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आदियो की छाया
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आदियो की छाया

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भारत एक अद्वितीय और विविध देश है जिसमे दुनिया के प्राण बसते है । यहाँ पर अनगिनत भाषाएँ, धर्म, संस्कृति, और भौगोलिक स्थितियाँ हैं। भारत का इतिहास और धर्मिक महत्व दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहाँ पर वेद, उपनिषद, और पुराणों जैसे धार्मिक ग्रंथों का उद्धारण हुआ, और धार्मिक और दार्शनिक चिंतन का भी महत्वपूर्ण योगदान हुआ। भारत की संस्कृति और कला भी उसकी अनमोल धरोहर हैं। यहाँ पर भारतीय शिल्पकला, संगीत, नृत्य, और वास्तुकला का विकास हुआ है, और यह विश्व भर में चर्चा का विषय रहा है।

यह कहानी एक ऐसे यात्री की है, जिसने बिना किसी योजना के, बिना किसी संकेत के, और बिना किसी उद्देश्य के भारत की ओर अपना पहला क़दम रखा। लगता है जैसे ब्रम्हांड ने उसे इस आद्यांत में भारत की खोज के लिए नियुक्त किया हो। जब जीवन के रास्तों पर अचानक अद्वितीय और अनसुनी ध्वनियाँ गूंथ जाती हैं, तो व्यक्ति का दिल अदृश्य विश्व की ओर आकर्षित होता है। यह कहानी एक ऐसे ही एक यात्री की है।

"अनजान सड़को पर: एक यात्रा भारत की गहराइयों में आत्मा की खोज" एक ऐसी कहानी का परिचय करती है जिसमें एक यात्री का अद्वितीय और प्रेरणास्पद सफर व्यक्त किया गया है। अनजाने में भारत की ओर प्रवृत्त होने पर, वो जीवन की सबसे अद्वितीय यात्रा पर निकल पड़ा। उसके मार्ग में बड़ी मुश्किलें और दुर्घटनाएं थी, पर वह हारने का नाम नहीं लेता था। उसका सफर उसे भारत की सड़कों, संस्कृति, और धर्म के नए आयाम के साथ उसका परिचय कराता है।

Languageहिन्दी
Release dateOct 1, 2023
ISBN9798223800170
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    आदियो की छाया - Sharad Tripathi

    आदियो की

    छाया

    एक यात्रा भारत की गहराइयों में

    शरद कुमार त्रिपाठी द्वारा

    Copyright © 2023 Sharad Kumar Tripathi

    All rights reserved.

    ISBN:

    प्रस्तावना

    भारत, एक ऐसा देश है जो अपनी विशालतम जनसंख्या, आदिकाल से चली आ रही संस्कृति, और आध्यात्मिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। भारत को जानने और सीखने के लिए आदिकाल से ही बहुतायत यात्री आते रहे हैं, जिन्होंने इस भूमि की महिमा को देखा, अनुभव किया, और इसके शांति के  संदेश अपने दिल में बसा लिया।

    भारत एक अद्वितीय और विविध देश है जिसमे दुनिया के प्राण बसते है । यहाँ पर अनगिनत भाषाएँ, धर्म, संस्कृति, और भौगोलिक स्थितियाँ हैं। भारत का इतिहास और धर्मिक महत्व दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहाँ पर वेद, उपनिषद, और पुराणों जैसे धार्मिक ग्रंथों का उद्धारण हुआ, और धार्मिक और दार्शनिक चिंतन का भी महत्वपूर्ण योगदान हुआ। भारत की संस्कृति और कला भी उसकी अनमोल धरोहर हैं। यहाँ पर भारतीय शिल्पकला, संगीत, नृत्य, और वास्तुकला का विकास हुआ है, और यह विश्व भर में चर्चा का विषय रहा है।

    यह कहानी एक ऐसे यात्री की है, जिसने बिना किसी योजना के, बिना किसी संकेत के, और बिना किसी उद्देश्य के भारत की ओर अपना पहला क़दम रखा। लगता है जैसे ब्रम्हांड ने उसे इस आद्यांत में भारत की खोज के लिए नियुक्त किया हो। जब जीवन के रास्तों पर अचानक अद्वितीय और अनसुनी ध्वनियाँ गूंथ जाती हैं, तो व्यक्ति का दिल अदृश्य विश्व की ओर आकर्षित होता है। यह कहानी एक ऐसे ही एक यात्री की है।

