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अर्थ
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Ebook134 pages27 minutes

अर्थ

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"अर्थ" मुक्त विचारों और अनुत्तरित प्रश्नों की अंतर्दृष्टि देने वाली कविताओं का संग्रह है। सामाजिक वर्जनाओं की दुनिया में, यह पुस्तक पाठकों को तिरछे विचारों को स्वीकार करने और उनकी अनिश्चितताओं को गले लगाने के लिए आमंत्रित करती है।

Languageहिन्दी
Release dateDec 8, 2022
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    अर्थ - सायंतनी साहा

    || किसका कृष्ण? ||

    कृष्ण आख़िर किसका?

    जग भजे राधे कृष्ण! राधे कृष्ण!

    रुक्मणि के फिर आधे कृष्ण?

    गोपियों संग रास में कृष्ण,

    बने कैसे, मीरा के कृष्ण?

    बूझो फिर, किसका कृष्ण?

    आधा इसका, थोड़ा उसका,

    कुछ न जिसका, उसका भी कृष्ण!

    बूझो फिर, किसका कृष्ण!

    मुरली संग जो बाँधे, कृष्ण,

    रास में जो नाचे, कृष्ण,

    धर्म रक्षा करे जो, कृष्ण,

    द्रौपदी चीर भरे, वह कृष्ण |

    सुदर्शन चक्र धरे, कृष्ण,

    अर्जुन को दे दिशा, वह कृष्ण,

    ब्रह्म चरण धोये, वह कृष्ण,

    प्रेम सुधा छलकाए, कृष्ण |

    बूझो फिर, किसका कृष्ण?

    रक्षक किसी का, कभी गुरु रूप,

    मित्र हो जिसका, उसका भी कृष्ण |

    बूझो फिर, किसका कृष्ण!

    न मानो तो एक नाम है कृष्ण,

    मानो तो सबमे कृष्ण |

    जो प्रेम करे, जो प्रीत लगे,

    जो ताप बन, संताप हरे,

    जो राधा के श्रृंगार जड़े,

    जो मीरा का बैराग बने |

    रात सा शीतल, नम्र कृष्ण,

    सूर्य सा रौद्र, दिव्य कृष्ण,

    पुरुष रूप वही कृष्ण,

    नारी संबोधन बने जो, कृष्ण |

    बूझो फिर, किसका कृष्ण?

    प्रेमिका का प्रेमी कृष्ण?

    भक्त की अरदास कृष्ण?

    बूझो फिर, किसका कृष्ण!

    मुझे तुझमे दिखता कृष्ण |

    जो प्रेम करे, वैसा कृष्ण,

    जो प्रताप बने, वैसा कृष्ण,

    नारी जिसकी संज्ञा साथी,

    मझधार कश्ती पारे, वह कृष्ण |

    माँझी जैसा मेरा कृष्ण,

    बूझ कहे वह सबका कृष्ण,

    जितना मेरा, उतना तेरा,

    हर कण में बसा, संपूर्ण कृष्ण |

    || शिव ||

    रुद्र, रौद्र, प्रचंड,

    दिव्यता अखंड,

    महेश्वरा,

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