Abhivyakti (अभिव्यक्ति)
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About this ebook
जैसा कि मैं लगभग बीस वर्षों से जानता हूँ कि श्री महीपाल सिंह पूर्णतः एक सज्जन, दूरदृष्टा एवं बहुप्रतिभाशाली व्यक्ति हैं यही गुण इन्हे समाज में विशिष्ट बनाते हैं।
एक उत्कृष्ट सार्वजनिक वक्ता के रूप में पहचाने जाने वाले महीपाल सिंह के लेखन का कौशल 'अभिव्यक्ति' के माध्यम से उनकी छवि में पंख लगायेगा। इस नवीनतम ग्रन्थ के लिए मेरी शुभकामनायें। --सुशील वैद (समाजसेवी)
मुझे ऐसा लगता है कि महीपाल सिंह अच्छे वक्ता होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छे ऑब्जर्वर भी हैं, जिन्होंने मेरी एक छोटी सी मुलाकात को अच्छी कहानी के रूप में प्रस्तुत किया। मैं आशा करता हूँ कि इनकी यह "अभिव्यक्ति" बहुत अच्छी संदेशप्रद होगी। --कर्नल बी.के. धूपर (सुरक्षाविद)
जय हो, भाई महीपाल सिंह! मैने अपनी बडौदरा पोस्टिंग के दौरान की एक घटना सुनाई जिसका आपने 'गुमशुदा तलाश केंद्र' नामक कहानी के रूप में बहुत ही मार्मिक चित्रण किया।
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Abhivyakti (अभिव्यक्ति) - Mahipal Singh
1
पहले आप
कहानी ‘पहले आप’ श्री गिरिराज सिंह की प्रेरणा से लिखी गई। कहानी में साथ-साथ मधुर व्यवहार में रहते हुए जीवन के सुखद परिणाम को दर्शाया गया है। साथ ही वृक्षों एवं पानी को व्यर्थ होने से बचाने की सलाह दी गई है।
आज फिर रानी फूलमति, सोना से खेतों की ओर जाने की बात कह रही थी। सोना आखिर टालती भी तो कैसे, फूलमति उसकी बचपन की सबसे गहरी सहेली जो थी। पर अन्तर था तो केवल इतना कि फूलमति किशनगढ़ के राजकुमार को पसंद आ गयी थी, और उसकी शादी किशनगढ़ के राजकुमार से हो गई थी। और सोना की शादी लालपुर अपने निकट के गाँव में ही हुई थी।
कभी सोना फूलमति के यहाँ जाती, दस-पन्द्रह दिन वहाँ गहीना करती, तो कभी फूलमति अपनी बचपन की सहेली सोना के गाँव उसके घर आती। और दो-चार दिन ठहरती। फूलमति सोना को नगर के द"यस्थलों की सैर कराती। और कभी गाँवों में आकर सोना के साथ बाग-बगीचे, खेत-खलियान देखती।
सोना फूलमति को गाँव से पूरब की ओर लेकर गयी। कोई फरवरी-मार्च का महीना था। धूप थी पर फूलमति खुश नजर नहीं आ रही थी। कभी चुप ना रहने वाली सोना से चुप ना रहा गया-
क्या बात है फूलमति, आज अच्छा नहीं लग रहा क्या?
तू सही समझी सोना.........
फूलमति ने कहा- जब मैं चार वर्ष पहले तेरे यहाँ आयी थी, तो खूब सरसों खिली थी, वनस्पति देखकर लगता था, के मानो स्वर्ग यही ‘लालपुर’ में उतर आया हो।
और आगे पोखर था, क्या सुन्दर घास थी हरी-भरी जैसे कालीन बिछा दिया हो उपरवाले ने। अब वो बात नहीं लगती।
अच्छा...... हाँ...... पोखर तो है अब भी, थोड़ा आगे की ओर, चल आगे चलते है, सोना ने कहा।
वटीया-वटीया
चली आ.......... नीचे नहीं, उपर की ओर थक गयी क्या?
