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एनएल चर्चा 48: किसान आंदोलन, राममंदिर विवाद, राजस्थान चुनाव और अन्य

एनएल चर्चा 48: किसान आंदोलन, राममंदिर विवाद, राजस्थान चुनाव और अन्य

FromNL Hafta


एनएल चर्चा 48: किसान आंदोलन, राममंदिर विवाद, राजस्थान चुनाव और अन्य

FromNL Hafta

ratings:
Length:
51 minutes
Released:
Dec 3, 2018
Format:
Podcast episode

Description

इस बार की चर्चा का केंद्र रहा दिल्ली के रामलीला मैदान में देश भर से इकट्ठा हुए किसान और उनका संसद मार्च. इसके अलावा अयोध्या और बनारस में राम मंदिर निर्माण पर दो अलग-अलग संतों के आयोजन हुए, साथ ही साथ राजस्थान चुनाव में कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पर व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप का मुद्दा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भगवान हनुमान को दलित समुदाय का बताने से मचे विवाद आदि विषय इस बार की चर्चा के मुख्य बिंदु रहे.इस बार की चर्चा में बतौर मेहमान शामिल हुए मीडिया विजिल वेबसाइट के संस्थापक सदस्य और पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव. इसके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री के असिस्टेंट एडिटर राहुल कोटियाल भी चर्चा में शामिल रहे. न्यूज़लॉन्ड्री के विशेष संवाददाता अमित भारद्वाज इस समय राजस्थान चुनाव की कवरेज कर रहे हैं. वो हमसे फोन पर जुड़े. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.चर्चा की शुरुआत अतुल चौरसिया ने न्यूज़लॉन्ड्री के विशेष संवादाता अमित भारद्वाज के सामने एक सवाल रखकर की, “अमित हम देखते आ रहे हैं कि गुजरात के बाद राजस्थान का एक हिस्सा पिछले 3-4 सालों में हिंदुत्व की प्रयोगशाला के तौर पर उभरा है. अलवर के इलाकों में समय-समय पर गौरक्षकों का आतंक दिखा. अलवर के इलाके में कई मॉब लिंचिंग की घटनाएं देखने को मिली. क्या इन घटनाओं का असर राजस्थान के चुनाव पर दिख रहा हैं?”अमित ने कहा, “मैंने अपने कवरेज की शुरुआत राजस्थान के अलवर और भरतपुर इलाके से की थी. अलवर में विधानसभा की 11 सीटें है और भरतपुर में 7. अलवर इलाके में उग्र हिंदुत्व के कारण एक डिवाइड दिख रहा है. आप अगर मुस्लिम वोटर्स के पास जाएंगे तो उनकी एक अलग प्रतिक्रिया है और अगर आप हिन्दू वोटर के पास जाएंगे तो उनकी एक अलग प्रतिक्रिया है. यह कहीं ना नहीं पिछले कुछ सालों में हुई घटनाओं के कारण है. चाहे वो मॉब लिंचिंग हो या गौरक्षा हो. तमाम जो हिंदूवादी सांगठनों ने जो गतिविधियां की हैं, उनका असर इस चुनाव में साफ़-साफ़ दिख रहा है. इस इलाके में जब हमने कुछ लोगों से बात की तो पाया कि भाजपा को एक बढ़त है, हालांकि बहुतायत में युवा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से खुश नहीं है. वहां युवा नारा लगा रहे थे- मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं.”वो आगे कहते हैं, “एक चीज़ और है जो व्हाट्स ऐप के जरिएए फैलाया जा रहा है. एक सीट है रामगढ़, जहां पर रकबर खान की हत्या हुए थी. उस सीट पर कांग्रेस की प्रत्याशी है सफिया खान उनका एक वीडियो वायरल किया गया, जिसमें वो बयान दे रही हैं कि हर हालत में चुनाव जीतना है चाहें कुछ भी करना पड़े. उस वीडियो को हिंदूवादी संगठन के लोग खूब फैला रहे हैं. तो भाजपा की कोशिश डिवाइड के ऊपर चुनाव लड़ने की दिखती है.”यहां पर अतुल ने बात आगे ले जाते हुए कहा, “अमित, मैं यह समझना चाह रहा था की क्या पूरे राज्य में किसी तरह की हवा किसी पार्टी के पक्ष में बह रही है? मसलन हमने देखा है कि 2014 के जो लोकसभा चुनाव या फिर बंगाल के विधानसभा चुनाव ऐसे थे जहां साफ तौर पर एक हवा दिख रही थी. भविष्यवाणी करना आसान था. क्या इस तरह की ऐसी कुछ एंटी इंकम्बेंसी वेव राजस्थान में महसूस हो रही है?”इस पर अमित का जवाब आया, “राजस्थान में बड़ा इंट्रेस्टिंग ट्रेंड है. अगर आप राजस्थान का इतिहास देखे तो जो पार्टी प्रचंड बहुमत से सरकार बनाती है अगले चुनाव में बड़े ही शर्मनाक तरीके से हार जाती हैं. जैसे अशोक गेहलोत की सरकार जब हारी तो 25 सीटों पर सिमट के रह गई. उससे पहले भैरों सिंह शेखावत के साथ ऐसा हुआ हैं. इस बार लोग लगातार कह रहे हैं कि टक्कर कांटे की है.”अमित ने बताया, “जब प्रधानमंत्री ने भरतपुर में सभा की तो वहां से कुछ लोग प्रधानमंत्री के भाषण के बीच से ही जाना शुरू हो गए. हालांकि यह संख्या कम थी. लोग खुल कर बोल रहे थे की प्रधानमंत्री हमारे मुद्दों पर बात ही नहीं कर रहे हैं, इसलिए हम जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में आप कंफ्यूज हो जाते हैं की जनता असल में करने क्या वाली हैं.”राजस्थान के चुनाव में तीसरे मोर्चे की भूमिका और कई अन्य दिलचस्प सवाल और निष्कर्ष के साथ अभिषेक श्रीवास्तव और राहुल कोटियाल ने इस चर्चा में हस्तक्षेप किया. अमित ने भी कुछ जरूरी, ज़मीनी जानकारियां राजस्थान से साझा की. उनका पूरा जवाब और अन्य विषयों पर पैनल की विस्तृत राय जानने के लिए पूरी चर्चा सुने . See acast.com/privacy for privacy and opt-out information.
Released:
Dec 3, 2018
Format:
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