BEEJ
By AMIT TYAGI
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About this ebook
rekhaankit ki gayi hai.
Tatha Amit Tyagi ki kuchh anya rachnaao me shumaar hindi prernaadaayak kavitaaon ke sangrah ‘PEHCHAAN- VOL.1’ aur ‘PEHCHAAN- VOL.2’ hai.
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BEEJ - AMIT TYAGI
कहानी
‘दोस्तों इस उपन्यास की शुरुआत होती है एक निहायती खूबसूरत दिन से, जो कि एक वसंत ऋतू में आने वाली तारीख 14 फेब्रुअरी, यानि की वैलेंटाइन डे का दिन है, जी हाँ दोस्तों, बिल्कुल ठीक सुना आपने, अगर सीधे-सीधे शब्दों में कहूं, तो दो प्यार करने वाले दिलों का दिन, या फिर एक नयी दोस्ती की शुरुआत करने वालों का दिन'…
अब आगे कि कहानी द्रश्यों में….
द्रश्य 1) इंजीनियरिंग कॉलेज (दिल्ली) :-
आज ये ही वो दिन था जिस दिन पल्लवी जो कि एक दक्षिण भारतीय लड़की है, और जिसकी परवरिश एक पारंपरिक परिवार के बीच हुई है, लेकिन वो खुद एक स्वतंत्र विचार धारा वाली लड़की होती है, जो अपने घर में रहती तो बिलकुल परम्परागत तौर तरीके से है, लेकिन घर से बाहर कदम रखते ही एकदम से उसकी काया-पलट हो जाती है...
आज पल्लवी अपने घर से दूर दिल्ली के एक नामी-गिरामी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले चुकी है, ताकि उसकी पढाई लिखाई में किसी भी तरह का कोई व्यवधान(विघ्न) उत्पन्न ना हो, पर चूँकि आज पल्लवी का कॉलेज में पहला दिन है, और ऊपर से आज वैलेंटाइन डे मनाने का दिन भी है, इसलिए वो इस दिन को कुछ अपने अंदाज में खास बनाने की सोचती है, और इस कारण पल्लवी अपनी उसी परम्परागत तौर तरीके की एक झलक दिखाती हुई एक नीले रंग की रेशमी साडी पहने हुए, जिसमें कि वो बहुत ही खूबसूरत दिखाई दे रही थी, और साथ ही साथ वो अपने दोनों हाथो में पढाई की कुछ जरुरी किताबें थामे हुए धीरे-धीरे हौले-हौले कॉलेज कैंपस की ओर आगे बढ़ी चली आ रही है...
और वहीं दूसरी ओर से प्रियांशु भी अपनी स्पोर्ट्स बाइक से कॉलेज में प्रवेश करता है, और फिर वो अपनी इस महँगी-सी दिखने वाली स्पोर्ट्स बाइक को कॉलेज के पार्किंग एरिया में खड़ा करके वापस कॉलेज कैंपस की ओर आ जाता है...
प्रियांशु नॉएडा (U.P) का रहने वाला एक मॉर्डन लड़का है, पर उसका परिवार एक वनडे क्रिकेट मैच की तरह 50-50 होता है, जो कभी एकदम से परम्परागत रूढ़िवादी हो जाता है, तो कभी एकदम से अत्याधुनिक हो जाता है...
आज प्रियांशु एक ब्रांडेड़ कंपनी की एक आसमानी रंग की जीन्स और नारंगी रंग की टी-शर्ट पहने हुए, और अपनी दोनों काली आँखों के ऊपर एक सुनहरे रंग का धूप का चश्मा लगाए हुए, और साथ ही साथ अपने दोनों हाथो में एक बड़ा महंगा-सा दिखने वाला स्मार्ट फोन थामे हुए कॉलेज कैंपस की ओर अपनी ही धुन में खोया हुआ चला आ रहा है, पर उसका ध्यान अपने सामने होने की बजाये अपने स्मार्ट फोन में होने की वजह से, और उधर पल्लवी का ध्यान भी अपने सामने कि बजाये दूसरी तरफ होने की वजह से, प्रियांशु और पल्लवी एक दूसरे के आमने सामने आकर टकरा जाते है, और इस तरह कायनात उन्हें उनकी नियति के नजदीक लाकर खड़ा कर देती है, और साथ में प्यार की एक अमर-प्रेम-गाथा लिखने वाले दो अजनबी दिलों की यूं अचानक से पहली मुलाकात भी करवा देती है...
