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Lal Kile ki Pracheer se Bharat ke Pradhanmantri : Bhag-1 (1947-1975) (लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रंधानमंत्री : भाग-1 (1947-1975)
Lal Kile ki Pracheer se Bharat ke Pradhanmantri : Bhag-1 (1947-1975) (लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रंधानमंत्री : भाग-1 (1947-1975)
Lal Kile ki Pracheer se Bharat ke Pradhanmantri : Bhag-1 (1947-1975) (लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रंधानमंत्री : भाग-1 (1947-1975)
Ebook559 pages5 hours

Lal Kile ki Pracheer se Bharat ke Pradhanmantri : Bhag-1 (1947-1975) (लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रंधानमंत्री : भाग-1 (1947-1975)

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About this ebook

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी तक हर वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से दिए गए समस्त भाषण स्वाधीन भारत की अब तक की यात्रा की महान गाथा के अनेक सूत्रों को समेटे हुए है। तत्कालीन प्रधानमंत्रियों के इन भाषणों में राष्ट्र की चिंताओं, चुनौतियों, उससे निबटने के लिए बनाई जाने वाली नीतियों, जनता की भागीदारी और उनसे सहयोग का आह्वान सब कुछ समाविष्ट है। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, कूटनीतिक आदि सभी मोर्चों पर भारत के पक्ष और उसके संकल्पों को लाल किले से अपने संबोधनों में सभी प्रधानमंत्रियों ने अपने-अपने ढंग से अभिव्यक्त किया है। इसके माध्यम से उन्होंने सीधे-सीधे अपनी-अपनी सरकारों की नीतियों को, योजनाओं को, उसके कार्यान्वयन के विविध आयामों को देश के नागरिकों के समक्ष रखने का कार्य किया।
'लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री' शीर्षक से तीन भागों में प्रकाशित इस पुस्तक से आपको निःसंदेह तत्कालीन परिस्थितियों, सरकारों तथा प्रधानमंत्रियों के विजन से अवगत होने का अवसर प्राप्त होगा।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateDec 21, 2023
ISBN9789356848092
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    Lal Kile ki Pracheer se Bharat ke Pradhanmantri - Dr. Ramesh Pokhriyal ‘'Nishank’'

    जवाहर लाल नेहरू

    जन्मः14 नवम्बर, 1889 - अवसानः 27 मई, 1964

    (कार्यकाल)

    15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1964

    15 अगस्त, 1947 को

    लाल किले की प्राचीर से

    प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू

    भाइयों और बहनों,

    आज एक शुभ और मुबारक दिन है। जो स्वप्न हमने बरसों से देखा था वह कुछ हमारे आँखों के सामने आ गया। यह चीज हमारे कब्जे में आयी। दिल हमारा खुश होता है, एक मंजिल पर हम पहुँचे। यह हम जानते हैं कि हमारा सफ़र खत्म नहीं हुआ, अभी बहुत मंजिलें बाकी हैं। लेकिन फिर भी एक बड़ी मंजिल हमने पार की और यह बात तय हो गई कि हिन्दुस्तान के ऊपर कोई गैर हुकूमत अब नहीं रहेगी। आज हम एक आजाद लोग हैं, आजाद मुल्क हैं।

    मैं आपसे आज जो बोल रहा हूँ एक हैसियत, एक सरकारी हैसियत मुझे मिली है, जिसका असली नाम यह होना चाहिए कि- मैं हिन्दुस्तान की जनता का प्रथम सेवक हूँ। इस हैसियत से मैं बोल रहा हूँ, वह हैसियत मुझे किसी शख्स ने नहीं दी, लेकिन आपने दी और जब तक आपका भरोसा मेरे ऊपर है, मैं इस हैसियत पर रहूँगा और उस खिदमत को करूँगा।

    हमारा मुल्क आजाद हुआ। सियासी तौर पर एक बोझा जो बाहरी हुकूमत का था वो हटा, लेकिन आजादी भी अजीब-अजीब जिम्मेदारियाँ लाती हैं और बोझे लाती है। अब उन जिम्मेदारियों का सामना हमें करना है और एक आजाद हैसियत से हमें आगे बढ़ना है। अपने बड़े-बड़े सवालों को हल करना है। सवाल बहुत बड़े हैं। सवाल हमारी सारी जनता के उद्धार करने के हैं। सवाल है गरीबी को दूर करना, बीमारी को दूर करना और आप जानते हैं कितनी और मुसीबतें हैं, जिनको हमें दूर करना है।

    आजादी महज एक सियासी चीज नहीं है। आजादी तभी एक ठीक पोशाक पहनती है जब उससे जनता को फ़ायदा हो। आजकल हमारे सामने यह आर्थिक और इख्तसादी सवाल बहुत सारे हैं, बहुत काफ़ी जमा हुए हैं। इस हमारे गुलामी के जमाने में बहुत कुछ इस लड़ाई की वजह से, बड़ी लड़ाई जो हुई है, दुनिया में और उसके बाद जो हालत दुनिया में है, उसकी वजह से यह सवाल जमा हैं। खाने की कमी है, कपड़े की कमी है और जरूरी चीजों की कमी है। ऊपर से चीजों के दाम बढ़ते जाते हैं, जिससे जनता की मुसीबतें बढ़ रही हैं। हम कोई इन सब बातों को जादू से तो दूर नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी हमारा पहला फ़र्ज है कि हम इन सवालों को हल करने की भी कोशिश करें।

