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शहर के लापता: Suspense, Crime, Fiction, #1
शहर के लापता: Suspense, Crime, Fiction, #1
शहर के लापता: Suspense, Crime, Fiction, #1
Ebook326 pages3 hours

शहर के लापता: Suspense, Crime, Fiction, #1

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अपनी कहानियों से चर्चा में आये लेखक रामाश्रय मानवीय संवेदनाओं और अनुभूतियों को अपनी कलम के माध्यम से प्रस्तुत करने में माहिर हैं। उनकी रचनाओं को पढ़ते समय पाठक न सिर्फ दृश्यों को अपने समक्ष उपस्थित पाता है बल्कि पत्रों से आसानी से जुड़ जाता है। देश के विभिन्न स्थानों पर निवास करने के कारण विभिन्न संस्कृतियों और परम्पराओं से रामाश्रय भिज्ञ हैं और उनकी लेखनी पर इसका प्रभाव देखा जाता है। कहानीकार रामाश्रय ने इस उपन्यास में नागदा शहर से तीन दोस्तों के लापता होने की रोचक कहानी प्रस्तुत किया है। जिसमें जीवन के कई पहलुओं जैसे प्रेम, दुश्मनी, वर्ग संघर्ष, आर्थिक संघर्ष, मजदूर समस्या और दोस्ती को दिखाया बखूबी गया है।उपन्यास यह बताता है कि व्यक्ति की परिस्थितियाँ उसके जीवन की दशा और दिशा अवश्य तय कर सकती हैं लेकिन व्यक्ति के भाग्य का निर्माण वह स्वयं करता है।

Languageहिन्दी
Release dateJun 22, 2022
ISBN9789391078386
शहर के लापता: Suspense, Crime, Fiction, #1

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    शहर के लापता - Ramashraya Tiwari

    शहर के लापता

    लेखक:  रामाश्रय तिवारी

    प्रकाशक: Authors Tree Publishing

    Authors Tree Publishing House

    W/13, Near Housing Board Colony

    Bilaspur, Chhattisgarh 495001

    Published By Authors Tree Publishing 2022

    Copyright © रामाश्रय तिवारी 2022

    All Rights Reserved.

    ISBN: 978-93-91078-38-6

    प्रथम संस्करण: 2022

    भाषा: हिंदी

    सर्वाधिकार: रामाश्रय तिवारी

    मूल्य:₹225/-

    यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि लेखक या प्रकाशक की लिखित पूर्वानुमति के बिना इसका व्यावसायिक अथवा अन्य किसी भी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। इसे पुनःप्रकाशित कर बेचा या किराए पर नहीं दिया जा सकता तथा जिल्द बंद या खुले किसी भी अन्य रूप में पाठकों के मध्य इसका परिचालन नहीं किया जा सकता। ये सभी शर्तें पुस्तक के खरीदार पर भी लागू होंगी। इस संदर्भ में सभी प्रकाशनाधिकार सुरक्षित हैं।

    इस पुस्तक का आंशिक रूप में पुनः प्रकाशन या पुनःप्रकाशनार्थ अपने रिकॉर्ड में सुरक्षित रखने, इसे पुनः प्रस्तुत करने की पद्धति अपनाने, इसका अनूदित रूप तैयार करने अथवा इलैक्ट्रॉनिक, मैकेनिकल, फोटो कॉपी और रिकॉर्डिंग आदि किसी भी पद्धति से इसका उपयोग करने हेतु समस्त प्रकाशनाधिकार रखने वाले अधिकारी तथा पुस्तक के लेखक या प्रकाशक की पूर्वानुमति लेना अनिवार्य है।

    शहर के लापता

    लेखक

    रामाश्रय तिवारी

    मेरे शहर के अजीब दस्तूर हैं।

    पास होकर भी सब दूर-दूर हैं।

    फुर्सत कहाँ अब किसी का हाल पूछें।

    सब अपनी-अपनी दुनिया में मशगूल हैं।

    निकल गया नजर चुरा के वह,

    सुना है! अपने हालात से बहुत मजबूर है।

    कहाँ चले गये बचपन के दोस्त?