यहां का कॉलेज कैंपस काफी बड़ा है, जहां चारो ओर बस हरियाली ही हरयाली फैली हुई दिखाई देने के साथ-साथ बहुत से प्यार के पंछी भी नज़र आ रहे होते है, जहां अपने हाथो में कोई लाल, तो कोई सफेद, तो कोई पीला गुलाब का फूल लिए कॉलेज कैंपस में इधर से उधर घूम रहा है, तो कोई अपने हाथो में अपने प्यार का इजहार करने के लिए प्रेम-पत्र थामे इधर से उधर डोल रहा है, जहां कोई अपनी गर्ल फ्रेंड से माफी मांग रहा होता है, तो वहीं कहीं दो हंसों के जोडे एक दूसरे की बाँहों में बाहें डाले कॉलेज कैंपस के बगीचे में लेटे हुए है, तो कोई एक दूसरे के हाथो में फ्रेंड-शिप बैंड बाँध रहा है, जिसकी वजह से दूर से देखने पर कॉलेज कैंपस का ये द्रष्य बड़ा ही अद्भुत, सुन्दर, खूबसूरत, या फिर मैं यूं कहूं कि यहां का द्रश्य बिल्कुल हमारे मन को भाने वाला एक मनमोहक से नजारे के रूप में दिखाई दे रहा है...
अब वापस मैं आपका ओर ज्यादा समय नष्ट नहीं करते हुए, आपको फिर से प्रियांशु और पल्लवी की एक अमर-प्रेम-कहानी की शुरुआत की ओर ले चलता हूँ...
यहां कैंपस में उन दोनों के आपस में टकराने के पश्चात, पल्लवी के हाथों से किताबें नीचे जमीन पर गिर जाती है...
ओह, आई ऍम सो सॉरी मिस, प्लीज मुझे माफ करना, मेने आपको सामने से आते हुए नहीं देखा... ये कहते हुए प्रियांशु, पल्लवी की किताबों को उठाने में मदद करता हुआ, वो अपने होठों पर एक हल्की-सी मुस्कान के साथ एक टक लगाए पल्लवी के चेहरे की ओर देखता ही रह जाता है...
नहीं, इसमें सॉरी कहने की आपको कोई आवश्यकता नहीं है, दरअसल इसमें गलती सिर्फ आपकी ही नहीं बल्कि मेरी भी है, क्योंकि मेरा भी ध्यान अपने सामने ना होकर बल्कि इधर उधर था, सो आई ऍम सॉरी... प्रियांशु की तरफ देखते हुए पल्लवी भी अपने होठों पर एक हल्की-सी मुस्कान के साथ जवाब देती है...
वाह, कितने अच्छे संस्कार दिए है आपके पेरेंट्स ने आपको, जो अपनी गलती ना होते हुए भी आपने उसे मान लिया, जबकि यहां दिल्ली में तो लोग गलती करने के बाद भी सॉरी बोलना तो दूर की बात है, बल्कि उल्टा वो सीधे ही सामने वाले की गिरेबान पकड़कर, उसकी आँखों में आँखें डालकर ऐसे घूरने लगते है, जेसे कि वो उसे जान से ही मार डालेंगे, और फिर ऊपर से वो सामने वाले को बाद में देख लेने की धमकी भी देकर वहां से आगे निकल जाते है, खैर, छोडो ये बेफिजूल कि बातें... ये कहते हुए प्रियांशु अपने चेहरे पर से सनग्लासेस उतारकर उसे अपनी जीन्स की जेब में टांग लेता है, और फिर वो दोनों एक साथ सीधे खड़े हो जाते है...
हाय, आई ऍम प्रियांशु, और आप?... ये कहते हुए प्रियांशु अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाते हुए पल्लवी से पूछता है...
हाय, आई ऍम पल्लवी... प्रियांशु से हाथ मिलाते हुए पल्लवी बड़े ही आत्मविश्वास के साथ जवाब देती है...
आप साउथ इंडियन हो?... प्रियांशु थोड़ा आश्चर्य के साथ पूछता है...
हाँ, केरल से, पर आपको कैसे पता? ओह, शायद मेरे पहनावे से... पल्लवी भी थोड़ा-सा अचंभित होते हुए जवाब देती है...
हाँ, पहनावे के साथ-साथ आपके इस खूबसूरत से दिखने वाले चेहरे से भी, क्योंकि दक्षिण भारतीय लोग दुनिया में कहीं भी चले जाएं, मगर फिर भी वहां के लोग भीड़ में अलग से पहचान में आ ही जाते है... प्रियांशु अपने मजाकिया लहजे में कहता है...
