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एनएल चर्चा 64: राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला, इमरान खान का नरेंद्र मोदी प्रेम और अन्य

एनएल चर्चा 64: राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला, इमरान खान का नरेंद्र मोदी प्रेम और अन्य

FromNL Hafta


एनएल चर्चा 64: राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला, इमरान खान का नरेंद्र मोदी प्रेम और अन्य

FromNL Hafta

ratings:
Length:
51 minutes
Released:
Apr 13, 2019
Format:
Podcast episode

Description

बीता हफ़्ता तमाम तरह की घटनाओं का गवाह रहा. इस बार की चर्चा जब आयोजित की गयी, उस वक़्त देश के कुछ हिस्सों में साल 2014 के बाद तनाव, द्वंद्व, संघर्ष, भ्रम व मायूसी के 5 सालों से हताश-निराश अवाम एक बार फ़िर उम्मीदों से बेतरह लैश होकर पहले चरण के मतदान में अपने मताधिकार का प्रयोग कर रही थी. चर्चा में इस हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट द्वारा राफेल मामले में प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए दिये गये  फैसले, चुनाव के धड़कते माहौल में सीमा पार से आती ख़बर जिसमें इमरान ख़ान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनकी पार्टी द्वारा बहुमत हासिल करने पर भारत-पाकिस्तान संबंधों में गर्माहट आने की उम्मीद जतायी, बस्तर में नकुलनार इलाके में हुआ नक्सली हमला जिसमें बीजेपी के विधायक व 5 सीआरपीएफ जवानों समेत कुल छः लोगों की मृत्यु हो गयी और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के ब्लॉग अपडेट व भाजपा के चुनावी घोषणापत्र पर चर्चा की गयी.इस हफ़्ते की चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी ने शिरकत की. साथ ही लेखक-पत्रकार अनिल यादव भी चर्चा में शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.राफेल मामले में दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए दिये गये फैसले से चर्चा की शुरुआत करते हुए, अतुल ने सवाल किया कि एक तरफ़ सरकार द्वारा इस मामले से लगातार पीछा छुड़ाने के प्रयास लगातार जारी रहे और अब चुनावी उठापटक के बीच सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस तरह का फैसला दिये जाने के बाद अब आप राफेल मामले को किस तरफ़ जाता हुआ देखते हैं? क्या बात राहुल गांधी द्वारा लगातार लगाये जा रहे आरोपों की दिशा में आगे बढ़ गयी है?जवाब में पेंटागन पेपर्स का ज़िक्र करते हुए हृदयेश ने कहा, “यहां पर एक तो प्रोसीजर का मामला इन्वाल्व है, इसके साथ ही मामला पॉलिटिकल परसेप्शन का भी हो गया है. इस वक़्त कांग्रेस ने मैनिफेस्टो में जिस तरह से ख़ुद को सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर ऊपर दिखाने की कोशिश की थी, इसके बाद प्रोपराइटी के मामले में एक बयानबाजी करने में उसको मदद मिलेगी.”इसी कड़ी में मीडिया के नज़रिये से इस मसले को देखते हुए अतुल ने सवाल किया कि इस मौके पर यह फैसला सरकार के लिए तो झटके जैसा है, लेकिन जबकि पिछले पांच सालों में लगातार यह बात चर्चा में रही कि मीडिया पर सरकारी दबाव है, मीडिया की आज़ादी के लिहाज़ से इसे कैसे देखा जाये? क्या मीडिया के लिए यह ऐसा मौका है, जो आगे बार-बार ऐतिहासिक संदर्भों में याद किया जायेगा?जवाब देते अनिल ने कहा, “देखिये! जहां तक मीडिया की बात है तो सुप्रीम कोर्ट ने ये सारी बात मीडिया के संदर्भ में नहीं की हैं. उसके द्वारा पेंटागन पेपर्स का ज़िक्र करना दरअसल एक लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात करना है. वर्ना भारत में, ख़ास तौर से पिछले कुछ सालों में मीडिया में जो कुछ उठापटक, मनमुताबिक़ या डर वश फेरबदल चल रहा है, यह सबकुछ सुप्रीम कोर्ट की आंखों के सामने हो रहा. तो अगर सुप्रीम कोर्ट मीडिया की स्वतंत्रता का असल में पक्षधर होता, तो वह ज़रूरी दखल देता. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की चिंता ये नहीं है. दूसरी बात ये है कि जो मीडिया आर्गेनाईजेशन्स हैं, वो भी इस हालत में नहीं हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट मीडिया के पक्ष में कोई सकारात्मक बात करता है तो वो उसका फ़ायदा ले सकें, उसे आगे ले जा सकें. जो ज़्यादातर मीडिया आर्गेनाईजेशन्स हैं, वो बिना नाखून व दांत वाली संस्थाओं में तब्दील हो गये हैं.”इसके साथ-साथ बाक़ी विषयों पर भी चर्चा के दौरान विस्तार से बातचीत हुई. बाकी विषयों पर पैनल की राय जानने-सुनने के लिए पूरी चर्चा सुनें. See acast.com/privacy for privacy and opt-out information.
Released:
Apr 13, 2019
Format:
Podcast episode

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