    अनजान सड़को पर: एक यात्रा भारत की गहराइयों में आत्मा की खोज एक ऐसी कहानी का परिचय करती है जिसमें एक यात्री का अद्वितीय और प्रेरणास्पद सफर व्यक्त किया गया है। अनजाने में भारत की ओर प्रवृत्त होने पर, वो जीवन की सबसे अद्वितीय यात्रा पर निकल पड़ा। उसके मार्ग में बड़ी मुश्किलें और दुर्घटनाएं थी, पर वह हारने का नाम नहीं लेता था। उसका सफर उसे भारत की सड़कों, संस्कृति, और धर्म के नए आयाम के साथ उसका परिचय कराता है।

    उसके दो भारतीय दोस्त, जो प्रतिवर्ष भारत में संगीत की शिक्षा लेने के लिए भारत आते थे, और इस बार उन्होंने ही उसको भारत को पास से जानने के लिए बुलाया। इस यात्रा के दौरान उसने नई दिल्ली से नेपाल तक का सफर कभी मोटरसाइकिल पर और कभी ट्रेन के माध्यम से तय किया ।  वह भारत की सड़कों के अनजान और मज़ेदार राहों पर चलते हुए भारतीय जीवन का सच जानने का प्रयास करता रहा। इस यात्रा के दौरान, उसे अपने अनजाने मार्गों पर चलना पड़ा, जो भारत की विविधता और सुंदरता को दर्शाते थे। उसने कई दुर्घटनाओं का सामना किया, लेकिन वह निरंतर अपने सपने का पीछा करता रहा।

    कुम्भ में स्नान करने से लेकर, कुशीनगर और वाराणसी की शांति ने, उसका मन और भी ज्यादा भारत में अध्ययन करने की लालसा से भर गया। यह एक प्रेरणास्पद और दिल को छू लेने वाली कहानी है, जिसमें एक यात्री के अद्वितीय भारतीय साहस का वर्णन है। यह किताब भारत के रंग-बिरंगे जीवन, विविधता, और समृद्धि को जानने के लिए उपयुक्त है।

    यात्री ने वाराणसी की गलियों में खोजते हुए विश्वास किया कि यहाँ पर दुनिया के प्राण बसते हैं। यहाँ पर भगवान के विभिन्न रूप और धार्मिक वातावरण ने उसके मानसिक और आत्मिक अनुभव को परिपूर्ण किया। वाराणसी में उसको सौंदर्य, ध्यान, और आत्मिक संवाद का आनंद मिला। वहाँ का सबसे महत्वपूर्ण अनुभव उसके लिए यह था कि यहाँ पर उसने वाराणसी की भावना को अपने दिल में बसा लिया, और उसने भारत की अद्वितीय संस्कृति के साथ अपना जीवन जोड़ लिया। उसका मन भारत में रह गया, जबकि वो कनाडा वापस लौट गया |

    यह कहानी उसके अनवरत प्रेम और समर्पण की है।

    अनुक्रमणिका

    अध्याय #1

    जैसा देश वैसा भेष   

    प्रत्येक चीज की एक विशेष खुशबू होती है। चाहे वो मिटटी हो,फूल हो,इन्सान या फिर कोई देश। एक बार जब आपको इसकी  खुशबू की पहचान हो जाती है और आपको इसकी आदत हो जाती है तो आप इसे पूरे जीवन कभी नहीं भूल सकते। ये खुशबू आपकी यादो में बस जाती है। जैसे प्रत्येक व्यक्ति के बचपन वाली स्कूल की किताबें, कॉपी, मैदान, कैंटीन और उसके माहौल की खुशबू, उसकी यादो में हमेशा बसी रहती है।

    वो हमेशा के लिए आपके भीतर  आपके डीएनए में और आपकी आत्मा में गहरे तक बस जाती हैं। भारत देश की भी ऐसी ही एक खुशबू है।

    जब मै पहली बार भारत पंहुचा और जैसे ही नई दिल्ली हवाई अड्डे से बाहर निकला, तो मेरा सामना ऐसी ही एक खुशबू से होता है। वो हवा के झोंके से साथ जली हुई खाद, जलती हुई फसलें और जलते हुए प्लास्टिक की एक मिश्रित गंध थी, जो धूप के साथ खाना पकाने के मसालों की महक के साथ मिलकर चारो तरफ धुएं के रूप में हवा में फैली हुयी थी और शहर में कोहरा बनाये हुए थी। जिसको मै आज २० वर्षो बाद भी नहीं भूल पाया हूँ।

    मैं भारत क्यों आया?  ये प्रश्न मुझसे कोई हवाई अड्डे से उतरते ही पूछता तो मेरा जबाब यही होता कि मेरे हेक्टर द्वीप के दोस्तों का एक समूह वाराणसी में भारतीय संगीत और नृत्य की शिक्षा लेने आया हुआ था, और उन लोगो ने भारत से प्रभावित होकर मुझे भी वहाँ आने के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन आज इतने वर्षो बाद कोई पूछे तो मेरा जबाब होगा कि भारत में दुनिया के प्राण बसते है।

