Sex Power Kaise Badayein: सैक्स शक्ति कैसे बढ़ाएं
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About this ebook
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Sex Power Kaise Badayein - Dr. Satish Goyal
समाधान
सैक्स क्या है? जानें और समझे
(What is sex ? Let us learn about it)
‘सैक्स’ या काम-वासना वह प्रवृत्ति है जिसके वशीभूत होकर स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के प्रति सदैव आकर्षित रहते हैं । इस आकर्षण के फलस्वरूप इनमें मैथुन होता है जिससे सन्तान की उत्पत्ति होती है और मानव-जाति जीवित रहती है । सैक्स इस विश्व में सबसे बड़ी शक्ति है जिससे इस पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व सम्भव हो सका है ।
वास्तव में यह भू-मण्डल मनुष्य के जीवन के उपयुक्त है ही नहीं । कहीं रेगिस्तान है-जहां भीषण गर्मी पड़ती है, कहीं बारहों महीने बर्फ जमी रहती है जहां ठंड के कारण जीना सम्भव नहीं रह जाता है, कहीं बाढ़ आती है, कहीं सूखा पड़ता है, कहीं भूकम्प आते हैं, कहीं तूफान आते हैं, कहीं समुद्री तूफान हजारों मनुष्यों को बहाकर ले जाता है । सहस्त्रों प्राणी हैं जो महामारियों से मर जाते हैं । करोड़ों आदमी भर-पेट भोजन नहीं पा सकते । इन सब कारणों से अब तक पृथ्वी पर से मानव-जाति का नामों-निशान कभी का मिट गया होता, परन्तु सौभाग्यवश प्रकृति ने मनुष्य को जीवित रहने में सहायता देनेवाला एक हथियार दे दिया है जिसके बल पर वह सभी कठिनाइयों से जूझते हुए भी जीवित है । इसी सर्वोच्च शक्तिशाली शस्त्र का नाम है-सैक्स ।
जीवन-विज्ञान के दृष्टिकोण से यदि देखा जाए तो सैक्स का मूल उद्देश्य वंश-वृद्धि करना ही है । किन्तु यह बात केवल जानवरों पर ही लागू होती है, मनुष्यों पर नहीं ।
पशु और मनुष्य में मुख्य अंतर मस्तिष्क का होता है । हम जानवर नहीं इंसान हैं । हमारे मस्तिष्क संसार के समस्त प्राणियों से अधिक विकसित है । चूंकि हर कार्य में यह विकसित मस्तिष्क ही हमारा पथ-प्रदर्शन करता है, अतः हमारे समस्त कार्य जिनमें सैक्स संबंधी कार्य भी सम्मिलित हैं-पशुओं की अपेक्षा अधिक सुन्दर और उचित ढंग से ये कार्य होते है ।
हम मनुष्यों में भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो होते हुए भी इस मस्तिष्क का प्रयोग नहीं करते अतः वे जानवर ही बने रहते हैं । ये लोग सैक्स को केवल सन्तानोत्पत्ति का साधन समझते हुए बच्चे पैदा करते चले जाते हैं और मां जीवन भर बच्चे पैदा करने की मशीन बनी रहती है और बाप रात-दिन बच्चों के भोजन-कपड़े का प्रबन्ध करने में लगा रहता है । मां-बाप तो जानवरों की तरह जीवन गुजारते ही है ये ढेर सारे बच्चे भी समुचित देखभाल और शिक्षा-दीक्षा के अभाव में चोर-उचक्के और लफंगे बनकर समत्व के अन्य व्यक्तियों को दुःख पहुंचाते रहते हैं ।