हाँ, वो तो है, पर आप कहाँ से है?... पल्लवी भी मुस्कुराते हुए सवाल करती है...
जी, मैं यहीं दिल्ली-नॉएडा से हूँ, वेलकम टू दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज, कितनी अजीब बात है ना, मैं आज अपने घर से निकलते वक्त ये सोच ही रहा था, कि पता नहीं स्कूल खत्म होने के बाद से मेरा आज का इस नए कॉलेज में पहला दिन कैसा होगा? और ऊपर से आज 14 फेब्रुअरी भी है, लेकिन मेरा इस नए कॉलाज में कोई अच्छा दोस्त भी नहीं है, तो इस बात को लेकर आज मुझे बहुत ही ज्यादा टेंशन भी हो रही थी, और देखो, ऊपर वाले ने मेरी सुनली, और उसने आज आप जैसी एक खूबसूरत हसीन लड़की से मेरी पहली भेंट भी करा दी, इसलिए क्या आप मेरी दोस्त बनना पसंद करेंगी? ... अपने चेहरे पे एक लम्बी-सी मुस्कान के साथ प्रियांशु कहता है...
जी बिलकुल, मैं आपकी दोस्ती स्वीकार करती हूँ, और वैसे मेरा भी इस कॉलेज में आज पहला ही दिन है, इसलिए मुझे भी एक अच्छे से दोस्त की जरुरत आज नहीं तो कल पड़ने ही वाली है, तो फिर भला इस दोस्ती कि शुरुआत आज से ही क्यों ना कि जाये, ओके फ्रेंड्स... पल्लवी भी अपने चेहरे पर एक लम्बी-सी मुस्कराहट के साथ, प्रियांशु के सामने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाते हुए जवाब देती है...
ओह वाओ ग्रेट, अब चूंकि हम दोनो अच्छे दोस्त बन चुके है, तो क्यों न हम इस वैलेंटाइन डे को ओर भी ज्यादा खूबसूरत बना लें, आज शाम को अपनी पहली डेट पर चलकर... प्रियांशु अपनी आँखों में खुशी की एक चमक लेकर, पल्लवी से अपनी पहली दोस्ती का हाथ मिलाते हुए कहता है...
ओह, यू आर सो स्मार्ट, बट यू आर वैरी फास्ट, अभी तो हमारी पहली ही मुलाकात हुई है मिस्टर, और तुम अभी से ही मुझसे डेट पर चलने की बात कह रहे हो... पल्लवी खुद को थोड़ा असहज-सा महसूस कराती हुई कहती है...
जिस तरह वक़्त किसी की ज़िन्दगी और मौत का इंतज़ार नहीं करता, ठीक उसी तरह अपने दोस्त के साथ पहली डेट पे जाने से कोई दोस्त यूं बेरुखी से इंकार नहीं करता, फिर चाहे वो एक दिन की दोस्ती हो या फिर सौ दिन की
... प्रियांशु अपने एक शायराना अंदाज़ में जवाब देता है...
लेकिन मैं तुम पे भरोसा क्यों करूँ?... पल्लवी थोड़ी-सी उलझन महसूस करती हुई पूछती है...
क्योंकि कभी-कभी ज़िन्दगी में किसी को पहचानने में हमारी पूरी उम्र बीत जाती है, और वही कभी-कभी किसी अजनबी से हमारी सिर्फ दो पल की एक छोटी-सी मुलाकात भी हमें हमारे जिन्दगी भर के ग़मों से निजात दिलाने का मरहम दे जाती है, इसलिए फास्ट या स्लो का तो सवाल ही नहीं उठता है इस कम्बखत छोटी-सी जिन्दगी में मोहतरमा, इसलिए मैं हमेशा बिना एक पल का भी वक्त जाया किये सिर्फ अपने इस नटखट छोटे से दिल की ही सुनता हूँ... प्रियांशु एक सुकून भरी लम्बी-सी सांस लेते हुए कहता है...
