Jaishankar Prasad Kavita Sangrah : Chitradhar - (जय शंकर प्रसाद कविता संग्रह : चित्राधार)
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Jaishankar Prasad Kavita Sangrah - Jaishankar Prasad
जय शंकर प्रसाद
(कविता संग्रह)
चित्राधार
eISBN: 978-93-9008-874-4
© प्रकाशकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2020
Jaishankar Prasad Kavita Sangrah : Chitradhar
By - Jaishankar Prasad
कविवर जयशंकर प्रसाद का काव्य साहित्य प्रारम्भिक रचनाओं से ‘कामायनी' के शिखर तक. अपने समय की साहित्यिक उपलब्ध रहा है तो भावी पीढ़ी के लिए अनुकरण का सात और गम्भीर रचना की प्रेरणा। उनकी मुख्य रचनाओं में ‘झरना', ‘आंसू', ‘लहर' और ‘कामायनी' तो अधिक चर्चित रही ही हैं प्रारम्भिक रचनाएं भी उस काल के काव्य-शैशव और उसके सौष्ठव की अभिव्यक्ति करती हैं।
‘झरना में भाव और प्रकृति एक-दूसरे से संश्लिष्ट होकर भाव संसार की रचना करत है तो 'आंसू' में प्रकृति का एक-एक बिम्ब मनुष्य की पीड़ा उभारता है। ‘लहर' में प्रकृति राग-विराग के चित्रों के साथ मनुष्य के चिंतन पक्ष से साक्षात्कार कराती है, और ‘कामायनी' तो भारतीय मनीषा की विचारधारा की अद्भुत रचना है।
‘कामायनी' के मनु श्रद्धा और इड़ा तथा मानव, मानव जीवन के विकास के सोपान है तथा उसकी अंतरधर्मिता के प्रतीक भी।
आधुनिक साहित्य में कवि जयशंकर प्रसाद अभी तक अद्वितीय है और निकट भविष्य में इस तरह की रचनाधर्मिता की आशा भी उन्हीं की परम्परा में हो सकती है ।
प्रसाद जी के काव्यों में परम्परा और नवीन भावबोध का अभिनव सम्मिश्रण है।
चित्राधार
अयोध्या का उद्धार
महाराज रामचन्द्र के बाद कुश को कुशावती और लव को श्रावस्ती इत्यादि राज्य मिले तथा अयोध्या उजड़ गई। वाल्मीकि रामायण में किसी ऋषभ नामक राजा द्वारा उसके फिर से बसाए जाने का पता मिलता है; परन्तु महाकवि कालिदास ने अयोध्या का उद्धार कुश द्वारा होना लिखा है। उत्तर काण्ड के विषय में लोगों का अनुमान है कि वह बहुत पीछे बना। हो सकता है कि कालिदास के समय में ऋषभ द्वारा अयोध्या का उद्धार होना न प्रसिद्ध रहा हो। अस्तु, इसमें कालिदास का ही अनुसरण किया गया है।
‒लेखक
नव तमाल कल कुञ्ज सों घने
सरित-तीर अति रम्य हैं बने।
अरध रैनि महँ भीजि भावती
लसत चारु नगरी कुशावती।।
युग याम व्यतीत यामिनी
बहुतारा किरणालि मालिनी।
निज शान्ति सुराजय थापिके
शशिकी आज बनी जु भामिनी।।
विमल विधुकला की कान्ति फैली भली है
सुललित बहुतारा हीर-हारावली है।
सरवर-जलहूं में चन्द्रमा मन्द डोलै
वर परिमल पूरो पौन कीन्हे कलोलै।।
मन मुदित मराली जै मनोहारिनी है
मदकल निज पीके संग जे चारिनी है।
तहँ कमल-विलासी हँस की पांति डोलै
द्विजकुल तरुशाखा में कबौं मन्द बोलै।
करि-करि मृदु केली वृक्ष की डालियों से
सुनि रहस कथा के गुुंज को आलियों से।
लहि मुदित मरन्दै मन्द ही मन्द डोलै
यह विहरण-प्रेमी पौन कीन्हे कलोलेै।।
विशद भवन माहीं रत्न दीपांकुराली
निज मधुर प्रकाशै चन्द्रमा मैं मिलाली।
बिधुकर-धवलाभा मन्दिरों की अनोखी
सरवर महँ छाया फैलि छाई सुचोखी।।
विविध चित्र बहु भांति के लगे
मणि जड़ाव