    यह शहर मेरे गाँव से बहुत दूर है।

    रामाश्रय तिवारी

    माता-पिता को समर्पित

    1

    वॉट्सऐप मैसेज

    अमोल पटेल ने तहसीलदार से पूछा - कहाँ है! इस जमीन का मालिक?

    वह लापता है..... तहसीलदार ने जवाब दिया।

    क्या! .......एस.डी.एम. अमोल पटेल ने आश्चर्यचकित होकर तहसीलदार को देखा।

    जी साहब, इस जमीन का मालिक पिछले कई सालों से शहर से लापता है - तहसीलदार  ने अमोल पटेल को सूचित किया।

    कौन सा अपराध करके लापता है? - एस.डी.एम. साहब ने पूछा।

    उसने कोई अपराध किया हो ऐसा तो कुछ सुनने में नहीं आया, लेकिन पता चला है कि एक रात अचानक अपने पूरे परिवार के साथ यह व्यक्ति गायब हो गया फिर उसका कभी कोई अता पता नहीं चला -तहसीलदार ने बताया।

    तहसीलदार की बात सुनकर अमोल पटेल थोड़े चिंतित हो उठे, उन्होंने अपने टेबल के ड्रावर से एक सिगरेट के पैकेट से एक सिगरेट निकाला और अपने हाथ में एक लाईटर लेकर अपनी कुर्सी से उठ गए।

    एस.डी.एम. साहब को खड़ा होते देख तहसीलदार साहब भी अपनी कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए, अमोल पटेल ने तहसीलदार को अपने हाथ के इशारे से बैठने के लिए कहा और खुद अपने केबिन के बाएँ तरफ की  खिड़की के पास चले गए। खिड़की पारदर्शी शीशे की थी और वहाँ  खड़े होकर बाहर सड़क पर व्यस्त यातायात को देखा जा सकता था। अमोल पटेल ने खिड़की के सरकने वाले दरवाजे को थोड़ा सा खोल दिया और लाईटर से सिगरेट को सुलगाने लगे। खिड़की खुलते ही बाहर के यातायात का शोर केबिन में सुनाई पड़ने लगा।

    सिगरेट का कश लेते हुए अमोल पटेल सड़क की तरफ देखने लगे और कुछ चिंतित स्वर में बोले – 2 महीने में केंद्रीय मंत्री इस सड़क का शिलान्यास करने वाले हैं और भूमि अधिग्रहण का काम जल्द से जल्द पूरा करना है। लेकिन  यह जमीन का टुकड़ा पूरे जिला प्रसाशन के लिए सिरदर्द बना हुआ है, और तो और सड़क निर्माण का विरोध कर रहे लोगों को मंत्रीजी ने आश्वासन दे दिया है,  कि ना सिर्फ अधिग्रहित जमीन का उचित मुआवजा दिया जायेगा बल्कि जमीन मालिक से बिना पूछे उसकी जमीन का मूल्य निर्धारित नहीं किया जायेगा। अब वह आदमी ही नहीं मिल रहा है जिसकी जमीन है।

    फिर अमोल पटेल सड़क की तरफ देख कर सिगरेट पीने लगे।

    तहसीलदार साहब कुर्सी पर बैठे रहे और उनकी नजर दीवार पर टंगे उज्जैन जिले के नक़्शे पर पड़ी जो एस.डी.एम. साहब की कुर्सी के ठीक पीछे थोड़ा ऊपर टंगा है । उसके दाहिनी तरफ एक बड़ी सी लकड़ी की आलमारी थी,  जो केबिन के दाहिने तरफ के दीवार तक जाती है । आलमारी किताबों से भरी पड़ी है जिसमें कानून, मध्यप्रदेश भू-राजस्व, न्यायिक प्रक्रिया और ऑफिस नियमावली की किताबें हैं। दाहिनी तरफ की दीवार और पीछे की दीवार  से लग कर एक सोफा सेट और बीच में एक छोटा सा टेबल रखा है। टेबल पर कुछ पत्र पत्रिकाएं और समाचार पत्र रखे हुए हैं।  केबिन का दरवाजा तहसीलदार के ठीक पीछे था और उसके बगल की दीवार पर खिड़की है, जहाँ अमोल पटेल खड़े होकर सिगरेट पी रहे हैं। 

