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Fitoor
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"फितूर" 9 कहानियों का संग्रह है। इसकी प्रत्येक कहानी आपको रोमांच व विस्मय से भर देगी। सभी कहानियाँ मौलिकता से भरपूर व रोचक हैं।

फितूर के अंश...

कुछ देर में गोलियों का असर होने लगता है। उसे ऐसा लगता है जैसे सब तरफ सब कुछ जल रहा हो। धुँआ उठ रहा हो सब तरफ। रह रह कर कुछ अंतराल के लिए जैसे सबकुछ गायब हो जाता था। समय भी, संसार भी और खुद वह भी। सन्यासी साधना करके समाधी की अनुभूति करते हैं और रघुवंश को गोलियां खाकर समाधी का अनुभव हो रहा था...

अभयारण्य में रिंकी पिंकी को खेलते-खेलते वही रंगीन गोल पत्थर मिल जाता है। दोनो उससे खेलने लगती हैं। हम पत्थर के अंदर जाते हैं तो देखते हैं कि रक्षक और भक्षक की आत्मा आज भी वहाँ कैद है। उन्हे वहाँ से बाहर की दुनिया नजर आ रही है। जैसा कांच से नजर आता है। भक्षक की आँखों में उम्मीद जगती है कि शायद अब उसे इस कैद से मुक्ति मिल जाएगी।

बुका जॉय से कहता है, - तुम मोंक्स से जूली को रेस्क्यू करना चाहते हो, क्योंकि तुम उससे प्यार करते हो। मैं भी मोंक्स से जूली को छुड़ाना चाहता हूँ, क्योंकि मैं माया से प्यार करता हूँ। मैं जूली को जंगल ले जाकर उसे मारकर सुपरपॉवर हासिल करूँगा। उस सुपरपॉवर की मदद से माया को ज़िन्दा करूँगा। हम दोनो का दूसरा मकसद जस्ट अपोजिट है। मगर हमारा पहला मकसद एक है। जूली को मोंक्स की कैद से छुड़ाना। हम अलग अलग इस मकसद में कामयाब नहीं हो सकते हैं, क्योंकि भूत होने के कारण मेरी अपनी लिमिटेशन्स हैं और इंसान होने की वज़ह से तुम्हारी भी लिमिटेशन्स हैं। लेकिन अगर हम एक हो जाएँ तो हम मोंक्स का सामना कर पाएँगे। जॉय तैयार हो जाता है।

***

नमस्कार! मैं अनुराग पांडेय हूं (1978 से)। मैं लेखक, कवि, गीतकार और कंप्यूटर प्रोग्रामर हूं। मेरी कविताएँ भारत के राष्ट्रीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं जैसे नवभारत टाइम्स, कादम्बिनी आदि में प्रकाशित हुई हैं। मैंने लेडी इंस्पेक्टर, शाका लाका बूम बूम, आदि विभिन्न टीवी शोज तथा इंडोनेशियाई टीवी के लिए (कहानी / संवाद / पटकथा) लेखन कार्य किया है। वर्तमान में मैं भारत के भुवनेश्वर शहर में रहता हूँ । ध्यान, योग, रहस्य, अलौकिक गतिविधियां, प्रेम, संबंध मेरे लिखने-पढ़ने के कुछ पसंदीदा विषय हैं।

Languageहिन्दी
PublisherAnurag Pandey
Release dateJul 21, 2020
ISBN9781005062903
Fitoor
Author

Anurag Pandey

Anurag S Pandey is a writer, poet and computer programmer. His poems have been published in national newspapers and magazines of India like Navbharat Times, Kadambini etc. He has written Story/ Screenplay/ Dialogues for various TV Shows like Lady Inspector, Shaka Laka Boom Boom, Indonesian TV shows etc. At present he lives in Bhubaneswar, India. Meditation, yoga, mystery, paranormal & supernatural activities are some of his favorite topics to read and write.

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    Fitoor - Anurag Pandey

    फितूर...!

