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मिस्र का ब्रह्माण्ड विज्ञान सजीव ब्रह्माण्ड
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मिस्र का ब्रह्माण्ड विज्ञान सजीव ब्रह्माण्ड

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About this ebook

ब्रह्मांड, सृष्टि, विज्ञान और दर्शन की प्रकृति के बारे में हमारी आधुनिक समझ की कसौटी पर मिस्र की ब्रह्माण्ड संबंधी अवधारणाओं की व्यावहारिकता की पड़ताल।

हिन्दीभाषामेंअनुदितयहपुस्तक, ब्रह्मांड, सृष्टि, विज्ञानऔरदर्शनकीप्रकृतिकेबारेमेंहमारीआधुनिकसमझकेसाथमिस्रकीब्रह्माण्डसंबंधीअवधारणाओंकेव्यावहारिकताकाअध्ययनकरतीहै।मिस्रकाब्रह्माण्डविज्ञान, मानवीय, संबद्ध, व्यापक, सुसंगत, तार्किक, विश्लेषणात्मक, औरतर्कसंगतहै।यहपुस्तकआपकोसृजनप्रक्रियाकीमिस्रीअवधारणातथासार्वभौमिकऊर्जाआव्यूहकेबारेमेंबताएगी।इसमेंआप, अंकज्योतिष, द्वैत, त्रिमूर्तियां, आदिकेबारेमेंपढ़ेंगे; यहबताएगीकिइंसानब्रह्मांडसेकिसप्रकारसंबंधितहै; इसकेअलावामिस्रकीखगोलीयचेतना; सांसारिकयात्रा; तथास्रोत्रसेपुनर्मिलनकेलिएस्वर्गकीसोपानपरचढ़नेकेबारेजानकारियाँआपकोइसकेअंदरमिलेंगी।

इस पुस्तक को पाँच भागों में बांटा गया है, जिसमें कुल 17 अध्याय हैं।

भाग I: मिस्र का रहस्यमय एकेश्वरवाद में एक अध्याय हैः

अध्याय 1: सबसे अधिक धार्मिक अध्याय में अतिधार्मिक मिस्री लोगों के एकेश्वरवाद के गहरे रहस्यमय अर्थ के साथ ही उनके ब्रह्मांडीय चेतना की समीक्षा को समाविष्ट किया जाएगा।

भाग II: सृष्टि के सिद्धांत में दो अध्याय हैं—2 और 3:

अध्याय 2: ब्रह्मांड की प्राणदायी ऊर्जा वाले अध्याय में जगत की सृष्टि से पूर्व की अवस्था और सृजन चक्र की प्राणदायी दिव्य ऊर्जा के बारे में मिस्रियों की वैज्ञानिक समझ को शामिल किया जाएगा।

अध्याय 3: सृजन प्रक्रिया का मिस्री वृत्तांत में सृजन चक्र के तीन प्राथमिक चरणों की समीक्षा को समाविष्ट किया जाएगा।

भाग III: सृष्टि के संख्यात्मक कोड में अध्याय 4 से लेकर अध्याय 13 तक कुल दस अध्याय हैं:

अध्याय 4: सृजन प्रक्रिया की अंकविद्या में प्राचीन मिस्र के संख्यात्मक रहस्यवाद को समेटा जाएगा तथा संख्या दो, तीन और पाँच का विश्लेषण किया जाएगा।

अध्याय 5: द्वैतवादी प्रकृति में सृजन की द्वैतवादी प्रकृति को शामिल किया जाएगा तथा प्राचीन मिस्री प्रणाली के 14 विभिन्न अनुप्रयोगों का विश्लेषण किया जाएगा।

अध्याय 6: तीन—एक संयुक्त त्रिमूर्ति में इस पहली विषम संख्या (एक संख्या नहीं है) को शामिल किया जाएगा, तथा ब्रह्मांड में त्रिमूर्ति के त्रिआयामी शक्तियों के महत्व एवं प्राचीन मिस्री प्रणाली में इस सिद्धांत के कुछ अनुप्रयोगों पर प्रकाश डाला जाएगा।

अध्याय 7 से लेकर 13 तक में संख्या चार से लेकर दस तक के रहस्यमय पहलुओं को समेटा जाएगा।