एक अजीब-सी कशिश है तुम्हारी इन गोलमोल-सी बातों में, न जाने इनमें कितनी सच्चाई है, मगर फिर भी न जाने क्यों मेरा तुम पे भरोसा करने को जी चाहता है, दिमाग कहता है कि ठहर-जा एक बार और सोच ले, मगर ये नादान दिल कहता है कि आजमाले, अगर तुझे समझ में आये तो पास रख, नहीं तो फिर जाने दे', ठीक है, तो फिर ये तय रहा कि आज शाम को क्लास की छुट्टी के बाद हम चलते है हमारी पहली डेट पर... अपने मस्तमौला अंदाज के साथ पल्लवी भी एक शायराना अंदाज में जवाब देती हुई कहती है...
वाह, ये हुई ना कुछ बात, तो फिर तुम्हारी आज की शाम मेरे नाम तय रही... प्रियांशु थोडा खुश होते हुए कहता है...
और फिर वो दोनों साथ में कॉलेज के अंदर प्रवेश करते है, और बातों ही बातों में उन्हें पता चलता है कि संयोगवश उन दोनों की कक्षा एक ही होती है, इसलिए वो दोनों साथ में कॉलेज की सीढ़ियां चढ़ते हुए उस कॉलेज की दूसरी मंजिल के कमरा नम्बर 202 में एक-साथ दाखिल हो जाते है, जहां अंदर पहले से ही बहुत से स्टूडेंट्स अपनी-अपनी बैठने कि जगह पर मौजूद है, और फिर वो दोनों भी अपनी कक्षा के एक कोने की खाली पड़ी हुई बैठने कि मेज पर जाकर आराम से बैठ जाते है, उसके उपरान्त प्रोफेसर्स एक-एक करके उनकी क्लास रूम में दाखिल होते जाते है और अपने विषय समाप्त कर वहां से चले जाते है, फिर देखते ही देखते शाम भी हो जाती है और वो दोनों बेचैन दिल अपनी कक्षा की छुट्टी होने पर तुरंत ही महाविद्यालय परिसर की तरफ वापस आ जाते है...
कि तभी प्रियांशु, पल्लवी को दो मिनट वहीं कैंपस में ही रुकने को कहता है और खुद पार्किंग एरिया की तरफ चला जाता है, फिर थोड़ी देर के पश्चात वो अपनी स्पोर्ट्स बाइक लेकर वापस आता है, और पल्लवी को अपनी स्पोर्ट्स बाइक के पीछे बिठाकर वो दोनों वहां से दिल्ली शहर के एक अच्छे से कॉफी हाउस की तलाश में निकल पड़ते है...
द्रश्य 2) कॉफी हाउस (दिल्ली) : -
प्रियांशु की मोटरसाइकिल दिल्ली शहर के एक नामी कॉफी हाउस के बाहर आकर रूकती है, और फिर वो दोनों अपनी मोटरसाइकिल से नीचे उतरकर सीधे उस कॉफ़ी हाउस के मुख्य प्रवेश द्वार की ओर एक-साथ अपने कदम आगे बढ़ाते है, कि तभी एक बड़ी-सी मूछों वाला दरबान, जो कि अपने सर पर एक लाल रंग की पगड़ी लगाए हुए है, वो झुककर प्रियांशु और पल्लवी को आदर पूर्वक सलाम करता है और कॉफी हाउस का दरवाजा उन दोनों के स्वागत के लिए खोल देता है...
और फिर वो दोनों एक स्वीट से दिखने वाले कपल की भांति उस कॉफी हाउस में प्रवेश करते है, और उनके प्रवेश करते ही उन्हें कॉफी हाउस के अंदर का नजारा काफी व्यस्त-सा प्रतीत होता है, जहां अंदर चारो ओर उन्हें बस अपने असली या नकली प्यार की बाहें फैलाए कुछ प्यार के पंछी नजर आते है, और फिर वो दोनों भी दो हंसों का एक खूबसूरत-सा दिखने वाला जोड़ा बनकर, उस अति व्यस्त से दिखने वाले माहौल में अपने लिए भी थोड़ी-सी बैठने की जगह तलाशने लगते है, कि तभी भाग्यवश उनके बगल में बैठने की दो कुर्सियां खाली हो जाती है, और जैसे ही उन दोनों हंसों के जोड़े की नज़र उन कुर्सियों से उठते दो बगुलों पर पड़ती है, तो वो दोनों बिना एक क्षण की भी देर किये वहां पर विराजमान होकर एक राहत भरी लम्बी-सी सांस लेते है...
उम्म… आज काफी रश है यहां पर... एक अचंभित से स्वर में पल्लवी कहती है...
ये सब वैलेंटाइन डे का कमाल है, वरना मैं यहां अक्सर आता जाता रहता हूँ, तब यहां बैठने की जगह खोजने में इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती है... प्रियांशु अपना अनुभव व्यक्त करते हुए कहता है...