    रघुवंश को लोग प्यार से पीलू कहकर बुलाते हैं और कुछ लोग मज़ाक में पेलू कहकर बुलाते हैं, जिसपर वह चिढ़ जाता है। रघुवंश ने जीवन में बड़े-बड़े सपने देखे हैं और देखता रहता है। स्कूल में टीचर की नौकरी पकड़ता है तो सपने देखता है बहुत जल्द पूरी दुनिया में उसके हजारों स्कूल होंगे। सेल्समैन का काम शुरू करता है तो सपने देखता है खुद की मार्केटिंग कंपनी खोलकर छ: महीने के अंदर अरबपति बन जाएगा। अख़बार में उसकी कोई कविता छप जाती है तो सपने देखता है ऐसी किताबें लिखेगा कि उसे बुकर से लेकर नोबल प्राइज सब मिल जाएगा, वो भी दो साल के अंदर। फिर वह लेखन से सन्यास ले लेगा और किसी नये क्षेत्र में उच्चतम शिखर तक पहुँचेगा । लेकिन यथार्थ जीवन में वह एक असफल व्यक्ति है।

    ऐसा नहीं है कि वह टेलेण्टेड नहीं है। टेलेण्ट है उसमें। लेकिन उसमें व्यावहारिक और सहज बुद्धि का विकास ठीक से नहीं हो पाया है। यही कारण है कि उसे लगता है कि वह दुनिया में सबसे अलग है। जैसे इस दुनिया के लिए वह बना ही नहीं है। यही कारण है कि वह दुनियावालों से दुनियादारी वाला संबंध नहीं बना पाता है। और दुनिया को किसी की क्या पड़ी है भला! दुनिया को क्या फर्क पड़ता है यदि रघुवंश एक असफल लड़का है। और उसकी दुनिया उजड़ रही है।

    लेकिन फिक्र करने वाले कुछ लोग तो हर किसी की ज़िन्दगी में होते हैं। वे लोग होते हैं परिवार के लोग। दिल से दिल मिले हुए दोस्त, महापुरूष और जीवनसाथी जिसे भगवान चुनकर भेजता है। तो प्रिया को रघुवंश की बहुत फिक्र है। क्योंकि वह उससे सच्चा प्यार करती है। और उससे शादी करना चाहती है। इसलिए प्रिया रघुवंश को समझाती रहती है खुद को चेंज करो, थोड़ा दुनियादारी सीखो। लेकिन रघुवंश जैसे लोग वही समझ पाते हैं जो उनकी समझ समझना चाहती है। और रघुवंश तो अपनी ही समझ से सबकुछ समझना चाहता था। तो किसी और की समझ उसकी समझ में कैसे घुस सकती थी भला।

    खैर वही हुआ जो होना था। एक के बाद एक असफलताओं के अनगिनत थपेड़ों ने रघुवंश को तोड़ कर रख दिया। और दूसरी तरफ प्रिया के माता पिता और प्रतीक्षा नहीं कर सकते थे रघुवंश के पैर पर खड़े होने का। वे प्रिया के लिए कहीं और वर ढूंढना शुरू कर देते हैं।

    उस दिन प्रिया ने रोकर रघुवंश से कह दिया - मेरे पिता को अधिक नहीं तो कम से कम दस हजार महीना कमाने लायक तो बनकर दिखा दो! उतने पर भी शायद वो तुमसे मेरा विवाह कर दें। और अगर तुम इतना भी नहीं कर पाए तो मैं किस मुँह से पिताजी के फ़ैसले के विरूद्ध जा पाऊँगी? फिर मुझे उनकी पसंद के लड़के से शादी करनी ही होगी। समझ लो। केवल एक महीना है तुम्हारे पास। मुझे पा लो या हमेशा के लिए मुझे खो दो। सबकुछ तुम्हारे हाथ में है।