भाग IV: जैसा ऊपर वैसा नीचे में दो अध्याय हैं—14 और 15:

अध्याय 14: मानव—ब्रह्मांड का प्रतिरूप में बताया जाएगा कि मानव के शारीरिक और आध्यात्मिक अवयव, किस प्रकार समस्त सृष्टि की एक छवि हैं।

अध्याय 15: खगोलीय चेतनामेंप्राचीनमिस्रकेखगोलविज्ञानतथासमयगणनाकेउन्नतज्ञानकोसमाविष्टकियाजाएगा, जिसमेंराशिचक्रऔरसोथिकचक्र; केसाथ-साथ (सात) दायरोंकेसामंजस्यकीप्रकृतिऔरउसकेपालनमेंआमभागीदारीकेबारेमेंबतायाजाएगा।

भाग V: नश्वर से अनश्वर की ओर में दो अध्याय हैं—16 और 17:

अध्याय 16: हमारी सांसारिक यात्रा में एक व्यक्ति के दिव्य स्रोत के साथ एकाकार होने के लिए सूफ़ी मत, कीमिया, सहित तमाम उपलब्ध पंथों के बारे में जानकारियाँ समेटी जाएंगी।

अध्याय 17: स्वर्ग की सीढ़ी पर चढ़ना— मेंसंसारकेबादकाजीवन, आत्माकेकायांतरण, देवत्वतथामोक्षकेमार्गकेविभिन्नस्थानोंकोसमाविष्टकियाजाएगा।

Languageहिन्दी
Release dateOct 29, 2017
ISBN9781370189380
Author

Moustafa Gadalla

Moustafa Gadalla is an Egyptian-American independent Egyptologist who was born in Cairo, Egypt in 1944. He holds a Bachelor of Science degree in civil engineering from Cairo University. From his early childhood, Gadalla pursued his Ancient Egyptian roots with passion, through continuous study and research. Since 1990, he has dedicated and concentrated all his time to researching and writing. Gadalla is the author of twenty-two published internationally acclaimed books about the various aspects of the Ancient Egyptian history and civilization and its influences worldwide. In addition he operates a multimedia resource center for accurate, educative studies of Ancient Egypt, presented in an engaging, practical, and interesting manner that appeals to the general public. He was the Founder of Tehuti Research Foundation which was later incorporated into the multi-lingual Egyptian Wisdom Center (https://www.egyptianwisdomcenter.org) in more than ten languages. Another ongoing activity has been his creation and production of performing arts projects such as the Isis Rises Operetta and Horus The Initiate Operetta; to be followed soon by other productions. Check Egyptian Wisdom Center website regularly.

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    मिस्र का ब्रह्माण्ड विज्ञान सजीव ब्रह्माण्ड - Moustafa Gadalla

    भाग I : मिस्र का रहस्यमय एकेश्वरवाद

    अध्याय 1 : सबसे अधिक धार्मिक

    1.1 मिस्र के लोगों की ब्रह्मांडीय चेतना

    यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस (500 ई.पू.) का कथन हैः

    दुनिया के सारे राष्ट्रों की तुलना में , मिस्रवासी सबसे खुशमिजाज़ , सबसे स्वस्थ और सबसे अधिक धार्मिक हैं।

    मिस्रवासियों की उत्कृष्ट स्थिति का श्रेय उनके द्वारा अपने दैनिक जीवन में आध्यात्मिक वास्तविकताओं—अर्थात् संपूर्ण विश्वचेतना—का उपयोग करने को दिया जाता है।

    मिस्र के मकबरों के अंदर दर्शाए गए दैनिक गतिविधियों के दृश्यों में पृथ्वी और आकाश के बीच सदा एक मजबूत संबंध दिखाई देता है। ये दृश्य, शिकार, मछली पकड़ने, कृषि, न्यायालय, तथा कला और शिल्प आदि सभी प्रकार के गतिविधियों की चित्रमय प्रस्तुति करते हैं। नेतेरु (देवी-देवताओं) की उपस्थिति में या उनकी सहायता के साथ, इन दैनिक गतिविधियों का चित्रित किया जाना, उनके ब्रह्मांडीय संसर्ग का प्रतीक है।