    लेकिन इसके पहले एक और सवाल है और वह यह है कि हमारे सारे देश में अमन हो, शान्ति हो, आपस के लड़ाई-झगड़े बिलकुल बन्द हों, क्योंकि जब तक लड़ाई-झगड़े होते हैं उस वक्त तक कोई काम माकूल तरीके से नहीं हो सकता।

    तो यह मेरी आपसे पहली दरख्वास्त है और जो हमारी नई गवर्नमेंट बनी है उसमें भी आज यह पहली दरख्वास्त हिन्दुस्तान से की है। जो आप शायद कल सुबह के अखबारों में पढ़ेंगे, वह यह है कि फ़ौरन यह जो आपस की नाइत्तेफ़ाकी, आपस के झगड़े हैं, वह बन्द किए जाएं। क्योंकि आखिर अगर नाइत्तफ़ाकी है भी तो किस तरह से वह हल होगी, इन झगड़ों से और मारपीट से। आपने देख लिया कि एक जगह झगड़ा होता है, दूसरी जगह उसका बदला होता है। उसका कोई अन्त नहीं है और यह बातें कुछ आजाद लोगों को जेब नहीं देती है। ये गुलामी की बातें हैं, हमने कहा कि हम प्रजातंत्रवाद इस देश में चाहते हैं। प्रजातंत्र में फिर डैमोक्रेसी में इस तरह की बातें नहीं होती। हमें जो सवाल हों आपस में सलाह मशवरा करके, एक दूसरे का ख्याल करके उनको हल करना है, और उन पर अमल करना है अपने फ़ैसले पर। इसलिए पहली बात तो यही है कि हमें फ़ौरन अपने सारे वि़फ़स्म के झगड़े बन्द करने हैं। फिर फ़ौरन ही हमें वह बड़े आर्थिक सवाल उठाने हैं जिनका अभी मैंने आपसे जिक्र किया। हमारी जमीन बहुत सारे प्रान्तों में है। जो जमीन का कानून है, आप जानते हैं वह कितना पुराना है। कितना बोझा हमारे किसानों पर रहा है और इसलिए अरसे से हम उसको बदलने की कोशिश कर रहे हैं और यह जो जमीदारी प्रथा है, उसको भी हटाने की कोशिश कर रहे हैं। उसको भी जल्दी हमें समाप्त करना है और फिर सारे देश में बहुत कुछ आर्थिक तरक्की करनी है, कारखाने खोलने हैं, घरेलू धन्धे बढ़ाने हैं, जिससे देश की धन-दौलत बढ़े और इस तरह से नहीं कि थोड़े से जेबों में जाए, बल्कि आम जनता को उससे फ़ायदा हो। आप शायद जानते हो कि हमारे बड़े-बड़े स्कीम हैं, बड़े-बड़े नक्शे हैं। हिन्दुस्तान में बहुत सारी जो नदियां हैं, जो दरिया हैं उनके पानी की ताकत से फ़ायदा उठाकर हम नई-नई ताकतें पैदा करें, बड़ी-बड़ी नहरें बनाएँ और बिजली पैदा करें, जिस ताकत से फिर हम और बहुत काम कर सकेंगे। इन सब बातों को हमें चलाना है, तेजी से चलाना है, क्योंकि आखिर में देश की धन-दौलत इसी से बढ़ेगी और उसके बाद जनता का उद्धार होगा। बहुत सारी बातें मुझे आपसे कहनी हैं और बहुत सारी बातें मैं आपसे करूँगा, लेकिन आज सिफ़र् दो-चार बातें मैं आपके सामने रखना चाहता हूँ।

    मैं आशा करता हूँ कि मुझे आइन्दा मौके होंगे कि आपसे बात करता रहूँगा ज्यों-ज्यों हम काम कर रहे हैं ज्यों-ज्यों हमारे दिमाग में है, वह मैं पेश करूँ, क्योंकि प्रजातंत्रवाद हमेशा जनता को मालूम होना चाहिए कि क्या हम करते हैं, क्या हम सोचते हैं, उसको पसन्द करना चाहिए। इसलिए यह जरूरी है कि आपसे हमारा सम्बंध बहुत करीब का रहे।

    आज मैं अधिक नहीं कहना चाहता, लेकिन यह मैं जरूर चाहता था कि आज एक शुभ दिन कुछ न कुछ आपसे मैं कहूँ। कुछ न कुछ आपसे एक सम्बंध, पुराना सम्बंध ताजा करूँ। इसलिए मैं आज आपके सामने हाजिर हुआ। फिर से मैं आपको इस शुभ दिन की मुबारकबाद देता हूँ, लेकिन उसी के साथ आपको याद दिलाता हूँ कि हमारी जिम्मेदारियाँ जो हैं इसके माने हैं कि हमें आइन्दा आराम नहीं करना है, बल्कि मेहनत करनी है, काम करना है। एक दूसरे के सहयोग के साथ, तभी हम अपने बड़े सवालों को हल कर सकेंगे।

    जय हिन्द!