    एस.डी.एम. साहब ने खिड़की पर खड़े-खड़े सिगरेट के कई कश लिए और फिर खिड़की पर ही बाहर की तरफ उसे बुझाते हुए बुझी सिगरेट को वहीं छोड़ते हुए खिड़की बंद कर दिया और अपनी कुर्सी पर वापस आकर बैठ गए।

    फिर उन्होंने तहसीलदार से कहा - कल मैं खुद नागदा आता हूँ और वहीं पर इस जमीन से सम्बंधित  निर्णय लिया जायेगा

    तहसीलदार साहब उठ कर चले गए ।

    **********

    पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए  सरकार ने राज्य के कुछ प्रमुख पर्यटन और धार्मिक स्थलों को जोड़ने के लिए एक महामार्ग के निर्माण का निर्णय लिया है। इस सड़क निर्माण में सबसे बड़ी दिक्कत भूमि अधिग्रहण की है, हालाँकि ज्यादातर जमीन का अधिग्रहण हो  चुका है, लेकिन उज्जैन जिले के एक छोटे से शहर नागदा में जमीन अधिग्रहण का काम पूरा नहीं हो पाया है। इसलिए कलेक्टर साहब ने एस.डी.एम. अमोल पटेल को इस शहर की भूमि के अधिग्रहण की  जिम्मेदारी सौंपी है। अमोल पटेल की उम्र भले ही केवल 34 वर्ष है, लेकिन उन्हें प्रशासनिक कार्यों का बहुत अनुभव है। भूमि अधिग्रहण सम्बंधित इसी समस्या को दूर करने के लिए  एस.डी.एम. अमोल पटेल अगले दिन जिला मुख्यालय उज्जैन से सुबह 9:00 बजे अपनी सरकारी गाड़ी से नागदा के लिए निकल गए।

    नागदा शहर, उज्जैन जिले में चम्बल नदी के किनारे बसा एक छोटा सा कस्बा है, जिसे लोग बिरलाग्राम नागदा या नागदा जंक्शन के नाम से भी जानते हैं। नागदा उज्जैन से तकरीब 40 किलोमीटर दूर है और यह 1 घंटे से कुछ ज्यादा का सफर था। जून महीने का प्रथम सप्ताह था और गर्मी अपने चरम पर थी और अमोल चाहते थे की वह तेज धूप होने से पहले नागदा पहुँच जायें। ड्राईवर कार चला रहा था और एस.डी.एम. साहब पीछे की सीट पर बैठे थे, थोड़ी ही देर में उनकी कार क्षिप्रा नदी के पुल को पार कर गयी और सड़क का यातायात कम हो गया तो कार ने गति पकड़ ली। अमोल पटेल उज्जैन से अभी थोड़ा ही आगे आये ही थे कि उन्हें मौसम परिवर्तन महसूस हुआ। आसमान में बादल घिर आये और कुछ देर पहले की चिलचिलाती धूप नदारद हो गयी और मौसम सुहावना हो गया। अमोल सोचने लगे की अभी तो मानसून आने में समय है और यह मानसून पूर्व की फुहारें हैं। अमोल पटेल कार में खिड़की की तरफ खिसक गए, फिर उन्होंने कार का शीशा नीचे किया और एक सिगरेट जला ली। अमोल पटेल ने अपने हाथ और चेहरे  पर बारिश की  कुछ छींटें महसूस की । हल्की बूंदा-बांदी शुरू हो चुकी थी और मिट्टी की भीनी-भीनी खुशबू अमोल पटेल को रोमाँचित किये जा रही थी। अमोल पटेल ने खिड़की के बाहर दूर तक देखा, ज्यादातर खेत खाली पड़े थे। कुछ किसान अपने खेत को जोत रहे थे और खरीफ की फसल बोने के लिए अपने अपने खेतों को तैयार कर रहे थे। सुहाने मौसम और मिट्टी की खुशबू ने अमोल पटेल का मन मोह लिया और  उनका जी चाहा की कार को वहीं रोक कर खेतों में घूम लें, तभी ड्राईवर ने उन्हें चेताया की सर बारिश तेज हो गयी है शीशा चढ़ा लीजिये। थोड़ी देर में ही बारिश इतनी तेज होने लगी कि दूर के खेत दिखना ही बंद हो गए। अमोल पटेल ने  समय काटने के लिए अपना मोबाइल फोन निकाला और उस पर नागदा के बारे में सर्च करने लगे। अमोल पटेल ग्वालियर से चार महीने पहले ही स्थानांतरित होकर उज्जैन आये थे, इस क्षेत्र के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते थे। नागदा जो कि उज्जैन जिले की एक तहसील है वहाँ  तो वह पहली बार जा रहे हैं। वह एक वेबसाइट पर नागदा से सम्बंधित कुछ तथ्य पढ़ने लगे। अमोल पटेल को इन्टरनेट पर नागदा से सम्बंधित एक पौराणिक कथा मिली जो उनको रुचिकर लगी और वह इस कथा को बड़े ध्यानपूर्वक पढ़ने लगे।

    पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों के पश्चात हस्तिनापुर के राजा, परीक्षित बने, जो  अर्जुन के पौत्र और अभिमन्यु के पुत्र थे। एक दिन राजा परीक्षित जंगल में शिकार करने गए और जानवरों का पीछा करते-करते बहुत ज्यादा थक गए। भूख और प्यास ने उन्हें परेशान कर दिया था और राजा परीक्षित अपनी प्यास बुझाने के लिये इधर-उधर भटकने लगे। अंततः उन्हें एक आश्रम दिखाई दिया। यह ऋषि समीक का आश्रम था । आश्रम देखकर राजा को यह विश्वास हुआ कि आश्रम में अवश्य ही जलपान उपलब्ध हो सकेगा और इसी विश्वास के साथ राजा परीक्षित ने आश्रम में प्रवेश किया। आश्रम के चारों ओर घूम कर देखने के उपरांत भी कोई भी व्यक्ति दिखाई नहीं दिया, सिवाय ऋषि समीक के जो कि अपने आश्रम में  बैठे आँख  मूंदकर साधना में लीन थे। राजा ने न चाहते हुए भी साधु को अनेको बार पानी और भोजन के लिए इच्छा प्रकट करते हुए पुकारा, किंतु ध्यान में मग्न ऋषि ने राजा को कोई उत्तर नहीं दिया। उत्तर ना पाकर राजा अति क्रोधित हो गए और राजा ने पास में पड़े एक मृत साँप को धनुष से उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से चले गए।

    ऋषि समीक के पुत्र श्रृंगी को जब यह बात पता चली की राजा परीक्षित ने ध्यानावस्थित उनके पिता के गले में मरे हुए साँप को डालकर उनके पिता का घोर अपमान किया है तो वह क्रोधित हो उठे। राजा परीक्षित द्वारा अपने पिता के अपमान से दुखी होकर श्रंगी ऋषि ने राजा को श्राप दिया कि 7 दिन के अंदर सर्प के काटने से परीक्षित की मृत्यु हो जाएगी। इस श्राप के कारण राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुयी ।

