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शब्दकोख: Shabdkosh, #1
शब्दकोख: Shabdkosh, #1
शब्दकोख: Shabdkosh, #1
Ebook223 pages1 hour

शब्दकोख: Shabdkosh, #1

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About this ebook

लेखन एवं पठन की सेवा में योगदान देने के लिए कई सारे शब्दों को जोड़-बटोर कर एक समूह तैयार करने की कोशिश के साथ कई सारी दिलचस्प कहानियां जो किसी भी तरह से बनावटी नहीं है। कई सारी कविताएं जो दिल से निकली है, और कलम की कोख से निकल कर आपके समक्ष प्रेषित एक ही माध्यम से जिसे आपके प्यार एवं आपके साथ की जरूरत है।
- शब्दकोख

Languageहिन्दी
Release dateFeb 8, 2022
ISBN9789391078737
शब्दकोख: Shabdkosh, #1

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    Book preview

    शब्दकोख - Tarun Jaiswal

    Authors Tree Publishing

    KBT MIG - 8, Housing Board Colony

    Bilaspur, Chhattisgarh 495001

    Published ByAuthors Tree Publishing 2021

    Copyright © Tarun Jaiswal 2021

    All Rights Reserved.

    ISBN: 978-93-91078-73-7

    MRP: Rs.265/-

    This book has been published with all reasonable efforts taken to make the material error-free after the consent of theAuthor. No part of this book shall be used, reproduced inAny manner whatsoever without written permission from theAuthor, except in the case of brief quotations embodied in critical Articles and reviews. The Author of this book is solely responsible and liable for its content including but not limited to the views, representations, descriptions, state-ments, information, opinions and references [content]. The content of this book shall not constitute or be construed or deemed to reflect the opinion or expression of the publisher or editor. Neither the publisher nor editor endorse or approve the content of this book or guarantee the reliability, Accuracy or completeness of the content published hereinAnd do not makeAny representations or warranties ofAny kind, express or implied, including but not limited to the implied warranties of merchantability, fitness forA particular purpose. the publisher And editor shall not be liable whatsoever for Any errors, omissions, whether such errors or omissions result from negligence, Accident, orAny other cause or claims for loss or damagesa ofAny kind, including without limitation, indirect or consequential loss or damage Arising out of use, inability to use, or About the reliability, Accuracy or sufficiency of the information contained in this book.

    शब्दकोख

    कलम की कोख से

    तरुण जायसवाल

    भूमिका

    X

    लेखन एवं पठन की सेवा में योगदान देने के लिए कई सारे शब्दों को जोड़-बटोर कर एक समूह तैयार करने की कोशिश के साथ कई सारी दिलचस्प कहानियां जो किसी भी तरह से बनावटी नहीं है। कई सारी कविताएं जो दिल से निकली है, और कलम की कोख से निकल कर आपके समक्ष प्रेषित एक ही माध्यम से जिसे आपके प्यार एवं आपके साथ की जरूरत है।

    शब्दकोख

    X

    C:\Users\admin\Downloads\shabdsangrhalay.png

    अनुक्रमणिका

    X

    1.

    क्रांतिकारी दोस्त

    X

    उत्तर प्रदेश का नौजवान लड़का आज के समय में जब शेरों शायरी करने लगता है, तो घर वालों को उसकी शादी की चिंता होने लगती है। पर जब शाहजहांपुर 22 अक्टूबर सन 1900 की पैदाइश लिए आज़ादी की क्रांतिकारी लड़ाई लड़ रहे देश में जवान हो रहा था।

    तब उसको क्या पता था की एक दिन इस देश की आज़ादी की क्रांतिकारी लड़ाई में इतना बड़ा नाम उसका भी शामिल होगा, जी! हम बात कर रहे है- अशफ़ाक उल्ला खां की, अशफ़ाक जब जवानी के दिनों में शायरी पढ़ते थे तो वो अपने तखल्लुस (उपनाम) 'हसरत' के नाम से जाने जाते थे।

    अशफ़ाक अपने चार भाइयों में सबसे छोटे भाई थे, शायराना माहौल घर पर भी जारी रहता अशफ़ाक जब अपने भाइयों के साथ शायरी करते तो महफ़िल में बड़े भाई रियासतुल्ला खान के एक खास दोस्त पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का जिक्र जरूर रहता था।

    रियासतुल्ला अशफ़ाक को बिस्मिल की शायरी और काम से जुड़े कई किस्से सुनाया करते थे, जिन्हें सुनकर अशफ़ाक बहुत ही प्रभावित हो जाते और बिस्मिल से मिलने के मौके की तलाश में रहते थे।