जो व्यक्ति अपने कार्यों में इस मस्तिष्क से निर्देशन लेते रहने हैं वे ही इस मनुष्य जीवन का सदुपयोग कर सकते हैं । इन लोगों ने सैक्स क्रिया को सन्तान उत्पादन किया से पृथक कर दिया है । परिवार-नियोजन के उपायों का प्रयोग करके ये सन्तानें कम पैदा करते हैं जिससे उनका पालन-पोषण भी भली-भांति हो जाता है और ये सन्तानें भी जीवन में उन्नति करती चली जाती हैं । बच्चों की संख्या कम होने से इनके पास बहुत समय बच रहता है । जिसमें वे सैक्स का भरपूर आनन्द उठा सकते हैं और अपनी सुख-सुविधा के अन्य साधन जुटा सकते हैं ।
सैक्स और मस्तिष्क हास नियंत्रण
प्रश्न उठता है-क्या हम सैक्स को मस्तिष्क के नियंत्रण में रख सकते हैं? नहीं ऐसी बात भी नहीं है । हमारा मस्तिष्क सैक्स रूपी हाथी पर अंकुश की तरह काम करता है । यह इस हाथी को चला सकता है । इसे इधर-उधर मोड़ सकता है और इसे बैठा भी सकता है । यद्यपि हाथी हर समय अंकुश से मिली आज्ञा के अनुसार ही कार्य करता है परन्तु कभी-कभी हाथी बिगड़ भी जाता है और अंकुश तथा महावत को उठाकर दूर भी फेंक देता है । मनुष्य में सैक्स या कामवासना प्रकृति की दी हुई सर्वोच्च मूल प्रवृत्ति (Instinct) है जिस पर एक सीमा तक ही नियंत्रण रख जा सकता है । उससे आगे वह काबू से बाहर हो जाती है । यह इतनी शक्तिशाली प्रवृत्ति है कि पुरुष काम-वासना की तृप्ति के लिए नारी को प्राप्त करने के चक्कर में बड़े-से-बड़े खतरे, कठिनाइयां मोल ले लेता है और बहुतों को तो अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ जाता है ।
वास्तव में हमारे में एक ऐसी जटिल रसायनिक और यांत्रिक व्यवस्था है जो इस प्रवृत्ति को न केवल जीवित ही रखती है बल्कि प्रत्येक पल इसे अपना कार्य पूरा करने के लिए प्रोत्साहित भी करती रहती है ।
आइए, इस रसायनिक व यांत्रिक व्यवस्था को समझें । इस व्यवस्था में हमारे शरीर के दो संस्थान या तंत्र सम्मिलित हैं । इनमें एक है-इंडोक्राइन संस्थान (Indocrine system) और दूसरा है तान्त्रिक तन्त्र (Nervous system) । इन संस्थानों के स्वस्थ रहने और ताल-मेल से काम करने से मनुष्य के भीतर कामात्मक ऊर्जा (Sexual energy) पैदा होती रहती है जिससे न केवल उसकी सैक्स संबंधी कार्यों में रुचि ही बनी रहती है बल्कि वह इन कार्यों का सफल रूप से सम्पादन भी करता रहता है ।
इस संस्थान में हमारे शरीर के विभिन्न अंगों में पाई जानेवाली प्रणाली विहीन ग्रंथियां सम्मिलित हैं । इन्हें प्रणाली विहीन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन ग्रंथियों में कोई नलिका नहीं होती जिससे इनमें उत्पन्न रस बाहर निकल सके । इसमें प्रत्येक ग्रन्थि में अलग-अलग रसायनिक रचना वाला रस उत्पन्न होता है और इनमें से सीधा रक्त में मिलता रहता है । इनमें उत्पन्न होनेवाले रसों को हारमोन कहते हैं । इनमें सैक्स की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण है जनन ग्रंथियों (Gonads) में उत्पन्न होने वाले हारमोन । पुरुषों की जनन ग्रंथि वृषणों में उत्पन्न होने वाले अर्थात नर हारमोन को ‘टेस्टोस्टीरॉन’ तथा स्त्री की जनन ग्रंथियों में पैदा होने वाला हारमोन को ‘आस्ट्रोजिन’ बहते हैं ।