चलो अच्छा है, इस बहाने अंग्रेज हमें कम से कम अपने प्यार का इजहार करना तो सिखा के चले गए, वरना हम लोग प्यार का इजहार करना तो दूर की बात है, शादी के बाद भी आज तक घूंघट प्रथा में ही जी रहे होते, जो कि अभी भी बहुत से गाँवों में प्रचलन में है, अब तुम ही बताओ प्रियांशु कि जिस लड़की ने ठीक से अपने पति का चेहरा तक भी नहीं देखा हो, उससे भला खुलके जीने और अपनी बात को सबके समक्ष खुलके कहने की उम्मीद लगाना, सरासर क्या एक बेमानी-सी बात नहीं लगती है?... पल्लवी अपनी माँ के जीवन को याद करते हुए थोड़ी-सी भावुक हो जाती है, और एक प्रश्न-वाचक अंदाज़ में प्रियांशु से पूछती है...
कि तभी वहां उनके पास एक बैरा आ जाता है और उनसे उनके आर्डर के बारे में पूछता है... प्रियांशु, पल्लवी से आर्डर करने को कहता है... पल्लवी कोल्ड कॉफी विद आइसक्रीम आर्डर करती है और साथ में प्रियांशु से भी उसके आर्डर के बारे में पूछती है... परन्तु प्रियांशु भी अपने लिए सेम-टू-सेम ही आर्डर करने को कहता है... इसके बाद वो बैरा उनका आर्डर लेकर वहां से चला जाता है...
और फिर प्रियांशु अपनी बातों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए कहता है, कि तुम्हारी बातों से मुझे ऐसा लगता है कि जैसे तुम्हारा बचपन काफी मुश्किल भरे हालातों में गुजरा हो... एक सवाल का जवाब एक सवाल के रूप में देकर प्रियांशु, पल्लवी से पूछता है...
नहीं, मेरा नहीं, पर मेरी माँ का बचपन और जवानी दोनों जरूर एक संघर्ष भरे वातावरण में गुजरे है... पल्लवी थोड़ी-सी गंभीर होकर कहती है...
क्यों, ऐसा क्या हुआ था उनके साथ?... थोड़ा-सा अचंभित होते हुए प्रियांशु पूछता है...
छोडो रहने दो, कुछ पुरानी बातें है... पल्लवी बात को टालते हुए कहती है...
लगता है कि तुमने मुझे अभी भी अपना दोस्त स्वीकार नहीं किया है... एक प्रश्न-वाचक अंदाज में प्रियांशु पूछता है...
नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, बस मैं अपने बीते हुए कल को याद नहीं करना चाहती हूँ, फिर भी इस विषय पर मैं तुमसे बस सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगी, कि हमारी फॅमिली काफी पुराने ख्यालातों की है, जिस वजह से मेरी सोच उन सबसे मेल नहीं खाती है, सिवाय अपनी माँ के... थोडी-सी नाराजगी और थोड़ी-सी भावुकता को प्रकट करते हुए पल्लवी कहती है...
इतनी देर में, वो बैरा भी वहां पर उनका आर्डर लेकर वापस आ जाता है, और उनकी मेज पर दो कोल्ड कॉफी विद आइसक्रीम के साथ बिल्कुल सलीके से रखकर वहां से चला जाता है...
वैसे, मेरे मन में एक सवाल है, अगर तुम्हारी इजाजत हो तो मैं पूछूं... अपने हाथ में कॉफी का कप लेकर थोड़ा-सा डरते हुए प्रियांशु कहता है...
हाँ, पूछ सकते हो, बस ज्यादा बातों की गहराई में मत जाना... अब पल्लवी भी अपने हाथ में कॉफी का कप लेकर अपनी भावनाओ पर नियंत्रण करती हुई थोड़ी-सी मजाकिया अंदाज में प्रियांशु से कहती है...
चलो फिर रहने दो, हम किसी और टॉपिक पे बात करते है... प्रियांशु बात को टालने के इरादे से कॉफी की एक चुसकी लेते हुए कहता है...
वैसे मेने कहीं सुना है कि मन की बातों को ज्यादा मन में भी नहीं रखना चाहिए, वरना फिर बाद में उस इंसान के सर में दर्द भी शुरू हो सकता है, इसलिए जो पूछना चाहते हो तुम बेझिझक होकर मुझसे पूछ सकते हो... कॉफी के कप मे से एक छोटी चम्मच के द्वारा थोड़ी-सी आइसक्रीम चखते हुए पल्लवी वहां के माहौल को थोड़ा-सा हल्का करने की कोशिश करती हुई कहती है...
