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आईना-ए-तवारीख
आईना-ए-तवारीख
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Ebook472 pages4 hours

आईना-ए-तवारीख

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About this ebook

यह पुस्तक तारिखों का इतिहास है. इस पुस्तक में वैसे सभी तिथियों को रखा गया है जिसे हम किसी न किसी रूप में मनाते है, याद करते है. यह पुस्तक विद्यालय, महाविद्यालय और अन्य संस्थानों के लिए उतना ही उपयोगी है जितना छात्रों के लिए

Languageहिन्दी
PublisherAarsh kumar
Release dateNov 11, 2020
ISBN9781393270782
आईना-ए-तवारीख

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    Book preview

    आईना-ए-तवारीख - Rakesh Bihari Shrma

    आईना-ए-तवारीख

    (Mirror of History)

    ––––––––

    राकेश बिहारी शर्मा

    Copyright © 2020 Author Rakesh Bihari Shrma

    All rights reserved.

    समर्पण

    श्री सुबोध कुमार सिंह (बि०प्र०से०) जिनकी प्रेरणा से मैंने इस पुस्तक की रचना की.

    ––––––––

    विषय-सूची

    ––––––––

    आभार

    श्री लाल बाबु सिंह (बि० सू० ज० स० से०) ,श्री आशुतोष जी एवं प्रो०(डा०) लक्ष्मीकांत जी का आभारी हूँ जिनके सहयोग के बिना मै इस मुकाम तक नही पहुँच पाता .

    जनवरी: सड़क सुरक्षा और पर्यावरण के लिए

    जनवरी माह के जयंती व महत्वपूर्ण दिवस 

    1 जनवरी - नया साल दिवस 

    यूं तो पूरे विश्व में नया साल अलग-अलग दिन मनाया जाता है, और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में भी नए साल की शुरूआत अलग-अलग समय  होती है। लेकिन ग्रिगेरियन कैलेंडर (अंग्रेजी कैलेंडर) के अनुसार 01 जनवरी से नए साल की शुरूआत मानी जाती है। चूंकि 31 दिसंबर को एक वर्ष का अंत होने के बाद 1 जनवरी से नए अंग्रेजी कैलेंडर वर्ष की शुरूआत होती है। इसलिए, इस दिन को पूरी दुनिया में नया साल शुरू होने के उपलक्ष्य में, पर्व की तरह मनाया जाता है। हालांकि हिन्दू पंचांग के अनुसार नया साल 1 जनवरी से शुरू नहीं होता। हिन्दू नववर्ष का आगाज गुड़ी पड़वा से होता है। लेकिन 1 जनवरी को नया साल मनाना सभी धर्मों में एकता कायम करने में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है, क्योंकि  इसे सभी मिलकर मनाते हैं। 31 दिसंबर की रात से ही कई स्थानों पर अलग-अलग समूहों में इकट्ठा होकर लोग नए साल का जश्न मनाना शुरू कर देते हैं और रात 12 बजते ही सभी एक दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते हैं। तमाम देशों के अधिकारिक कैलेंडर ग्रेगेरियन कैलेंडर ही माना जाता है.

    1 - 7 जनवरी - सड़क सुरक्षा सप्ताह

    ––––––––

    भारत में प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है। वर्ष 2015 में यह दिवस 11 जनवरी से 17 जनवरी तक मनाया गया था। 'राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह' के तहत आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से आमजन को यातायात नियमों की आधारभूत जानकारी मिलती है। आकस्मिक कारक के रूप में सड़क दुर्घटनाओं के विश्लेषण से पता चलता है कि कुल सड़क दुर्घटनाओं में 78.7 प्रतिशत चालकों की गलती से होती हैं। इस गलती के पीछे शराब/मादक पदार्थों का इस्तेशमाल, वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करना, वाहनों में जरुरत से अधिक भीड़ होना, वैध गति से अधिक तेज़ गाड़ी चलाना और मानसिक थकान आदि का होना है।

    राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह का उद्देश्य :- सड़क सुरक्षा अभियान को मनाने का उद्देश्य समुदाय, स्कूल, कॉलेज, कार्यशालाओं, सड़कों आदि पर लोगों के बीच में सड़क सुरक्षा के उपाय एवं साधनों को बढ़ावा देना है। सड़क सुरक्षा संसाधनों का प्रयोग के द्वारा सड़क दुर्घटनाओं, तथा दुर्घटना में मृत्यु और चोटों को कम और पूरी तरह से घटाया जा सकता है. सभी यात्रियों को यातायात के नियमों का पालन करने और ड्राइविंग के दौरान हेलमेट या सीट बेल्ट लगाने के लिए बढ़ावा देना इसका उदेश्य है। उन सुरक्षा के नए साधनों को लागू करना, जो सड़क दुर्घटनाओं को के खतरे, मृत्यु या चोट लगने को कम करने के लिए साबित हो चुके हैं, इसका उदेश्य है। सड़क दुर्घटनाओं को बचाने के लिए लोगों को वाहनों की गति सीमा के बारे में जागरुक करने के साथ-साथ लोगों को जागरुक करने के लिए ताकि, थके होने पर या नशे में होने पर वाहन नहीं चलाए और वाहन चलाते समय फोन या रेडियो का प्रयोग नहीं करें।

    3 जनवरी - सावित्री बाई फुले जयंती 

    क्रान्ति ज्योति सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को नायगांव ता-खंडाला, जिला सातारा महाराष्ट्र में हुआ था। नारी मुक्ति की प्रणेता, कर्मठ शिक्षिका, आधुनिक युग के श्रेष्ठ कवि सावित्रीबाई फुले भारत की एक समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। फुले दंपत्ति ने 01 जनवरी 1848 को पुणे की भिड़ेवाड़ी में लड़कियों के लिए भारत में पहला स्कूल खोला। इसी स्कूल से सावित्री बाई और सगुणाबाई ने अध्यापन का काम शुरू कर भारत की पहली महिला अध्यापिका होने का गौरव हासिल किया। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित व कमजोर महिलाओं को शिक्षित बनाना।सावित्रीबाई ने उन्नीसवीं सदी में समाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर बहुत सारा काम किया । सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर जाति और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। इस महानायिका ने समाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिणक क्रान्ति की नीव भारत में रखी जिसके कारण आज आधुनिक भारत में महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो रही है जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, राज्यपाल, मुख्यमन्त्री, सांसद, मंत्री, विधायक, सरपंच आदि राजनैतिक पदों के अतिरिक्त शिक्षा, प्रशासन, विज्ञान और खेल में देश का गौरव बढ़ा रही इसका ज्वलन्त उदाहरण ओलम्पिक खेलों में भारत को शर्मसार होने से बचा कर इतिहास रचने वाली सिंधु,साक्षी,पी.टी.उषा ने भारत के लोगों को आईना दिखा दिया, इसका श्रेय हमे सिर्फ और सिर्फ ज्योतिबाफुले- सावित्री फुले एंव भारतीय संविधान को ही देना चाहिए किन्तु दुखद इस देश में ऐसे क्रान्तिकारियो को छुपाया जाता रहा है। सावित्रीबाई फुले पहली भारती महिला थीं, जिन्होंने जाति और जातिवादी पितृसत्ता के खिलाफ एक साथ संघर्ष की शुरूआत किया और आजीवन संघर्ष करती रहीं। वे न केवल पहली महिला अध्यापिका, आधुनिक युग की पहली महिला सामाजिक क्रान्तिकाकारी थीं, साथ ही आधुनिक मराठी कविता की जन्मदात्री भी थीं।

