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उफुक के बादल
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Ebook139 pages51 minutes

उफुक के बादल

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उफ्फक के बादल" बादल लखनऊ की शायरी का एक संग्रह है। उनकी शायरी में दर्शन, प्रेम, जीवन, धर्म, ईश्वर, रिश्ते, दोस्ती आदि से विषयों और मानवीय भावनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। उनकी शायरी में एक अनूठा मिश्रण है जो पिछले कुछ समय से गायब है। .
उर्दू, हिंदी और शायरी से प्यार करने वाले सभी आयु वर्ग निश्चित रूप से शायरी के रूप में विभिन्न भावनाओं और विषयों को व्यक्त करने की बादल की अनूठी शैली को पसंद करेंगे।

Languageहिन्दी
Release dateNov 8, 2022
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    उफुक के बादल - Baadall Lackhwani

    आतिश ज़ेर ए पा

    दौर ए मसाइब*से जूझने को..गर आतिश ज़ेर ए पा* है..तो बहुत है

    बुलंद हौसलों को..अंधेरी राहों में..जुगनूओं की रोशनी बहुत है।

    बुराई.. मखमली रईसी में रहकर भी.. दुनियाँ से आँख चुराती है

    नफासत* को..टाट की मुफलिसी* में भी..अपनी खुद्दारी* पे.. गुमान* बहुत है।

    ..रिश्ते..वही टूटते हैं.. जो सतही* तौर से …निभाए जाते हैं

    वो ता उम्र फलते हैं रिश्ते..जिनमें जज़्बातों की..गहराई बहुत है।

    सच का फूल बागों में अम्बरी* खुशबू फैला कर खुश रहता है

    झूठ की कली घरों के गुलदानों में…अपनी किस्मत पे इतराती बहुत है

    अक़्दस* खयालात, साफ़ नीयत ही..रूह को राहे रास्त* दिखाते हैं

    अक्लमंदी अनानियत* बढ़ाती है… दानाई* राह भटकाती बहुत है

    गरदन झुकाए..उड़ती जाती हैं.. आसमानों में.. कतारें परिंदों की

    ..पल भर को आ जाएँ चींटी को जो पर..तो वो इतराती बहुत है।

    अभी से लंगर अन्दाख्ता* न कर अपनी उड़ने की सकत* अपने हौसलों को

    आसमां छूने का इरादा रखते हो गर…तो अभी तुम्हें …उड़ना बहुत है।

    शब्द अर्थ

    1. दौर ए मसाइब* - मुसीबतों का दौर 2. आतिश ज़ेर ए पा* - fire under the feet/ जिसके पाँव के नीचे आग हो 3. नफासत*- अच्छाई, सच्चाई

    4. मुफलिसी - ग़रीबी, निर्धनता 5. खुद्दारी* - self respect स्वाभिमान

    6. गुमान* - अभिमान 7. सतही* - superficial, ऊपर-ऊपर से, बिना मन/दिल के 8. अम्बरी* - जिसमें अम्बर सी सुगंध हो 9. अक़्दस* - परम पवित्र 10. राहे रास्त*- सच्चा/सीधा रास्ता 11. अनानियत* - वह भावना कि जो हूँ बस मैं हूँ 12. दानाई* - चतुराई, चातुर्य 13. लंगर अन्दाख्ता* - ठहरा हुआ, halted at a place 14. सकत* - योग्यता

    पहाड़ राई का /…भरम खुदाई का

    मजहबी, दीनी* या जमीनी..नहीं भाइयों में मसला कोई लड़ाई का

    बस…ये..सियासतदानों ने ही..बना रख्खा है पहाड़ राई का

    नहीं होगा कोई माहिर.. चेहरा बदलने में..मेरे ईमान फरेबी शैदाई* सा..

    उससे न हुई वफा कभी..और.. हम पर चढ़ा न रंग कभी.. बेवफाई का

    घिर आईं घटाएँ काली..फफक के रोई ..कायनात ये सारी

    इक खुदगर्ज़ इंसाँ ने..जब घर जलाया..अपने ही भाई का

    झूठ बोलो.. डाका डालो..करो रहजनों* से यारी

    ए कुफ्फार* ..तुम्हें तो फिर शौक भी है…रहनुमाई* का

    झूठ ने …लपक कर जीत ली तब तलक..दुनियाँ आधी

    अभी पैर भी तो घर से निकला न था…. सच्चाई का

    जो धमकी से डर गया.. और..दस्तार* सियासतदानों के पैरों में रख गया

    वो लिए कासा* हाथों में…बेहयाई से… आज करता है दावा ठकुराई का

    सच ..गर दायम* है ..और ..झूठ.. गर ..जाइल* है

    तो फिर क्यों फैला है.. फलक* तक.. धुआं बुराई का

    हैं जमींदोज़* ला महाला* सैकड़ों खाकज़ाद* ए सिकंदर

    उन्हें भी तुम्हारी ही तरह..कभी..भरम था..खुदाई* का

    शब्द अर्थ

    1. दीनी* - religious education 2. शैदाई* - lover 3. रहजन* - डाकू

    4. कुफ्फार- काफिर का बहुवचन 5. रहनुमाई* - leadership 6. दस्तार* - पगड़ी 7. कासा* - भिक्षापात्र 8. दायम* - स्थाई, permanent 9. जाइल* - perishing 10. फलक* -आकाश 11. जमींदोज़* - भूगर्भ में स्थित, buried under the ground 12. महाला* - अंततः 13. खाकज़ाद* - मिट्टी से उत्पन्न 14. खुदाई* - भगवान, being god

    माँ के होठों की मुकद्दस मुस्कुराहट

    माँ के होठों पे मुकद्दस* मुस्कुराहट लरज़ रही है

    लगता है बादल की तकदीर सँवर रही है

    कल तक जो दीमक खुर्दा* थी अपनी किस्मत की कहानी

    पलट के दफ़अतन*..कमनसीबी हुई है..यूं जो आबदानी*

    हैं ये तमाम एहतिशाम* उसकी दुआ की मेहरबानी

    हैं बुलंद इकबाल*.. हो रही हैं शोहरत की बौछारें

    ये जो यक ब यक* मिल रहीं हैं हर सू मुहब्बत की सौगातें

    यूँ ही बेसबब* नहीं होतीं हैं खुशकिस्मती की बरसातें

    ज़रूर माँ की इबादत* बन के इनायत* बरस रही है

    लगता है बादल की तकदीर सँवर रही है

    माँ के होठों पे मुकद्दस* मुस्कुराहट लरज़ रही है

    लगता है बादल की तकदीर सँवर रही है

    जिंदगी की झुलसती धूप में उसका साया, ठंडी पुरवाई का एहसास था

    सर्द तनहा रातों में उसकी ममता का आँचल जैसे गर्म लिहाफ* था

    सहरा ए जाँ* में उसके ही फजल से सिलसिला ए आबसार* था

    एक मुद्दत से लेकिन उसके दरस को आँख तरस रही है

    …..जिसके फज़ल से बादल की किस्मत सँवर रही है

    जबसे मिलीं साँसें फिज़ा में माँ की..तबसे हवा ये कितना महक रही है

    बन के इनायत अब भी मगर हर लम्हा माँ की इबादत बरस रही है…..माँ की इनायत बरस रही है

    माँ के होठों पे मुकद्दस* मुस्कुराहट लरज़ रही है

    लगता है बादल की तकदीर सँवर रही है

    शब्द अर्थ

    1. मुकद्दस* - पवित्र 2.आबदानी* - आबाद होने की अवस्था 3. दीमक खुर्दा* -

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