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स्पंदन
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स्पंदन पुस्तक लेखक विनीत श्रीवास्तव द्वारा लिखित 51 हिंदी कविताओं का संग्रह है। इस पुस्तक की कविताओं की भाषा सरल और सामान्य है। पुस्तक आपको 'श्रृंगार रस' की कविताओं से प्रेम कराती है, दूसरी ओर 'वैराग्य गीत' में डूबकर 'मोह माया' से छुटकारा पा सकते हैं। यह 'अटल जी की स्मृति में' में महान अटल जी को 'श्रद्धांजलि' देती है, यह 'हथिनी की चित्कर' कविता के साथ एक जानवर के प्रति भी सहानुभूति व्यक्त करती है। व्यक्ति 'हनुमान स्तुति' की प्रार्थना करके अपने दिन की शुरुआत भक्ति से कर सकता है। यह 'वतन के लिए' में हमारे वीर सैनिकों को सलामी देता है। पुस्तक हमारी महान भारतीय संस्कृति और प्रकृति के बारे में जागरूकता प्रदान करती है। पुस्तक की कविताएँ समाज में साम्प्रदायिक सद्भाव स्थापित करने का ईमानदार प्रयास हैं। इस ग्रन्थ में 'छन्द वृद्धि, छन्द मुक्त और शब्द चित्र' प्रकार की कविताएँ हैं। पाठक निश्चित रूप से इस पुस्तक में भावनाओं का अनुभव करेंगे।

Languageहिन्दी
Release dateNov 23, 2022
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    स्पंदन - विनीत श्रीवास्तव

    कलेज़े को काग़ज़ पर उतारने वाले कवि विनीत श्रीवास्तव

    विनीत श्रीवास्तव जी एक सिद्ध कवि और श्रेष्ठ चिंतक हैं। इनका कवित्व और चिंतन इनके पद्य संकलन स्पंदन से स्पष्ट झलकता है। समाज , राष्ट्र, संस्कृति, राजनीति, सेना, प्रकृति, भक्ति और प्रेम के प्रति गहरी संवेदना एवं समझ इस काव्य संकलन स्पंदन को अलग पहचान देती है।

    कविताओं में सामान्य एवं जनसाधारण की बोलचाल की भाषा का प्रयोग इस संकलन की विशेषता है जिस से पाठक पढ़ने में सहजता एवं जुड़ाव अनुभव करेंगे। इस पुस्तक में मानव मन में तरंगित, उद्वेलित भाव लहरियों को यथासंभव चित्रित करने का सार्थक प्रयास किया गया है।

    यह पुस्तक विभिन्न रंगों वाले फूलों से सजी या मानव मन को रंग रूप और आकार देने वाला एक बहुमूल्य गुलदस्ता है। गुलदस्ते के सारे फूलों की खुशबू का आनंद तो पूरी पुस्तक पढ़ के ही लिया जा सकता है पर इस गुलदस्ते के फूलों की कुछ पंखुड़ियों का रस यहाँ लेते हैं -

    धर्म की आग में झुलसते समाज के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए कवि लिखते हैं;

    मैं चढ़ा आऊँ इक चादर मज़ार पर

    तुम ओढ़ा देना चुनर माँ के जगराते पर

    खुदा और राम बसते हैं सभी पानी और दाने में

    चलो लगाते हैं नारियल और ख़जूर, एक ही अहाते में

    राष्ट्र के रूप में भारतवर्ष को विखंडित करने के प्रयासों को सबक सिखाने के लिए सेना का आह्वान करते हुए कवि कहता है;

    पांचजन्य की शंखनाद हो गांडीव धरो भुजाओं में

    गद्दारों का रक्त बहा दो बासंती फ़िज़ाओं में

    हममें ज़िंदा शौर्य शिवा का दुनिया को दिखलाना है

    हरी-भरी धरती के स्वर्ग को फिर से आंगन में मुस्काना है

    पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुसरण और भारत की नष्ट होती गौरवशाली संस्कृति के प्रति कवि के व्यथित ह्रदय के भाव इस प्रकार प्रकट होते हैं;