    4 जनवरी - लुई ब्रेल दिवस

    लुइस ब्रेल का जन्म 04 जनवरी 1809 को फ्रांस के कूपवर में हुआ था। उन्हें दृष्टिबाधित लोगों के लिए ‘ब्रेल लिपि’ का आविष्कार करने हेतु जाना जाता है। साल 1824 में बनी यह लिपि आज विश्व के करीब-करीब सभी देशों में उपयोग में लायी जाती है। बचपन में एक दुर्घटना के वजह से लुइस ब्रेल ने अपनी दोनों आँखों की रोशनी खो दी थी। ब्रेल को फ़्रांसिसी सेना के चार्ल्स बार्बिएर के सैन्य संचार के प्रणाली के बारे में वर्ष 1821 में ज्ञात हुआ। इस प्रणाली में भी डॉट्स का उपयोग किया जाता था परन्तु चार्ल्स का यह कोड बहुत ही जटिल था। लुइस बेल ने इसके बाद अपनी लिपि पर कार्य शुरू किया। लुइस ब्रेल ने वर्ष 1824 तक अपनी लिपि को लगभग तैयार कर लिया था। वे उस समय महज 15 वर्ष के थे। उनके द्वारा बनाई गई लिपि बेहद सरल मानी जाती है। लुइस बेल का 06 जनवरी 1852 को मात्र 43 वर्ष की आयु में निधन हो गया था।

    संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक विश्व भर में करीब 39 मिलियन लोग देख नहीं सकते जबकि 253 मिलियन लोगों में कोई न कोई दृष्टि विकार है। विश्व ब्रेल दिवस का मुख्य उद्देश्य दृष्टि-बाधित लोगों के अधिकार उन्हें प्रदान करना और ब्रेल लिपि को बढ़ावा देना है। 

    ब्रेल एक लेखन पद्धति है। यह नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए सृजित की गई थी। ब्रेल एक स्पर्शनीय लेखन प्रणाली है। इसे एक विशेष प्रकार के उभरे कागज़ पर लिखा जाता है। इसकी संरचना फ्रांसीसी नेत्रहीन शिक्षक और आविष्कारक लुइस ब्रेल ने की थी। इन्हीं के नाम पर इस पद्धति का नाम ब्रेल लिपि रखा गया है। ब्रेल में उभरे हुए बिंदु होते हैं। इन्हें ‘सेल’ के नाम से जाना जाता है। कुछ बिन्दुओं पर छोटे उभार होते हैं। इन्हीं दोनों की व्यवस्था और संख्या से भिन्न चरित्रों की विशिष्टता तय की जाती है। ब्रेल की मैपिंग प्रत्येक भाषा में अलग हो सकती है। इस‍ लिपि में स्कूली बच्चों के लिए पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ छपते हैं। ब्रेल लिपि में कई पुस्तकें भी निकलती हैं।

    ब्रेल लिपि से फायदे- ब्रेल लिपि के आविष्कार के बाद विश्वभर में नेत्रहीन, दृष्टिहीन या आंशिक रूप से नेत्रहीन लोगों की जिंदगी बहुत हद तक आसान हो गई। इसकी सहायता से ऐसे कई लोग अपने पैरों पर खड़े हो सके।

    12 जनवरी - गुरु गोविंद सिंह जयंती (सिक्ख)

    जब कोई भी व्यक्ति गुरु गोबिंद सिंह जी का नाम सुनता है तो उसके मन में सिर्फ एक ही नाम आता है, शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह जी का। उनके बचपन का नाम गोविंद राय था और वे दसवें सिख गुरु थे। एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ वे एक निर्भयी योद्धा, कवि और दार्शनिक भी थे। जब उनके पिता, गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने इस्लाम में परिवर्तित होने से इनकार कर दिया, तो उनका सिर काट दिया गया। तब 9 वर्ष के गुरु गोबिंद सिंह को औपचारिक रूप से सिखों के गुरु के रूप में स्थापित किया गया।

    गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म: पौष शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी तदनुसार 12 जनवरी 1666 को तथा मृत्यु 17 अक्टूबर 1708 को हुआ था। १६६६ में मकर संक्रांति 09 जनबरी शनिवार को था. गुरु गोविंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी के घर पटना में हुआ था। जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके पिता असम में धर्म उपदेश को गये थे। उनके बचपन का नाम गोविन्द राय था। पटना में जिस घर में उनका जन्म हुआ था और जिसमें उन्होने अपने प्रथम चार वर्ष बिताये थे, उनके जन्मदिन पर काफी विवाद है,कहीं 22 दिसम्बर भी साहित्यकार लिखते हैं। 1670 में उनका परिवार फिर पंजाब आ गया। मार्च 1672 में उनका परिवार हिमालय के शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर आ गया। यहीं पर इनकी शिक्षा आरम्भ हुई। उन्होंने फारसी, संस्कृत की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा। चक्क नानकी ही आजकल आनन्दपुर साहिब कहलता है। गुरु गोबिंद सिंह जी का नेतृत्व सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया ले कर आया। उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा जो की सिख धर्म के विधिवत् दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है उसका निर्माण किया। सिख समुदाय के एक सभा में उन्होंने सबके सामने पुछा – कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राज़ी हो गया और गुरु गोबिंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पुछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राज़ी हुआ और उनके साथ गया पर वे तम्बू से जब बहार निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी प्रकार पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंच प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया। इनकी तीन शादियाँ हुई, प्रथम दस वर्ष में माता जीतो के साथ, दूसरी सत्रह वर्ष में माता सुन्दरी के साथ तथा तीसरी 33 वर्ष में माता साहिब देवन के साथ.