    रघुवंश भी प्रिया से सच्चा प्यार करता था। वो उसे खोकर जीने के बारे में सोच भी नहीं सकता था। लेकिन दुनिया भावना से नहीं दुनियादारी से चलती है। दुनिया को प्यार से क्या लेना देना था, जो वो रघुवंश को उसका प्यार दिलाने के लिए उसे दस हजार महीने का काम दे देती। दुनिया में तो लूटने वाले लूटते हैं और लुटने वाले लुटते हैं। इस दुनिया में मिट्टी सोना के भाव बेचा जा सकता है। सोना मिट्टी के भाव खरीदा जा सकता है। शर्त यह है कि दुनियादारी आनी चाहिए। यही तो नहीं था रघुवंश के पास।

    और वही हुआ जो होना था। समय बीत गया और अपनी लाख कोशिशों के बावजूद रघुवंश दस हजार महीने का काम नहीं ढूँढ पाया। प्रिया के माता पिता ने प्रिया की सगाई किसी अच्छी कंपनी में अच्छे पोस्ट पर काम करने वाले राजेश के साथ कर दी। प्रिया चाहकर भी विरोध न कर सकी। और इस घटना के बाद रघुवंश ने तो जीने का मकसद ही खो दिया था।

    रघुवंश कई तरह की गोलियां इकठ्ठी करता है। नींद की गोलियां, ब्लड प्रेशर की गोलियां और भी तरह तरह की खतरनाक गोलियां… और उस अंधेरी रात में खुद को कमरे में बंद करके वह सारी गोलियां निगल लेता है। कुछ देर में गोलियों का असर होने लगता है। उसे ऐसा लगता है जैसे सब तरफ सब कुछ जल रहा हो। धुँआ उठ रहा हो सब तरफ। रह रह कर कुछ अंतराल के लिए जैसे सबकुछ गायब हो जाता था। समय भी, संसार भी और खुद वह भी। सन्यासी साधना करके समाधी की अनुभूति करते हैं और रघुवंश को गोलियां खाकर समाधी का अनुभव हो रहा था।

    लेकिन यह समाधि अमरता नहीं बल्कि मौत लेकर आने वाली थी। इस बात को रघुवंश अच्छी तरह समझ रहा था और मरने के इंतज़ार में वह बिस्तर पर लेट जाता है। मौत को गले लगाने के लिए वह अपनी आँखें बंद कर लेता है। और उसी क्षण वह एक सपना देखता है। खुद को जैसे एक अलग स्वर्ग जैसी दुनिया में पाता है वह । देवी देवताओं जैसे सजे-धजे लोग नाच रहे हैं। उनके बीच वह भी उनकी ही तरह सजाधजा है। नाच रहा है। सामने पेड़ के नीचे चबूतरे पर सबसे अधिक दिव्य महिला-पुरूष का जोड़ा है। ऐसा लग रहा है जैसे वही जोड़ा वहाँ मौजूद सबके आनंद का स्त्रोत हैं। अचानक दिव्य पुरूष मुस्कुराकर रघुवंश की तरफ देखते हैं। और अपने गले से फूलों की माला निकालकर उछालते हैं जो आकर रघुवंश के गले में गिरती है।

    और उसी क्षण अपनी ही चीख की आवाज़ से रघुवंश सपने से बाहर आता है। वह पाता है कि वह बुरी तरह चीख रहा है। उसके दोनो हाथ सिर को कसकर पकड़ लेते हैं। रघुवंश को ऐसा लगता है जैसे उसके सिर के भीतर बड़े बड़े धमाके हो रहे हों। और दर्द इतना अधिक की मौत आ जाए तो मुक्ति मिल जाए। रघुवंश समझ जाता है कि उसने जो तरह तरह की गोलियां मिलाकर निगली थीं, उसका रिएक्शन हो गया है। अब वह क्या करे।

