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जलती मशाल: Revolution/Poetry/General, #1
जलती मशाल: Revolution/Poetry/General, #1
जलती मशाल: Revolution/Poetry/General, #1
Ebook191 pages54 minutes

जलती मशाल: Revolution/Poetry/General, #1

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काव्य संग्रह "जलती मशाल" वास्तविक मेरे लिए एक स्वप्न लोक जैसा था क्योंकि कुछ वर्ष पहले तक मैंने कभी विचार नहीं किया था कि मैं कभी कुछ लिख पाऊँगा,मेरी कोई काव्य संग्रह भी निकलेगी। मेरे मन में असीम संभावनाएं-जिज्ञासाएं उत्पन्न होती थी किंतु लेखन शैली का दूर-दूर तक कोई नाता नही था,न ही मेरे आस-पास में कोई ऐसे व्यक्ति थे जिनसे मैं कुछ सीख पाता या जिनसे कुछ दिशा-निर्देशन ले पाता। फिर वक्त के थपेड़ों ने मुझे इस कदर बदला कि आज कुछ न कुछ जरूर लिख लेता हूँ कोरोना काल में जब प्रथम लॉकडाउन लगा था जिसमें असंख्य लोग पैदल चलने को मजबूर हो गए थे उन्हीं को समर्पित मेरी पहली कविता रही और तब से लेकर आज तक इन दो वर्षों में मैंने अपनी जिंदगी में जितने भी समस्याएं देखा,अनुभव किया उन सब को कविता का आकार देने लगा आज वही काव्य संग्रह का रूप धारण कर रही है जो मेरे लिए बहुत ही आनंद और गौरव का क्षण है। यह काव्य संग्रह दरिद्रों पीड़ितों शोषित जनों के लिए एक नई उमंग तथा उनकी स्थितियों में बदलाव लाने के लिए महत्वपूर्ण होगी तथा उनके प्रति समाज में दया करुणा व समानता का भाव जागृत होगा।
जिसके लिए मैं गुरु घासीदास बाबा तथा महामानव बाबा साहेब को नमन करते हुए अपनी माताजी- शशि खुंटे पिताजी- हरनारायण खुंटे जी के चरणों में यह काव्य संग्रह सादर समर्पित करता हूँ तथा मेरे सभी गुरुजन, इस काव्य संग्रह की भूमिका लिखने वाले बड़े भैया आदरणीय राकेश बंजारे जीसूचित सायटोन्डे (संपादक विवेक एक्सप्रेस), डॉ.ओंकार साहू " मृदुल", शशिभूषण "स्नेही", अशोक पटेल "आशु", मेरे कविताओं के समीक्षक रहे बड़े भैया डिकेश दिवाकर जी,मुझे हमेशा प्रोत्साहित करने वाले बड़े भैया चंद्रहास खुंटे,अमित बघेल जी,मेरे परम मित्र गुरुदेव डहरिया,विक्की बघेल तथा उन सभी पाठक,साहित्य संगठनों व पत्र-पत्रिकाओं का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ  जिन्होंने मेरे कविता को प्रमुखता से स्थान देकर मेरा हौसला अफजाई किया है।
सादर आभार! धन्यवाद!

Languageहिन्दी
Release dateDec 16, 2022
ISBN9789394807174
जलती मशाल: Revolution/Poetry/General, #1

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    जलती मशाल - Chandrakant Khunte "Kranti"

    जलती मशाल

    चन्द्रकांत खुंटे 'क्रांति'

    ISBN: 978-93-94807-17-4

    मूल्यः 249.00 रुपये

    प्रथम संस्करण-2022

    © & ® चन्द्रकांत खुंटे 'क्रांति'

    प्रकाशकः

    ऑथर्स ट्री पब्लिशिंग

    AUTHORS TREE PUBLISHING

    W/13, Aman Vihar, Housing Board Colony,

    Near Colonel Academy School, Bilaspur,

    Chhattisgarh 495001, India.

    Mobile: +91 91098 86656

    मुद्रकः ऑथर्स ट्री पब्लिशिंग

    यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि लेखक या प्रकाशक की लिखित पूर्वानुमति के बिना इसका व्यावसायिक अथवा अन्य किसी भी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। इसे पुनः प्रकाशित कर बेचा या किराए पर नहीं दिया जा सकता तथा जिल्दबंद या खुले किसी भी अन्य रूप में पाठकों के मध्य इसका परिचालन नहीं किया जा सकता। ये सभी शर्तें पुस्तक के खरीदार पर भी लागू होंगी। इस संदर्भ में सभी प्रकाशनाधिकार सुरक्षित हैं।

    इस पुस्तक का आंशिक रूप में पुनः प्रकाशन या पुनः प्रकाशनार्थ अपने रिकॉर्ड में सुरक्षित रखने, इसे पुनः प्रस्तुत करने की पद्धति अपनाने, इसका अनूदित रूप तैयार करने अथवा इलैक्ट्रॉनिक, मैकेनिकल, फोटोकॉपी और रिकॉर्डिंग आदि किसी भी पद्धति से इसका उपयोग करने हेतु समस्त प्रकाशनाधिकार रखनेवाले अधिकारी तथा पुस्तक के लेखक या प्रकाशक की पूर्वानुमति लेना अनिवार्य है।

    ––––––––

    Printed in India

    जलती मशाल

    चन्द्रकांत खुंटे 'क्रांति'