    10  जनवरी - विश्व हिन्दी दिवस

    हिंदी भी बाजार की भाषा बनने लगी है। देश की स्वतंत्रता और विकास में हिंदी भाषा का अहम योगदान है। हिंदी से ही हिंद है। विश्व की सबसे बड़ी भाषा हिंदी है। हिंदी राष्ट्र भाषा की गंगा से विश्व भाषा का महासागर बन रही है। हिन्दी का विकास ही राष्ट्र का विकास है। देश की आजादी के बाद संविधान सभा के द्वारा काफी विचार विमर्श के बाद 14 सितंबर 1949 हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया, बाद में जवाहरलाल नेहरू सरकार ने इस ऐतिहासिक दिन के महत्व को देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। हिन्दी का एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रचारित-प्रसारित करने और विश्व हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन को संस्थागत व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना का निर्णय लिया गया। इसकी संकल्पना 1975 में नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान की गई, जब मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम ने मॉरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय स्थापित करने का प्रस्ताव किया। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 से प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि ‘हिन्दी के माध्यम से ही पूरे देश के साथ विश्व को भी एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। आज के समय में लोग अंग्रेजी को ज्यादा महत्व देते हैं। आज भी न्यायालय, चिकित्सा तथा विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दी में काम नहीं हो रहा है। देशवासियों को हिन्दी के महत्व को समझना होगा। लोगों को हिन्दी में लिखने, पढ़ने और बोलने के लिए उन्हें जागरूक करने की आवश्यकता है। हिंदी राजभाषा होने से पहले हमारी संपर्क भाषा है। पूरे देश तथा विश्व को एक सूत्र में बांधने वाली सबसे सहज सुगम संपर्क भाषा जिसे जिंदा रखना और सशक्त बनाना हर भारतवासी का दायित्व है। हिन्दी विश्व की एकमात्र भाषा है जो अ-से अनपढ़ से शुरू होती है और ज्ञ-से ज्ञानी बनाकर छोडती है। बचपन में लड़खड़ाते,गिरते,उठते तुतलाते हुए जिस भाषा में कंठ की प्रथम ध्वनि निकली, उस मातृ भाषा और भारत की राजभाषा का अधिकाधिक लोग सम्मान और उपयोग करें यही मेरी इच्छा है। लोगों को आधुनिकता एवं अंग्रेजीयत से अलग होकर हिन्दी की रोचकता और महत्ता को जानने पहचानने की जरूरत है। आज हिंदी भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में बोली समझी जाने वाली विश्व भाषाओं में अपनी पहचान स्थापित कर चुकी है और शब्दों की संख्या के आधार पर भी विश्व की सबसे बड़ी भाषा हिंदी बन गई है। आज आम लोगों के बीच अंग्रेजी भाषा के प्रति बढ़ते लगाव और हिंदी भाषा की अनदेखी करने की वजह से हिंदी प्रेमी बेहद निराश हैं। यही वजह है कि हर साल विश्वभर के लोगों को हिंदी भाषा के प्रति जागरूक करने के लिए विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि भारत में भले ही अंग्रेज़ी बोलना सम्मान की बात मानी जाती हो, पर विश्व के बहुसंख्यक देशों में अंग्रेज़ी का इतना महत्त्व नहीं है। हिंदी बोलने में हिचक का एकमात्र कारण पूर्व प्राथमिक शिक्षा के समय अंग्रेज़ी माध्यम का चयन किया जाना है। आज भी भारत में अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों का दाख़िला ऐसे स्कूलों में करवाना चाहते हैं, जो अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा प्रदान करते हैं। जबकि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिशु सर्वाधिक आसानी से अपनी मातृभाषा को ही ग्रहण कर पाता है और मातृभाषा में किसी भी बात को भली-भांति समझ सकता है। हिन्दी हमारे दिल की धड़कन है, भारत के 90 करोड़ लोग हिन्दी भाषी हैं। भारत व विश्व में अब हिन्दी भाषियों की संख्या बढ़ रही है। विश्व के अधिकांश देशों में हिन्दी का प्रचार हो रहा है। हिन्दी विश्व की दूसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है। दुनिया में हिंदी भाषा समझी व बोली जाती है। विश्व हिंदी दिवस हर साल 10 जनवरी को मनाया जाता है। विश्व हिंदी दिवस का उद्देश्य विश्वह भर में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए वातावरण निर्मित‍ करना और हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है।