    भारत वो सब नि:शुल्क अनुभव के साथ सीखाता है जो आज बड़े बड़े वैज्ञानिक सिद्ध करने की कोशिश कर रहे है। भारत की लाखो वर्षो पुरानी संस्कृति की यही प्रेरणा है कि जीवन का अंतिम सत्य आत्मा है, जो न पैदा होती है न मरती है।

    हालाँकि जब मेरे दोस्त ने मुझे भारत आने के लिए जिद्द की तो मेरे लिए कुछ भी तय करना मुश्किल था। मेरे पास दो रास्ते थे, पहला कि भारत दुनिया के उन आखिरी स्थानों में से एक है जहां मैं जाना चाहता था, और दूसरा ये कि मुझे बिना किसी परवाह या पूर्वानुमान के भारत जरुर जाना चाहिए। आखिर किसी अदृश्य शक्ति ने मुझे भारत जाने का आदेश दिया। जब मैंने भारत जाने का निश्चय किया तो मुझे लगा कि मुझे एक उत्साही युवा  होने के नाते भारत में शहरो की यात्रा मोटरसाइकिल से अकेले करनी चाहिए ताकि मै वहाँ के लोगो और उनकी जीबन शैली के बारे में ज्यादा से ज्यादा जान सकूँ और सीख सकूँ। और जब मैं वहां जा ही रहा हूँ, तो मैंने सोचा कि मै मोटरसाइकिल से काठमांडू भी जरुर जाऊंगा। क्यूँकि मुझे बॉब सीगर का गाना क-क-क-क- काठमांडू हमेशा से बहुत अच्छा लगता था और काठमांडू जाकर मै भी वो गाना गुनगुनाना चाहता था।

    हालाँकि वहाँ की सड़को, यातायात और एक नये अंजान देश में मोटरसाइकिल से इतनी लम्बी यात्रा का निर्णय मेरे जैसे एक घरेलू व्यक्ति होने के नाते मेरे अनुभव के विरुद्ध था। लेकिन जब भी मुझे लगता है कि मुझे ऐसा कोई रोमांचक कार्य करना चाहिए, तो मेरा मानना है कि मेरी आत्मा ही निर्णय लेकर मुझे आध्यात्मिक दुनिया में ले जा रही है। मैं दुनिया को सुनने का माध्यम हमेशा अपनी अंतरात्मा के रास्ते महसूस करता हूँ। इसलिए जब मेरी अंतरआत्मा की आवाज आती है, तो मैं उसकी आवाज सुन लेता हूं। इसलिए मैं अपनी भारत यात्रा को अपनी आध्यात्मिक यात्रा मान कर शुरू करने के लिए तैयार हो गया था। भारत में लैंडिंग के तुरंत बाद मैंने अपना एक एयर बैग जरुरी सामानों से भर लिया था और पिछले पांच दिनों की हेक्टर द्वीप से वैंकूवर, कनाडा, सियोल, दक्षिण कोरिया और बैंकॉक, थाईलैंड  होते हुए भारत तक की लगातार लगभग नींद रहित यात्रा के बाद मैं काफी थका हुआ महसूस कर रहा था।

    मैं नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल भवन के बाहर फुटपाथ पर बिना किसी योजना के खड़ा यही सब सोच रहा था और अपनी भारत यात्रा शुरू करने की योजना बनाने के बारे में बहुत परेशान था, तभी एक सहयात्री ने मुझसे संपर्क किया, जो मेरे साथ इसी उड़ान से दिल्ली आया था। उसने इतालवी उच्चारण के साथ अंग्रेजी में अपना परिचय एलेक्स के रूप में दिया। उसने कहा कि मुझे आपको देखकर ऐसा लग रहा है कि आप परेशान है और आपको शायद कुछ मदद की जरूरत है। उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मै चाहू तो उनके साथ यहाँ से नई दिल्ली तक एक टैक्सी में साथ जा सकता हूँ और नई दिल्ली में एक ऐसे होटल में रुकने के लिए  एक कमरे की व्यवस्था कर सकता हूँ, जहां वह हमेशा रुकते थे।

    मैंने खुशी-खुशी उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया क्योंकि मै भारत में किसी भी चीज से अनजान था और वह भारत कई बार आ चुके थे और उनको यहाँ के सारे मार्ग पता थे। एलेक्स ने सबसे पहले जो काम किया वह ये था कि वह हमें वहा टर्मिनल के किनारे पर खड़े टैक्सीवालो से दूर ले गया, जो वहाँ बड़ी चालाकी से नये ग्राहकों को फ़साने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने बताया कि इन टैक्सी का किराया बहुत ज़्यादा है, और हमें पास के टैक्सी काउंटर पर जाकर रिज़र्व करके टैक्सी किराये पर लेनी चाहिए। इसमें हालाँकि कुछ मिनट ज्यादा लगेंगे, लेकिन संदिग्ध टैक्सी ऑपरेटरों से बचने के लिए इंतजार करना ज्यादा बेहतर विकल्प है।