    15 अगस्त, 1948 को

    लालकिले की प्राचीर से

    प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू

    बहनों और भाइयों,

    जयहिन्द! याद है आपको सालभर हुआ जब हम यहाँ आए थे, इकट्ठा हुए थे। एक साल गुजरा और इस साल में क्या-क्या वाक्यात हुए, क्या-क्या हम पर बीती। बड़े-बड़े तूफ़ान आए और उस तूफ़ानी समुन्दर में बहुतों ने गोता खाया, लेकिन फिर भी हिन्दुस्तान ने उसका सामना करके अपने मजबूत बाजू से, उसको भी बहुत कुछ पार किया। बहुत कुछ उस साल में बातें हुई अच्छी और बुरी, लेकिन सबसे बड़ी बात जो इस साल हुई है, सबसे बड़ा सदमा जो हमको पहुँचा, वो है हमारे राष्ट्रपिता का गुजर जाना। पर साल जब इसी मौके पर मैं आपसे कुछ कह रहा था तो मेरा दिल हलका था और मैंने आपसे भी कहा था कि जो भी कुछ मुसीबतें या दिक्कतें हमारे सामने आएँ, हमारा एक जबरदस्त सहारा मौजूद है, जो हमेशा हमें सही रास्ता दिखाएगा और हमारी हिम्मत बढ़ाएगा। इसलिए हम बेपिफ़कर थे, लेकिन वो सहारा गया और हमें अपनी अक्ल पर और अपनी ताकत पर ही भरोसा करना है।

    मुनासिब था कि आज सवेरे हममें से बहुत से लोग राजघाट पर जाएँ और अपनी श्रद्धांजलि उस पवित्र मुकाम पर पेश करें। मुनासिब है, खाली आज नहीं कि हम ऐसे चुने हुए दिनों पर वहाँ जाएं और कुछ उनकी याद करें। मुनासिब तो तब हो कि अगर उनका सबक, उनका उपदेश हमारे दिल में खिंच जाए और उसी के ऊपर हम चलें और हिन्दुस्तान को चलाएं।

    30 बरस के करीब उन्होंने हिन्दुस्तान को आजादी का रास्ता दिखाया और हल्के-हल्के कदम-ब-कदम उन्होंने हिन्दुस्तान की ताकत बढ़ाई। हिन्दुस्तान की जनता के दिल में से डर निकाला और आखिर में हिन्दुस्तान को आजाद किया। उन्होंने अपना काम पूरा किया। हमने और आपने अपना फ़र्ज कितना अदा किया और पूरा किया। हमारे ऊपर बड़े-बडे़ खतरे और मुसीबतें आईं, लेकिन मेरा यह ख़्याल है और यकीन है कि अगर हम उनके रास्ते पर पक्की तौर से रहते तो खतरे भी नहीं आते और आते भी तो जल्दी से खत्म हो जाते।

    इसलिए पहली बात जो मैं आपसे कहना चाहता हूँ वह यह है कि आज के दिन ख़ास तौर से और यों रोज आप याद करें क्या वो उसूल, क्या वो सिद्धांत हैं, जिन पर चलकर हमने हिन्दुस्तान को आजाद किया, आपने और हमने। और हम उन पर कायम हैं या हम किसी और रास्ते पर चलना चाहते हैं। जहाँ तक मेरा ताल्लुक है उस पर मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि जितना ज्यादा मैंने इस पर सोचा है उतना ही मुझे यकीन हुआ है कि हिन्दुस्तान की आजादी कायम रखने का, हिन्दुस्तान की तरक्की के लिए, हिन्दुस्तान को दुनिया में बड़ा मुल्क बनाने के लिए बड़ा खाली लम्बान और चौड़ान में नहीं, बल्कि ऐसे मुल्क जो बड़े काम करता है और जिसकी इज्जत एक दुनिया में होती है। इन बातों को करने के लिए हमें खुद बड़ा होना पड़ेगा, हमें खुद उस रास्ते पर चलना पड़ेगा जो महात्मा जी ने हमें दिखाया था।

