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पुस्तक परिचय

 जीवन के रंगों से सजी यह काव्य पुस्तक 'अर्पण'  

* ईश-भक्ति

* राष्ट्रीय चेतना

* सामाजिक चेतना,

* प्रकृति,

* जीवन शक्ति ,

* हास्य-व्यंग्य

* अटूट रिश्ते

नामक खंडों में विभाजित है| विभिन्न भाव पुष्पों से गुलदस्ते की तरह सजी हुई, इस कृति में कहीं ईश्वर के प्रति समर्पण भाव है तो कहीं राष्ट्रीय भावनाओं की तरंग है|  जीवन से जुड़ी इन कविताओं में कहीं सामाजिक कुरीतियों के खंडन और प्रकृति संरक्षण की प्रेरणा है, तो कहीं हास्य व्यंग्य की फुलझड़ियाँ | नैतिक मूल्यों के प्रति सजग करती हुई यह रचना 'अर्पण'  ई पुस्तक के रूप में आप सभी काव्य प्रेमियों के सम्मुख प्रस्तुत है |

Languageहिन्दी
Release dateJun 29, 2019
ISBN9789352547708
अर्पण
Author

सुनीता माहेश्वरी

जीवन के विभिन्न भावों को काव्य रूप में सजाने में निपुण सुनीता माहेश्वरी का जन्म १ जून १९५१ में अलीगढ़ (उ.प्र.) में एक संपन्न परिवार में हुआ| इनकी माता श्रीमती चंद्रवती केला तथा पिता श्री राम स्वरूप जी केला धार्मिक प्रवृत्ति के थे | सुनीता माहेश्वरी के व्यक्तित्व में अपने माता- पिता के संस्कारों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है| मन वचन और कर्म से भारतीयता तथा राष्ट्रीयता का भाव, उनके व्यक्तित्व की गौरव पूर्ण निधि है|    सुनीता जी की शिक्षा अलीगढ़ में ही हुई | इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. ए. तथा एम. एड. किया | तत्पश्चात अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. ए. किया | सुनीता जी ने निर्मला कॉन्वेंट स्कूल तथा दी आदित्य बिड़ला पब्लिक स्कूल, रेनुकूट में शिक्षण कार्य किया|  इन्हें अपने छात्रों पर बहुत गर्व है | साहित्य पठन - पाठन  में इनकी सदैव रुचि रही | इस कार्य में उन्हें अपने पति श्री हरी कृष्ण माहेश्वरी का सदैव सहयोग मिलता रहा | सेवा निवृत्ति के बाद ये साहित्य सृजन कार्य कर रही हैं |  इनकी कुछ कविताएं विश्व मैत्री मंच से प्रकाशित ‘बाबुल हम तोरे अँगना की चिड़िया’ पुस्तक में प्रकाशित हुई हैं|  इसके अतिरिक्त पत्रिकाओं में कविताएं एवं कहानियां प्रकाशित होती रहती हैं|  प्रतिलिपि .कॉम तथा स्टोरी मिरर. कॉम  पर कहानियां एवं कविताओं का प्रकाशन होता रहता है | आकाशवाणी नाशिक एवं रेडियो विश्वास नाशिक से इनकी कविताएं एवं कहानियां प्रसारित होती हैं | सुनीता माहेश्वरी साहित्य सरिता हिन्दी मंच नाशिक (कार्यकारिणी सदस्या) , अखिल भारतीय साहित्य परिषद नाशिक (कार्यकारिणी सदस्या),अखिल हिंदी साहित्य सभा , विश्व मैत्री मंच की महिला कार्यकारिणी सदस्या के रूप में हिन्दी साहित्य की सेवा में तत्पर हैं | 

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    अर्पण - सुनीता माहेश्वरी

    कवयित्री परिचय

    सुनीता माहेश्वरी

    ––––––––

    https://lh4.googleusercontent.com/8gDveJxbDgsdNylYBc3Qn65zK3D3i3SSZL7oPO-fzepIfUUm2MBEA6Ke7GY2BUgl1pHv5qyFjS812VycFfOd23tn9P_bO0Ce79RX2OQooBZExTff9_mLuwvUe9SP_l9UMv084wsj जीवन के विभिन्न भावों को काव्य रूप में सजाने में निपुण सुनीता माहेश्वरी का जन्म १ जून १९५१ में अलीगढ़ (उ.प्र.) में एक संपन्न परिवार में हुआ| इनकी माता श्रीमती चंद्रवती केला तथा पिता श्री राम स्वरूप जी केला धार्मिक प्रवृत्ति के थे | सुनीता माहेश्वरी के व्यक्तित्व में अपने माता- पिता के संस्कारों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है| मन वचन और कर्म से भारतीयता तथा राष्ट्रीयता का भाव, उनके व्यक्तित्व की गौरव पूर्ण निधि है|

    सुनीता जी की शिक्षा अलीगढ़ में ही हुई | इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. ए. तथा एम. एड. किया | तत्पश्चात अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. ए. किया |

    सुनीता जी ने निर्मला कॉन्वेंट स्कूल तथा दी आदित्य बिड़ला पब्लिक स्कूल, रेनुकूट में शिक्षण कार्य किया|  इन्हें अपने छात्रों पर बहुत गर्व है | साहित्य पठन - पाठन  में इनकी सदैव रुचि रही | इस कार्य में उन्हें अपने पति श्री हरी कृष्ण माहेश्वरी का सदैव सहयोग मिलता रहा |