    12 जनवरी :  स्वामी विवेकानंद जयंती

    'उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए' का संदेश देने वाले युवाओं के प्रेरणास्त्रो‍त, समाज सुधारक युवा युग-पुरुष 'स्वामी विवेकानंद' का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) में हुआ। इनके जन्मदिन को ही राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रमु्ख कारण उनका दर्शन, सिद्धांत, अलौकिक विचार और उनके आदर्श हैं, जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी उन्हें स्थापित किया। उनके ये विचार और आदर्श युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। उनके लिए प्रेरणा का एक उम्दा स्त्रोत साबित हो सकते हैं। किसी भी देश के युवा उसका भविष्य होते हैं। उन्हीं के हाथों में देश की उन्नति की बागडोर होती है। आज के पारिदृश्य में जहां चहुं ओर भ्रष्टाचार, बुराई, अपराध का बोलबाला है जो घुन बनकर देश को अंदर ही अंदर खाए जा रहे हैं। ऐसे में देश की युवा शक्ति को जागृत करना और उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का बोध कराना अत्यंत आवश्यक है। विवेकानंद जी के विचारों में वह क्रांति और तेज है जो सारे युवाओं को नई चेतना से भर दे। उनके दिलों को भेद दे। उनमें नई ऊर्जा और सकारात्कमता का संचार कर दे। स्वामी विवेकानंद की ओजस्वी वाणी भारत में तब उम्मीद की किरण लेकर आई जब भारत पराधीन था और भारत के लोग अंग्रेजों के जुल्म सह रहे थे। हर तरफ सिर्फ दु्‍ख और निराशा के बादल छाए हुए थे। उन्होंने भारत के सोए हुए समाज को जगाया और उनमें नई ऊर्जा-उमंग का प्रसार किया। स्वामी जी को यु्वाओं से बड़ी उम्मीदें थीं। उन्होंने युवाओं की अहं की भावना को खत्म करने के उद्देश्य से कहा है 'यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खड़े हो जाओगे, तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढ़ेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले ‘अहं’ ही नाश कर डालो।' उन्होंने युवाओं को धैर्य, व्यवहारों में शुद्धताा रखने, आपस में न लड़ने, पक्षपात न करने और हमेशा संघर्षरत् रहने का संदेश दिया। आज भी स्वामी विवेकानंद को उनके विचारों और आदर्शों के कारण जाना जाता है। आज भी वे कई युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने हुए हैं।