नहीं-नहीं आ गयी मैं, फूलमति ने कहा।
सोना ने कहा- देख वो है पोखर सामने।
वो जगह कौन-सी है, जहाँ मेंढक का जोड़ा मिला था, फूलमति ने पूछा।
चलो ढांग के किनारे-किनारे नीचे उतरते है सोना ने कहा- तालाब तो सूखा है।
सूखा तो उस बार भी था, परन्तु एक गड्डे में थोड़ा-बहुत पानी था, फूलमति बोली।
इधर दुर्गन्ध कैसी, और कौवे भी मंडरा रहे हैं।
दोनो ने हाथ से धोती का पल्ला पकड़ा और अपनी नाक ढक ली।
अजीब इत्तेफाक है, फूलमति ने सोना से कहा- पहली बार चार वर्ष पहले जब मैं तेरे साथ यहाँ आयी थी तो तब भी मेंढकी यहाँ मरी पड़ी थी, पर दुर्गन्ध नाम की कोई चीज नहीं थी। वातावरण अच्छा था, घास हरी-भरी थी। मेंढकी तो इस बार भी मरी है, पर तमाम बदबू है, कौवे मंडरा रहे हैं। अजीब-सा परिवर्तन है।
मैं बताती हूँ दीदी, सोना ने कहा
उस साल जब तुम आयी थी, तो पोखर में एक बूंद पानी था, दोनों मेढ़की में अथाह प्रेम
था। पानी एक ही के पीने लायक था, पहले आप, पहले आप कहते-कहते दोनों मर गयी।
और इस बार? फूलमति ने पूछा!
इस बार दीदी, आज-कल पोखर तो यूँ ही सूख जाते हैं, घास तो कबकी खत्म हो जाती है। चिड़ियाँ तो मानो नदारद ही हो गई हैं। रही बात जीने-मरने की, तो इस बार भी एक बूंद पानी किसी के लोटे से बिखर गया था। मेढ़की आपस में लड़कर मर गयी, झगड़ते-झगड़ते। पहले मैं, पहले मैं और दे गई दुर्गन्ध और मंडराते कौवे।
पानी का दुरूपयोग और वृक्षों के कटान अगर यू ही होते रहे तो, एक दिन मेंढकी ही नहीं, लोगो के मरने की खबर भी आपको सुनने को मिलेगी वह दिन दूर नहीं होगा जब पानी के लिए युद्ध होगा।
धन्यवाद!
2
मुखौटा
(कहानी ‘मुखौटा’ स्विफ्ट सिक्योरिटी सर्विसेज के प्रबंध निदेशक कर्नल बी.के. धूपर की प्रेरणा से लिखी गई है। वर्ष 2017 में लेखक को कनाट प्लेस, दिल्ली के एक होटल में उनसे मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। जो अच्छी बातें उन्होंने उस समय कहीं, प्रस्तुत रचना का ताना-बाना उसी पर बुना गया है)
दिनांक 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ‘जनता माध्यमिक विद्यालय’ में राष्ट्रीय ध्वज बड़ी धूमधाम से फहराया गया। राष्ट्र गान के उपरांत सभी अध्यापक एवं अतिथि निर्धारित स्थान पर बैठ गए। मुख्य अतिथि के रूप में मास्टर छोटेलाल जी ने आसन ग्रहण किया। कई छात्रों ने देश भक्ति की कविताएं एवं गीत सुनाए। कुछ अध्यापकों ने भी अपने विचार व्यक्त किये। मंच पर बैठे कुछ अतिथियों ने बड़े लंबे-चौड़े भाषण दिये। अंत में मंच संचालक ने मुख्य अतिथि मास्टर छोटेलाल जी को उद्बोधन हेतु आमंत्रित किया। मास्टर छोटे लाल जी को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए कुछ ही दिन पूर्व राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपना उद्बोधन शुरू किया
प्रिय छात्रों!