    ब्रह्मांड द्वारा मुझे भारत भर की यात्रा पर भेजे गए कई स्वर्गदूतों में से एलेक्स पहला था। ब्रह्माण्ड मुझे वह देता है जिसकी मुझे आवश्यकता होती है, जब भी मुझे किसी विषयविषय वस्तु की आवश्यकता होती है, वो बिना किसी देरी के कही न कही से भेज ही देते है। सिर्फ इसी कारण से, मै हमेशा कोई भी योजना सर्वोत्तम योजना नहीं होती विचार के साथ यात्रा करना पसंद करता हूँ। मुझे लगता है कि इसमें चमत्कार होने की सबसे अधिक सम्भावना होती है और मुझे चमत्कार बहुत पसंद है। एलेक्स ने बड़ी लगन से एक टैक्सी का रिजर्वेशन हासिल कर लिया था और अब हम स्ट्रीट लाइट की चकाचौंध और धुंधली हवा में अपनी टैक्सी के आने का इंतजार कर रहे थे।

    तब तक बातचीत में एलेक्स ने मुझे बताया कि वह मूल रूप से इटली का रहने वाला है, लेकिन उसने अपना अधिकांश समय थाईलैंड में बिताया, जहां उसने चियांग माई में तीन अन्य अंतरराष्ट्रीय लोगों के साथ कुल 150 डॉलर प्रति माह पर एक लक्जरी घर किराए पर लिया है। घर में चार शयनकक्ष और एक सुंदर आउटडोर आँगन था जहाँ से पूरा शहर दिखाई देता है। मुझे आश्चर्य हुआ कि वहाँ का किराया कितना सस्ता था, क्योंकि मैंने हेक्टर द्वीप, ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा में 300 फीट समुद्र तट के साथ दो एकड़ भूमि पर एक केबिन जैसे घर के लिए 300 डॉलर प्रति माह का भुगतान किया था, और मुझे लगता था कि यह बिल्कुल सही किराया था।

    उसकी बाते सुनने के बाद मै सोच रहा था कि विदेशी यात्रा आपको ये भी सिखाती है कि दुनिया भर में वस्तुओं की कीमत कितने अजीब तरह से असामान्य है।

    इतनी देर में हमारी टैक्सी आ गई: एक शानदार ढंग से हरे रंग में रंगी हुई, और पीले रंग की छतरी वाली, तीन पहियों वाली, दो-स्ट्रोक इंजन से चलने वाली एक गाडी जिसको वहाँ ऑटो रिक्शा कहते थे। उत्तरी अमेरिकियों ने इस तरह के वाहनों को अपनी सड़कों पर कभी नहीं देखा है, लेकिन किफायती लगात और बनावट की वजह से दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया में, वे चार-पहिया ऑटोमोबाइल की तुलना में बहुत अधिक संख्या में दिखाई देते  हैं।

    ये गाड़ियाँ बहुत टिकायु होती है और संचालित करने में अविश्वसनीय रूप से सस्ती भी होती हैं। ये अपने छोटे, टू-स्ट्रोक इंजनों के साथ पेट्रोल से चलती हैं, और ये अकार में बहुत छोटे होते हैं। ऑटो रिक्शा में तीन छोटे टायर गाडी के नीचे लगे होते है, वो हमारे यहाँ घूमने वाली फर्नीचर की ट्रोली या माली के व्हीलबारो के टायरों से बस थोड़े से बड़े होते हैं।

    गाड़ी चलाने वाला व्यक्ति पहले पहिये के ठीक उपर बनी सीट पर आगे बैठता है और एक हैंडल जिसमे गेयर और क्लच दोनों होते है उसके साथ इसको चलाता है, जबकि यात्री दो पिछले पहियों के उपर बनी एक बेंच नुमा सीट पर बैठते हैं ।

    ऑटो के ड्राईवर के सामने कांच की विंडशील्ड और उपर छत पीले रंग के तिरपाल की होती है। लेकिन इसमें कोई खुलने बंद होने वाले दरवाजे या यात्री खिड़कियां नहीं होती हैं। मैं अपनी पहली ऑटो की सवारी के लिए बहुत उत्साहित भी था और साथ में घबराया हुआ था, क्योंकि उस छोटी गाडी की बनावट ने मेरी सुरक्षा के प्रति मेरे आत्मविश्वास को बहुत कम कर दिया था, लेकिन वो कहावत है कि न जैसा देश वैसा भेष