    क्या चीज़ है हिन्दुस्तान? हिन्दुस्तान एक बहुत जबरदस्त चीज़ है जो कि हजारों बरस पुरानी है, लेकिन आखिर में हिन्दुस्तान आज क्या है सिवाय इसके कि जो आप हैं और मैं हूँ और जो लाखों और करोड़ों आदमी इस मुल्क में बसते हैं। अगर हम भले हैं, मजबूत हैं तो हिन्दुस्तान मजबूत है और अगर हम कमजोर हैं तो हिन्दुस्तान कमजोर है। अगर हमारे दिल में ताकत है और हिम्मत है और कुव्वत है, तो हिन्दुस्तान की वो ताकत हो जाती है। अगर हममें फ़ूट है, लड़ाई है, कमजोरी है तो हिन्दुस्तान कमजोर है। कोई अलग चीज हमसे हिन्दुस्तान नहीं है, हम एक हिन्दुस्तान के छोटे टुकड़े हैं, उसकी औलाद हैं और उसी के साथ याद रखिए, कि जो हम आज सोचें और जो कार्यवाही करें उससे कल का हिन्दुस्तान बनता है। बड़ी जिम्मेदारी आप पर और हम पर है, ‘जयहिन्द’ हम पुकारते हैं, और भारत माता की जय, लेकिन जयहिन्द तो तब हो जब हम सही रास्ते पर चलें, सही खिदमत करें और हिन्दुस्तान में ऐसी बातें न करें जिससे इसकी शान कम हो, वो कमजोर हो।

    इस पिछले साल में हमने बड़ी मुसीबतों पर हम हावी हुए, इसमें कोई शक नहीं कि बड़ी-बड़ी गलतियाँ हमसें हुई, बहुत कमजोरियाँ हमने दिखाईं और बहुत हम बहक गए अपने सही रास्ते से। हम हिन्दुस्तान को भूल गए, अपने-अपने फिरके का, अपने-अपने सूबे की बातें सोचने लगे, अब खुदगर्जी में पड़ गए और अगर हम खुदगर्जी में और नफ़रत में और लड़ाई-झगड़े में पड़े तो मुल्क गिरता है, लेकिन फिर भी इन बातों की हमने बहरित की और हम इस सालभर के बाद खाली नई आजादी के साथ जिन्दा नहीं है, मजबूती से जिन्दा हैं, तगड़े हैं और हमारी हिम्मत काफ़ी है।

    तो इस वक्त आजकल की दुनिया में और हिन्दुस्तान में जब कि फिर भी लड़ाई का चर्चा है, कहीं लड़ाई हो रही हैं, कहीं लड़ाई का जिक्र है आइन्दा का, हम किधर देखें और क्यों करें? आज के दिन खासतौर से मैं कोई आपसे लड़ाई-झगड़े की बात नहीं कहना चाहता। हाँ, इतना कहूँगा, जो लोग आजादी चाहते हैं, उनको हमेशा अपनी आजादी की हिफ़ाजत करने के लिए, अपनी आजादी को बचाने का और उसके लिए अपने को न्यौछावर करने के लिए तैयार रहना चाहिए। जहाँ कोई कौम गफ़लत खाती है, वो कमजोर होती है, और वह गिर जाती है इसलिए हमें हमेशा तैयार रहना है। लेकिन यह कह कर, यह भी मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हमारा मुल्क इसलिए अपनी फ़ौज को लड़ाई के लिए नहीं तैयार करती कि किसी को गुलाम बनाए, बल्कि अपनी आजादी को बचाने के लिए और अगर जरूरत हो तो दुनिया की आजादी में मदद करने को।

    बहुत दिन तक हम गुलाम रहे, हमें गुलामी से नफ़रत हुई तो हम औरों को गुलाम कैसे बना सकते हैं। इसलिए आज के दिन मैं खासतौर से आपको अमन की बात कहना चाहता हूँ, क्योंकि बुनियादी सबक जो महात्मा जी ने हमें सिखाया वो अमन की ओर, वो शांति का, वो अहिंसा का है, मुमकिन है कि हम अपनी कमजोरी से पूरी तौर से उस रास्ते पर नहीं चल सके, लेकिन फिर भी बहुत कुछ हम चले और दुनिया में हिन्दुस्तान की एक जबरदस्त इज्जत है इस वक्त, क्यों है? कभी आपने सोचा? आपने और हमने कुछ काम किए, कभी भले, कभी बुरे, लेकिन दुनिया अगर हिन्दुस्तान के सामने झुकती है, इज्जत करती है तो वो एक आदमी की वजह से, वो बड़ा आदमी जिसने हमें आजादी तक पहुँचाया, उसने दुनिया का सिर झुकाया तो फिर दुनिया तो उसके सामने झुकी, और हम उसके सबक को भूल जाएं? यह कहाँ तक मुनासिब है? और उनके सबकी बुनियाद यह थी कि हम मिलकर काम करें, बाअमन तरीकों से रहें, आपस में इत्तिहाद हो, मजहबी झगड़े न हों अपने मुल्क में और दुनिया में।

    मालूम है आपको इस हिन्दुस्तान की हजारों बरस की तारीख में और इतिहास में क्या चीज उभरती है, क्या चीज बुनियादी भारत की सभ्यता है? वो यह कि बर्दाश्त करना, वो यह है कि मजहबी लड़ाइयाँ न लड़ना, वो यह कि जो कोई आए उससे प्रेम से बर्ताव करना, उसको अपनाना। तो ऐसे मौके पर, जबकि हम आजाद हुए हैं, क्या हम अपने देश का हजारों बरस का सबक भूल जाएँ और अगर भूलें तो फिर हिन्दुस्तान बड़ा मुल्क नहीं रहेगा, छोटा होगा।

