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Jaishankar Prasad Kavita Sangrah : Laher - (जय शंकर प्रसाद (कविता संग्रह): लहर)
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Jaishankar Prasad Kavita Sangrah : Laher - (जय शंकर प्रसाद (कविता संग्रह): लहर)
Ebook68 pages25 minutes

Jaishankar Prasad Kavita Sangrah : Laher - (जय शंकर प्रसाद (कविता संग्रह): लहर)

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About this ebook

जिस समय खड़ी बोली और आधुनिक हिन्दी साहित्य किशोरावस्था में पदार्पण कर रहे थे। काशी के 'सुंघनी साहु' के प्रसिद्ध घराने में श्री जयशंकर प्रसाद का संवत् 1946 में जन्म हुआ। व्यापार में कुशल और साहित्य सेवी - आपके पिता श्री देवी प्रसाद पर लक्ष्मी की कृपा थी। इस तरह प्रसाद का पालन पोषण लक्ष्मी और सरस्वती के कृपापात्र घराने में हुआ। प्रसाद जी का बचपन अत्यन्त सुख के साथ व्यतीत हुआ। आपने अपनी माता के साथ अनेक तीर्थों की यात्राएं की। पिता और माता के दिवंगत होने पर प्रसाद जी को अपनी कॉलेज की पढ़ाई रोक देनी पड़ी और घर पर ही बड़े भाई श्री शम्भुरत्न द्वारा पढ़ाई की व्यवस्था की गई। आपकी सत्रह वर्ष की आयु में ही बड़े भाई का भी स्वर्गवास हो गया। फिर प्रसाद जी ने पारिवारिक ऋण मुक्ति के लिए सम्पत्ति का कुछ भाग बेचा। इस प्रकार आर्थिक सम्पन्नता और कठिनता के किनारों में झूलता प्रसाद का लेखकीय व्यक्तित्व समृद्धि पाता। गया। संवत् 1984 में आपने पार्थिव शरीर त्यागकर परलोक गमन किया।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 1, 2020
ISBN9789390088812
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    Jaishankar Prasad Kavita Sangrah - Jaishankar Prasad

    जय शंकर प्रसाद

    (कविता संग्रह)

    लहर

    eISBN: 978-93-9008-881-2

    © प्रकाशकाधीन

    प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.

    X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II

    नई दिल्ली- 110020

    फोन : 011-40712200

    ई-मेल : ebooks@dpb.in

    वेबसाइट : www.diamondbook.in

    संस्करण : 2020

    Jaishankar Prasad Kavita Sangrah : Laher

    By - Jaishankar Prasad

    कविवर जयशंकर प्रसाद का काव्य साहित्य प्रारम्भिक रचनाओं से ‘कामायनी' के शिखर तक. अपने समय की साहित्यिक उपलब्ध रहा है तो भावी पीढ़ी के लिए अनुकरण का सात और गम्भीर रचना की प्रेरणा। उनकी मुख्य रचनाओं में ‘झरना', ‘आंसू', ‘लहर' और ‘कामायनी' तो अधिक चर्चित रही ही हैं प्रारम्भिक रचनाएं भी उस काल के काव्य-शैशव और उसके सौष्ठव की अभिव्यक्ति करती हैं।

    ‘झरना में भाव और प्रकृति एक-दूसरे से संश्लिष्ट होकर भाव संसार की रचना करत है तो 'आंसू' में प्रकृति का एक-एक बिम्ब मनुष्य की पीड़ा उभारता है। ‘लहर' में प्रकृति राग-विराग के चित्रों के साथ मनुष्य के चिंतन पक्ष से साक्षात्कार कराती है, और ‘कामायनी' तो भारतीय मनीषा की विचारधारा की अद्भुत रचना है।

    ‘कामायनी' के मनु श्रद्धा और इड़ा तथा मानव, मानव जीवन के विकास के सोपान है तथा उसकी अंतरधर्मिता के प्रतीक भी।

    आधुनिक साहित्य में कवि जयशंकर प्रसाद अभी तक अद्वितीय है और निकट भविष्य में इस तरह की रचनाधर्मिता की आशा भी उन्हीं की परम्परा में हो सकती है ।

    प्रसाद जी के काव्यों में परम्परा और नवीन भावबोध का अभिनव सम्मिश्रण है।

    लहर

    उठ उठ री लघु लघु लोल लहर!

    करुणा की नव अँगराई-सी,

    मलयानिल की परछाईं-सी,

    इस सूखे तट पर छिटक लहर!

    शीतल कोमल चिर कम्पन-सी,

    दुर्ललित हठीले बचपन-सी,

    तू लौट कहां जाती है री‒

    यह खेल खेल ले ठहर ठहर!

    उठ उठ गिर गिर फिर-फिर आती,

    नर्तित पद-चिह्न बना जाती,

    सिकता की रेखाएं उभार‒

    भर जाती अपनी तरल-सिहर!

    तू भूल न री, पंकज वन में,

    जीवन के इस सूनेपन में,

    ओ प्यार-पुलक से भरी ढुलक!

    आ चूम पुलिन के विरस अधर!

    निज अलकों के अन्धकार में तुम कैसे छिप आओगे?

    इतना सजग कुतूहल! ठहरो, यह

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