Discover millions of ebooks, audiobooks, and so much more with a free trial

Only $11.99/month after trial. Cancel anytime.

रामायण प्रश्नावली
रामायण प्रश्नावली
रामायण प्रश्नावली
Ebook472 pages2 hours

रामायण प्रश्नावली

Rating: 0 out of 5 stars

()

Read preview

About this ebook

ऐसे देखा जाए तो "पल" जैसी जिंदगी की कोई प्रस्तावना ही नहीं होती। हालाँकि, मगर ईतना तो जरुर कह सकते है की यह कम समय में खिला हुआ एक ऐसा विशाल व्यक्तित्व था की जिसमे धरती जैसी सत्वशीलता, हवा से भी ज्यादा हल्कापन, सूरज जितनी  चमक और आकाश जितनी विशालता। और यही कारण है कि प्रकृति की नज़र ऐसे पूर्ण रूप से खिले हुए फूल पर पड़ी।  भगवान को भी कमजोर पसंद ही नहीं हैं। सब कुछ उत्कृष्ट की ही अच्छा लगता है। इसीलिए ही उन्होंने ऐसे तेज पुंज को अपनी ओर बुला लिया।

       लेकिन धन्यवाद इस उत्कृष्ट आत्मा की "माँ" को की जिसने अपने व्यस्त जीवन में से पूर्ण समय निकालकर ऐसा एक उत्तम  चरित्र का निर्माण किया और भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया। गीता में कहा गया है कि, भगवान कभी किसी का बकाया नहीं रखते। समर्पित से ज्यादा ही वापस देता है। इसलिए हे प्रभो! तुम भी इसका ध्यान रखना।

       इस नन्ही सी जान की नस नस में रामायण दौड़ रही थी। रामायण के आदर्श गुण निहित थे। इसीलिए उसका व्यक्तित्व मिटते ही एक उत्कृष्ट विचार आया कि आज की नई पीढ़ी के सामने रामायण को एक नए अंदाज में प्रस्तुत की जाए। साथ ही, हमने इस नई रामायण को लोगों के सामने पेश करने के लिए हर संभव प्रयास किया है। यदि कोई त्रुटि मिलती है तो क्षमा करें। यह प्रश्नोत्तरी के रूप में लिखी गई संपूर्ण रामायण, 'पल' की दिवंगत आत्मा की स्मृति में प्रकाशित किया है।

       ढेर किताबों पढ़ने के बाद भी दो लाइनें नहीं लिखी पाते। जब की एक ही दर्दनाक अनुभव एक पूरी किताब लिखवा सकता है। इसका स्वयं अनुभव हुआ।

Languageहिन्दी
Release dateNov 9, 2021
ISBN9798201485528
रामायण प्रश्नावली

Related to रामायण प्रश्नावली

Related ebooks

Related categories

Reviews for रामायण प्रश्नावली

Rating: 0 out of 5 stars
0 ratings

0 ratings0 reviews

What did you think?

Tap to rate

Review must be at least 10 words

    Book preview

    रामायण प्रश्नावली - CHANDRIKABEN KANERIA

    चंद्रिकाबेन वल्लभभाई कनेरिया

    Ramayan Prashnavali

    By 

    Chandrikaben Vallbhbhai Kaneriya

    Published by

    Chandrikaben Vallbhbhai Kaneriya

    A–1004, Sanskar Tower,

    Opposite Hotel Grand Cambay,

    S. G. Highway, Thaltej,

    Ahmedabad-380059

    Gujarat

    ISBN :

    Copyright @ Chandrikaben Vallbhbhai Kaneriya

    First edition

    All Rights reserved. No part of this publication

    may be reproduced, stored in or introduced into

    a retrieval system, or transmitted, in any form,

    or by any means (Electronic, mechanical, photo 

    copying, recording or otherwise) without the prior

    written permission of the publisher. Any person

    who does any unauthorized act in relation to this

    publication may be liable to criminal prosecution

    and civil claims for damages

    रामायण प्रश्नावली

    प्यारी  पोती पल की याद में और

    उसकी ही प्रेरणा से प्रस्तुत है प्रश्नावली के

    रूप में महाकाव्य रामायण का सार

    चंद्रिकाबेन वल्लभभाई कनेरिया

    अनुवादक के बारे में

    मूल गुजराती किताब રામાયણ પ્રશ્નાવલી  का अनुवाद हिन्दी में शीर्षक रामायण प्रश्नावली ओर अंग्रेजी में शीर्षक Ramayan: a Questionnaire डॉ भानुभाई पटेल ने किया है। भानुभाई पटेल, जो अहमदाबाद (गुजरात) में स्थित मेडिकल डॉक्टर है ओर बंदीवान रह चुके है