    हमने और आपने ख़्वाब देखे हिन्दुस्तान की आजादी के उन ख्वाबों में क्या था? यह तो नहीं था खाली कि अंग्रेज कौम यहाँ से चली जाए और हम फिर एक गिरी हुई हालत में रहें। वो स्वप्न जो थे, वो थे कि हिन्दुस्तान में करोड़ों आदमियों की हालत अच्छी हो, उनकी गरीबी दूर हो, घर मिले रहने को, कपड़ा मिले पहनने को, खाना मिले, पढ़ाई मिले सब बच्चों को और मौका मिले हर एक शख्स को हिन्दुस्तान में वो तरक्की कर सके, मुल्क की खिदमत करे, अपनी देखभाल कर सके और इस तरह से सारा मुल्क उठे। मुल्क उठते नहीं हैं थोड़े आदमियों की ऊँची हुकूमत की कुर्सी पर बैठने से, मुल्क उठते हैं जब करोड़ों आदमी खुशहाल होते हैं और तरक्की कर सकते हैं। हमने ऐसा स्वप्न देखा और उसी के साथ जब यह दरवाजे खुलेंगे हिन्दुस्तान के करोड़ों आदमियों के लिए तो उसमें लाखों ऐसे निकलेंगे ऊँचे दर्जे के लोग, जो कि नाम हासिल करेंगे और दुनिया पर असर पैदा करेंगे।

    वो बातें अभी दूर हैं, क्योंकि हम उन झगड़ों-फ़सादों में मुबतिला हो जाएं, फ़ँस गए, लेकिन उस काम को हमें पूरा करना है, जब तक हमारा वो काम पूरा नहीं हुआ, उस समय तक हमारी आजादी भी पूरी नहीं हुई, उस वक्त तक दिल खोलकर हम जय हिन्द भी नहीं कह सकते।

    इसलिए आप और हम जो इस वक्त अपनी मुसीबतों में गिरफ्रतार हुए इस दिल्ली शहर में और कहाँ-कहाँ हिन्दुस्तान के कितने हमारे शरणार्थी भाई और बहिन मुसीबत में हैं। कुछ का इन्तजाम हुआ और कितने और आजकल हैं मुसीबत में। जो हर चीज की कीमत बढ़ जाने की वजह से मुसीबत फ़ैली है आम जनता उनमें फ़ँसी है। यह सब बड़े-बड़े सवाल हैं। हम जो एक हुकूमत की कुर्सी पर बैठे हैं, जिम्मेदारी हमारी है, लेकिन यह भी आप याद रखें एक आजाद मुल्क में कोई बड़े-बड़े सवाल हल नहीं हो सकते, जब तक कि आम जनता का उसमें पूरा हल करने का सहयोग न हो और मदद न हो। खाली आपको हक है कि आप नुक्ताचीनी करें और आप एतराज करें। कोई खामोशी से मुल्क नहीं चलते हैं कि हर एक आँखें बन्द करके हर बात मंजूर कर लें। लेकिन अगर आप आजाद कौम हैं तो खाली ऐतराज करने से काम नहीं चलता। उस बोझे को उठाना है, सहयोग करना है मदद करनी है और अगर हम सब इस तरह से करें, तो बड़े से बड़े मसले हल होंगे। आप यहाँ लाखों की तादाद में जमा हैं। आप अपने से पूछें एक-एक मर्द, औरत, लड़का और लड़की क्या आपने हिन्दुस्तान की खिदमत की। रोज-रोज क्या छोटी और बड़ी बातें आपने की? क्योंकि पहला फ़र्ज आपका यह है कि हमारा और आपका काम कि हिन्दुस्तान की खिदमत कुछ न कुछ करें। अगर कुछ न कुछ हम करें तो वो मिलकर एक बहुत बड़ी ताकत हो जाती है, बहुत आदमी करें, लेकिन अगर हम यह समझें कि यह सारी जिम्मेदारी कुछ अफ़सरों की है, हुकूमत की कुर्सी पर जो लोग बैठे हैं उनकी है, तो यह गलत बात है। आजाद मुल्क इस तरह से नहीं चलते, गुलाम मुल्क इस तरह से सोचते हैं और इस तरह से चलाए जाते हैं। जब गैर मुल्क के लोग हुकूमत करें, वो जो चाहे करें, लेकिन आजाद मुल्कों में, आजादी अगर आप चाहते हैं, आजादी के फ़ायदे चाहते हैं तो आजादी की जिम्मेदारियाँ भी ओढ़नी पड़ती हैं। आजादी के बोझे भी ओढ़ने पड़ते हैं, आजादी का निजाम और डिसिप्लिन भी आपको उठाना चाहिए।