जब बच्चे किशोर वय को प्राप्त कर लेते हैं तो उनकी जनन ग्रंथियां सक्रिय हो उठती हैं । इनके अंदर यौन हारमोन बनने लगते है जो रक्त में मिलकर समस्त शरीर में भ्रमण करने लगते हैं । जब यह हारमोन मिश्रित रक्त मस्तिष्क में पहुंचता है तो यह मस्तिष्क के सर्वोच्च क्षेत्र ‘सेरेब्रल कोर्टेक्स’ को ‘सैंसिटिव’ बना देता है । जिस प्रकार सैलूलाइड की फिल्म पर चांदी का घोल चढ़ा देने से वह सैंसिटिव हो जाता है तथा कैमरे के बाहर की वस्तु का चित्र इस पर छप जाता है । उसी प्रकार बच्चे-बच्चियों का मस्तिष्क जो पहले कोरे कागज जैसा था अब यौन हारमोन का लेप चढ़ जाने के पश्चात् सैक्स संबंधी विचारों को पकड़ने लगता है । विपरीत लिंग के व्यक्ति में उनकी रुचि बढ़ने लगती है । मस्तिष्क में सैक्स की भूख जैसी जाग्रत होने लगती है । जब मस्तिष्क में काम-वासना जाग्रत होने लगती है तो मस्तिष्क इन उद्दीपनों को तंत्रिकाओं के मार्ग से नीचे जनन अंगों की ओर भेजने लगता है । यहां से मनुष्य का तन्त्रिका तन्त्र अपना पार्ट अदा करने लगता है जिससे जनन अंगों में तनाव (Tension) उत्पन्न होने लगता है और युवा-व्यक्तियों का काफी समय इस तनाव से मुक्ति पाने के उपाय सोचने में ही बीत जाता है ।
मानव शरीर में सफेद रंग के धागों का एक जाल फैला हुआ है । जिस तरह हम कठपुतलियों पर धागे बांध कर अपने हाथों से इन धागों को चलाकर कठपुतलियों का तमाशा दिखाते हैं उसी प्रकार हमारे शरीर के अन्दर यह धागों का जाल हमें नाच नचाता रहता है । इस जाल को तंत्रिका तंत्र कहते हैं । वास्तव में हमारा सोना-जागना, चलना-फिरना यहां तक कि सांस लेना भी इसी तंत्रिका तत्र के अधीन है । सैक्स क्रिया तो इसका एक बहुत छोटा-सा खेल है ।
सचमुच इस तंत्रिका तंत्र की रचना प्रकृति ने हमारे शरीर की रक्षा के लिए की है । इस तंत्रिका तंत्र के द्वारा हमें अपने शरीर के अंदर और शरीर के बाहर के वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की खबर हर समय मिलती रहती है और हम इनके अनुसार ही ऐसे कार्य करने लगते हैं जिससे हमारा जीवन सुरक्षित रहता है । यह तंत्र एक प्रकार से हमारे शरीर के अंदर एक स्थान से दूसरे स्थान पर समाचार भेजने की अर्थात् संचार व्यवस्था है । इस संचार व्यवस्था के लिए प्रकृति ने हमारे में एक विशेष प्रकार की तार जैसी लम्बी-लम्बी कोशिकाएं (Cells) बनायी हैं जिन्हें तंत्रिका कोशिका या ‘न्यूरान’ कहते हैं । जब हम पैदा होते हैं उस समय हमारे शरीर में एक निश्चित संख्या में ये कोशिकाएं इस कार्य के लिए विद्यमान होती हैं । जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारे शरीर की अन्य कोशिकाओं की संख्या तो बढ़ जाती है किन्तु इनकी संख्या अपरिवर्तित रहती है ।