अब तुम इतना जोर दे ही रही हो तो मैं पूछ ही लेता हूँ, मेरे मन में सिर्फ एक ही सवाल है, कि कौन-कौन है तुम्हारी फॅमिली में? और अगर तुम्हारे घर वाले इतने ही पुराने खयालात के है, तो फिर उन्होंने तुम्हे वहां केरल से यहां इतनी दूर दिल्ली में अकेले पढ़ने के लिए कैसे भेज दिया? आखिरकार, वहां दक्षिण भारत में भी तो काफी अच्छे विश्वविधालय है... अब प्रियांशु भी अपने कॉफी कप मे से थोड़ी-सी आइसक्रीम चखते हुए थोड़े से अचरज के साथ पूछता है...
उम्म… वैसे तुम शकल से दिखते तो काफी भोले हो, पर दिमाग से काफी तेज हो, जो एक सवाल की इजाजत लेकर अपने बड़े ही अनोखे अंदाज में एक साथ सामने वाले से दो सवाल पूछ लेते हो, खैर, कोई बात नहीं, अब अगर तुमने पूछ ही लिया है तो फिर मैं अब इन दोनों सवालों के जवाब भी तुम्हें जरूर दूँगी... पल्लवी थोड़ी-सी मजाकिया अंदाज में कहती है...
और फिर धीरे से कॉफी की एक चुस्की लेते हुए पल्लवी अपनी बात को आगे कंटिन्यू करते हुए कहती है... तुम्हारे पहले सवाल का जवाब है मेरी फॅमिली में मेरे पापा और मम्मी के अलावा एक चाचा, एक चाची और उनके दो बेटे है, जो अभी लगभग (7-8 साल) के है, और मुझसे बड़े मेरे दो सगे भाई है, तथा साथ में दो भाभियाँ भी है जिनके एक-एक बेटा है, यानि की मेरे प्यारे से छोटे से भांजे, जो कि अभी सिर्फ (2-3 साल) के है... थोड़ा-सा खुश होते हुए पल्लवी कहती है...
और फिर पल्लवी थोड़ी देर के लिए खामोश होकर धीरे-धीरे कॉफी पीने का आनंद लेती हुई इधर-उधर देखती है, और इधर प्रियांशु भी थोड़ी देर के लिए चुपचाप होकर बस पल्लवी के चेहरे को ही निहारते हुए उसे समझने की कोशिश करने लगता है...
इस थोड़ी देर के अल्प-विराम के पश्चात, पल्लवी अपनी बातों के सिलसिले को आगे कंटिन्यू करते हुए कहती है... अब बाकि रहा तुम्हारा दूसरा सवाल, तो उसका जवाब ये है कि मेरे पापा हमारे गाँव के बहुत बड़े जमींदार है, जहां पूरा गाँव उनके आदेश का आँख बंद करके पालन करता है, और उनके इस काम में मेरे चाचा और मेरे दोनों बड़े भाईसाहब भी उनका साथ देते है, और इसी सिलसिले में गाँव के काफी लोगो का भी रोज-रोज हमारे घर पर आना-जाना लगा ही रहता है, और इस वजह से मेरे पापा बाहर से थोड़े से सख्त भी दिखाई देते है, पर फिर भी मेरी फॅमिली मुझसे बहुत ज्यादा प्यार करती है, और इसलिए ही वो ये नहीं चाहते थे कि मेरी पढाई में किसी भी तरीके की कोई भी बाधा आये, बस इसी वजह से उन्होंने मुझे वहां घर से इतनी दूर यहां दिल्ली में अकेले पढ़ने के लिए भेज दिया, ताकि मैं आत्मनिर्भर होकर निकट भविष्य में उनके कारोबार में भी उनका हाथ बंटा सकूँ, बस यही है मेरी एक छोटी-सी कहानी, अब सब कुछ मैं ही अपने बारे में बताती रहूंगी या फिर तुम भी कुछ अपने बारे में बताओगे?... पल्लवी प्रियांशु से सवाल करती हुई पूछती है...