    यह 29 दिसंबर 2000 की रात थी और दिल्ली शहर में यातायात बहुत कम था। 15 किलोमीटर की सवारी के बारे में सबसे उल्लेखनीय बात शहर के रास्तो का घोर अंधकार था। नई दिल्ली में बिजली दिन में केवल आठ घंटे के लिए आती थी। और अगर बाकी के बचे 16 घंटे कोई बिजली का उपयोग करना चाहता है, तो उसके पास या तो चार्ज किया हुआ कोई बैटरी पैक होना चाहिए या जनरेटर होना चाहिए।

    20 मिलियन की आबादी वाला दिल्ली शहर जहां कोई स्ट्रीट लाइट नहीं था, किसी सड़क पर साइन बोर्ड भी नहीं था, किसी दुकान या मकान के बाहर भी बिजली के बल्ब तक नहीं जल रहे थे, कोई सिग्नल लाइट नहीं थी। सर्वनाश के बाद जैसा घना भयानक अंधेरा होता है। और हर जगह कोहरा, धुँधला धुआं और वह अजीब सी जहरीली गंध थी जिसे मैंने केवल भारत में ही महसूस किया था।

    हमारा छोटा सा ऑटो 50 किलोमीटर प्रति घंटे  की गति से रास्ता तय करता हुआ नई दिल्ली शहर में आ पहुंचा और 25 मिनट की ऑटो की सवारी के बाद हमें शहर के सबसे बड़े चौराहे कनॉट प्लेस, जिसे कनॉट सर्किल भी कहा जाता है, वहाँ पर लाकर उतार दिया।

    एलेक्स का इस स्थान पर एक पसंदीदा होटल था और होटल में प्रवेश करते ही होटल वाले ने उसका नाम लेकर गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। हमने अलग अलग दो कमरे बुक किये,पैसे का भुगतान किया गया, प्रत्येक कमरे के लिए किराया प्रतिदिन का लगभग 16 अमेरिकी डॉलर था। होटल स्टाफ ने चाबियाँ लेकर हमारा सामान उठाया और हमे हमारे कमरों तक पंहुचा दिया। सामान रखने के अगले 15 मिनट के भीतर ही, मैं गहरी नींद के आगोश में था। क्यूँकि मै हद से ज्यादा थक चुका था।

    अध्याय #2

    मजदूरी और मज़बूरी    

    नई दिल्ली में मेरी पहली सुबह मेरी खिड़की पर कबूतरों की गुटरगूं की आवाज से मेरी नींद खुली और जैसे ही मैंने नई दिल्ली में अपने पहले दिन का स्वागत करने के लिए हरे रंग से रंगे, लकड़ी की खिड़कियाँ खोली, तो मैंने देखा कि मेरी खिड़की में कोई कांच ही नहीं था। यह ईंट और प्लास्टर की दीवार के माध्यम से बाहर की ओर खुलने वाली पर्दों से युक्त एक खुली खिड़की थी, और कबूतर वास्तव में मेरे होटल के कमरे में खिड़की के फ्रेम में ही बैठे थे!

    थोड़ी देर में मेरे नए दोस्त एलेक्स ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया। उसने मुझे अपने आगे का प्लान बताया कि वह उसी दोपहर नई दिल्ली से निकलकर हिमाचल प्रदेश की अपनी यात्रा शुरू करेंगे, जहां उनके बाकी के दोस्त है जो उनकी प्रतीक्षा वहाँ कर रहे थे। उन्होंने मुझे सुझाव दिया कि हमे नाश्ते के लिए बाहर एक पाँच सितारा होटल में जाना चाहिए जहाँ शहर में सबसे अच्छे बेल्जियन वफ़ल परोसे जाते हैं। मैं उनसे सहमत हो गया, क्यूँकि उनके पास इस शहर का गहरा अनुभव था और मै बिल्कुल ही नया था। मैं शौच स्नानादि से निवृत होकर, नये कपड़े पहनकर उनके साथ होटल से निकलकर तीन या चार किलोमीटर दूर उस होटल के लिए एक ऑटो टैक्सी ले ली।

    हमने अपने कनाट प्लेस वाले होटल से नई दिल्ली के दूसरे हिस्से में मौजूद दूसरे होटल तक जाने के लिए ऑटो ड्राइवर को इस यात्रा के लिए 45 रुपये का भुगतान किया, जहां एक 12 मंजिला का बड़ा सा आधुनिक दिखने वाला होटल था।

