यादों का इतिहासकार
By विशेक
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यूं तो यादों का कोई एक इतिहास नहीं होता है। लेकिन इतिहास में हमारी इतनी यादें दफ़्न होती हैं कि उन्हें हम वर्तमान और फिर भविष्य में भी परस्पर ढ़ोते रहते हैं। कुछ यादें फूल ही तरह होती हैं जिनके ढ़ोने के बोझ का बिल्कुल भी अहसास नहीं होता। जिनका कोई कष्टदायक परिणाम नहीं होता। उन सभी यादों को हम इतिहास में जाकर बार बार याद करते हैं और प्रफुल्लित होते रहते हैं। हम हर्षित हो उठते हैं उन यादों के स्पर्श से जिन यादों ने हमें गुदगुदाने से लेकर खुशी के आंसू रुलाने का काम किया है। वह सभी यादें हम किसी मम्मी की भांति अपने अपने यादों के इतिहास रूपी पीरामिड में सुरक्षित रखना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हमारा आने वाला भविष्य उन यादों को सुनकर प्रफुल्लित हो, हर्षित हो और गौरान्वित हो
चूंकि यादों को किस्से कहानियां जीवित कर देती हैं। इसी क्रम में इस कहानी संग्रह में आपकी, मेरी, हम सबकी कहानियां हैं।
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Book preview
यादों का इतिहासकार - विशेक
यादों का इतिहासकार
BY
विशेक
pencil-logo
ISBN 9789354587283
© Vishek 2021
Published in India 2021 by Pencil
A brand of
One Point Six Technologies Pvt. Ltd.
123, Building J2, Shram Seva Premises,
Wadala Truck Terminal, Wadala (E)
Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA
E connect@thepencilapp.com
W www.thepencilapp.com
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DISCLAIMER: This is a work of fiction. Names, characters, places, events and incidents are the products of the author's imagination. The opinions expressed in this book do not seek to reflect the views of the Publisher.
Author biography
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में जन्में विशेक
वर्तमान में दिल्ली में रहते हैं। विशेक वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ भीमराव अम्बेडकर कॉलेज से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स कर रहे हैं। विशेक नियमित रूप से अखबारों में लिखते आए हैं और इनके लेख और कहानियां पत्रिकाओं में भी छप चुके हैं। अपने दैनिक जीवन में अन्य कार्यों के साथ साथ लेखनी को भी पूरी तवज्जों देते हैं तथा लप्रेक भी लिखते हैं।
विशेक
सम्पर्क:-
7011460149
vishekgour@gmail.com
Contents
नॉर्थ कैंपस
सावन मिलन दरगाह
लैम्प पोस्ट
रावणलीला
यादों का इतिहासकार
बिस्तर के नीचे
गोरखपुर जंक्शन
वाया मीडिया लैब
सुनो सिपे
Preface
