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Urdu Ke Mashhoor Shayar Zafar Aur Unki Chuninda Shayari - (उर्दू के मशहूर शायर ज़फ़र और उनकी चुनिंदा शायरी)
Urdu Ke Mashhoor Shayar Zafar Aur Unki Chuninda Shayari - (उर्दू के मशहूर शायर ज़फ़र और उनकी चुनिंदा शायरी)
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Urdu Ke Mashhoor Shayar Zafar Aur Unki Chuninda Shayari - (उर्दू के मशहूर शायर ज़फ़र और उनकी चुनिंदा शायरी)

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बहादुर शाह ज़फ़र सिर्फ एक देशभक्त मुग़ल बादशाह ही नहीं बल्कि उर्दू के मशहूर शायर थे। उन्होंने बहुत सी प्रसिद्ध उर्दू शायरी लिखीं, जिनमें से काफी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के समय मची उथल-पुथल के दौरान खो गई। उनके समय में लाल किले में मुशायरे होते रहते थे, जिनमें आप भी शिरकत किया करते थे। ज़फ़र उस्ताद ‘जौक’ के शागिर्द हो गये थे, इसके बावजूद आपने अपने वक्त के मकबूल शाइरों ‘गालिब’ और ‘मोमिन’ जैसे उस्तादों से भी बहुत कुछ सीखा। आपकी शायरी में जो गम्भीरता है, उसके कारण आपका नाम उर्दू अदब के एक रौशन सितारे के रूप में बराबर याद किया जाता रहेगा। कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में॥
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 1, 2020
ISBN9789390088508
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    Urdu Ke Mashhoor Shayar Zafar Aur Unki Chuninda Shayari - (उर्दू के मशहूर शायर ज़फ़र और उनकी चुनिंदा शायरी) - Narender Govind Behl

    Bahl

    ज़फ़र

    भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह, और उर्दू के जाने-माने शायर बहादुर शाह ज़फ़र जिन्होंने 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों की अगुवाई की थी। हालाँकि युद्ध में हुई हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा (वर्तमान म्यांमार) भेज दिया जहाँ उनकी उनकी मौत हो गयी थी।

    भारत के आखिरी मुग़ल सम्राट बहादुरशाह ज़फ़र की पैदाइश 24 अक्टूबर, 1775 को दिल्ली के लाल किले में हुई। उनके वालिद अकबर शाह द्वितीय और मां लालबाई थीं। आपका पूरा नाम अबूज़फ़र सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुरशाह था। अपने वालिद के इंतकाल के बाद ज़फ़र को 18 सितंबर, 1837 में मुगल बादशाह बनाया गया। उस वक्त आपकी उम्र 62 साल थी। यह दीगर बात थी कि उस समय तक दिल्ली की सल्तनत बेहद कमजोर हो गई थी और मुगल बादशाह नाममात्र का सम्राट रह गया था।

    बहादुर शाह ज़फ़र सिर्फ एक देशभक्त मुगल बादशाह ही नहीं बल्कि उर्दू के मशहूर शायर और कवि भी थे। उन्होंने बहुत सी मशहूर उर्दू शायरी लिखीं, जिनमें से काफी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के समय मची उथल-पुथल के दौरान खो गई। उनके समय में लाल किले में मुशायरे होते रहते थे, जिनमें आप भी शिरकत किया करते थे। ज़फ़र उस्ताद ‘ज़ौक़’ के शागिर्द हो गये थे, इसके बावजूद आपने अपने वक्त के मक़बूल शायरों ‘ग़ालिब’ और ‘मोमिन’ जैसे उस्तादों से भी बहुत कुछ सीखा। उनकी शायरी में जो गम्भीरता है, उसके कारण उनका नाम उर्दू अदब के एक रौशन सितारे के रूप में बराबर याद किया जाता रहेगा।

    देश से बाहर रंगून में भी उनकी उर्दू कविताओं का जलवा जारी रहा। वहां उन्हें हर वक्त हिंदुस्तान की फिक्र रही। उनकी आखिरी ख्वाहिश थी कि वह अपनी जिन्दगी की आखिरी सांस हिंदुस्तान में ही लें और वहीं उन्हें दफनाया जाए लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। और उन्होंने रंगून कारावास में 1862 में अपनी आखिरी सांस ली। उस वक्त शायद उनके लबों पर अपनी ही मशहूर ग़ज़ल का यह शेर जरूर याद रहा होगा-