    जब हम इस होटल की ओर बढ़ रहे थे, तो मेरी नजर होटल की दीवार के साथ बने हुए पूरे फुटपाथ पर नीले तिरपाल वाले तम्बूओ पर पड़ी जहाँ पूरे झुण्ड के झुण्ड तिरपाल का घर बनाकर फुटपाथ पर कब्ज़ा किये दिखाए दे रहा था।

    तंबुओं को देखकर लगता था कि वो वहाँ काफी वर्षो से जमे है, वो किसी शहरी शरणार्थी शिविर की तरह दिखते थे। इन तम्बुओ में बिजली का कनेक्शन बगल में ही सड़क पर लगे कंक्रीट के बिजली के खंभों पर जाती हुयी खुली बिजली के तारों से अवैध तरह से जोड़ा गया था।। एलेक्स ने बताया कि शायद यही वह जगह है जहां होटल के कर्मचारी अपने परिवारों के साथ रहते थे। मैंने कल्पना कर रहा था कि इन तम्बुओ में जीवन कितना कठिन होता होगा। न पक्की दीवारे और न ही पक्का फर्श।

    हम अपने ऑटो से बाहर निकले और होटल की लॉबी में दाखिल हुए। होटल की लॉबी में लगभग 100 फीट ऊंची छत थी, प्रत्येक मंजिल पर होटल के कमरों के दरवाजे लॉबी की तरफ खुलते थे। होटल सच में बहुत शानदार ढंग से डिजाईन किया गया था। लॉबी बढ़िया संगमरमर से बनी थी और सीढियों की रेलिंग पीतल और कांच की बनी थी। हम लॉबी से होते हुए बड़े से दिखने वाले भोजन कक्ष की ओर चले, जहाँ सफेद सूट में एक मैत्रे डी ने हमें एक मेज की ओर बैठने का ईशारा किया। मेजें बढ़िया चाँदी जैसे बर्तनों और कलफ लगे सफेद मेज़पोशों से सजी हुई थीं। ये सब देखकर मुझे अपने कैज़ुअल कपड़ों में बड़ा अजीब महसूस हो रहा था, लेकिन मैंने ये सोचकर दिल को समझाया कि हम यहाँ केवल नाश्ता करने के लिए आये है।

    एलेक्स ने हम दोनों के नाश्ते के लिए ऑर्डर दिया। नाश्ता एक बढ़िया फेंटी हुई मलाई और उसके उपर स्ट्रॉबेरी मुरब्बे की एक बड़ी डिश के साथ परोसा गया। उसके स्वाद का अनुभव बिल्कुल असली था। अगर मैंने रास्ते में तम्बुओ का झुण्ड नहीं देखा होता तो मुझे पता ही नहीं चलता कि मैं भारत में हूं।

    मैंने एलेक्स से पूछा कि इस होटल में कमरों की कीमत कितनी है। उसने बताया कि लगभग प्रति रात 200 अमेरिकी डॉलर से भी अधिक है। हमने बेहतरीन नाश्ता ख़त्म किया, नाश्ता और संतरे के रस के दो ताज़ा गिलास के लिए हमारा बिल कुल 1000 रुपये का बना। यह भारत में मेरे द्वारा खाया गया सबसे महंगा खाना था। इतना महंगा नाश्ता या भोजन मैंने इसके बाद भारत में कभी नहीं किया।

    एलेक्स और मैंने नई दिल्ली में अपने साधारण होटल वापस जाने के लिए फिर से एक ऑटो टैक्सी पकड़ी। होटल लौटकर उसने अपने कमरे को खाली कर दिया। क्यूँकि उसको उस दोपहर में एक ट्रेन उत्तर की ओर हिमाचल प्रदेश जाने वाली ट्रेन पकडनी थी। थोड़ी देर मेरे कमरे में हम दोनों ने विश्राम किया, एक दूसरे के बारे में और विस्तार से जाना, मैंने उसको अपनी मोटरसाइकिल से भारत से नेपाल तक जाने के योजना के बारे में भी बताया। सुबह लगभग 11 बजे होटल से अपने अपने रास्ते निकलने से पहले हमने एक-दूसरे को आगे की यात्रा के लिए शुभकामनाएं दीं और मैंने उसकी दयालुता और मदद के लिए उसे विशेष धन्यवाद दिया। मैं गहरी भूरी आँखों वाले भारत में अपने पहले मित्र और मददगार को कभी नहीं भूलूँगा। फिर वह होटल से निकल कर रेलवे स्टेशन की ओर चला गया, और मैं अपनी मोटरसाइकिल की खरीदारी के बारे में जानकारी के लिए होटल की लाबी में रुक गया।