    भूमिका

    विसंगतियों पर प्रहार करती प्रगतिवादी चिंतन का संग्रह

    एक गांव जहां से एक महत्वपूर्ण सामाजिक निर्णय का मैसेज पूरे छत्तीसगढ़ में तेजी से वायरल हुआ। निर्णय था, पूरे गांव में मृत्यु भोज के प्रतिबंध का। इस प्रगतिवादी आधुनिकता पूर्ण विचार एवं निर्णय को जिसने भी पढ़ा, वह इस इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह सका।

    गांव का नाम था लोहर्सी, जो पामगढ़, जिला जांजगीर चांपा के अंतर्गत आता है। युवा क्रांतिकारी कवि भाई चंद्रकांत खूंटे, उसी लोहर्सी गांव की पावन मिट्टी की उपज हैं।

    जिस गांव से ऐसी सोच ऊपजी हो, उस गांव के साहित्यकार की रचना में प्रगतिवादी सोच स्वमेव ही घुला हो, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

    चंद्रकांत भाई उसी प्रगतिशील सोच के विचारक कवि एवं कलमकार हैं। आपकी रचनाओं को पढ़ना, नेपथ्य में रहकर, तटस्थ होना नहीं, बल्कि संग-संग चलना है, दौड़ना है, छलांग लगाना है और विसंगतियों के विरुद्ध पुरजोर तरीके से आवाज उठाना है।

    चंद्रकांत भाई की रचनाएं कई भावों को लिए हुए हैं लेकिन अंधविश्वास के विरुद्ध हुंकार, सामाजिक विसंगतियों पर करारा प्रहार, लोकतंत्र, संविधान, समता, स्वतंत्रता और मातृभाव की भावनाएं युक्त रचना, प्रमुखता से परिलक्षित होते हैं।

    वे अपनी भी खामियों एवं कमजोरियों को छुपाते नहीं, बल्कि बेबाक कहते हैं...

    जन्म से ही सफर कर रहा हूं।

    खामियों को नजर कर रहा हूं।।

    थम-थम के चलता हूं राहों पर।

    मुश्किलों का कदर कर रहा हूं।।

    लोगों के दर्द भरी भावनाओं को उन्होंने 'मेघा रात' में यूं व्यक्त किया है....

    एक दरिद्र कृषक का, जागृत- जागृत व्यतीत रात।

    गहरी चिंतन में लगे, कैसे सुखमय बेला बरसात।।

    वर्षा की बूंदों से मौसम, भर-भर के देती आघात।

    भारी टपकते छत-छप्पर, वक्त रजनी से प्रभात।।

    आधुनिक शहरीकरण पर बगैर आरोप लगाए वे अंदरुनी पीड़ा से कराहते हैं.....

    किशोरा गुजरे नहीं युवा उमर आ गए।

    खिलौना छूटे भी न थे हमसफ़र पा गए।।

    अभी-अभी गांव से कदम बढ़ाए ही थे।

    जैसे-तैसे निकलकर देखे तो शहर आ गए।।

    आसपास के अंतरनाद से कवि का हृदय कैसा द्रवित है यह 'दरिद्रता का एहसास' में दिखाई देता है.....

    अक्सर लोग भजन सुना करते हैं।

    मुझे कराह सुनाई दिया करते हैं।।

    नन्हे बिलखते मासूमों के दर्द भरे।

    मुझे संताप सुनाई दिया करते हैं।।

    तुझे पत्थरों में भगवान नजर आते हैं।

    मुझे दुखियों में दिखाई दिया करते हैं।।

    और जब जन समस्याओं का अंबार पीड़ा पहुंचाता है। जब सहनशीलता जवाब दे देती है तब वे कहते हैं.....

    जा रही है जान भूख की लाचारी पर।

    मंहगाई बढ़ रही गलत ओहदेदारी पर।।

    दरिद्र का इलाज रोटी कपड़ा मकान है।

    शासन मुकर रही अपनी जिम्मेदारी पर।।

    इसी क्रांति का वे आह्वान करते हैं....

    आओ आओ आह्वान करता हूं

    हे दरिद्र श्रमिक!

    तुम्हें धरती का भगवान कहता हूं।

    आओ आकर धरा को सजाओ

    नन्हे कोमल हाथों से

    इस जग को सिरजाओ।।

    ऐसा नहीं है कि चंद्रकांत खूंटे केवल क्रांति, आंदोलन और परिवर्तन की ही बात करते हों, वे अंततः सकारात्मक चिंतन और सृजन का आग्रह करते हैं।

    युवा क्रांतिकारी कवि भाई चंद्रकांत खूंटे का निर्माण, सृजन, सकारात्मक परिवर्तन का सपना यथार्थ रुप ले, उनकी प्रथम कृति के प्रकाशन अवसर पर यही अशेष शुभकामनाएं हैं.....

    राकेश नारायण बंजारे

    खरसिया (छत्तीसगढ़)

    आभार वंदन

    काव्य संग्रह जलती मशाल वास्तविक मेरे लिए एक स्वप्न लोक जैसा था क्योंकि कुछ वर्ष पहले तक मैंने कभी विचार नहीं किया था कि मैं कभी कुछ लिख पाऊँगा,मेरी कोई काव्य संग्रह भी निकलेगी। मेरे मन में असीम संभावनाएं-जिज्ञासाएं उत्पन्न होती थी किंतु लेखन शैली का दूर-दूर तक कोई नाता नही था,न ही मेरे आस-पास में कोई ऐसे व्यक्ति

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