वैसे मेरे पास बताने के लिए ज्यादा कुछ खास नहीं है, मेरी एक छोटी-सी फॅमिली है, और यहीं पास ही नॉएडा में मेरा घर भी है, घर में मेरे पेरेंट्स के अलावा मेरी फॅमिली में मेरा एक बड़ा भाई, एक भाभी और साथ में मेरी दो प्यारी-सी छोटी-छोटी भतीजियां भी है, जो अभी लगभग (1-2 साल) की है, पापा नेवी में थे इसी साल रिटायर्ड हुए है, और वो अपनी निजी जिन्दगी में भी काफी अनुशासन प्रिय व्यक्ती है, जबकि मम्मी हाउस वाइफ है, बड़ा भाई डॉक्टर है और भाभी टीचर, बस घर में एक इंजीनियर की कमी थी, तो मेने सोचा क्यों न वो कमी भी मैं पूरी कर दूँ, और इसलिए मेने एक इंजीनियर बनने का फैसला कर लिया, बस, यही है मेरी एक छोटी-सी कहानी... कॉफ़ी का आखिरी घूंट भरते हुए प्रियांशु कहता है...
उम्म... काफी दिलचस्प किस्म कि फॅमिली है तुम्हारी, अगर मौका मिला तो मैं उनसे जरूर मिलना चाहूंगी, इसी के साथ पल्लवी भी अपनी कॉफी का आखिरी घूंट समाप्त करती है, और फिर वो अपनी घडी की सुइयों की तरफ देखते हुए कहती है... मुझे लगता है कि हमें यहां पर अब काफी देर हो चुकी है, इसलिए हमें अब यहां से जल्दी चलना चाहिए... ये कहते हुए पल्लवी खड़ी हो जाती है...
और इधर प्रियांशु भी कॉफी का भुगतान कुछ दान के साथ अदा करके वहां से चलने के लिए खड़ा हो जाता है...
और फिर वो दोनों कॉफी हाउस से बाहर आ जाते है, जहां प्रियांशु, पल्लवी को उसके गर्ल्स हॉस्टल तक छोड़ने का आग्रह करता है...
मेरा हॉस्टल कॉलेज के पास ही है... ये कहती हुई पल्लवी, प्रियांशु के सवाल का हाँ में जवाब देती है...
और फिर प्रियांशु, पल्लवी को अपनी बाइक के पीछे बैठाकर, पल्लवी के गर्ल्स हॉस्टल की तरफ अपनी स्पोर्ट्स बाइक का रुख कर लेता है...
और जैसे ही प्रियांशु और पल्लवी अपने कॉलेज के आज के इस पहले दिन की इस मीठी-सी खुशनुमा मुलाकात के सफर के अंत की ओर नज़दीक पहुंचते है, कि तभी अचानक प्रियांशु की स्पोर्ट्स बाइक पल्लवी के गर्ल्स हॉस्टल के बाहर आकर रुकती है, जो कि दिल्ली महानगर का एक काफी किफायती और अत्याधुनिक ऐ.सी युक्त सम्पूर्ण सुख सुविधाओं से सुसज्जित गर्ल्स होस्टल्स में से एक होता है...
द्रश्य 3) पल्लवी का गर्ल्स हॉस्टल (दिल्ली) :-
पल्लवी, प्रियांशु की स्पोर्ट्स बाइक से नीचे उतरती हुई उसे अलविदा कहकर जैसे ही सीधे अपने गर्ल्स हॉस्टल की तरफ जाने लगती है, कि तभी प्रियांशु पीछे से पल्लवी का नाम जोर से पुकारता है, पल्लवी थोड़ा रुककर पलटकर देखती है, तो प्रियांशु उसे एक लम्बी-सी सांस के अहसास के साथ बिलकुल धीरे से कुछ-कुछ फुसफुसाने के अंदाज में अपने चेहरे पर एक बड़ी-सी मुस्कान लिए अपना दांया हाथ ऊपर हवा में हिलाते हुए पल्लवी को अलविदा कहता है, जिसे देखकर पल्लवी के चेहरे पर भी एक हल्की-सी मुस्कान आ जाती है, और फिर प्रियांशु उसे कल कॉलेज में दुबारा मिलने की बात कहकर वहां से चला जाता है...
और इधर पल्लवी भी जैसे ही अपने गर्ल्स हॉस्टल के मुख्य द्वार की ओर जल्दी-जल्दी कदम आगे बढाती है, कि तभी गर्ल्स हॉस्टल का चौकीदार अपनी कुर्सी से उठता हुआ पल्लवी के लिए उस हॉस्टल का बड़ा-सा दरवाजा खोल देता है, जिसके बाद पल्लवी अपने हॉस्टल की लिफ्ट का इस्तेमाल करती हुई वहां तीसरे माले के अपने रूम नम्बर 303 में पहुँच जाती है...