    है सहमा हुआ हिमालय सिसकती गंगा की पावन धारा

    हे राम ! अब रह गया बस तेरा ही सहारा

    संस्कृति के उत्थान का वरदान मांगता हूँ

    संजीवनी कोई पिला दे हनुमान मांगता हूँ

    राजनीति के महान विभूति , महापुरुष और श्रेष्ठ कवि रहे आदरणीय श्री वाजपेयी जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कवि कहते हैं ;

    ये धरा भी धन्य-धन्य हुई अटल का जब जन्म हुआ

    जो कभी डरा नहीं, जो कभी झुका नहीं

    जो कभी रुका नहीं

    राष्ट्र पुरुष ने जब स्वयं ही जन्म लिया

    देश की रक्षा में लगे सैनिकों के प्रति कवि की आत्मीयता इन पंक्तियों में झलकती है;

    अंदर और बाहर भी खड़ा शैतान जिन्दा है

    मैं सोचता हूँ कि कैसे कश्मीर और ये डोकलाम जिन्दा है

    गलाकर हड्डियां दधीचि सी बर्फ की चादरों में

    मरकर भी थापा वीर वो हनुमान ज़िंदा है

    प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ पर कवि की संवेदना इस तरह प्रकट होती हैं;

    कहाँ खो गई वसुंधरा की लाली अहो !

    सिसकियाँ क्यों भरते अवनि अम्बर कहो ?

    नियंता के प्रति अंतस में भक्ति की भाव धारा बही तो भक्त कवि ने अनायास ही लिख डाला;

    तेरे दर पर भीड़ बहुत प्रभो कैसे करके आऊँ मैं ?

    छप्पन भोग थाल नहीं मेरे क्या तुझको खिलाऊँ मैं ?

    यूँ तो कवि विनीत श्रीवास्तव किसी विशेष धारा या रस में बंधे नहीं हैं ,लेकिन इनकी ज्यादातर रचनाएं प्रेम और श्रृंगार रस की हैं, देखिए कवि के अंदर उमड़ते प्रेम भाव और श्रृंगार रस को दर्शाती कुछ पंक्तियाँ;

    तुम प्यार मेरा हो हे प्रियतम अर्पण तुम पर संसार मेरा

    तेरे होठों से निकले गीत मेरा अधरों पर हो अधिकार मेरा

    कवि की लेखनी में रूठे प्रियतम को मनाती प्रेयसी की गुदगुदाती अधरें बोलती हैं;

    मैं सजाती हार बाँहों का गले में

    तुम सुर नया एक कंठ में फिर से सजा दो

    घूर सके हमको नहीं दुनिया की नज़रें

    तृणमयी घर इक नया फिर से बना दो

    मैं यह कहूंगा कि सभी प्रकार के पाठकों के लिए इस काव्य संग्रह में मोती हैं जिसे पाकर निश्चित है कि पाठक तृप्त होंगे।

    अंत में इस श्रमसाध्य एवं राष्ट्र भाषा हिंदी साहित्य के क्षेत्र में सराहनीय कार्य के लिए मैं उनका ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ एवं उनके उज्जल भविष्य की कामना करता हूँ।

    आशा है कि इसी तरह वे अपनी स्वर्णिम चिंतन धारा से हिंदी साहित्य का अभिसिंचन करते रहेंगे।

    आत्मीय

    राम प्रवेश रजक

    प्रोफेसर

    हिंदी विभाग

    कलकत्ता विश्वविद्यालय

    एक कलम मानव के अधिकारों के साथ

    स्पंदन पुस्तक विभिन्न रसों की हिंदी की ५१ सुन्दर कविताओं का एक पद्य संग्रह है। कवि विनीत श्रीवास्तव जी के द्वारा लिखी हुई यह पुस्तक हमें इसलिए भी पसंद है क्योंकि इसकी कई कविताओं में मानव एवं मानवेतर प्राणियों के अधिकारों के लिए संघर्ष स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

    उदाहरणस्वरूप कोरोना काल में मजदूरों

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