    23 जनवरी - नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती

    देश हित में नेताजी द्वारा किए गए कार्यों को भुलाया नहीं जा सकता। नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में एक संपन्न परिवार में हुआ था। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा बुलंद कर वे युवाओं की फौज तैयार की थी और देश से अंग्रेजों को भगाने का कार्य किए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के समान कोई व्यक्तित्व दूसरा नहीं हुआ, एक महान सेनापति, वीर सैनिक, राजनीति के अद्भुत खिलाड़ी और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नेताओं के समकक्ष बैठकर कूटनीति तथा चर्चा करने वाले इस विलक्षण व्यक्तित्व के बारे में जितना कहा जाए कम है। आजादी की बात हो और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जिक्र ना हो, ऐसा भला हो सकता है क्या, सुभाष चंद्र बोस केवल एक इंसान का नाम नहीं है बल्कि ये नाम है उस वीर का, जिनकी रगों में केवल देशभक्ति का खून बहता था। बोस भारत मां के उन वीर सपूतों में से एक हैं, जिनका कर्ज आजाद भारतवासी कभी नहीं चुका सकते हैं। नेताजी एक ऐसे जुझारू नेता थे जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर अंग्रेजों को खदेड़ने का काम किया। उन्होंने आजाद हिंद फौज का नेतृत्व करते हुए देश से अंग्रेजों को भगाने के लिए जापानी सेना की मदद से 1943 से 1945 तक युद्ध लड़ा। सुभाषचंद्र बोस जी ने अपनी जान की बाजी लगाकर हमें आजादी दिलवाई, आज उनके बदौलत ही हम खुली हवा में साँस ले रहे हैं। नेता शिरोमणि सुभाष चंद्र बोस जी की ये पंक्तिया आज भी हमारे अंदर जोश भर देती है जो वे उस समय गाया करते थे। कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा, ये जिंदगी है कौम की, तू इसे कौम पर लुटाए जा। अब हमारा यह कर्तव्य बनता है कि उनका अधूरा सपना पूरा करे, उपस्थित लोगों को उन्होंने बताया कि नेता जी मात्र 23 वर्ष की आयु में आइसीएस की परीक्षा में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में चौथा स्थान प्राप्त करने के उपरांत देश सेवा हित में नौकरी से त्याग पत्र देकर अंग्रेजी सरकार की नौकरी को ठोकर मार दी थी और भारत की आजादी में कूदे थे। इस महान क्रांतिकारी भारत रत्न नेताजी सुभाषचंद्र बोस के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारतीयता की पहचान हैं। आज भी युवा उनसे प्रेरणा ग्रहण करते हैं। वह ऐसे वीर सैनिक हैं, जिनकी गाथा इतिहास सदैव गाता रहेगा। उनका ‘जय हिन्द’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया। उन्होंने सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सुप्रीम कमांडर के रूप में सेना को संबोधित करते हुए 'दिल्ली चलो' का नारा दिया। सबसे पहले महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर नेताजी ने ही संबोधित किया था। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास के महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जीवन और उनकी मौत दोनों ही रहस्यमयी रहे। 

    24 जनवरी - जननायक कर्पुरी ठाकुर 

    24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर का जन्म दिन है। युगों-युगों से उंच-नीच व्यवस्था में शिक्षा से वंचित समाज में जन्मे कर्पूरी ठाकुर का यह जन्मदिन वास्तविक नही है, जैसाकि वो अपने कार्यकर्ताओं से बोला करते थे। जननायक कर्पुरी ठाकुर जी का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के पितौंझिया, कर्पूरी ग्राम में हिन्दू वर्ण व्यवस्था में नाई परिवार में हुआ था । जिस समाज को मनुवादी व्यवस्था ने निचले पायदान पर रखकर शिक्षा, सत्ता शासन और समृद्धि से बंचित रखने का अचूक एवम कठोर व्यवस्था की, उसी समाज में ई०पू० चौथी सदी में जन्मे 'महापद्मनंद' ने इस भारत देश में अखंड भारत देश की स्थापना का राजनैतिक एवम सांस्कृतिक शुरुआत कर एक विशाल साम्राज्य का जन्मदाता रहा और इस देश में कमजोर जनसमूह का प्रथम राजनैतिक महानायक एवं सांस्कृतिक पथप्रदर्शक  बना। जिस बिहार की धरती पर पिछड़ों का महानायक महापद्मनंद चौथी सदी में नाई समाज में पैदा होकर सभी तबके को शिक्षा ,शासन और समद्धि से पुनः जोड़ा, उसी बिहार में 20 वीं शदी में कर्पूरी ठाकुर जैसा महान व्यक्तित्व पैदा हुआ, जिसने सभी समाज के हर वर्ग के लिए शिक्षा, सत्ता और समृद्धि के लिए एक युगान्तकारी कार्य किया। समतामूलक सोच

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