    सैकड़ों की संख्या में खोजे गए प्राचीन मिस्र की किसी भी धार्मिक पपायरी—तथा अन्य लेखन फलकों—पर मनुष्य को खोजी या आविष्कारक नहीं बताया गया।

    उनके सभी अस्तित्वों का स्रोत दिव्य शक्ति ही थी और दिव्य शक्ति ही है। दैवीय शक्तियाँ ही सदा सृष्टि का स्रोत रही। दैवीय शक्तियाँ ही, सभी अस्तित्वों का मूल हैं और इन्हीं दैवीय शक्तियों द्वारा इस ब्रह्मांड की रचना हुई तथा उन्हीं के द्वारा इनका पालन किया जाता है। इसलिए प्राचीन मिस्र में हर तरह के ज्ञान का श्रेय दैवीय शक्तियों—अर्थात् नेतेरु (देवियों/देवताओं) की विशेषताओं/पक्षों/गुणों को दिए जाते थे।

    यह अनंत सहसंबंध—ब्रह्मांडीय चेतना— एसक्लेपियस तृतीय (25) के हर्मेटिक ग्रंथों में प्रतिध्वनित होती हैः

    … शक्ति की वो सारी प्रक्रियाएं जो स्वर्ग में कार्य और शासन करती हैं , वो नीचे पृथ्वी पर मिस्र में हस्तांतरित कर दी गई हैं … बल्कि यह कहा जाना चाहिए कि समूचा ब्रह्मांड मिस्र में एक अभयारण्य के रूप में बसता है .. .

    हर क्रिया, चाहे वो कितनी भी सांसारिक क्यों न हो, कुछ हद तक अलौकिक प्रतिबिंब रखती थीं: जुताई, बुवाई, कटाई, शराब बनाना, बियर के मग बनाना, जहाज का निर्माण करना, युद्ध करना, खेल खेलना—इन सब कार्यों को दिव्य गतिविधियों के सांसारिक प्रतीकों के रूप में देखा गया।

    जिसे अब हम धर्म कहते हैं, उसे मिस्र में, इतने व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था कि उसे किसी नाम की जरूरत भी नहीं थी। उनके लिए, धार्मिक और सांसारिक के बीच कोई कथित अंतर नहीं था। ब्रह्मांडीय चेतना पर आधारित उनका सारा ज्ञान उनके दैनिक कामकाज में शामिल था, जो परंपराओं में तब्दील हो गया।

    मिस्र आने वाले विदेशियों ने, इन मूल परंपराओं की ब्रह्मांडीय गहराई को समझे बिना ही बलदी और प्राचीन मिस्रियों पर जल्दीबाजी में अंधविश्वासी का ठप्पा लगा दिया, जो समझदारी कत्तई नहीं है।

    जीवन में, कंप्यूटर चलाने से लेकर या इस तरह के न जाने कितने काम हम यह जाने बगैर करते हैं, कि वह वास्तव में काम कैसे करता है। अब इससे हमारे कंप्यूटर के चलाने को अवैज्ञानिक कह कर खारिज तो नहीं किया जा सकता। ठीक वैसे ही, बलदी और प्राचीन मिस्री प्रथाओं को भी खारिज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि हर इंसान ब्रह्मांडीय क्रियाओं के वैज्ञानिक आधार से परिचित नहीं होता।

    किसी भी समाज में, केवल कुछ विशेष लोग ही यह वैज्ञानिक सच्चाई जानते हैं, कि कोई कार्य क्यों और कैसे होता है।

    1.2 ब्रह्मांड की अनेकता में एकता

    ‘ब्रह्माण्ड विज्ञान’ शब्द का अर्थ है, ब्रह्मांड का संपूर्ण तथा उसके स्वरूप, प्रकृति, एवं भौतिक प्रणाली का अध्ययन करना।

    हमें प्राचीन मिस्र की रेकीस्तुति  में ‘ब्रह्माण्ड विज्ञान’ शब्द का सार मिल जाएगा, जहां रे को — सृष्टि का दिव्य तत्व— निम्न रूप में वर्णित किया गया हैः

    " वह एक जो एक में संयुक्त हुआ ,

    वह जो अपने अवयवों में से बाहर निकला। "