    हम अभी तक इस बात को पूरी तौर से भूले नहीं, पुरानी अपनी आदतें जो गुलामी के जमाने की थी और हम समझते हैं बगैर हमारे कुछ किए ऊपर से सब बातें हो जानी चाहिए, तो मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि आप अगर आजाद हुए तो फिर एक आजाद कौम की तरह से हर एक को चलना है और उस जिम्मेदारी को ओढ़ना है, उस बोझे को उठाना है। हमारे अफ़सर हैं हुकूमत के, पुराने हैं नए हैं। उनसे भी मैं कुछ कहना चाहता हूँ। वो जो पुराने थे बहुत कुछ उनमें अच्छाई थी वो हमें रखनी है। और बहुत कुछ उनमें बुराई थी वो उन्हें छोड़नी है। अब पुराने ढंग से काम नहीं कर सकते, क्योंकि उन्हें इस मुल्क को बनाने में मदद करनी है। उन्हें जनता के साथ सहयोग करने में मदद करनी है, उनको जनता का सहयोग अपनी तरफ़ खींचना है। इसलिए अब आजकल आप जानते हैं एक बदनामी भी है हमारे गवर्नमेंट के काम की हर तरफ़। तो जो हमारे बड़े अफ़सर और छोटे अफ़सर हैं, मैं चाहता हूँ वो सोचें और समझें कि एक इम्तेहान का वक्त है उनका, जैसे हमारा और हर एक का और खासकर के हरेक शख्स का जो कि एक जिम्मेदारी की जगह है, और वो अपने काम को एक सच्चाई से, ईमानदारी से और जिम्मेदारी से करे और बगैर किसी की तरफ़दारी किए, क्योंकि जहाँ कोई अफ़सर या जिम्मेदार शख्स तरफ़दारी करता है तो वो अपने जगह के काबिल नहीं रहता। हमें काबिल आदमी चाहिए बड़े-बड़े काम करने के लिए, लेकिन काबिलियत से भी ज्यादा जरूरी बात है सच्चाई, इमानदारी और एक सेवा का भाव। अगर हम खिदमत ठीक नहीं करते और अगर हममें सच्चाई नहीं तो फिर हमारी काबिलियत हमें किधर ले जाएगी। वही काबिलियत से मुल्क में और नुकसान हो सकता है, इसलिए अव्वल सबक है, जो हमें याद करना है वो यह है कि हमें इस मुल्क को चलाना है सच्चाई के रास्ते पर और सच्चाई का रास्ता एक बुनियादी सबक था, जो महात्मा जी ने हमें सिखाया था। जिस पर कमोवेश और इत्ते बरसों चले, जिससे हिन्दुस्तान की तरफ़ देखते हैं। क्योंकि हमने अपनी सियासत में एक ढंग दिखाया। आमतौर से समझा जाता था कि सियासत एक फ़रेब की चीज है एक झूठ बोलने की, लेकिन हिन्दुस्तान की सियासत जो गाँधी जी ने हमें सिखायी उसमें झूठ और फ़रेब उन्होंने नहीं रखा था। लोग अब भी समझते हैं कि चालबाजी से मुल्क बढ़ते हैं। चालबाजी से न इन्सान बढ़ते हैं, न मुल्क बढ़ते हैं, शायद थोड़ा उससे कभी फ़ायदा हो जाए। खासकर जो मुल्क बड़े होने की जुर्रत रखते हैं दुनिया में, वह धोखा देकर चाल देकर इस तरह से आगे बहुत नहीं बढ़ सकते। वो अपनी हिम्मत से और सच्चाई और बहादुरी से और खिदमत से बढ़ते हैं। इसलिए यह सबके आम-खास गौर से हमें याद रखना है इस वक्त और हमारे दिल में जो एक रंजिश है, जो एक अदावत है, उसको भी निकालना है। ठीक है कोई खतरा आए और अगर कोई हमारा दुश्मन है तो उसका सामना हम करेंगे। लेकिन अगर दिल में हम रंजिश रखें और अदावत रखें, हसद रखें और गुस्सा रखें तो हमारी ताकत जाया हो सकती है और हम बहुत काम नहीं कर सकते।

    राजनीति क्या चीज है और देश का काम क्या चीज है? राजनीति एक नीति है, लेकिन आखिर में देश चलता है उस तरफ़ जिधर लाखों और करोड़ों आदमी काम करते हैं, काम करके चलाते हैं। देश का सब काम होता है, उन करोड़ों आदमियों के छोटे-मोटे काम को मिलाकर। देश की दौलत क्या है? जो आप लोग सब और देश के लोग अपनी मेहनत से कमाते हैं। कोई दौलत ऊपर से तो नहीं आती है। यानी देश का काम मजमूया है करोड़ों आदमियों के कामों का। अगर हम देश की गरीबी निकालेंगे तो हमें अपनी मेहनत से काम करके दौलत पैदा करके उसको कर सकते हैं। लोग समझते हैं कि कहीं बाहर से दौलत आए, उसका हम बँटवारा करें। चारों तरफ़ से माँगे आएँ चाहे प्रान्त हो, चाहे संस्था हो, वह पैसा कहाँ से आता है? जनता की मेहनत से आता है। जो मेहनत से जनता कमाती है जो खेत में जमींदार किसान कमाता है, जो कारखाने में कमाता है, जो दुकान में कमाता है, इस तरह से देश की दौलत बढ़ती है और देश तरक्की करता है। इसलिए हमें हमारे और आपके लिए अगर हम चाहते हैं देश तरक्की करें तो औरों को सलाह देने से काम नहीं चलता, बल्कि यह देखने से कि हम क्या कर रहे हैं इस देश को आगे बढ़ाने में, हम अपने काम से और सेवा से इस देश को कितना बढ़ाते हैं और उसकी दौलत को कितना जमा करते हैं और अगर इस ढंग से हम देखें तो हम अपने देश को तेजी से बढ़ाएंगे मजबूत करेंगे और दुनिया में एक आलीशान देश बनाएंगे और अगर खाली होंगे लड़ाई-झगड़ा आपसी और औरों के साथ, तब हम कमजोर रहेंगे और दुनिया जो हमारी कदर करती थी महात्मा जी की वजह से, वो भी कदर कम करने लगेगा।