    उन्होंने डॉ।  बाबासाहेब अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय में सलाहकार के रूप में कार्य किया है। उन्होंने जेल के भीतर और बाहर गहन अध्ययन करके 54 डिग्री, पी.जी. डिप्लोमा, डिप्लोमा और प्रमाण पत्र का विश्व रिकॉर्ड लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, यूनिक वर्ड रिकॉर्ड, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और यूनिवर्सल रिकॉर्ड फोरम में प्रस्थापित किया है।  यह संस्मरण उनके दुर्लभ, प्रेरक जेल के अनुभवों और शैक्षणिक उपलब्धि यात्रा की दिशा में एक अविस्मरणीय कदम है। अंग्रेजी में उनका संस्मरण BEHIND BARS और BEYOND, गुजराती में "જેલના સળિયા પાછળની સિદ્ધિ" और हिंदी में सिद्धि सलाखों के पीछे की एक प्रेरणादायक और प्रोत्साहक  पुस्तक है जो उसके 8 वर्षों के जेल  अनुभव और भारतीय जेल में उसकी शैक्षिक यात्रा को विश्व रिकॉर्ड तक ले जाती है उसका विवरण है और  उनके दुर्लभ, प्रेरक जेल अनुभवों और शैक्षणिक उपलब्धि की यात्रा का  एक अविस्मरणीय सोपान है।

    भानुभाई पटेल                                     

    अहमदाबाद 

    bhanubhaipatel@hotmail.com

    C:\Users\ASUS\Desktop\RAMAYAN\New folder\4.png

    लेखक के बारे में

    चंद्रिकबेन वल्लभभाई कनेरिया जो अहमदाबाद, गुजरात में रहती हैं और एक आदर्श धर्मनिष्ठ गृहिणी के रूप में सेवानिवृत्त जीवन जी रही हैं।  अपनी छोटी पोती के दुःखद, आकस्मिक अवसान के सदमे ने और अपनी पोती के प्रति अपार प्यार और स्नेह ने उसे पोती की याद में उसका संस्मरण लिखने के लिए मजबूर कर दिया।  इस प्रकार, उनकी यह शानदार, धार्मिक, आध्यात्मिक और प्रेरक पहली किताब रामायण प्रश्नावली का पौत्री के दुःखद अवसान के बाद जन्म हुआ।  एक छोटी सी पोती ने अपनी नानी को अपने बेहद प्यार और शानदार शैक्षणिक कारकिर्दगी की वज़ह से लेखक बना दिया और इस किताब के माध्यम से आज के बच्चों के लिए एक प्रेरणादायक और उत्साहजनक संदेश प्रस्तुत किया।

    लेखक का विशाल पठन, गहरा अनुभव, शानदार और उज्ज्वल स्कूल और कॉलेज  कारकिर्दगी, धर्म, संस्कृति और आध्यात्मिकता का विशाल ज्ञान उनके जीवन के सकारात्मक पहलू हैं।  और आज की पीढ़ी के बच्चों में धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान और मानव मूल्यों के संचरण के लिए कुछ करने की इच्छा उनके जीवन का लक्ष्य है।

    चंद्रिकाबेन वल्लभभाई कनेरिया

    अहमदाबाद

    अर्पण

    प्यारी पोती पल (सान्वी) को

    सप्रेम अर्पण

    57.jpg

    पूज्य मोरारिबापू का शुभेच्छा संदेश

    image2

    ooxWord://word/media/image3.jpeg प्राक्कथन

    आनेवाला पाल, जनेवाला है....

    पल ​​उर्फे सानवी जीवन के ऐसे फट चुके पन्नों में एक हो गई जिन्हें फिर कभी नहीं पढ़ा जाएगा। मुझे पता चला कि पल वास्तव में मुझसे मिलना चाहती थी। ये पढ़ने की शौकीन लड़की, अब काठियावाड़ी में बोलू तो अंकुरित होके अभी अभी खड़ी हुई हो ऐसी एक लड़की।

    लेकिन इससे पहले कि मैं उससे मिलू, प्रभु उससे मिलना चाहते थे और वो चली गई, मृत्यु एक अकल्पनीय पहेली वहा, समय से पहले मृत्यु को एक अधिक कठिन पहेली माना जाता है। पल परिवार के लिए एक पहेली बन गई, जिसका जवाब हमेशा के लिए खो गया। दुर्घटना में व्यक्ति चला गया, स्मृति रह गई। हमारी भाषा में सुंदर शब्द है, 'समृतिशेष' जो अब स्मृति में बचा है। वो!