न्यूरान दो तरह के होते है । एक-जिन्हें संवेदी न्यूरान कहते हैं । ये हमारी ज्ञानेन्द्रियों-त्वचा, आंख, नाक, कान और जिह्वा पर बाह्य जगत के पड़ने वाले प्रभावों को नोट करके इनके समाचार इस व्यवस्था के हैडक्वार्टर अर्थात् केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system) अर्थात् हमारे मस्तिष्क से लेकर मेरुरज्जु (Spinal cord) तक के भाग को भेजते हैं । हमारा मस्तिष्क खोपड़ी की मजबूत हड्डियों के अंदर और मेरुरज्जु रीढ़ या मेरुदण्ड की अस्थियों के अंदर सुरक्षित रहता है । मस्तिष्क के नीचे के भाग से छोटी उंगली के बराबर मोटी लगभग 17-18 इंच लम्बी एक डोरी जैसी निकल कर रीढ़ के अंदर-अंदर लगभग नितम्बों के जोड़ तक चली जाती है । इसी को मेरुरज्जु (Spinal cord) कहते हैं । इन सूचनाओं के अनुसार केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में निर्णय किए जाते हैं कि शरीर को अब कैसा व्यवहार करना चाहिए । ये फैसले या आज्ञाएं इस संचार व्यवस्था में लगे हुए दूसरे प्रकार के न्यूरानों जिन्हें प्रेरक या मोटर न्यूरान कहा जाता है-के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों को भेजी जाती हैं जिनके अनुसार ये अंग आवश्यक क्रियाएं करने लगते हैं । शरीर के अंदर के अंगों तथा उनके द्वारा की जानेवाली क्रियाओं जैसे श्वसन, रक्त संचार, भोजन पाचन, मल-मूत्र-त्याग आदि पर तंत्रिका तंत्र का ही नियंत्रण रहता है ।
इन न्यूरानों की आकृति बड़ी बेढंगी-सी होती है । इनकी उपमा हम मेंढक के छोटे बच्चे से दे सकते हैं जिन्हें बेंगची या टेडपाल कहा जाता है । इसका एक बड़ा-सा सिर होता है । यही वास्तविक न्यूरान अर्थात् न्यूरान कोशिका (Nerve cell)-है । इसी के केन्द्र में न्यूरान का भोजन रहता है । इस सिर के चारों ओर पतले-पतले बाल जैसे लगे होते है जिन्हें डेन्ड्रोन (डेन्ड्राइट) कहा जाता है । इस सिर के साथ एक लम्बी-सी पूंछ के रूप में एक मोटा तन्तु जुड़ा रहता है जिसे ऐकजोन (Axon) कहते हैं । ये न्यूरान कोशिकाएं मस्तिष्क अथवा मेरुरज्जु के अन्दर गढ़ी होती है । इन अंगों से मिलने वाली ‘आज्ञाओं’ को इनके डेन्ड्रोन ग्रहण करते हैं जहां से न्यूरान कोशिका में से गुजरती हुई ये आज्ञाएं इनके ऐकजोनों में होती हुई शरीर को चलाने वाले अर्थात् मोटर अंगों-मांसपेशियों में पहुंचती हैं जिनमें एक ऐकजोनों के अंतिम छोर पर निकली हुई बहुत-सी शाखाएं गढ़ी होती हैं । इन ऐकजोनों को मोटर फाइबर या प्रेरक तन्तु भी कहते हैं ।
दूसरे प्रकार के अर्थात् संवेदी न्यूरानों की आकृति में थोड़ा अन्तर होता है । इनकी रचना ऐसी होती है जैसे मेंढक के शिशु के सिर में एक गर्दन भी लगा दी जाए और इस गर्दन से हमारे हाथों की तरह दोनों तरफ एक-एक लम्बी भुजा निकली हो । इसकी वह भुजा जो हमारी ज्ञानेन्द्रिय में जाती है उसे डेन्ड्रोन (Dendron) या संवेदी तन्तु (Sensory fibre) कहते हैं । इसकी दूसरी भुजा केंद्रीय तंत्रिका तन्त्र से जुड़ जाती है जिसे