आइए ज़िन्दगी की बात करें: गाने के लिए अनमोल गजलें, #1
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यदि आप प्रोफेशनल गायक हैं या फिर गाने का शौक रखते हैं, केरिओके, सिंग अलोंग, स्टार मेकर, सिम्मूल या इसी प्रकार के प्लेट्फ़ॉर्म पर गाते हैं और नई ग़ज़ले रिकॉर्ड करके ग़ज़ल गायकी में स्थान बनाना चाहते हैं तो यह किताब आप के लिए है। इस में नय़ी गज़लों के साथ साथ उनके लिए ऐसी प्रसिद्ध धुनें सुझाई गई हैं जिनपर उन ग़ज़लों को गाया जा सकता है। साथ ही ग़ज़ल गायन के संबंध में कुछ नुक्ते भी सुझाए गए हैं जिनसे गज़ल गाने का आपका स्टाइल और अच्छा हो सके।
ग़ज़ल विधा गाने में भी और लिखने में भी अपने आप में कई विशेषताएं लिए हुए है। कई लोग इसकी बारीकियों को समझे बिना ही इस पर हाथ आज़माना चाहते हैं इसलिए इस में सफल नहीं हो पाते और कई बार हास्य का पात्र बन जाते हैं। गाने या गुनगुनाने के लिए सही ग़ज़ल चुनना भी तकनीकी कार्य है और इस विषय पर बहुत कम बात होती है। यह पुस्तक इसी काम को आसान बनाने की ओर एक कदम है| इसमें जहां ग़ज़लों का एक संग्रह प्रस्तुत किया गया है वहीं गायक को अपनी ग़ज़ल और उसके शेर चुनने में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए इस पर भी बात की गई है|
रवि कांत 'अनमोल' पिछले 22 साल से ग़ज़ल कह रहे हैं| उन की कई गज़लें और गीत रिकॉर्ड हो चुके हैं और एक ग़ज़ल संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है| ग़ज़ल पर उनके लघु शोध प्रबंध के आधार पर उन्हें एम फिल की डिग्री प्रदान की गई है|
यह पुस्तक जहां प्रोफेशनल गायकों के लिए नई ग़ज़लें चुनने में मददगार होगी वहीं उन लोगों के लिए भी सहायक होगी जो ग़ज़ल की तकनीकी बारीकियों में उलझे बिना, तकनीकी रूप से सही और बेहतरीन ग़ज़लें गाना चाहते हैं। साथ ही साथ उन शौकिया गायकों के लिए भी सहायक होगी जो सिंग अलोंग या का प्रयोग करके अपनी आवाज में अपनी पसंद के शब्दों को रिकार्ड करना चाहते हैं|
रवि कांत अनमोल
1997 से भारत के विभिन्न भागों में सेकंडरी स्कूलों में गणित, कंप्यूटर और हिन्दी भाषा के शिक्षण के साथ साथ रवि कांत अनमोल ने बच्चों में भाषा और गणित की रुचि बढ़ाने के लिए विभिन्न सफ़ल प्रयोग किए हैं। उन्होंने न केवल स्वयं कविताएं, निबंध और कहानियां लिखी हैं बल्कि अपने विद्यार्थियों को भी प्रेरित करके उनसे रचना करवाई है। गणित और कविता में उनकी विशेष रुचि रही है।
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आइए ज़िन्दगी की बात करें - रवि कांत अनमोल
गायक संगीतकारों के लिए दो शब्द