    परीक्षित के पुत्र जन्मेजय अपने पिता की मृत्यु  से बड़े दुखी हो गए और और प्रतिशोध के फलस्वरूप उन्होंने सर्पों का समूल नाश करने के लिए नागदाह यज्ञ प्रारंभ किया| इस यज्ञ के हवन कुण्ड में एक एक करके साँप आहुति में जलने लगे। परंतु आस्ति मुनि ने पंचमी के दिन आकर नागवंश की रक्षा की। इसी कारण नागपंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है। जिस स्थान पर यह नागदाह यज्ञ किया गया उस स्थान को नागदाह कहा गया और आधुनिक युग में यही शहर नागदा के नाम से प्रसिद्ध है, जो चम्बल नदी के किनारे बसा है।

    भोगौलिक रूप से मध्य प्रदेश का यह एक पठारी क्षेत्र है जिसे मालवा का पठार कहा जाता है।  चम्बल नदी के तट पर बसा नागदा  एक प्राचीन शहर है। नागदा शहर की ऐतिहासिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महाकवि कालिदास ने अपने साहित्य में नागदा का उल्लेख किया है। वर्तमान में  नागदा मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित है। नागदा एक प्रमुख औद्योगिक शहर है।  पचास के दशक के शुरुवाती वर्षों में  देश के बड़े उद्योगपति  घनश्याम दास बिरला ने नागदा में एक कृत्रिम रेशा बनाने का कारखाना स्थापित किया। इसके बाद शहर में कुछ टेक्सटाइल्स और केमिकल की फ़ैक्ट्रियाँ लगीं और धीरे-धीरे यह शहर एक प्रमुख औद्योगिक शहर बन गया। बिरला घराने ने यहाँ उद्योग के साथ साथ कर्मचारियों और मजदूरों के निवास के लिए कॉलोनियां भी बनवाई इसलिये इस शहर को बिरलाग्राम-नागदा के नाम से भी जाना जाता है। नागदा दिल्ली और मुंबई के मध्य एक महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन भी है।

    तकरीबन 1 घंटे बाद अमोल पटेल नागदा पहुँच गए। तहसील दफ्तर के बाहर ही  तहसीलदार साहब और उनकी टीम ने पटेल साहब की आगवानी की। नागदा तहसील के कार्यालय में अमोल पटेल स्वयं मोर्चा संभाल चुके थे। तहसील दफ्तर में, तहसीलदार साहब ने एक नक्शा दिखाते हुए एस.डी.एम. साहब को बताया कि चम्बल नदी का पुल पार करते ही 2 किलोमीटर बाद यह जमीन है, जिसका मालिक लापता है।

    अमोल पटेल ने बड़ी बारीकी से नक्शे को देखा और फिर उन्होंने अपने सामने रखे महामार्ग के नक़्शे का मुआयना किया। फिर कुछ सोचते हुए तहसीलदार से पूछा - इस जमीन का कुल कितने मीटर प्रस्तावित महामार्ग में पड़ रहा है?

    जी तकरीबन 100 मीटर लम्बाई और 20 मीटर चौड़ाई -तहसीलदार ने एक फाइल कागज पलटते हुए बताया।

    इस जमीन पर कब्ज़ा किसका है? -अमोल पटेल ने अगला सवाल पूछा। उनकी नजर एक नक़्शे पर थी और वह कभी उस नक़्शे को देखते और कभी उनके सामने रखे गए कागजों को देखते और अपनी डायरी में कुछ तथ्य भी लिखते जा रहे थे।

    सर, शम्भू शरण नाम का एक व्यक्ति है, जो इस जमीन का कब्जेदार है -फिर तहसीलदार ने विस्तार से बताया कि  पहले पहल शम्भू शरण ने अपने आप को इस जमीन का मालिक बताया और मुआवजे का दावा किया लेकिन जब हमने जमीन के कागज देखे तो पता चला कि जमीन का  असली मालिक तो कोई और है जो लापता है ।