ऐकजोन या केंद्रीय तन्तु कहते हैं । इन न्यूरानों के संवेदी तन्तु या डेन्ड्रोन के अंतिम छोर पर भी बहुत-सी पतली-पतली शाखाएं निकली होती हैं जिन्हें तंत्रिका अंतांग (Nerve endings) कहा जाता है । ये तंत्रिका अंतांग हमारी ज्ञानेन्द्रियों में गढ़े होते हैं जहां पर शरीर से बाहर की दुनिया से शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को ये पकड़ लेते हैं और इनकी सूचना न्यूरान कोशिका में से होती हुई इनके ऐकजोन में पहुंचती है जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में गढ़े होते है । ये न्यूरान कोशिकाएं मेरुरज्जु के बाहर ही एक गांठ के रूप में लगी रहती हैं । इस गांठ को गैगलियोन कहते हैं । कुछ संवेदी न्यूरान शरीर के अन्दर के अंगों तथा मांस-पेशियों आदि से भी जुड़े होते हैं और इनके समाचार केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को भेजते रहते हैं ।
इनके अतिरिक्त एक तीसरे प्रकार के न्यूरान भी होते हैं जिन्हें संयोजक या कनैक्टर न्यूरान कहा जाता है । ये एक न्यूरान के समाचार दूसरे न्यूरान तक पहुंचाते हैं । हमारे मस्तिष्क में ऐसे न्यूरानों की संख्या सबसे अधिक है । मेरुरज्जु तथा अन्य अंगों में भी न्यूरान पाए जाते हैं ।
संवेदी न्यूरानों के संवेदी तंतु (डेन्ड्रोन) तथा ऐकजोन दोनों पर तथा प्रेरक न्यूरान के ऐकजोन पर सफेद रंग का एक इंसूलेशन ऐसा ही चढ़ा होता है जैसा कि बिजली के तार पर पी०वी०सी० । इस इंसूलेशन को ‘मायलिन’ कहते हैं । इसके कारण एक ही समय में विभिन्न तंतुओं में जाने वाले समाचारों में आपस में टकरा कर गड़बड़ी नहीं होने पाती । इस इंसूलेशन के कारण ही न्यूरान के तंतु सफेद रंग के दिखाई देते हैं । वास्तविक न्यूरानों अर्थात् न्यूरान कोशिकाओं पर यह इंसूलेशन न चढ़ा होने के कारण ये नंगी रहती हैं और भूरे रंग की दिखलाई देती है ।
यदि हम मेरुरज्जु को काट कर देखें तो यह चारों ओर सफेद रंग की दिखाई देती है और इसके बीच में भूरे (ग्रे) रंग की एक लम्बी पट्टी ऐसी आकृति की होती है जैसे दो सींग पीछे की तरफ और दो सींग आगे की ओर जोड़ दिए गए हों । इन्हें वास्तव में हार्न कहा जाता है । इसे ही मेरुरज्जु का ‘ग्रे’ मैटर कहते हैं । इसके अंदर न्यूरान कोशिकाएं रहती है । मस्तिष्क के अंदर बहुत-से केन्द्र भी ग्रे रंग के होते है और मस्तिष्क की सबसे ऊपर की परत जिसे कार्टेक्स कहते है यह भी ग्रे रंग की होती है क्योंकि इन सब में न्यूरान कोशिकाएं होती हैं ।
मेरुरज्जु व मस्तिष्क के दूसरे क्षेत्र सफेद रंग के दिखाई देते है इन्हें ‘व्हाइट मैटर’ कहा जाता है । इनके अंदर मायलिन चढ़े हुए संवेदी व प्रेरक ऐकजोन होते है । ये ऐकजोन अकेले-अकेले नहीं जाते बल्कि बहुत-से संवेदी ऐकजोन इकट्ठे होकर एक डोरी के रूप में बन जाते है । इसी प्रकार प्रेरक ऐकजोनों की डोरियां बन जाती है । प्रेरक ऐकजीनों की डोरियां मस्तिष्क से नीचे उतरती हुई मेरुरज्जु के