यूं तो यादों का कोई एक इतिहास नहीं होता है। लेकिन इतिहास में हमारी इतनी यादें दफ़्न होती हैं कि उन्हें हम वर्तमान और फिर भविष्य में भी परस्पर ढ़ोते रहते हैं। कुछ यादें फूल ही तरह होती हैं जिनके ढ़ोने के बोझ का बिल्कुल भी अहसास नहीं होता। जिनका कोई कष्टदायक परिणाम नहीं होता। उन सभी यादों को हम इतिहास में जाकर बार बार याद करते हैं और प्रफुल्लित होते रहते हैं। हम हर्षित हो उठते हैं उन यादों के स्पर्श से जिन यादों ने हमें गुदगुदाने से लेकर खुशी के आंसू रुलाने का काम किया है। वह सभी यादें हम किसी मम्मी की भांति अपने अपने यादों के इतिहास रूपी पीरामिड में सुरक्षित रखना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हमारा आने वाला भविष्य उन यादों को सुनकर प्रफुल्लित हो, हर्षित हो और गौरान्वित हो।
पर जिस तरह से जीवन है तो मृत्यु भी है। मिलन है तो बिछुड़न भी है। हर्षित मन है तो उदास भी। ठीक इसी प्रकार कोमल और प्रेम से सिंचित यादों के अलावा द्वेष, ईर्ष्या और नफ़रत भरी यादें भी हमारे यादों के इतिहास का हिस्सा होती हैं। जिसे हम चाहकर भी अलग नहीं कर सकते। भुलाना चाहें तो भी भुला नहीं सकते। यह यादें कब किसी ठोकर की तरह अचानक ज़हन के किसी कोने में उजागर हो जाए इसका हम अनुमान भी नहीं लगा सकते। और न ही इन्हें रोक सकते हैं। यादों का यह कशमकश और उलझनों से भरा हमारा अतीत हर किसी को यादों का इतिहासकार बना देता है।
चूंकि यादों को किस्से कहानियां जीवित कर देती हैं। इसी क्रम में इस कहानी संग्रह में आपकी, हमारी और हम सभी की यादों के कशमकश और इतिहास के उलझनों को कहानियों के माध्यम से एक भिन्न दृष्टिकोण से दिखाने का मैंने प्रयास किया है। यादें आपकी हैं, किस्से और कहानियां भी आपकी, अब यह पुस्तक भी आपकी है। आपको यादों की यात्रा की ढ़ेरों शुभकामनाएं...
विशेक
Acknowledgements
यह कहानी संग्रह मेरी नानी को समर्पित है। जिन्होंने मुझे बचपन में किस्से सुनाएं और मैंने जवानी में कहानियां गढ़ी।
नॉर्थ कैंपस
क्या कहते हो दास भाई यूनिवर्सिटी प्लाज़ा में विवेकानंद की मूर्ति के एकदम सामने ब्लादिमीर पुतिन का स्टेच्यू लगवा दें? अशरफ ने बोतल की बंद सील को दांतों से खोलते हुए कहा।
क्यू अशरफ भाई? ब्लादिमीर पुतिन का ही क्यों?
अरे वो क्या है न कि ब्लादिमीर पुतिन की मूर्ति के कारण अगर यूनिवर्सिटी साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित हो गई तो कैंपस में माल की आवाजाही बराबर होती रहेगी न भाई।
धत्त बुड़बक। अगर ऐसा हो गया न तो फिर क्या ब्लादिमीर पुतिन और क्या लेनिन। क्या गोर्बाचेव और क्या स्टालिन। हम तो मार्क्स की विशालकाय प्रतिमा लगवा देंंगे। दास ने अशरफ के हाथों से बोतल खींचते हुए कहा।
ओ बयानवीर। पहले इस पंखे में कंडेंसर लगवाओ। यह हवा नहीं देता और तुम दोनों की हवाबाज़ी कम नहीं होती। विनोद उर्फ़ विद्रोही यह कहते हुए रामजस कॉलेज के हॉस्टल के कमरा नम्बर 17 में दाखिल हुआ।
आओ विद्रोही जी, आपकी बाबत ही तो यह तामझाम करने की सोच विचार रहे हैं और आप हैं कि हमारा मोरोल डाउन कर रहे हैं। कमरें में बैठे अशरफ ने बड़ी सहजता से कुर्सी पर पड़े सिगरेट की राख को साफ़ करते हुए कहा।
अरे, दास भाई क्या घुट्टी पिला दिए हो अशरफ को, क्या क्या बड़बड़ा रहां है। या कल रात की अंदर गई अभी बाहर नहीं आई है? विद्रोही ने कुर्सी को एकदम से अपनी ओर खिंचते हुए कहा।
