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बरगद में भूत (Bargad Mein Bhoot)
बरगद में भूत (Bargad Mein Bhoot)
बरगद में भूत (Bargad Mein Bhoot)
Ebook116 pages35 minutes

बरगद में भूत (Bargad Mein Bhoot)

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'बरगद में भूत' कविता संग्रह का शीर्षक इसकी एक कविता से लिया गया है। 'बरगद' 'एक कालखंड' को चिह्नित करता है और भूत उस काल निहित 'स्मृतियों' को। इस पुस्तक की कविताओं में वर्तमान की कई विडम्बनाओं, समस्याओं और विसंगतियों पर चिंतन किया गया है। कविताओं में निहित भाव व प्रयुक्त बिम्ब प्रकृति और समाज में सहज रूप से अनुभव किए जा सकते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से आप अपने आप को प्रकृति, समाज, और मानवीय मूल्यों में आई विसंगतियों और उसके विचलन से कवि के हृदय में उठी संवेदनाओं के क़रीब पा सकेंगे। संक्रमण के दौर में व्यक्ति के साहस और विश्वास की परीक्षा की घड़ी में कवि का स्थिति मंथन इस कृति में परिदृश्य होता है। 'रणथंभौर में बाघ' और 'मुकुँदरायें' कविता प्राकृतिक स्थलों का काव्यात्मक और भावनात्मक चित्रण करती है। अंतत: ये कि इस पुस्तक में आप एक सामान्य वर्ग के द्वारा अनुभव किए जाने वाले कई पक्षों पर कवि के विचार से रूबरू हो सकेंगे।

Languageहिन्दी
Release dateMar 27, 2022
ISBN9788194756194
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    बरगद में भूत (Bargad Mein Bhoot) - Kishan 'Pranay'

    किशन ’प्रणय’

    शीर्षक: बरगद में भूत

    लेखक: किशन 'प्रणय' (किशन सिंह डोडिया)

    प्रकाशक: संज्ञान (थिंक टैंक बुक्स का उपक्रम)

    पता: आर जेड २६/२७बी, अशोक पार्क, वेस्ट सागरपुर, नई दिल्ली  - ११००४६

    वेबसाइट: thinktankbooks.com

    ईमेल: editorial@thinktankbooks.com

    किशन 'प्रणय' इस पुस्तक के लेखक होने के मौलिक अधिकार का दावा करते हैं।

    कॉपीराइट © २०२१ किशन 'प्रणय'

    सर्वाधिकार सुरक्षित

    गुरुदेव सी.एल. सांखला जी को सादर समर्पित

    युगीन संदर्भों में जीवन मूल्यों की सतत प्रवाहमान सरिता है किशन ‘प्रणय’ की कविता

    युवा कवि श्री किशन ‘प्रणय’ का प्रथम काव्य संग्रह ‘बहुत हुआ अवकाश मेरे मन’ गत वर्ष 2020 मैं प्रकाशित विमोचन हुआ, तभी युवा ‘प्रणय’ कलम से यह साबित कर दिया था कि यह सर्जना अल्हड़ मन की आत्ममुग्धता ना होकर कदम दर कदम अंतःवीक्षण के साथ चिरंतन एवं युगीन संदर्भों में कविता की अक्षत भूमिका तलाशती जीवन मूल्यों की सतत प्रवाह मान सरिता है।

    कवि किशन ‘प्रणय’ ने आरंभिक कविताओं में ही ‘मधु का पात्र’ बनने की कामना व्यक्त कर दी थी।

    खुद ही लूँ आकार स्वयं का,

    भाव अग्नि में खुद तब जाऊँ,

    साकी लेकर खड़ा सुराही,

    खुद को मधु का पात्र बनाऊँ।

    सद्य प्रकाशित कृति की प्रतिनिधि कविताओं में कवि मानव मन की तमाम संवेदनाओं को उड़ेलने के प्रयास ही नहीं करता वरन सार्थक अभिव्यक्तियाँ देकर उन्हें जीवंत भी करता है।

    रणथंभौर में बाघ एक उच्चतर भाव भूमि पर खड़ी एक ऐसी जीवंत कविता है जो देश की आबोहवा,संस्कृति की गंध, शौर्य एवं त्याग की तपिश के साथ ही छल-छद्मों से रिसते गाँव की पीड़ा को भी अपनी धमनियों के रक्त से नीरे ठूँठ हुए वर्तमान मनुष्य के दिल दिमाग में चित्रित कर देती है ।

    यहाँ का दुर्ग,

    सोया है,

    शाके की अटूट निद्रा में/

    जिसके शिवलिंग पर,

    चढ़ा हुआ है मस्तक,

    वीर हम्मीर का,

    प्रायश्चित की मुद्रा में/

    वीर शिरोमणि हम्मीर का हठ जग जाहिर है कवि ने यहां की आबोहवा को जो बिंब दिए हैं सच में लाजवाब है-

    रणथंभौर में हवाएँ,

    हम्मीर की तरह हठी,

    स्वाभिमानी और उन्मुक्त,

    स्वयं की मौज में ही मुक्त,

    छू आती है कूचाँ-कूचाँ,

    अभेद्य कानन का,

    निर्जन में बैठे,

    त्रिनेत्र गजानन का।

    आज जो विश्व विख्यात अभयारण्य है के बदन पर रिसते हुए अमिट घाव भी हैं, जिन्हें भूलना असंभव सा है-

    इस जंगल ने,

    झेले है बदन पर घाव,

    खिलज़ियों के जूतों की नोक़ के,

    अल्लाउद्दीन के नापाक इरादे,

    दिखाई देते हैं,

    दुर्ग की हर मीनार,हर चौक पे/

    ‘रणथम्भौर में बाघ’ की एक-एक पंक्ति मानो देश और धरा की एक-एक रग पर उंगली रखकर शुष्क ठूँठों में भी दर्द को हरा कर गई है।

    कवि मन प्रकृति में खूब रमता ही है। कवि किशन प्रणय भी प्रकृति क्षरण से व्यथित हैं। ’खिसकते पेड़’ कविता में वह प्रकृति से जुड़कर वृद्धजन की पीड़ा को स्वर देता है-

    घूम रहे हैं वृद्ध,

    स्वयं में समेटे,

    वह आशीष,

    जो दुर्लभ है उन ऊँची अटारियों के बरामदों में,

    यहाँ बैठकर लोग लिख रहे हैं,

    प्रकृति संरक्षण पर लेख,

    लोकतंत्र यूं तो जन अभिलाषाओं सपनों सुखों की पूर्ति का एक वृक्ष माना गया था। परंतु कवि

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