    उस दिन घर के लोग भी कहीं बाहर गए हुए थे। सारी रात रघुवंश उस भयानक पीड़ा के दौर से गुजरता है। भोर के समय उसकी पीड़ा दूर हो जाती है। बुरी तरह थका हुआ रघुवंश सो जाता है। सुबह उसकी आँखें खुलती हैं तो उसे सबकुछ नॉर्मल लगता है। जैसे गोलियों का उस पर कोई असर नहीं हुआ है। या फिर जैसे किसी अज्ञात शक्ति ने उसके प्राण बचा लिए हों। दुखी होने के अलावा रघुवंश अब कर भी क्या सकता था।

    तभी दूधवाला दूध देने आता है। रघुवंश दूध लेने जाता है। तो दूधवाले से पूछता है - भईया दूध में पानी बहुत मिलाते हो। दूधवाला कहता है - बाबू साहब क्या कह रहे हैं आप! आपके यहाँ पानी मिला के दूध दूँगा तो नर्क में नहीं जाना पड़ेगा! आखिर ब्राह्मण हैं आपलोग। रघुवंश उसकी बात को सच मानकर दूध लेने लगता है। तभी उसके सिर में दूधवाले की आवाज़ सुनाई देती है - मूर्ख पेलू! बोलता है दूध में पानी बहुत मिलाते हो। पानी नहीं मिलाएंगे तो काम कैसे चलेगा। रघुवंश चौंक पड़ता है। देखता है कि दूधवाला तो चुप है। रघुवंश समझ नहीं पाता है कि चक्कर क्या है। उसे लगता है शायद गोलियों का उसके दिमाग पर असर हो गया है। रघुवंश के मन में विचार आता है - ये दूधवाला दूध में पानी तो जरूर मिलाता होगा। अगर ये दूध में पानी मिलाता है तो भगवान करे आज इसका सारा दूध गिर जाए। और रघुवंश दूध लेकर अंदर जाने लगता है। तभी दूधवाले की चीख सुनकर वो पलटता है। देखता है दूधवाले का सारा दूध नीचे फैला हुआ है। जाने कैसे दूधवाले के पैर में मोच आ गई थी और उसका दूध का कैन छूटकर नीचे गिर पड़ा था। रघुवंश कुछ समझ नहीं पाता है कि उसने जो सोचा वो सच कैसे हो गया। भगवान इतना इन्स्टेन्ट्ली तो किसी की प्रर्थना नहीं सुनते हैं।

    अगले कुछ दिनों में ऐसी ढेरों घटनाएं घटती हैं जिससे दो चार होने पर धीरे धीरे रघुवंश को समझ आ जाता है कि गोलियों के असर से उसके दिमाग में कुछ ऐसी गड़बड़ हो गई है कि अब उसके सामनेवाले के मन में जो विचार चलते हैं वो उसे सुनाई पड़ जाता है। इतना ही नहीं। वो सामने वाले के लिए मन में जो विचार सोचता है, सामने वाला वैसा ही करने भी लगता है। जैसे वो रास्ते पर जा रहा था। सामने से एक सुंदर लड़की आ रही थी। लड़की को देखकर रघुवंश के मन में यूँ ही विचार पैदा हो गया - काश ये लड़की मुझे किश कर लेती। और खुद रघुवंश भी आश्चर्यचकित रह जाता है। जब लड़की उसके पास आकर उसे सचमुच किश कर लेती है। लड़की भी आश्चर्यचकित रह जाती है। और शर्म और गुस्से से वह रघुवंश को एक थप्पड़ भी लगा देती है। और तेजी से चली जाती है।

    इन्हीं सब घटनाओं से रघुवंश को पूरी तरह विश्वास हो जाता है कि उसे कोई चमत्कारी शक्ति मिल चुकी है। अगले कई दिनों तक वो तरह तरह से कई परीक्षण करता है अपनी चमत्कारी शक्ति को जानने समझने के लिए। जैसे कि रात को अकेले कहीं से लौट रहा था तो कुछ गुंडे उसे रोकते हैं और उसका पर्स घड़ी वगैरह छीनना चाहते हैं। रघुवंश उन्हे उल्टे-पुल्टे विचार भेजता है। जैसे मुक्का मेरे नहीं अपने साथी के मुँह पर मारो। लात

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