    होटल के एक कर्मचारी ने मुझे सुझाव दिया कि मैं करोल बाग नामक पड़ोस के बाज़ार में चला जाऊं क्योंकि वहां पर पुरानी मोटरसाइकिल की बड़ी मार्किट है और कई मोटरसाइकिल की दुकाने है। जिससे एक ही जगह पर मैं कम से कम समय में अधिक से अधिक मोटरसाइकिलें देख सकूंगा। वहाँ जाने के लिए मुझे होटल से निकलकर थोडा सा पैदल चलकर कनाट सर्किल तक जाना होगा और वहाँ खड़ी किसी भी ऑटो से मै करोलबाग तक जा सकता हूँ। मैं  $100 यूएस डालर की  44 ट्रैवेलर्स चेक और अन्य $4,000 यूएस सौ डॉलर बिल के रूप में साथ भारत आया था। इसलिए मुझे भारत में लेन देन करने के लिए भारतीय मुद्रा की भी आवश्यकता थी।

    होटल के कर्मचारी ने मुझे होटल के नजदीक कनॉट चौराहे पर एक बैंक का पता भी बताया। सबसे पहले मै बैंक जाकर मैंने बिलों और खर्चो के भुगतान के लिए एक $100 यूएस ट्रैवेलर्स चेक को भारतीय रूपये में बदलकर कुल 40000 रु में आदान-प्रदान किया। मुझे जो भारतीय नोट मिले उसमे 1, 5, 10, 20, 50, 100 और 500 रुपये के नोट शामिल थे। सबसे बड़ा नोट 500 रुपये का था जिसे टैक्सी चालक नहीं लेते थे क्यूंकि ये उनके लिए बहुत बड़ा नोट था जबकि मेरे लिए भले ही इसकी कीमत केवल 12 अमेरिकी डॉलर थी।

    यह भारत और अमेरिकी रुपयों में बहुत अन्तर था जहां निर्माण कार्य करने वाला एक व्यक्ति प्रति घंटे 4 रुपये कमाता था, दस घंटे के दिन के लिए केवल 40 रुपये। 500 रुपये का एक नोट उसके लिए लगभग तीन सप्ताह की मजदूरी के बराबर है।

    इस तरह से मैं 40 साल की मजदूरी के बराबर का धन अपनी गर्दन के चारों ओर एक लंबे पट्टे से जुड़ी अपने कपड़ों के नीचे पहनी हुई एक छिपी हुई थैली में नकद में ले जा रहा था। जबकि मैं उत्तरी अमेरिका में घर पर सिर्फ समृद्ध भर था, पर मैं भारत में बहुत अमीर था। बैंक से लौटने के बाद मै मोटरसाइकिल लेने चल पड़ा।

    अध्याय #3

    #1949 मॉडल की 500 सीसी बुलेट

    कनॉट प्लेस नई दिल्ली में स्थिति एक विशाल गोलचक्कर है जहां से नई दिल्ली के कुछ सबसे बड़े रास्ते एक गोल केंद्र से पहिये की तीलियों की तरह अलग अलग निकलते हैं। यह स्थान कई होटल, बड़ी ब्रांडेड दुकानों और कई रेस्तरां से भरा हुआ है। होटल से बाहर निकलकर मुझे दो किलोमीटर दूर करोल बाग तक ले जाने के लिए पहले से सवारी का इंतज़ार करती हुयी ऑटो ढूंढने में कोई परेशानी नहीं हुई। मैंने 30 रुपये में वहाँ जाने के लिए उसके साथ मोलभाव किया जबकि ये धन सामान्यता एक भारतीय द्वारा भुगतान किया जाने का दोगुना था, मै उसपर सवार होकर अपनी मोटरसाइकिल ढूंढने के लिए निकल पड़ा!

    नई दिल्ली में उस सुबह 11:30 बजे बहुत भारी ट्रैफिक था। उत्तरी अमेरिका की तरह यहाँ फुटपाथ और सड़क अलग अलग नहीं थे, न ही उनको अलग अलग रंग से पेंट की गई रेखाओं से चिह्नित किया गया था। चौराहे प्रायः गोलचक्कर जैसे होते थे जिनमें कोई ट्रैफिक लाइट्स  नहीं होती थी। अफरा-तफरी की वजह से वाहन हमेशा धीमी गति से चलते थे।

    यातायात की ऐसी अजब स्थिति को देखते हुए भी सड़क दुर्घटनाएँ फिर भी चमत्कारिक रूप से बहुत कम थीं, हालाँकि इससे मुझे विश्वास हो गया कि भारत में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ड्राइवर की भरमार है। अब तक मैंने देखा कि सड़कों पर सबसे अधिक संख्या में दोपहिया वाहन थे। मोटरसाइकिल,स्कूटर दूसरे वाहनों जैसे ऑटो टैक्सी, कारो और दूसरे भारी वाहनों के मुकाबले अधिक थे।