    इसलिए आज का दिन ठीक है कि हम सोचें कि किस तरह से अक्सर हम मुसीबतों पर हावी हो आए पिछले साल। ठीक है वो बड़े-बड़े काम इस साल हुए उनको हम सोचें और समझें और सोचें और गुरूर भी करें उस पर, कौमी गुरूर, कोई इन्सानी गुरूर नहीं। लेकिन और भी ज्यादा ठीक है कि अगर हम अपनी कमजोरी की तरफ़ और जो-जो बातें रह गई उनकी तरफ़ देखें जो गलत बातें हुई पिछले जमाने में, उनको देखें और देखकर उनको दूर करने की कोशिश करें और खासतौर से जो सिद्धान्त और उसूल हमारे सामने रहे हैं उनको फिर साफ़ करें, धुंधला न होने दें और उस रास्ते पर जो कि हमारे राष्ट्रपिता ने हमारे सामने रखा उस रास्ते पर चलें। वो बड़ा जहर जिसने आकर हिन्दुस्तान को इतना तबाह किया, हिन्दुस्तान के टुकड़े किए और हिन्दुस्तान में फ़ैला, उसको इस मुल्क में नहीं बढ़ने दें और मैं चाहता हूँ आपको आगाह करना इस बात से पूरी तौर से, क्योंकि हम एक दफ़े गफ्रलत में पड़े और उस जहर ने फ़ैलकर काफ़ी हिन्दुस्तान को नुकसान पहुँचाया और आखिर में वो जबरदस्त सदमा हमको पहुँचाया कि हमारे देश के राष्ट्रपिता, उनको खत्म किया। उसका एक जबरदस्त असर देश पर हुआ, और होना ही था, लेकिन लोगों की यादें बहुत दूर तक नहीं चलती हैं और जल्दी भूल जाते हैं वो, और मैं देख रहा हूँ फिर से कुछ लोग भटक रहे हैं, मैं देख रहा हूँ फिर से कुछ गलत लोग सिर उठा रहे हैं, मैं देख रहा हूँ फिर से उनकी आवाजें उठ रही हैं जो कि जनता को धोखा दे सकती हैं।

    तो मैं चाहता हूँ आप इस पर सोचें और समझें क्योंकि यह खतरनाक बात है। मुझे आज नहीं जब से मैं हिन्दुस्तान की खिदमत करता हूँ, मुझे एक भरोसा था, मुझे यकीन था, इत्तेफ़ाक था कि हिन्दुस्तान एक जबरदस्त आजाद मुल्क होगा। कोई ताकत आखिर में इसको रोक नहीं सकती। क्योंकि जिस ताकत को हम बना रहे हैं वो एक अन्दर ही हमारे दिल की ताकत थी। वो कोई एक महज ऊपरी हथियार की खाली नहीं थी। मुझे भरोसा रहा और इस भरोसे और यकीन पर मैंने काम किया और इस भरोसे और यकीन पर मैं आज काम करता हूँ, लेकिन जब मैं देखता हूँ, इस तरह के गलत रास्ते दिखाना लोगों को, गलत ख्याल पैदा करना, तंगख्याली पैदा करना और इस तरह साम्प्रदायिकता को फ़ैलाना, तब मुझे दुख होता है और रंज होता है, शक होता है कि हमारे बाजू भाई और बहिन कहाँ भूले-भटके फिरते हैं। कहते हैं कि वो भारत को बढ़ाएंगे और लेकिन भारत की जड़ को खोदते हैं और भारत की शान पर धब्बा डालते हैं। इसलिए आप अगाह होइये इस बात से कि अगर कोई चीज भारत को नुकसान पहुँचा सकती है तो हमारे दिल की कमजोरी और हमारे दिल का छोटापन, कोई बाहर का दुश्मन नहीं पहुँचा सकता है। हमारी काफ़ी ताकत है और काफ़ी हमारी ताकत बढ़ेगी। लेकिन अगर हम अपने को ही भूल जाएं, अपने बड़े बुजुर्गों के सबक को भूल जाएं और अपने इतिहास को भूल जाएं तब बाहर के दुश्मन की क्या जरूरत हुई। फिर तो हम खुद ही खुदकुशी करते हैं। इसलिए इस बात को आप याद रखें और इस जहर को जिसने हिन्दुस्तान को इतना कमजोर किया है, उसको अपने पास न आने दें। उस जहर ने एक तरफ़ से बढ़कर हिन्दुस्तान के टुकड़े किए, उस जहर ने फिर इस हिन्दुस्तान में फ़ैलकर हमें कमजोर किया और एक ऐसा ध क्का लगाया और इतना जलील किया कि दुनिया के सामने हमें सर झुकाना पड़ा। फिर अगर आज के दिन हम इन बातों को सोचें और इन बातों को सोचकर हम अपने दिल को साफ़ करें, दिल को मजबूत करें और फिर से अपनी पुरानी प्रतिज्ञा लें, देश की खिदमत करने की, सच्चाई से और महात्मा जी के रास्ते पर चल के। तब आज का दिन भला है और तब हमें हक है ‘जयहिन्द’ करने का, लेकिन अगर हम इस बात को नहीं समझते और अपने झगड़ों में और तंगहाली में पड़े हैं, तब आज का दिन मुबारक आपको नहीं होगा।