विद्रोही भाई बात आई गई करते हैं। चलो सुदामा पर चाय पेलते हैं। बाकी दो दिन बाद जूनियर्स आ जाएंगे फिर उनकी रेलमपेल शुरू करेंगे। दास ने बोलत से दो घूंट अंदर लेते हुए कहा।
पता है न यूनिवर्सिटी और कॉलेज कैंपस में रैग्गिंग करना अपराध है। विद्रोही ने कुर्सी पर से उठते हुए कहा।
विद्रोही जी हम रैग्गिंग थोड़ी न करेंगे। हम तो रेलमपेल करेंगे। और पूरे यूनिवर्सिटी में यह कही नहीं लिखा कि रेलमपेल करना निषेध है।
किसी भी यूनिवर्सिटी में दो भाषाएं सामान्य रूप से प्रयोग की जाती है एक भाषा वह जो यूनिवर्सिटी बोलता है और दूसरी वह जो यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाला स्टूडेंट बोलता है। इसी क्रम में रैग्गिंग यूनिवर्सिटी की भाषा है और रेलमपेल स्टूडेंट्स की।
ठीक है, करो रेलमपेल लेकिन ध्यान रखना प्रोफेसर ध्रुमिट को पता चला न कि रेलमपेल की व्यवस्था हो रही है तो वह यूनिवर्सिटी के कैंपस से विवेकानंद की मूर्ति हटाये या न हटाये लेकिन तुम दोनों जो चलती फिरती मूर्तियां हो यूनिवर्सिटी कैंपस से जरूर रुखसत हो जाओगे। न कोई कंप्लेंट, कंप्लेंट बॉक्स में पहुँच पाएंगी और न ही कोई सिफारिश काम आएगी। विनोद उर्फ विद्रोही जो दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट्रल लाइब्रेरी में बैठे किताबों में कम यूनिवर्सिटी की राजनीति में ज्यादा तल्लीन रहता है। विद्रोही, अशरफ और दास को यूनिवर्सिटी की राजनीति का गणित सिखाते हुए सुदामा चाय की दुकान की तरफ़ रुखसत हो गया।
विद्रोही अभी कमरे के दरवाजे पर ही पहुँचा होगा कि अशरफ बोल पड़ा।
विनोद से विद्रोही तक के सफर में हम भी बराबर के साझेदार रहे हैं। विनोद भईया कैंपस के भूगोल और इसकी ज्यामिति में किस तरह साइंस फिट करना है, बखूबी जानते हैं।
अरे, अशरफ अब तुम क्यों अरावली खोद रहे हो? एक और कैंपस बसाओगे क्या? विद्रोही भईया से थोड़ा मिरांडा जैसा पेश आओ। काहे एकदम सत्यवती हुए जा रहे हो। विद्रोही भईया का दिल बोंटा से भी बड़ा और साफ सुथरा है। कमी बस हरियाली की है जो बोंटा में है लेकिन भईया के दिल में नहीं।
दास के इतना बोलते ही विद्रोही दहलीज लांघ न पाया और डेढ़ कदम पीछे आकर कमरें में लगे पोस्टर पर एक नम्बर लिखने लगा और कहा कि, जब फुर्सत मिले तो नम्बर ठीक से निहार लेना। आज भी उसका रिजल्ट किसी और के फॉरवर्ड करने से पहले उसके इनबॉक्स में फेंक देते हैं।
तो बदले में क्या मिलता है? अशरफ ने पूछा।
क्या अशरफ भाई प्यार में अदले बदले में थोड़ी न होता है। दास विद्रोही के बोलने से पहले ही बोल पड़ा।
छोड़ो दास तुम नहीं समझोगे। बदले में मिलता है ढाई KB का दिल, वो भी फोरवर्डेड। पूछो कभी MB में फ़ोटो मिली है क्या? पूछो दास तुम ही पूछो।
विद्रोही का चेहरा सुर्ख लाल हो रहा था, वो तो अच्छा है कि अशरफ को ध्रुमिट सर का आशीर्वाद प्राप्त है नहीं तो हॉस्टल के कमरे से अशरफ GB की स्पीड से बाहर निकाला जाता। फिर कहीं 2G जितना भी आसरा नहीं मिलता।
थोड़ी ही देर में दास ने स्थिति की गंभीरता को भाप लिया। इसके बाद दास ने कहा विनोद उर्फ विद्रोही भईया आपसे ही तो यह ज्ञान प्राप्त हुआ है।