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एनएल चर्चा 51: सरकारी एजेंसियों की निगरानी, एनआईए का 17 जगहों पर छापा और अन्य

एनएल चर्चा 51: सरकारी एजेंसियों की निगरानी, एनआईए का 17 जगहों पर छापा और अन्य

FromNL Hafta


एनएल चर्चा 51: सरकारी एजेंसियों की निगरानी, एनआईए का 17 जगहों पर छापा और अन्य

FromNL Hafta

ratings:
Length:
61 minutes
Released:
Dec 29, 2018
Format:
Podcast episode

Description

इस हफ्ते चर्चा का मुख्य विषय रहा नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी द्वारा 17 जगहों पर छापा मारकर आईएस के 10 कथित आतंकियों की गिरफ्तारी. इसके अलावा नोएडा के पार्क होने वाली जुमे की नमाज को लेकर पैदा हुआ विवाद, गृह मंत्रालय द्वारा 10 सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी के भी कंप्यूटर डाटा निगरानी की अनुमति और पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों परिणाम के बाद आया नितिन गडगरी का बयान भी चर्चा में शामिल रहे. इसके बाद से अटकलें लगाई जा रही हैं कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में खटपट चल रही है.इस बार की चर्चा में बतौर मेहमान हिदुस्तान टाइम्स के एसोसिएट एडिटर राजेश आहुजा शामिल हुए.  साथ ही न्यूज़लॉन्ड्री के असिस्टेंट एडिटर राहुल कोटियल भी चर्चा का हिस्सा रहे. हमेशा की तरह चर्चा का संचालनन्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल ने राजेश से सवाल किया, "एनआईए द्वारा की गई कार्रवाई की टाइमिंग को लेकर जो सवाल खड़े हो रहे है कि चुनाव का मौसम आते ही इस तरीके की कार्रवाई खुफिया एजेंसियां करती हैं. आईएम से जुड़े मामलों में भी हमने देखा था कि युवकों को गिरफ्तारी भी होती है लेकिन कोर्ट में वो साबित नहीं हो पाती, क्या वास्तव  एनआईए और अन्य एजेंसीयां सरकार के इशारे पर काम करती है या उनकी कोई स्वायत्तता भी है?"राजेश इसका जवाब देते हुए कहते है, “एनआईए के अधिकारियों ने बताया है कि इस पूरे मॉडयूल की चार महीने से निगरानी की जा रही थी. अधिकारी इनकी बातचीत पर नज़र रखे हुये थे, इनका एक हैंडलर भी था जिसने इन सब को उकसाया और एक ऐसा दस्ता बनाने को कहा. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है पिछले 3 सालों मे देश के अलग अलग हिस्सो में पहले भी ऐसे दर्जनों मामले सामने आए जो इस्लामिक स्टेट से प्रभावित थे. खुशकिस्मती से केवल मध्य प्रदेश ट्रेन ब्लास्ट के अलावा बाकी सभी बाकी सभी दस्ते कुछ कर पाते उससे पहले ही सुरक्षा एजेंसियों ने उनका भंडाफोड़ दिया. तो यह कहना सही नहीं होगा कि आगामी चुनावों के चलते एनआईए ने इस तरह की कार्रवाई कर रही है.”मुद्दे को आगे बढ़ते हुए अतुल ने पूछा, "राजनाथ सिंह ने 2016 में जब आईएस का प्रकोप चरम पर था, तब एक बड़ा बयान दिया था कि आईएस भारत के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है. तो क्या यह माना जाए कि 2 साल में स्थितियां बदल गई हैं?”इस पर राजेश ने जवाब देते हुए कहा, "इसे हमें तुलनात्मक दृष्टिकोण से देखना होगा. भारत में लगभग 25 करोड़ मुसलमान हैं उनमें से सौ-सवा सौ लोग अगर भटक जाते है तो यह बहुत बड़ी संख्या नहीं है. दूसरी तरफ यूरोप में पांच हज़ार से ज्यादा लोग आईएस में शामिल हुए और वापस आकर बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया. भारत में ऐसे युवाओं को केवल गिरफ्तार किया गया बल्कि बहुत से ऐसे मामले भी थे जहां बच्चों को जाने से रोका गया, उनके परिवारों को काउंसलिंग दी गई. यहां तुलनात्मक रूप से संख्या बहुत कम है इसलिए आईएस को बहुत बड़ा खतरा नहीं माना गया.”आगे राहुल को चर्चा में शामिल करते हुए अतुल ने सवाल किया, “सोशल मीडिया के अतिवाद के दौर में हर विषय को लेकर एक माहौल बना दिया जाता है. व्यक्तिगत रूप से हम तय कर पाने की स्थिति में नहीं होते कि क्या सही है क्या गलत है. क्योंकि अतीत ऐसा रहा है कि इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम पर तमाम युवाओं को गिरफ्तार किया गया फिर कुछ भी साबित नहीं हो पाया है.”इसका जवाब देते हुए राहुल ने कहा, “सुरक्षा एजेंसियों के दोनों तरह के रिकॉर्ड हमारे सामने हैं हम यह भी नहीं कह सकते कि एजेंसियां पॉलिटिकल टाइमिंग के हिसाब से काम करती हैं और दूसरी तरफ ऐसा भी नहीं है कि इनकी कार्यशैली इतनी मजबूत रही है कि इन पर आंख बंद करके भरोसा कर लिया जाय. जैसे मोहम्मद आमिर के मामले में हमने देखा कि जब वह जेल गया था, तब केवल 18 वर्ष का ही था और 18 वर्ष जेल में रहने के बाद वो निर्दोष साबित हुआ. उसकी लगभग सारी जिंदगी जेल में कट गई और उसके बाद हमारा सिस्टम ऐसे लोगों के पुनर्वास का कोई इंतजाम नहीं कर पाता. लेकिन सिर्फ टाइमिंग की वजह से एनआईए की कार्रवाई को नकारा नहीं जा सकता. क्योंकि यह बात सच है कि किसी भी तरह का चरमपंथ काम करता है और उसके अनेक उदाहरण हमने देखे हैं. कश्मीर की अगर हम बात करें तो 90 के दशक में वह क्षेत्रीय अस्मिता का सवाल हुआ करता था लेकिन आज वह क्षेत्रीय अस्मिता से ज्यादा धार्मिक कट्टरता का सवाल बन चुका है. कश्मीर में चरमपंथ बढ़ा है, इसे नकारा नहीं जा सकता.” See acast.com/privacy for privacy and opt-out information.
Released:
Dec 29, 2018
Format:
Podcast episode

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