    सेवा निवृत्ति के बाद ये साहित्य सृजन कार्य कर रही हैं |  इनकी कुछ कविताएं विश्व मैत्री मंच से प्रकाशित ‘बाबुल हम तोरे अँगना की चिड़िया’ पुस्तक में प्रकाशित हुई हैं|  इसके अतिरिक्त पत्रिकाओं में कविताएं एवं कहानियां प्रकाशित होती रहती हैं| 

    प्रतिलिपि .कॉम तथा स्टोरी मिरर. कॉम  पर कहानियां एवं कविताओं का प्रकाशन होता रहता है |

    आकाशवाणी नाशिक एवं रेडियो विश्वास नाशिक से इनकी कविताएं एवं कहानियां प्रसारित होती हैं |

    सुनीता माहेश्वरी साहित्य सरिता हिन्दी मंच नाशिक (कार्यकारिणी सदस्या) , अखिल भारतीय साहित्य परिषद नाशिक (कार्यकारिणी सदस्या),अखिल हिंदी साहित्य सभा , विश्व मैत्री मंच की महिला कार्यकारिणी सदस्या के रूप में हिन्दी साहित्य की सेवा में तत्पर हैं | 

    पुस्तक परिचय

    जीवन के रंगों से सजी यह काव्य पुस्तक ‘अर्पण’  

    * ईश-भक्ति, 

    * राष्ट्रीय चेतना, 

    * सामाजिक चेतना,

    * प्रकृति,

    * जीवन शक्ति ,

    * हास्य-व्यंग्य

    * अटूट रिश्ते

    नामक खंडों में विभाजित है| विभिन्न भाव पुष्पों से गुलदस्ते की तरह सजी हुई, इस कृति में कहीं ईश्वर के प्रति समर्पण भाव है तो कहीं राष्ट्रीय भावनाओं की तरंग है|  जीवन से जुड़ी इन कविताओं में कहीं सामाजिक कुरीतियों के खंडन और प्रकृति संरक्षण की प्रेरणा है, तो कहीं हास्य व्यंग्य की फुलझड़ियाँ | नैतिक मूल्यों के प्रति सजग करती हुई यह रचना ‘अर्पण’  ई पुस्तक के रूप में आप सभी काव्य प्रेमियों के सम्मुख प्रस्तुत है |

    इसी पुस्तक के कुछ अंश –

    वंदन करूँ माँ शारदे।

    तू ज्ञान देकर तार दे।

    नव भाव छंद प्रदायिनी।

    तमहारिणी , सुखदायिनी।

    माँ शारदे वरदायिनी।

    ==================================================

    परमात्मा भी रचते सृष्टि प्रकृति के संयोग से|

    पशु-पक्षी, जीव-जंतु सब नर-मादा के योग से |

    जननी को ही मार, सृष्टि तुम कैसे रचाओगे ?

    कन्याओं की कमी कर क्या दुराचार बढ़ाओगे ?

    ==================================================

    "जिन्दगी के कैनवास पर, आओ सजाएँ अनुपम रंग|

    सुन्दर सजायें रंगोलियाँ, हम सब मिल कर संग संग|"

    ==================================================

    बाबाओं के सज रहे , विचित्र नित दरबार |

    लोगों को पेड़ा खिला , मेटें दुख अपार

    मेटे दुख अपार, नवीन उपाय सुझाते |

    महाराज से होय , अनूठे स्वांग रचाते

    जब इस अत्याचार का बदला लेगी माँ गंगा |

    तब पीने को जहर देगी, मृत्यु देगी माँ गंगा |

    मानव यदि यों ही प्रदूषित करेगा माँ गंगा |

    तो सब कुछ आगोश में ले लेगी माँ गंगा |

    ==================================================

    अच्छे दिन के सपने में हम सब मिल साथ निभायें|

    स्वच्छ भारत, सुन्दर भारत, विकसित राष्ट्र बनायें

    ==================================================

    सर्वाधिकार  कवयित्री आधीन

    C:\Users\hari\Desktop\photos_for_book\DSCN4026-1.jpg

    ––––––––

    श्री प्रभु एवं समस्त पूर्वजों

    का स्मरण करते हुए

    प्रिय पुत्र निशांत

    को समर्पित

    नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः |

    न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः |

    मनोगत

    साहित्य समाज का दर्पण होता है| जो कुछ समाज में घटित होता है,  उसका प्रभाव साहित्यकार के मन पर पड़ता है| जहाँ एक ओर त्याग-प्रेम-परहित की भावनाओं से पूर्ण घटनायें हृदय को प्रफुल्लित करती हैं,  वहीं दूसरी ओर समाज में घटित भ्रष्टाचार, दुराचार,  बलात्कार, असत्य, नारी शोषण,  दहेज़ प्रथा, भ्रूणहत्या आदि की घटनायें मन को उद्विग्न कर देती हैं| मन रो उठता है| आख़िर मानवीय संवेदन शून्यता क्यों बढ़ती जा रही है?  मनुष्यत्व कहाँ खोता जा रहा है?

    आज के भागमभाग जीवन में चिंतन का अभाव होता जा रहा है| इस उपभोक्तावादी संस्कृति में सभी स्वार्थों की पूर्ति में लगे हुए हैं| अनंत इच्छाओं की पूर्ति न कर पाने के कारण मनुष्य निराशा और क्रोध के अन्धकार में भटकता जा रहा है, अतः आवश्यक है कि ऐसे साहित्य का निर्माण हो, जो मनुष्यों में नव चेतना प्रवाहित करे| प्रत्येक व्यक्ति साहसी, निर्भीक, स्वाभिमानी एवं संवेदनशील बने| नैतिक मूल्यों का पालन करे

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