व्हाइट मैटर के अंदर-अंदर आती है । संवेदी ऐकजीनों की डोरियां मेरुरज्जु के व्हाइट मैटर के अंदर-अंदर ऊपर चढ़ती हुई मस्तिष्क में पहुंचती है । मेरुरज्जु में से इसी प्रकार प्रेरक न्यूरानों के ऐकजीनों की डोरियां और संवेदी न्यूरानों के डेन्ड्रोनों की डोरियां निकलती है । ये दोनों प्रकार की डोरियां मिलकर एक रस्सी जैसी बन जाती है । ये रस्सियां विभिन्न अंगों की ओर जाती है तो इन्हें तंत्रिका (Nerves) कहा जाता है । इस तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि हमारे शरीर में तंत्रिकाएं होती है उनमें से प्रत्येक तंत्रिका में प्रेरक तथा संवेदी दोनों प्रकार के तंतु होते हैं अतः इन्हें मिश्रित तंत्रिकाएं कहा जाता है । इनमें से कुछ तंत्रिकाएं तो कई-कई फुट तक लम्बी होती है जैसे हमारे हाथों और पैरों में जानेवाली तंत्रिकाएं ।
ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त समाचार संवेदी न्यूरानों के डेन्ड्रोनों के मार्ग से तंत्रिकाओं में होते हुए मेरुरज्जु के अन्दर संवेदी ऐकजीनों में ऊपर चढ़ते हुए मस्तिष्क में पहुंचते है । मस्तिष्क के निर्णय प्रेरक न्यूरानों के ऐकजोनों में नीचे उतरते हुए तन्त्रिकाओं में से गुजरते हुए शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचते है ।
तंत्रिका या नर्व रचना के सम्बन्ध में जानने के पश्चात् हम आपको बताते हैं कि हमारे मस्तिष्क के तने या ‘ब्रेन स्टैम’ में से तंत्रिकाओं के- 12 जोड़े खोपड़ी के अंदर बने हुए छेदों में से बाहर निकलते है । ये तंत्रिकाएं गर्दन से ऊपर के अर्थात् सिर के अंगों जैसे आंख, कान, नाक, जिह्वा, चेहरे आदि की क्रियाओं से सम्बन्धित हैं । मेरुरज्जु में से रीढ़ के कशेसकों के छिद्रों में होकर तंत्रिकाओं के 31 जोड़े निकलते हैं । ये मेरु तंत्रिकाएं हमारी गर्दन से नीचे के भागों अर्थात् हाथों, धड़, और पैरों में जाती हैं । इनमें से प्रत्येक जोड़े की एक तंत्रिका जो मेरुरज्जु की दाहिनी ओर से निकलती है वह हमारे दाहिने अंग में और बाई ओर से निकलने वाली हमारे बायें अंग में जाती है । दाहिनी तरफ से निकलने वाली तंत्रिका में मेरुरज्जु के पीछे के भाग से संवेदी तंतु (डेन्ड्रान) और आगे के भाग प्रेरक तंतु आकर मिलते हैं । ऐसा ही बाई तरफ की तंत्रिका में होता है । जहां ये तंतु आपस में मिलते हैं वहां से तनिक ही आगे चलने पर दाहिनी और बाई दोनों तरफ की तंत्रिका में स्वाधीन तंत्रिका तंत्र (Autonomous nervous system) के तंतु भी आकर मिल जाते हैं । ये मिश्रित तंत्रिकाएं शरीर में दूर-दूर तक पहुंचती हैं । जिस अंग में तंत्रिका जाती है वहां पहुंचकर इसके तंतु इसमें से निकलकर फिर अलग-अलग हो जाते हैं । संवेदी तंतु के तंत्रिका अन्तांग उस अंग की त्वचा में, प्रेरक तंतुओं के तंत्रिका अन्तांग मांस-पेशियों में तथा स्वतंत्र तंत्रिका तंत्र के तंतु ग्रंथियों तथा रक्त वाहिनियों आदि से जुड़ जाते हैं । अपने