    इसके अलावा मुझे सड़क पर कुछ सिटी बस,कुछ भारी ट्रक और तीन पहियों वाले पैर से पैडल मारकर चलने वाले रिक्शा और तिपहिया माल ढोने वाला खाली और माल से लदे ढेरो रिक्शा भी दिखे। इन सबके बीच कुछ मूर्ख साइकिल सवार जिनके लिए यातायात के कोई नियम मायने नहीं रखते,वो भी घुसे हुए थे। ये सब मेरे लिए बहुत अजीब और अद्भुद था।

    मेरा ऑटो ड्राइवर जितना साहसी था उतना ही गाडी चलाने में कुशल भी था, और उसने एक से अधिक बार अन्य वाहनों के लगभग सुइ की नोक के बराबर से टक्कर बचाई,अन्यथा कई बार दूसरी गाडियों से हमारा फासला सिर्फ एक या दो सेंटीमीटर का ही रह गया था। हालाँकि हमारा ऑटो यदि पैदल चलने की गति से यात्रा नहीं कर रहा होता तो यह काफी डरावना होता। यह इस बात का भी पूर्वाभास था कि भारत में मुझे अपनी मोटरसाइकिल चलाते समय किस किस  चीज़ से निपटना होगा।

    दो किलोमीटर  की यात्रा में हमे दस मिनट लगे और मेरे ड्राइवर ने मुझे करोल बाग में एक पुरानी मोटरसाइकिल डीलरशिप के सामने खड़ा कर दिया। उसने पूछा कि क्या मैं आप के वापस लौटने तक यही इंतज़ार करू लेकिन मैंने उसको मना कर दिया। मुझे विश्वास था कि मैं मोटरसाइकिल खरीदने के बाद मै स्वयं गाड़ी चलाकर वापस होटल चला जाऊंगा और बाद में मुझे उसकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं होगी।

    मोटरसाइकिल की एक छोटी सी दुकान के सामने 35 या 40 मोटरसाइकिलें एक साथ खड़ी थीं। शहर के इस हिस्से में इस लेन में चार ऐसी दुकाने थीं और कई अन्य दुकाने एक या दो गलियों के बाद और भी थीं। यह एक बहुत बड़ा  मोटरसाइकिल का बाज़ार था, जहाँ मैं एक घंटे के भीतर 300 मोटरसाइकिल से ज्यादा मोटरसाइकिल देख सकता था।

    मेरी मोटरसाइकिल की खोज केवल बड़ी मोटरसाइकिलों, विशेष रूप से एनफील्ड बुलेट्स तक सीमित हो गई। चूंकि नेपाल तक की यात्रा में भारतीय हाईवे पर कई दिनों तक यात्रा करनी थी, इसलिए भारी, बड़ी बुलेट मेरी पहली और स्पष्ट पसंद थी। इंजन की पसंद 350 सीसी थी, पर वहाँ पर एक दुर्लभ 500 सीसी मॉडल भी उपलब्ध था, और इसलिए मैंने तुरंत फैसला किया कि मैं इनमें से ही एक खरीदूंगा। पूरे करोल बाग में, लगभग 200 अलग अलग मोटरसाइकिल के मॉडलों को देखने के बावजूद मुझे केवल दो 500cc की बुलेट ही मिलीं। एक बहुत ही पुरानी और खटारा सी थी, हालाँकि दूसरी बढ़िया स्थिति में थी और केवल तीन साल ही पुरानी थी।

    मैंने बग्गा मोटर्स की मालकिन श्रीमती सिमरन कौर से इसके लिए बातचीत की और 40,000 रुपये, लगभग 1000 अमेरिकी डॉलर में मोटरसाइकिल खरीद ली। मैंने मोटरसाइकिल के लिए $100 अमेरिकी ट्रैवेलर्स चेक से भुगतान किया था। बग्गा मोटर्स की मालकिन श्रीमती सिमरन कौर भारत यात्रा की मेरी दूसरी मित्र बनी। इसी बीच उनकी दुकान में एक छह साल का एक लड़का स्टेनलेस स्टील होल्डर में आठ गिलास ले कर चाय बेचने आया और फिर सिमरन कौर ने अपने और मेरे लिए दो चाय खरीदी। पहली बार मैंने सड़क पर चाय का स्वाद चखा।

    यह एक बहुत खूबसूरत मोटरसाइकिल थी, लेकिन अपनी लम्बी हाईवे यात्रा पर ले जाने से पहले उसमे कुछ सरल बदलाव और जाँच की आवश्यकता थी। यदि आपकी मोटरसाइकिल खुश है, तो आप खुश हैं, और इसलिए मैंने अपनी मोटरसाइकिल की जाँच

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