दुनिया का पटल एक रंगमंच है। इस रंगमंच पर किए गए हमारे प्रत्येक अभिनय पर दुनिया नजर रखती है। हमारी कोई भी हरकत दुनिया की नज़र से छूटती (Skip) नहीं है। हमारा बान, बाना और बाणी देख कर दुनिया हमारी छवि का आकलन कर लेती है। ‘बान’ मतलब गति अर्थात मूवमेंट हमारे आचरण का प्रतीक है। द्वितीय हमारा ‘बाना’ अर्थात हमारी वेशभूषा, आभूषण एवं केश विन्यास हमारी छवि का मुख्य हिस्सा है। तृतीय ‘वाणी’ अर्थात बोलचाल, से हमारे बारे में दुनिया के ज़ेहन में एक तस्वीर उभरती है। हमारे द्वारा बोले गए शब्दों का दुनिया रिकॉर्डिंग करती है। प्राचीनकाल से किसी भी इंसान की छवि दर्शाने के लिए यह तीनों बातें काफी हैं। आज टेक्नोलॉजी के बदलते युग में मोबाइल फोन की कॉलर ट्यून एवं डीपी भी इसमें जुड़ गयी है। अधिकांशतः कॉलर ट्यून एवं डीपी से इंसान की फितरत का निर्धारण कर लिया जाता है। आधुनिक युग में सोशल मीडिया बहुत बढ़-चढ़कर उभरी है। अखबार एवं टेलीविजन से भी कहीं अधिक लोग सोशल मीडिया को देखते हैं। सोशल मीडिया, लोक चर्चा का एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म है। सोशल मीडिया से कहीं अधिक, प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, टीवी, रेडियो को प्रमाणित (Authenticate) माना जाता है, जिसकी खबरें संबंधित चैनलों अथवा समाचार पत्रों के प्रबंधन द्वारा जांचने के बाद ही पब्लिक के सामने आती हैं। जबकि सोशल मीडिया पर किसी भी व्यक्ति को कुछ भी लिखने की लगभग छूट होती है। रोजमर्रा की जिंदगी में लोकचर्चा में होने वाली कुछ बातें सत्य होती हैं, तो कुछ सत्य नहीं होती हैं। दैनिक लोकचर्चा में कुछ बातें कुछ लोगों या लोगों के समूह द्वारा मनगढ़त (Fabricated) कही जाती हैं। किसी अन्य व्यक्ति या प्रतिद्वंदी समूह की छवि को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से इन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया जाता है। कई बार कई मनगढंत चित्र भी इसका हिस्सा होते हैं। बस यहां से इनके कई बार फॉरवर्ड करने का सिलसिला शुरू हो जाता है। युवा पीढ़ी तुलनात्मक रूप से अधिक पढ़ी-लिखी है, अतः फॉरवर्ड करने से पहले सोचती है। परन्तु बड़ी उम्र के नागरिकों के एक बड़े वर्ग द्वारा बिना सोचे समझे इन संदेशों को कई बार फारवर्ड किया जाना दु:खद है। इस प्रकार जिसने अथवा जिन्होंने यह मनगढंत (Fabricated) खबरें शुरू की हैं उन्हें, प्रसारित (फॉरवर्ड) करने वाले मुफ्त में मिल जाते हैं। एक संदेश बिना उसकी गंभीरता समझे, कई-कई बार प्रसारित (फॉरवर्ड) हो जाते हैं। कभी-कभी यह अश्लील चुटकुले भी होते हैं। यूँ तो मानव जाति ने बहुत विकास किया है, परंतु कुछ खामियां आज भी विद्यमान है। किसी इंसान के अच्छा होने पर लोग देर से भरोसा करते हैं, या यूँ कहिए कि सही साबित करने के लिए, किसी को महीनों अथवा बरसों लग जाते हैं। लेकिन उसके गलत होने का विश्वास लोग अति शीघ्र कर लेते हैं। यह इंसान की फितरत है।
मेरा विचार है कि खबरों, चित्रों या चुटकुलों को प्रसारित (फॉरवर्ड) करने से पूर्व, हमें इनकी गंभीरता को समझना चाहिए। हमारे द्वारा प्रसारित (फॉरवर्ड) किया गया कोई संदेश (मैसेज) हमारा मुखौटा
होता है, जो कि किसी की छवि (इमेज) को प्रभावित कर सकता है। कभी-कभी दैनिक व्यवहार में हम किसी से कोई बात सुनकर बिना सोचे समझे आगे कह बैठते हैं।
बात किसके द्वारा कही जा रही है, गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है। महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु की झूठी खबर दी गई। गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से पूछा कि आप बताएं अर्थात इस बात को यदि युधिष्ठिर कहेंगे तो उससे सत्यता की पुष्टि होगी, वह झूठ नहीं हो सकती। कोई व्यक्ति सत्यता की गारंटी हो सकता है, वह प्रमाणन का हस्ताक्षर (Competent Signature) होता है। यद्यपि धर्म की रक्षा के लिए जो शब्द युधिष्ठिर ने बोले वह शंखनाद में अनसुना कर दिए गए।
जीवन के फलसफे को मैं 3M के माध्यम से समझाना चाहता हूँ
First M- MindA Man हमें प्रत्येक इंसान की परवाह करनी चाहिए, अर्थात् हमें किसी के आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए।
Second M- Mind The Law of Land : हमें किसी भी देश की कानून का पालन करना चाहिए।
Third M- Mind The God : हमें ईश्वर की परवाह करनी चाहिए, अर्थात् हमें कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे हम स्वयं से नजर न मिला सके और ईश्वर को बुरा लगे। कहने का आशय यह है कि हमें बहुत सोच समझकर बोलना चाहिए। शायद इसलिए ईश्वर ने हमें कान दो और जीभ एक दी है। फेसबुक या व्हाट्सअप आदि जैसे सोशल मीडिया के पटल पर भी गंभीरता से सोच विचार