    रे की प्राचीन मिस्री परिभाषा कई विभिन्न अस्तित्वों के एक इकाई में समाहित होने का सच्चा प्रतिनिधित्व करती है, अर्थात वह एक है जो सब है।

    रेकीस्तुति  सृजन तत्व के रूपों का वर्णन करती है, जिन्हें नेतेरु (देवी-देवता) कहा जाता है, और जिनके कार्यों और परस्पर क्रियाओं के फलस्वरूप ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है।

    चलिए जरा हम ‘धर्म’ के लिए प्रयुक्त होने वाले अंग्रेजी शब्द ‘रेलिजन’ की पड़ताल करें, जिसके मूल अर्थ को तोड़ा-मरोड़ा जा चुका है।

    रेलिजन शब्द की उत्पत्ति ‘रेलिजियों’ से हुई है, जिसका अर्थ एकसाथलपेटनायाबाँधना  होता है, जो पुनः मिस्री लेखों में वर्णित ‘रे’ की परिभाषा के साथ मेल खाता है।

    1.3 आमेन रेनेफः एक अपरिभाषित

    अतिधार्मिक मिस्रवासी मानते थे कि कोई भी इंसान अपरिभाष्य को परिभाषित नहीं कर सकता। उनके अनुसार एक असीमित अज्ञात शक्ति है जो इस ब्रह्मांड के साथ संप्रेषण करने से बहुत ऊपर की चीज़ है, लेकिन उस शक्ति के बिना, किसी भी सृजन का कोई अस्तित्व संभव ही नहीं है।

    ब्रह्मांड और उसके चक्रीय प्रकृति के बाहर एक सत्ता है, जिसे प्राचीन मिस्रवासी ‘आमेन- रेनेफ’ पुकारते थे, ये किसी हस्ती का नाम नहीं है, बल्कि एक वाक्य है, जिसका मतलब होता है, अज्ञाततत्ववाला। अज्ञात के इस सीमा को, मानव सोच का कोई भी शब्द व्यक्त नहीं सकता है, और न ही धर्मभीरू मिस्रवासियों ने ऐसा करने की कभी कोशिश की, उसे केवल सभी गुणों के निषेध द्वारा व्यक्त किया जा सकता है,

    मिस्रवासियों के अनुसारः

    – जिसका नाम सभी नेतेरु (देवियों तथा देवताओं) के लिए अज्ञात है 

    – जिसकीकोईपरिभाषानहींहै, (यानी जिसे किसी भी मानवीय शब्द से परिभाषित नहीं किया जा सकता)

    – जिसकी कोई छवि नहीं है। 

    – जिसका कोई स्वरूप नहीं है।

    – जिसका न कोई आदि है और न कोई अंत,  इत्यादि ।

    इस प्रकार की प्राचीन मिस्री अभिव्यक्ति, के अनुसार आमेन-रेनेफ किसी भी अस्तित्व से परे है। आमेन- रेनेफ निर्माता या मूल कारण नहीं है। ईश्वर, निर्माता, जगत का स्वामी, मूल कारण, प्रथम, आदि जैसे सभी शब्द, निम्नस्तरीय तत्व हैं, जो आमेन-रेनेफ से कोसों दूर हैं।

    मिस्रवासी इस बारे में बहुत ज्यादा नहीं कहते—बल्कि इस अनंत अव्यक्त शब्द के पीछे छिपी गहरी भावना पर ज़ोर डालते हैं—कि आमेन-रेनेफ हर जगह है, और इसके पूर्व-अस्तित्व के बिना कुछ भी संभव नहीं है।

    अज्ञातभाववालेआमेन-रेनेफ, कोस्वीकारकरतेहुए, अबहमउससृजनचक्रमेंप्रवेशकरसकतेहैं, जिसकाहमसबहिस्साहैं।