कविता और संगीत एक दूसरे के बिना अधूरे हैं | कविता शब्दों का संगीत है और संगीत ध्वनियों की कविता| ताल और छंद इन दोनों को जोड़ने वाली कड़ी है| छंद के अनुशासन में बंधी कविता को आसानी से ताल में बैठा कर संगीत बद्ध किया जा सकता है | कविता का छंद ही उस में संगीत पैदा करता है उसे सुरीला बनाता है और उसे सुनने वाले के मन तक बड़ी सरलता से पहुंचा देता है| संगीत कविता के भावों को और अधिक प्रबल बनाने में भी मददगार होता है| इसी लिए गाई जा सकने वाली कविताओं की उम्र लंबी और पहुँच विस्तृत होती है|
ग़ज़ल कविता की एक ऐसी सुरीली विधा है जो छंद या बहर से इस तरह जुड़ी हुई है कि छंद के बिना इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती| छंद या बहर ग़ज़ल का वो आधार है जिस पर विचारों और भावों से सजी ग़ज़ल की खूबसूरत इमारत तैयार होती है| जैसे सुव्यवस्थित अस्थिपंजर के बिना सुंदर शरीर की रचना संभव नहीं वैसे ही छंद के बिना ग़ज़ल नहीं हो सकती| बहर से ग़ज़ल के इस जुड़ाव के चलते कई लोग केवल बहर के नियमों का पूरा होना ही ग़ज़ल की पूर्णता की गारंटी मान लेते हैं जो कि एकदम गलत है, ग़ज़ल बहर से ही पूरी नहीं हो जाती लेकिन बिना बहर के ग़ज़ल होती ही नहीं |
आज सोशल मीडिया का युग है और यहाँ प्रकाशन पर किसी तरह का कोई नियंत्रण न होने के कारण कोई भी कुछ भी प्रकाशित कर सकता है ऐसे में बहुत से नौसिखिया या बिना सीखे हुए स्वघोषित शायरों की रचनाएँ भी प्रकाशित हो जाती हैं जिन्हे छंद में न होने के बाद भी वे अज्ञानतावश ग़ज़ल घोषित कर देते हैं| इस के अलावा गलत प्रचार या अध्ययन की कमी के चलते किसी भी उदास या धीमे संगीत वाले गाने को लोग ग़ज़ल मान लेते हैं जो कि सही नहीं है| इस के चलते ग़ज़ल की विधा का बहुत नुकसान हुआ है | इस दुष्प्रचार को रोकना लगभग असंभव है लेकिन यह प्रयास किया जा सकता है कि सुहृदय पाठकों और श्रोताओं के साथ-साथ गायकों और संगीतकारों को भी तकनीकी रूप से सही ग़ज़लें उपलब्ध कराई जाएँ ताकि ग़ज़ल के नाम पर गाई जा रही रचनाओं में तकनीकी रूप से सही ग़ज़लों की संख्या कुछ बढ़ाई जा सके और जटिल तकनीकी ज्ञान के बिना ही श्रोताओं को ग़ज़ल के कुछ व्यवहारिक उदाहरण देकर ग़ज़ल का आनंद लेने का मौका दिया जाए |
पुस्तकों की यह सीरीज इस दिशा में मेरा पहला प्रयास है| इस में मैंने अपनी ग़ज़लों को एक विशेष क्रम में प्रस्तुत करने की कोशिश की है ताकि प्रोफेशनल और शौकिया दोनों तरह के गायकों को गाने योग्य कुछ अच्छी ग़ज़लें एक ऐसे क्रम में उपलब्ध हों कि उन्हें गुनगुनाने और संगीत बद्ध करने में गायकों और संगीतकारों को आसानी रहे |
जो लोग संगीत की समझ रखते हैं और ग़ज़ल के छंद या बहर पर पकड़ रखते हैं वे ग़ज़ल को पढ़ते ही उस के लिए एक सुंदर धुन सोच लेते हैं लेकिन ग़ज़ल पढ़ने वाला हर व्यक्ति संगीत और शायरी से पारंगत नहीं हो सकता कि उसकी धुन बना कर गुनगुना सके| बहुत से लोग बहुत अच्छी आवाज के मालिक होते हैं लेकिन छंद की समझ नहीं होने के कारण अच्छी धुन नहीं बना पाते| कुछ लोग छंद की समझ रखते हैं