    "कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ्न के लिए,

    दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में।"

    - नरेंद्र गोविन्द बहल

    narendergovindbehl@gmail.com

    (1)

    आज बोसे पर लड़ाई होते होते रह गई

    मेरी उनकी हाथा पाई होते होते रह गई

    वह डिबोते चाह में होते अगर हम-आशना¹

    लेकिन उन से आशनाई होते होते रह गई

    मेहरबाँ सय्याद हो कर हो गया ना-मेहरबाँ

    दाम से हमको रिहाई होते होते रह गई

    ऐ ‘जफ़र’ देखा भलाई का असर, दुशमन भी

    की अगर तुझ से बुराई होते होते रह गई

    1. जान पहचान

    (2)

    दिन की मेरी बेकरारी मुझ से कुछ पूछो नहीं

    शब की मेरी आह-ओ-जारी मुझ से कुछ पूछो नहीं

    बारे-गम से मुझ पे रोजे-हिर्ज¹ में इक इक घड़ी

    क्या कहूँ है कैसी भारी मुझ से कुछ पूछो नहीं

    मेरी सूरत ही से बस मालूम करलो हमदमो²

    तुम हकीकत मेरी सारी मुझ से कुछ पूछो नहीं

    शाम से ता सुबह जो बिस्तर पे तुम बिन रात को

    मैं ने की अख़तर-शुमारी³ मुझ से कुछ पूछो नहीं

    ऐ ‘ज़फ़र’ तो हाल है मेरी करूंगा गर बयां

    होगी उनकी शर्मसारी मुझ से कुछ पूछो नहीं

    1. जुदाई 2. साथियों 3. तारे गिनना

    (3)

    जितने गिले¹ हैं सारे मुँह से निकाल डालो

    रखो न दिल में प्यारे मुँह से निकाल डालो

    हम प्यार से डली दे मुँह में तुम्हारे और तुम

    जाकर इसे कनारे मुँह से निकाल डालो

    गुस्से को थूक दो तुम बैठो न मुँह बनाकर

    जो जी में है तुम्हारे मुँह से निकाल डालो

    कुछ पान में दिया है उसने कि यार हमको

    करते है यह इशारे मुँह से निकाल डालो

    तुम गौहरे-सुखन² को चमकाके जब निकालो

    गोया ‘ज़फ़र’ सितारे मुँह से निकाल डालो

    1. शिकायतें 2. शायरी

    (4)

    गर फलक तक यह हमारा नालए-दिल¹ जाएगा

    कंग्रा अर्श-ए-मोअल्ला का भी हिल जाएगा

    हो गए हैं साथ जो तेरे यहीं तक है वह साथ

    आया याँ तनहा है तू तनहा ही गाफ़िल जाएगा

    गौहरे-दन्दाँ² पे तेरे होंगे जब अन्जुम निसार

    आरिज्रे-रोशन³ के हलने माहे कामिल जाएगा

    जाने-शीरीं जाएगी अपनी मिसाले कोहकन

    पर न तेरा शौक़ ऐ शीरीं⁴ शमायल जाएगा

    तेरे कुचे से कहाँ जाएगा तेरा ख़ाकसार

    मिस्ल नकशे-पा⁵ वहीं यह ख़ाक में मिल जाएगा

    होवेगी उस रोज़ बरपा क्या कयामत ऐ ‘ज़फ़र’

    खाक पर जिस दिन शहीदों के वह कातिल जाएगा

    1. दिल की आवाज़ 2. मोती जैरो दांत 3. चमकते हुए गाल 4. मीठी 5. पैरों के निशान

    (5)

    इश्क़ के बन्दे हैं हम, मौला¹ हमारा इश्क़ है

    जानो-ईमां² इश्क़ है, आशिक़ का प्यारा इश्क़ है

    इश्क़ के रस्ते पे आशिक़ हों न मोहताजे-असा³

    उनका रहबर⁴ इश्क़ है, उनका सहारा इश्क़ है

    जाय-मू⁵ निकले है तन से, इक सदा-ए-दर्दनाक़⁶

    बन गया हर इस्तख़्वां,⁷ बेजिस्म सारा इश्क़

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