    क्या नाम है इस जमीन के असली  मालिक का? -अमोल पटेल ने पूछा ।

    विजय सिंह नाम है, विजय सिंह के पिता का नाम सुमेर सिंह है । -तहसीलदार ने बताया ।

    कोई दस्तावेज है जो साबित कर दे कि वह आदमी लापता है? - अमोल पटेल ने फिर पूछा

    जी सर, एक एफ.आई.आर. दर्ज है जिसमें लिखा है कि विजय सिंह और पिता और उसकी माँ का अपहरण कर लिया गया है। - तहसीलदार ने कहा।

    अपहरण?  -अमोल पटेल की नजर नक़्शे से हट के तहसीलदार की तरफ चली गयी।

    जी अपहरण, उस एफ.आई.आर. के मुताबिक विजय और उसके परिवार का अपहरण  दो व्यक्तियों राकेश और विष्णु ने किया था। सर बात बहुत पुरानी है और जो जानकारी हमने जुटाई है, उसके अनुसार विजय सिंह के दो दोस्त थे, जिगरी दोस्त राकेश और विष्णु। अपहरण का आरोप विजय के इन्हीं दोनों  दोस्तों राकेश और विष्णु पर लगा था। उन दोनों का नाम भी उसी एफ.आई.आर. में दर्ज है  -तहसीलदार ने विस्तार से बताया।

    अच्छा दोस्तों ने ही दोस्त का अपहरण कर लिया -अमोल पटेल बोले,  और ये दोनों दोस्त कहाँ है?

    ये दोनों भी लापता हैं सर -तहसीलदार ने बताया।

    उन्होंने आगे बताया  सर एफ.आई. आर. के मुताबिक तीनों में किसी लड़की को लेकर झगड़ा हुआ और उसके बाद से तीनों लापता हैं।

    सर यह  भी सुनने में आया है  कि विजय एक धनवान ठेकेदार का बेटा था और राकेश और विष्णु गरीब परिवार से थे। शायद पैसे के लालच में दोनों ने विजय और उसके परिवार का अपहरण कर लिया हो तहसीलदार साहब ने अपनी बात  रखी।

    वो लड़की कौन थी? -अमोल पटेल ने पूछा।

    कोई नहीं जानता कि वह लड़की कौन थी, एफ.आई.आर. में भी एक लड़की  शब्द ही लिखा है और उसकी कोई पहचान नहीं लिखी है। -तहसीलदार ने बताया।

    विजय का कोई उत्तराधिकारी या रिश्तेदार भी नहीं है क्या?  -एस.डी.एम. साहब ने जानना चाहा।

    नहीं सर अभी तक कोई सामने नहीं आया, शायद कोई नजदीकी था भी नहीं। -तहसीलदार ने जवाब दिया।

    अमोल पटेल कुछ सोचने लगे फिर अचानक उन्होंने तहसीलदार को देखा और कहा -फिर एफ.आई.आर. किसने लिखवाया?

    शम्भू शरण ने सर, वही जो विजय की जमीन का कब्जेदार है।-तहसीलदार ने बताया।

    कौन है ये शम्भू शरण क्या संबंध है इसका विजय से? -अमोल पटेल ने पूछा।

    सर ये लोकल नेता है और यहाँ किसी वार्ड से पार्षद भी है, यह अपने आप को विजय के पिता सुमेर सिंह का दोस्त बताता है और दावा करता है कि उसने ही पुलिस को बताया कि विजय के परिवार का अपहरण उसके दो दोस्तों विष्णु और राकेश ने किया था। शम्भू शरण का दावा है कि उसका विजय सिंह की जमीन पर 12 सालों से भी ज्यादा समय से कब्ज़ा है।-तहसीलदार ने बताया।

    क्या 12 वर्षों से कब्ज़ा है?? अमोल पटेल आश्चर्यचकित थे,

    ये विजय सिंह और उसके दोस्त विष्णु और राकेश कितने सालों से लापता हैं? -अमोल पटेल ने पूछा

    28 साल पहले की एफ.आई.आर. है सर -तहसीलदार ने जवाब दिया।

    28 साल पहले यह बात दोहराते हुए अमोल पटेल ने अपना सर

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