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चर्चा 59: सांसद-विधायक जूतम पैजार, अयोध्या, राफेल और अन्य
FromNL Hafta
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Length:
45 minutes
Released:
Mar 9, 2019
Format:
Podcast episode
Description
बीते हफ़्ते एक तरफ़ जहां कुछ बेहद अहम मुद्दे चर्चा में रहे वहीं कुछ घटनाएं मीडिया गलियारों में सनसनी की तरह छाईं रहीं. इस हफ़्ते की चर्चा में हमने उन्हीं में से कुछ को विषयों के लिया. उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर में सांसद और विधायक के बीच हुई जूतम-पैजार की घटना और भारतीय राजनीति की अहंकार-नीति, अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद और विवाद सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा हुई तीन मध्यस्थों की नियुक्ति, राफेल डील से जुड़े कुछ दस्तावेज़ों की चोरी, सरकार के रवैये और द हिन्दू को निशाने पर लिए जाने और प्रधानमंत्री द्वारा मानवीय गरिमा और समझ-बूझ को परे रखते हुए बेहद संवेदनहीनता से डिस्लेक्सिया पीड़ितों का मज़ाक उड़ाए जाने की घटना को चर्चा के विषय के तौर पर लिया गया.चर्चा में इस बार ‘पेट्रियट’ न्यूज़पेपर के सीनियर एसोसिएट एडिटर मिहिर श्रीवास्तव ने बतौर मेहमान शिरकत की. साथ ही चर्चा में लेखक-पत्रकार अनिल यादव भी शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.चर्चा की शुरुआत में ‘न्यूडिटी’ पर अपने शोध और क़िताबों के लिए मशहूर मिहिर इस विषय पर अपनी संक्षिप्त राय रखते हुए कहते हैं, “जहां तक न्यूडिटी का सवाल है, इसके नाम पर कुछ लोग संस्कृति के ठेकेदार बने फिरते हैं. लोगों को मारते हैं, पेंटिंग फाड़ देते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि जिस चीज़ की वह सुरक्षा करने में लगे हैं, वह भारत की संस्कृति नहीं है. वह ‘विक्टोरियन मोरैलिटी’ है. यह ‘विक्टोरियन मोरैलिटी’ ढाई-तीन सौ साल पहले अंग्रेज़ी शासन के दौरान हम पर थोपी गई है.”इसके बाद उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर में हुए ‘जूता-प्रकरण’ से चर्चा के निर्धारित विषयों की ओर लौटते हुए चर्चा की शुरुआत हुई. भारतीय समाज और राजनीति में पद-प्रतिष्ठा और नाम की भूख और इससे पैदा अहंकार पर बात करते हुए अतुल सवाल करते हैं, “नाम की भूख और यश लोलुपता की यह परंपरा इस स्तर तक पहुंच जाए कि वह ‘जूता’ चलने की एक परंपरा को जन्म दे और वह परंपरा अमर हो जाए, आप इसे कैसे देखते हैं?”जवाब में बरसों पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा में जूतम-पैजार की घटना का ज़िक्र करते हुए अनिल कहते हैं, “जो लोग पॉलिटिक्स में हैं, वो अपनी जो छवि पेश करते हैं, वो असल में वैसे हैं नहीं. वो पोज़ करते हैं कि वो लोगों की सेवा करने के लिए, अपने इलाके का विकास करने के लिए या जो अन्याय, ग़रीबी है उसे ख़त्म करने के लिए वो पॉलिटिक्स में हैं. लेकिन वो मूलतः पॉलिटिक्स में अपनी प्रतिष्ठा के लिए हैं, अपने अहंकार, अपने जलवे, अपने दबदबे के लिए हैं. इस बात को वो आम तौर पर छिपाए रहते हैं लेकिन ये बात छिपती नहीं है. और जहां भी ज़रा सा ऊंच-नीच होता है यह छवि उभर कर सामने आ जाती है.”इसी बात को आगे बढ़ाते हुए मिहिर कहते हैं, “इसमें महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कोई परोपकार करने तो पॉलिटिक्स में आता नहीं है और किसी को इस ग़लतफ़हमी में रहना भी न चाहिए. लेकिन जो बात ये जूताबाजी सामने लाती है, वो है असहिष्णुता. यहां ये बात है कि अगर पद-प्रतिष्ठा में मैं ऊंचा हूं तो आप मेरी बात सुनेंगे और अगर नहीं सुनेंगे तो जूता खाएंगे.”चर्चा में अतुल ने श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास ‘राग दरबारी’ का एक अंश पढ़ा जिसे इस घटना से जोड़कर देखना बेहद मौजूं है, “इस बात ने वैद्यजी को और भी गंभीर बना दिया, पर लोग उत्साहित हो उठे. बात जूता मारने की पद्धति और परंपरा पर आ गई. सनीचर ने चहककर कहा कि जब खन्ना पर दनादन-दनादन पड़ने लगें, तो हमें भी बताना. बहुत दिन से हमने किसी को जुतिआया नहीं. हम भी दो-चार हाथ लगाने चलेंगे. एक आदमी बोला कि जूता अगर फटा हो और तीन दिन तक पानी में भिगोया गया हो तो मारने में अच्छी आवाज़ करता है और लोगों को दूर-दूर तक सूचना मिल जाती है कि जूता चल रहा है. दूसरा बोला कि पढ़े-लिखे आदमी को जुतिआना हो तो गोरक्षक जूते का प्रयोग करना चाहिए. ताकि मार तो पड़ जाए, पर ज़्यादा बेइज्ज़ती न हो. चबूतरे बैठे-बैठे एक तीसरे आदमी ने कहा कि जुतिआने का सही तरीक़ा यह है कि गिनकर सौ जूते मारने चले, निन्यानबे तक आते-आते पिछली गिनती भूल जाय और एक से गिनकर फिर नये सिरे से जूता लगाना शुरू दे. चौथे आदमी ने इसका अनुमोदन करते हुए कहा कि सचमुच जुतिआने का यही तरीक़ा है और इसीलिए मैंने भी सौ तक गिनती याद करनी शुरू कर दी है.”इसके अलावा अन्य विषयों पर भी बेहद दिलचस्प चर्चा हुई. बाकी विषयों पर पैनल की राय जानने-सुनने के लिए पूरी चर्चा सुनें. See acast.com/privacy for privacy and opt-out information.
Released:
Mar 9, 2019
Format:
Podcast episode
Titles in the series (100)
Abhinandan Sekhri interviews Rahul Ram, Sanjay Rajoura and Varun Grover by NL Hafta