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एनएल चर्चा 66: सीजेआई विवाद, बिलकीस बानो, श्रीलंका में आतंकी वारदात और अन्य
FromNL Hafta
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Length:
54 minutes
Released:
Apr 27, 2019
Format:
Podcast episode
Description
ग़ालिब का एक शेर है- “हम वहां से हैं जहां से हमको भी/ कुछ हमारी ख़बर नहीं आती”. मौजूदा वक़्त में देश ऐसे ही दौर से गुज़र रहा है. पंजाबी के कवि ‘पाश’ के शब्दों में कहें तो एक हद तक यह वह दौर भी है, जब बिना ज़मीर होना ज़िंदगी की शर्त बन गयी है. ठीक उसी वक़्त यह बात जोर-शोर से कही जा रही है कि सारे सवालों में सबसे ऊपर है देश और देश की सुरक्षा का सवाल तो इसके ठीक समानांतर एक विडंबना भी है कि हमें देश की इस तथाकथित सुरक्षा से खतरा है.इस हफ़्ते की चर्चा ऐसे वक़्त में आयोजित हुई जब इस तरह की तमाम चर्चाओं के बीच देश के प्रधानमंत्री ‘पूर्णतः अराजनैतिक साक्षात्कार’ देने के बाद लोकसभा चुनावों में ‘पूर्ण बहुमत’ हासिल करने के अभियान में लगे हुये थे. इसी कड़ी में बनारस की सड़कों पर जनता ने ख़ुद को फ़कीर कहने वाले प्रधानमंत्री का शक्ति-प्रदर्शन देखा. चुनावी सरगर्मियों के बीच नेताओं के बयान पूरे परिदृश्य को सनसनीख़ेज बना रहे थे. यह वह समय भी था, जब देश-विदेश से कुछ दुर्भाग्यपूर्ण ख़बरें आयीं तो कुछ ख़बरें ऐसी भी रहीं जिनसे डगमगाते भरोसे को तनिक बल मिला.इस हफ़्ते की चर्चा में भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर उनकी एक महिला कर्मचारी द्वारा लगाया गया यौन-उत्पीड़न का आरोप और न्यायपालिका के दायरे में इस संबंध में हुई उठा-पटक, 2002 के गुजरात दंगे की पीड़िता बिलकीस बानो के बलात्कार मामले में सुप्रीम कोर्ट का मुआवजे का निर्णय व उसके निहितार्थ, देश का चुनावी परिदृश्य और श्रीलंका में हुई आतंकवादी घटना को चर्चा के विषय के तौर पर लिया गया.चर्चा में इस बार न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्द्धन ने शिरकत की. साथ ही चर्चा में लेखक-पत्रकार अनिल यादव भी शामिल हुये. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.इस तरह मामले की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए अतुल ने सवाल किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ख़ुद सवालों के घेरे में आने के बाद अपनायी गयी प्रक्रिया व जस्टिस रंजन गोगोई द्वारा उठाये गये क़दम को आप कैसे देखते हैं?जवाब देते हुए अनिल कहते हैं- “यह मामला सामने आया तो लोगों ने पहला सवाल यह करना शुरू किया कि ऐसे मामलों में कानूनी स्थिति क्या है क्योंकि आरोप चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया पर लगे थे. किसी का स्कॉलर होना, कानून का जानकार होना एक अलग बात है लेकिन इस वजह से यह नहीं मान लेना चाहिए कि जो बहुत बड़ा स्कॉलर है या जानकार है, वह अपनी यौन विकृतियों व यौन इच्छाओं से भी विवेकपूर्ण ढंग से निपट पायेगा. आनन-फानन में जस्टिस रंजन गोगोई ने एक समिति बनायी और समिति की कार्यवाही से बहुत ख़राब संदेश गया. जस्टिस गोगोई के इस कहने को देखें- ‘यह सुप्रीम कोर्ट को और मुझे निशाने पर लेने की कोशिश है, मुझे ख़रीद पाने में नाकाम रहे तो यह रास्ता अपनाया गया’- तो हमारे यहां यही होता रहा है. आरोपी यह कहता रहा है कि आप मुझसे कैसे यह उम्मीद कर रहे हैं कि मैं इस तरह का काम करूंगा, मुझे विरोधियों द्वारा साजिश के तहत फंसाया जा रहा है. तो यह जो तर्क रंजन गोगोई दे रहे हैं यह कोई नया तर्क नहीं है.”अतुल आगे कहते हैं कि हमारे समाज का यह सामूहिक चरित्र रहा है कि वह इस तरह के किसी मामले में फ़ौरी तौर पर पीड़िता के आरोपों को खारिज़ कर देता है. मामले को संजीदगी से देखने-सुनने का कोई ख़ास चलन हमारे यहां नहीं है. जस्टिस रंजन गोगोई द्वारा अपने पक्ष में बयान दिये जाने व पीड़िता को ही कटघरे में खड़ा कर देने से भी इस बात की तरफ़ ही संकेत मिलता है कि सबसे पहले चरित्र हनन उसी का होता है जो पीड़िता है. तयशुदा नियम-प्रक्रिया की तरफ़ ध्यान दिये बिना जस्टिस गोगोई द्वारा भी ऐसा ही किये जाने को आप कैसे देखते हैं?जवाब देते हुये आनंद कहते हैं- “इसमें एक पुनर्विचार उच्चतम न्यायालय के ढांचे के संबंध में होना चाहिए. जो मुख्य न्यायाधीश होता है वह न केवल न्यायिक मामलों का प्रमुख होता है बल्कि न्यायालय के साथ-साथ वह इसकी प्रशासनिक इकाई का भी मुखिया होता है. गोगोई उस प्रशासनिक इकाई की भी अध्यक्षता कर रहे हैं. यह जो फ़ौरी तौर पर तीन जजों की बेंच बनाकर मामला खारिज़ कर दिया गया यह जस्टिस गोगोई ने प्रशासनिक अध्यक्ष के तौर पर किया. शायद इसमें ‘सेपरेशन ऑफ़ पॉवर’ की सख्त जरूरत है. और इस पर विचार होना चाहिए कि क्या जुडीशियल पॉवर के साथ-साथ एडमिनिस्ट्रेटिव पॉवर भी मुख्य न्यायाधीश को दिया जाय?”इसके साथ-साथ बाक़ी विषयों पर भी चर्चा के दौरान विस्तार से बातचीत हुई. बाकी विषयों पर पैनल की राय जानने-सुनने के लिए पूरी चर्चा सुनें. See acast.com/privacy for privacy and opt-out information.
Released:
Apr 27, 2019
Format:
Podcast episode
Titles in the series (100)
Abhinandan Sekhri interviews Rahul Ram, Sanjay Rajoura and Varun Grover by NL Hafta