    भाग II : सृष्टि के सिद्धांत

    अध्याय 2 : ब्रह्मांड की प्राणदायी ऊर्जा

    2.1 सृजनपूर्व प्रारंभ-नून-शून्यता

    मिस्र का प्रत्येक सृजन शास्त्र इसी बुनियादी विश्वास के साथ शुरू होता है कि सृष्टि से पहले, चारों तरफ एक अनंत, असीम और अव्यवस्थित आदि तरल कुंड था। मिस्रवासी इस ब्रह्मांडीय सागर/जलीय कोलाहल, को नू/नाई/नून/—तत्वों की अध्रुवीकृत अवस्था कहते थे। जल निराकार होता है, यह खुद से कोई भी आकार नहीं लेता, और न ही यह किसी आकार को ग्रहण करने का प्रतिरोध करता है।

    वैज्ञानिक, ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले कुंड वाली प्राचीन मिस्री व्याख्या से सहमत हैं। वैज्ञानिक, इस कुंड को न्यूट्रॉन सूप कहते हैं, जहां न तो इलेक्ट्रॉन हैं और न ही प्रोटॉन, बल्कि केवल न्यूट्रॉन मौजूद हैं, जो विशाल आकार के बेहद घने नाभिक का निर्माण करते हैं।

    सृष्टि से पहले की इस कोलाहल भरी अवस्था का कारण तत्वों का संपीड़न था, अर्थात् परमाणु अपने सामान्य अवस्था में नहीं थे, बल्कि वे एकदूसरे के साथ इतनी सघनता से भिंचे हुए थे, कि एक सामान्य परमाणु द्वारा घेरी जाने वाली जगह जितने स्थान में कई परमाणु नाभिक ठुँस गए थे। ऐसी हालात में, इन परमाणुओं के इलेक्ट्रॉन अपनी कक्षाओं से बाहर निचुड़ गए, और स्वतंत्र रूप से (आवारा हालत में) उधर उधर विचरण लगे।

    नू/नाई/नून एक आत्मगत अस्तित्व है, जो सृजन से पहले की अपरिमित, अपरिभाषित, गैर-विभेदित ऊर्जा/तत्व है, यह जड़ या निष्क्रिय अवस्था का प्रतीक हैः जो  अपने रूपांतरण का कारण नहीं हो सकता है।

    निःसंदेह अनंत शब्द अपरिमित, अपरिभाषित, असीमित, निराकार, अविभेदित जैसे शब्दों का पर्याय है। इसका मतलब यह है कि जिस ऊर्जा/तत्व से सभी चीजों का सृजन हुआ, उसे अवश्य ही अपने तात्विक अवस्था में असृजित, अपरिभाषित, अविभेदित इत्यादि होना चाहिए। अगर जगत की आधारभूत सामग्री की कोई तात्विक परिभाषा (स्वरूप) हुई, तो वह उसके  असीम में तब्दील होने की क्षमता को सीमित कर देगी। इसके तात्विक परिभाषा का न होना, ईश्वर की सृजनात्मक सर्वशक्तिमत्ता के लिए परम आवश्यक है।

    2.2 चलिए सृष्टि को आरंभ होने दिया जाए

    सृष्टि पूर्व के न्यूट्रॉन सूप में संघनित ऊर्जा लगातार बढ़ती जा रही थी। करीब 15 अरब साल पहले, यह संघनित ऊर्जा जब अपनी अधिकतम एकाग्रता पर जा पहुँची, तो विस्फोट हुआ और विस्तार प्रारंभ हुआ।

    इस विस्फोट के ज़ोरदार आवाज के कारण ब्रह्मांड के घटक भाग टूट गए।

    ठीक इसी तरह, प्राचीन मिस्री लेख भी बार-बार ज़ोर देकर ईश्वर के आदेश वाली आवाज की बात दोहराते हैं- अर्थात् आदेश वाली ध्वनि सृजन का कारण थी।

    2.3 ध्वनि और सृजन

    5,000 साल पुराने प्राचीन मिस्र के सबसे पुराने प्राप्त लेख, शब्द को जगत के सृजन का कारण बताते हैं। विश्व का सबसे प्राचीन लिखित लेख, मिस्र की, उजालेमेंआनेकीपुस्तक (जिसका आमतौर पर मृतकोंकीपुस्तक  केरूपमेंगलतअनुवादकियागया) मेंकहागयाहैः

    " मैं अनन्त हूँ … मैने ही शब्द को उत्पन्न किया … मैं ही शब्द हूँ …

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