    सन 1915 उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में अंग्रेजों को देश से निकाल भगाने के लिए एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना हुई, जिसका जड़ मैनपुरी ही बना मुकुन्दी लाल, दम्मीलाल, करोरीलाल गुप्ता, सिद्ध गोपाल चतुर्वेदी, गोपीनाथ, प्रभाकर पाण्डे, चन्द्रधर जौहरी और शिव किशन आदि ने औरैया जिला इटावा निवासी पण्डित गेंदालाल दीक्षित के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध काम करने के लिये उनकी संस्था शिवाजी समिति से हाथ मिलाया और मातृवेदी की स्थापना की। इस क्रांतिकारी संस्था के छिप कर कार्य करने की सूचना अंग्रेज अधिकारियों को लग गयी और प्रमुख नेताओं को पकड़कर उनके विरुद्ध मैनपुरी में मुकदमा चला। इसे ही बाद में अंग्रेजों द्वारा इसको मैनपुरी षडयन्त्र कहा गया। यह संस्था कुछ ज्यादा समय के लिए नहीं चल पायी जिसका कारण रहा संस्था में शामिल मैनपुरी के ही दलपतसिंह ने अंग्रेजी सरकार को इसकी मुखबिरी कर दी धर पकड़ हुई और कई गिरफ्तारियां भी जिसमे एक नाम आया वो नाम था। क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के नाम ने प्रसिद्धि हासिल करना शुरू कर दिया था, अशफ़ाक भी अंग्रेजों से भारत को मुक्त करने के सपने देखा करते थे। जिसके बाद बिस्मिल से मिलने की इच्छा और बढ़ गयी, अशफ़ाक ने इस बार बिस्मिल से मिलने की ठान ली थी।

    कहते है किसी को पाने की इच्छा हो तो पूरी कायनात जुट जाती है, आपकी मदद करने में अशफ़ाक के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ और मौका खुद चलकर सामने आ गया था।

    ––––––––

    यहां पर मिले दो आज़ाद शायर-

    महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित बहुसंख्यक लोग आंदोलन को तेजी पकड़ा रहे थे। आंदोलन से जुड़ी मीटिंग में भाषण देने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल शाहजहांपुर आए, अशफ़ाक को इस बात का पता चला तो वो भी उस मीटिंग में राम प्रसाद से मिलने पहुंचे, मीटिंग खत्म होते ही अशफ़ाक को बिस्मिल से मिलने का मौका मिल गया।

    अशफ़ाक ने अपना परिचय बिस्मिल के दोस्त के छोटे भाई के तौर पर दिया और बताया की मैं 'वारसी' और 'हसरत' के नाम से शायरी पढ़ता हूँ, जिस पर बिस्मिल ने दिलचस्पी दिखाते हुए अशफ़ाक से शायरी सुनना पसंद किया जिसके बाद से दोनों हमेशा साथ ही रहने और साथ ही शायरी पढ़ने लगे, उनकी जोड़ी जल्द ही महफिलों से निकलकर बाहर भी मशहूर हो गयी।

    अशफ़ाक उल्ला खां की एक नज़्म जब गांधी के अहिंसा के रास्ते पर उनका पूरा भरोसा था।

    कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,

    आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।

    हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से,

    तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।

    बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,

    चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे।

    परवा नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की,

    है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे।

    उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे,

    तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।

    सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,

    चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।

    दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं,

    ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।

    मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए ज़ालिम,

    आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।

    गांधी से नाराज युवाओं ने बन्दूक उठाने की ठान ली-

    4 फरवरी सन 1922 जब चौरी-चौरा में चल रहे प्रदर्शनकर्ताओं ने अपनी सहन शीलता को खोते हुए पुलिस से भिड़ंत कर ली और एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और गाँधी जी ने इस पर अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। लाखों लोगों और छोटे-छोटे बच्चों की उम्मीद टूटते हुए देख क्रांतिकारी युवाओं ने ख़ास निराशा जताई, जिसमें बिस्मिल और अशफ़ाक भी शामिल थे। जिसके बाद ये क्रांतिकारी पार्टी में शामिल हो गए, इनका मानना था कि मांगने से स्वतंत्रता मिलने वाली नहीं है, इसके लिए हमें लड़ना ही होगा।

    लूट लिए भारत का ख़जाना-

    उन दिनों अंग्रेजों से लड़ने के लिए उनके मुक़ाबले गोला बारूद की खास जरूरत थी, जिनके सहारे अंग्रेजों से आज़ादी छीनी जा सकती थी। पर हथियारों का इंतजाम करने के लिए पैसों की जरूरत थी और उसके इंतजाम का तरीका सोचने के लिए हर कोई अपनी कोशिश में लग गया।

    एक रोज राम प्रसाद बिस्मिल ने शाहजहांपुर से लखनऊ की ओर जाते हुए सफर के दौरान ध्यान दिया कि स्टेशन मास्टर पैसों का थैला गार्ड को देता है। जिसे वो गॉर्ड ले जाकर लखनऊ के स्टेशन सुपरिन्टेंडेंट के हवाले कर देता है। बिस्मिल ने उसी दिन तय कर लिया कि इस पैसे को लूटना है, यहीं से काकोरी लूट की नींव पड़ी।

    9 अगस्त 1925 को होने वाली काकोरी लूट की प्लानिंग 8 तारीख को जोरों पर थी।

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