Sahil Hu Samandar Ka
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सी.एल. मिश्र साहिल एक संभावना शील गजलकार हैं, गजलकार यदि सिर्फ लिखता है तो वह अधिक महत्वपूर्ण नहीं बन पाता परन्तु यदि उसकी अदायगी के स्वर भी फिजा में गूंजे तो वह दुष्यंत और नीरज भी हो जाता है श्री साहिल को लिखने एवं कहन भी परम्परा में महारथ प्राप्त गजलकार हैं।
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Sahil Hu Samandar Ka - C.L. Mishra Sahil
सी.एल. मिश्र साहिल
कॉपीराइट© :- सी.एल.मिश्र साहिल
यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि लेखक की पूर्वानुमति के बिना इसे व्यावसायिक अथवा अन्य किसी भी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। इसे पुनः प्रकाशित कर बेचा या किराए पर नहीं दिया जा सकता तथा जिल्दबंद या खुले किसी अन्य रूप में पाठकों के मध्य इसका वितरण नहीं किया जा सकता। ये सभी शर्तें पुस्तक के खरीदार पर भी लागू होती हैं। इस सम्बन्ध में सभी प्रकाशनाधिकार सुरक्षित हैं। इस पुस्तक का आंशिक रूप से पुनः प्रकाशन या पुनः प्रकाशनार्थ अपने रिकॉर्ड में सुरक्षित रखने, इसे पुनः प्रस्तुत करने के लिए अपनाने, अनुदित रूप तैयार करने अथवा इलेक्ट्रॉनिक, मैकेनिकल, फोटोकॉपी तथा रिकॉर्डिंग आदि किसी भी पद्धति से इसका उपयोग करने हेतु पुस्तक के लेखक की पूर्वानुमति लेना अनिवार्य है। इस पुस्तक में व्यक्त किये गए सभी विचार, तथ्य और दृष्टिकोण लेखक के अपने हैं और प्रकाशक किसी भी तौर पर इनके लिए ज़िम्मेदार नहीं है।
वेबसाइट:- www.bookrivers.com
प्रकाशक ईमेल:- publish@bookrivers.com
मोबाइल:- +91-9695375469
प्रकाशन वर्ष:- 2020
मूल्य :- 99/- रूपये
ISBN :-978-93-89914-25-2
पेश लफ़्ज़
गज़ल लिखने और कहने का अंदाज होता है, अपनी मान्यताये और अस्थापनाएँ होती है कविता का मूल उत्स दुःख है। रचना यदि अपने समय को व्यक्त कर रही है तो वह निश्चित रूप से विपच्छ के साथ है।
शायर/कवि का लेखकीय ईमानदारी समय और समाज के संत्रास को व्यक्त करने में ही है। आम तौर से गज़ल करुन स्वर में व्यक्त होने वाली विधा है परंतु हिंदी में दुष्यंत, निराला, अदम गोड़वी ने गज़लों का मिजाज जब से बदला है पूरी आधुनिक गज़ल क्रांति का स्वर बन गई।
फिराक गोरखपुरी का भी अंदाजे बयां गज़ल के बारे में लगभग वैसा ही है, जब कोई शिकारी जंगल में कुत्तों के साथ हिरण का पीछा करता है और हिरण भागते समय किसी झाड़ी में फंस जाता है, जहां से वह निकल नहीं पाता तब उस समय उसके कंठ से एक दर्द भरी आवाज निकलती है उसी करून स्वर गज़ल कहते हैं। ईरान में गज़ल को माशूक से बात चीत का लहजा कहते हैं। गज़ल एक प्रेमात्मक है।
गज़ल ज्वाला मुखी की आँख से टपके आँसुओं का छन्दावतार है, गज़ल सूरजमुखी की पाँख से लिपटे पराग कणों का गंधावतार है। हिंदी की समकालीन गज़ल विधा को पूरी तरह समर्पित देश के प्रतिष्ठित गज़लकार श्री सी एल मिश्र साहिल के साहिल हूं समंदर का गज़ल संग्रह को देखकर आंसू और आक्रोश की जुगलबंदी का बोध होता है। समय के घावों पर नश्तर लगा कर मरहम से सी देने की कला का नाम सी. एल. मिश्र साहिल की गज़ल है ऐसा मैं मानता हूं।
128 गज़लों के गुलदस्ते में श्री साहिल साहब की गज़लें पूरी प्रौढ़ता प्राप्त कर चुकी है। शब्द उनके लिए साध्य साधन और सिद्ध समा वाय है श्री साहिल साहब कहते हैं——
चार दिन की है फ़क़त ये जिंदगी,
आंसुओ को मत बहाते जाइये ।।
श्री साहिल की गज़ल इक्कीसवीं सदी के गोमुख से निकलकर भी ठिठकी खड़ी है क्योंकि अपने देश का ही नहीं विश्व के समूचे नक्शे को दीमक खा गई है। धर्म राजनीति के छेत्र में जिस अपराधी करण की अपनी पैठ बना ली है उसकी जड़ें खोदने के लिए कवि ने कमर कस ली है और साहिल कहते हैं कि————
नाग जहरीले सियासत के यहां,
दूध इनको अब पिलाना छोड़िये ।।
चुस्त दुरुस्त बहरों और विरोधाभास का मुहावरे दानी में पिरोये हुए हिंदी उर्दू