जहां कमरे के अंदर पहले से ही उसकी दो रूममेट्स निशा और साक्षी मौजूद है, जो कि उत्तर भारतिय होती है, पल्लवी के अपने कमरे में प्रवेश करते ही वो दोनो जोर-जोर से अपने मजाकिया लहजे में चिल्लाती हुई कहती है... क्यों? आ गई महारानी साहिबा, वैलेंटाइन डे मनाकर, अपने आशिक के साथ, जरा हमें भी तो बता दो कि आखिर कौन है वो सौभाग्यशाली राजकुमार? जिसने हमारी एक प्यारी-सी नन्ही परी का दिल चुरा लिया है...
चुप रहो तुम दोनों, ये क्या बकवास करे जा रही हो? कोई नहीं था मेरे साथ, मैं यहां हॉस्टल में कॉलेज से सीधा अकेली ही आयी हूँ... पल्लवी थोड़ा हल्के से स्वर में उन्हें डांटते हुए कहती है, और फिर थोडा-सा मन ही मन शर्माते हुए वो अपनी किताबों को वहां उस कमरे में उपस्थित एक मेज पर रखकर अपनी नजरें उनसे चुराती हुई सीधा जाकर अपने बिस्तर पर आराम से बैठ जाती है...
हाँ-हाँ, हमने कब मना किया है कि तू अकेली नहीं आई है, पर अब अगर तूने बात छेड़ ही दी है अकेले आने की, तो अब बता भी दे कि कौन था वो? भला ऐसी बातें भी कोई अपने दोस्तों से छुपाता है... निशा कहती है...
और अगर तू वाकई में अकेली थी, तो फिर तुझे आने में इतना वक़्त कैसे लग गया? हम तो यहां पिछले दो घंटे से तेरा इंतज़ार कर रहे है... साक्षी कहती है...
वो दरअसल, बात कुछ ऐसी है कि मैं आज कॉलेज के बाद से सीधा थोड़ी देर के लिए मार्केट चली गई थी, इसलिए मुझे आने में आज थोड़ी-सी देर हो गई... थोड़ी झिझक के साथ पल्लवी कहती है...
अरे वाह रे छोरी, मन्ने लागे है कि तू तो घणी जवान हो गई से, जो अकेले-अकेले ही बाजार जाने लागी से, जरा हमें भी अपने साथ में थोड़ा-सा बाजार घुमाणे वास्ते ले चलती, हम कौण-सा थारो पैसों से भरा परस छीन के भागण वाली से?... थोड़े स्थानीय लहजे में मस्ती करती हुई ‘निशा और साक्षी' दोनों साथ में पल्लवी को छेड़ते हुए बोलती है...
वो, मैं अपनी दोस्त के साथ थी... पल्लवी कहती है...
ओह हो, अभी तो तू कह रही थी कि तू अकेली आई है, और अब तू कह रही है कि दोस्त के साथ थी, सच-सच बता, कि कौन है वो लड़का?... निशा अपने मजाकिया तरीके से पूछती है...
हाँ-हाँ, जल्दी से नाम बोलो उसका, जरा हमें भी तो पता चले कि आखिर कौन है वो तुम्हारे सपनो का राजकुमार? जिसने हमारी दोस्त का दिल चुरा लिया है... साक्षी अपने दोनों हाथो से पल्लवी के दोनों गालो को सहलाते हुए पूछती है...
और हाँ, अब जब तक तू हमे सच नहीं बता देती, तब तक हम दोनों भी तुझे ऐसे ही तंग करते रहेंगे, और तेरा पीछा भी नहीं छोड़ेंगे... निशा बोलती है...
लगता है तुम दोनों ऐसे नहीं मानोगी... पल्लवी कहती है...
नहीं, बिलकुल नहीं... निशा और साक्षी दोनों एकसाथ एक सुर में कहती है...
अच्छा बाबा, तुम दोनों जीती और मैं हारी, तुम्हें उसका नाम ही जानना है ना, तो सुनो, प्रियांशु नाम है उसका, वो मुझे आज ही मिला था कॉलेज में, फिर उसने मेरे सामने वेलेनटिन डे पर अपनी तरफ से दोस्ती की पेशकश की और मैं उसे मना नहीं कर