम स्वाधीनता के गीत गायें

    मिलन

    अज्ञात मिलन

    नरसिंह

    मेरी वीणा

    पार्वती के प्रति

    पार्वती-स्मृति

    सूखी नदी

    आग की लपटों में

    सिंधौरा

    चूड़ी वाला

    खोयी हुई चीजें

    नायाब हीरा

    दिल्ली की वीर कन्या की मृत्यु पर श्रद्धांजलि

    इंसानियत की मौत - 1

    इन्सानियत की मौत - 2

    विद्रोह

    पीड़िता की मृत्यु पर श्रद्धांजलि - 3

    दरिन्दगी का उद्घोष

    वर्षा के बाद बादल

    गीत -1

    गीत - 2

    युग यात्री

    गीत - 3

    चांद और जिन्दगी

    समय के भीतर बाहर

    एक वह विष्णु

    सभ्यता

    आग

    झुग्गियों के बच्चे

    पानी की तलाश

    मुर्दाघर

    भीड़

    बार वनिताएं

    युद्ध के विरुद्ध - १

    युद्ध के विरुद्ध - 2

    युद्ध के विरुद्ध - ३

    ईद और होली

    प्रेम

    व्हील-चेयर

    समय के काँटे

    ताजमहल

    ईश स्तवन

    महत्त चेतनामय, विराट,

    जगदीश्वर पावन

    मौन अकिन्चन आज कर रहा

    तव आवाहन।

    'है' असंख्यतम शलभ

    जल रहे गीत ज्वाला में,

    कोटि-कोटि जग कमल खिल रहे

    यश माला में।

    क्रोध तुम्हारा महाप्रलय,

    का कारण बनता।

    मन्द हास नित नई,

    श्रृष्टि की रचना रचता।।

    करुणालम्बित बाहु विश्व,

    का पालन करते।

    परिवर्तन मय चरण समय

    संचालन करते।।

    युग-युग चिन्ह छोड़ते जाते

    जग शतदल

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