    तो मैं आशा करता हूँ कि आप और हम घर जाएंगे यहाँ से और अपने काम-धन्धों में लगेंगे, लेकिन उस काम-धन्धे के साथ हम सोचेंगे कि आखिर में हम जिस देश में पैदा हुए, तो क्या हमारा कर्तव्य है? क्या इस पिछले जमाने में एक महापुरुष हमारे देश में आया था? जिसने दुनिया को जगाया हिन्दुस्तान को तो आजाद किया और आगे बढ़ाया, क्या उसने किया, क्या सबक सिखाया, क्या हम उसके रास्ते पर चलते हैं कि नहीं? इन बातों को आप पूछिए अपने दिल से और इस बात का आप इरादा कर लीजिए कि आप कुछ भी करेंगे कोई बुरी बात नहीं होगी, कोई इंसान या कोई मुल्व़फ़ कीचड़ में से हो के अपने को ऊँचा नहीं करता है। घुटने के बल चलके और सिर झुका के हम आगे नहीं जाना चाहते। हम तन के, शान से जो सच्ची बात है उसको कहकर और सच्चाई के रास्ते पर चलकर आगे बढ़ें तो हमारी ताकत भी बढ़ेगी और दुनिया में हमारी इज्ज़त भी बढ़ेगी। उस वक्त किसी दुश्मन की हिम्मत ही नहीं होगी कि हमारा सामना करें। इन बातों को आप याद रखें और उनको याद रख के आज का दिन मनाएं और फिर से जब एक साल गुजरेगा और हम और आप यहाँ या कहीं मिलें तो उस वक्त में उम्मीद करता हूँ कि हम हिन्दुस्तान को ही ज्यादा ऊँचा पाएँगे। हिन्दुस्तान के सवाल सब हल तो नहीं हो जाएंगे, लेकिन हल होने के रास्ते पर होंगे और हमारे आम जनता की मुसीबतें कम होंगी।

    आखिर में यह आप याद करें कि हम लोग एक जमाने से, जहाँ तक हममें ताक़त थी और कुव्वत थी हमने हिन्दुस्तान की आजादी की मशाल को उठाया, हमारे बुजुर्गों ने उसको हमें दी थी। हमने अपने ताकत के बमूजिब उसको उठाया, लेकिन हमारा जमाना भी अब हल्के-हल्के खत्म होता है। आपके ऊपर उस मशाल को उठाने का और जलाए रखने का बोझ होगा। आप जो कि हिन्दुस्तान की औलाद हैं, हिन्दुस्तान के रहने वाले हैं, चाहे आपका मज़हब कुछ हो, चाहे आपका सूबा या प्रान्त कुछ हो, आखिर में आपका फ़र्ज है कि उस मशाल को जला के रखने का शान से और वह मशाल आजादी की है और अमन की और सच्चाई की।

    याद रखिए लोग आते हैं, जाते हैं और गुजरते हैं, लेकिन मुल्क और कौमें अमर होती हैं, वह कभी गुजरती नहीं है जब तक कि उनमें जान है, जब तक कि उनमें हिम्मत है। इसलिए इस मशाल को आप कायम रखिए और जलाए रखिए। अगर एक हाथ कमजोरी से हटता है, तो हजार हाथ उसको उठाकर जलाए रखने को हर वक्त हाजिर हों।

    ‘जय हिन्द’

    15 अगस्त, 1949 को

    लाल किले की प्राचीर से

    प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू

    बहनों और भाइयों,

    जरा आप शांत हो जाइये। दो वर्ष हुए मैंने यहां लाल किले पर इस झण्डे को फहराया था। दो बरस गुजरे, हमारी और आपकी जिन्दगी में, और दो बरस हिन्दुस्तान के, भारत की हजारों वर्ष की कहानी में दो वर्ष और जोड़ दिये गये। इन हजारों वर्षों में दो वर्ष का वक्त कुछ बहुत नहीं है, कीमत नहीं है, लेकिन इन दो वर्षों में हमने और आपने और सारे देश ने बहुत कुछ ऊँच और नीच देखा, बहुत खुशियां मनाई और बहुत रंज और दुःख भी हुआ। हम और आप चंद

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