    लेकिन पल के स्कूल ने इस दोलनशील राजकोट की 'एलिस इन वंडरलैंड' के लिए एक बुक कॉर्नर बनाया है। पलकी नानी ने, वो बहुत कम उम्र में अंग्रेजी में वीडियो केमेरा के सामने बोलती उस रामायण की एक दिलचस्प किताब को तैयार की है, जिस पर वह एक वीडियो कैमरे के सामने बोल रही हैं। हमारे दार्शनिकों का कहना है कि यह एक सात्विक आत्मा का कर्मबंधन होता है, जो इसे हमारे पास खीच लाता है। और जैसे ही कर्ज पूरा होता है, वह स्वर्ग में चला जाता है।

    वाल्मीकि रामायण में, जो अपने पिता दशरथ की मृत्यु से दुखी  भरत को आश्वस्त करते हुए खुद दुखी ऐसे राम कहते हैं, "जिस प्रकार नदियाँ एक पहाड़ की चोटी से समुद्र की ओर बहती हैं, ऐसे ही मनुष्य जन्म के पल से ही मृत्यु की और गति करता है। गये हुए को हम क्या रोये? हमें भी एक दिन ऐसे ही निकल जाना है?

    पल की स्मृति को हरा-भरा रखने के लिए इस शबदगुलाल से रामायण के बारे में एक किताब बनाई गई है। जब पल की मम्मी ने इस बारे में बात की तब मुझे नहीं पता था कि वो कैसी होगी, लेकिन मैंने कॉपी पढ़ीतब खुशी हुई। सिखना बंद तो जीतना बंद’ के दृष्टिकोण से, जी। के। (सामान्य ज्ञान) बढ़ाने वाले बच्चों के लिए जिसको ट्रिविया कह सके ऐसी  रोचक जानकारी है। और रामायण की कथा के माध्यम से हमारी संस्कृति की विरासत का एक सरल, सहज, अच्छा चिंतन भी है। प्रिय मोरारी बापू का सत्य, प्रेम, करुणा यहाँ हर पृष्ठ पर बहता है।

    पल, हम पहुँच ना पाये इतने दूर कोई एक उभरते हुए सितारे की तरह मुस्कुरा रही होगी। हम जितने खुश रहेंगे, इतनी उसको निरांत होगी। और रिचर्ड बाक कहते हैं: There  is no such thing as far away, when you remember you love, aren't you already there?

    पसन्दीदा को याद करने से उसके पास होने का एह्सास होता है। उसकी गर्मिली पुकार कि गुंज सुनाई देती है, पल के आतम राम स्वरुप को प्यार और यह संस्कारिता जैसी किताब में शबदस्नान यही हमारा तर्पण है।

    हमेशा के लिए प्यार।

    जय वसावडा

    jayvaz@gmail.com

    250 (2).jpg

    सान्वी (पल) की पारिवारिक पृष्ठभूमि

    (1) पल की मातुश्री

    राजकोट निवासी सान्वी (पल) के मातुश्री डॉ.  वैशाली संजयभाई परसानिया, (पीएचडी), (सीएस), एम.सी.ए.) जो वर्तमान में आत्मीय विश्वविद्यालय, राजकोट में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।  आमतौर पर यह माना जाता है कि संतान  अपने माता-पिता की प्रतिकृति हो सकते  है लेकिन इस मामले में यह कहना अनुचित नहीं लगता कि डॉ वैशालीबेन बचपन से अब तक  अपने जीवन के लगभग हर पहलू में सान्वी (पल) की प्रतिकृति रही हैं।

    पल तो परम में लीन आत्मा है, इसलिए पल की याद में पल के कार्यों, प्रक्रियाए, उपलब्धियों और जीवन शैली को याद करके  और उसकी अभिव्क्ति करके  पल के रिश्तेदार पल के आभारूप बन गए हैं।

    डॉ।  वैशालीबेन संजयभाई परसानीया  एक बहुत ही सुसंस्कृत और शिक्षित परिवार की बेटी हैं।  उसके  पिता वल्लभभाई कनेरिया जो जूनागढ़ के नरसिंह विद्यामंदिर स्कूल में विज्ञान के शिक्षक थे।  वल्लभभाई ने उस समय शारदाग्राम के प्रसिद्ध शारदा विद्यामंदिर स्कूल में पढ़ाई की थी।  उन्होंने जीवन में शिक्षा को बहुत महत्व दिया।  माता-पिता के अनुवांशिक गुणों से युक्त डॉ.  वैशालीबेन बचपन से ही पढ़ाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी सबसे आगे रही हैं।  उन्होंने प्रोफेसर के रूप में अपने वर्तमान करियर में भी बहुत कुछ हासिल किया है।

    (२) पल के पिताज़ी

    राजकोट निवासी पल के पिता डॉ.  संजयभाई सी.  परसानिया (एम. डी. आयुर्वेद) जो औषधि वेलनेस प्राइवेट लिमिटेड, राजकोट के प्रबंध निदेशक हैं।

    डॉ. संजयभाई  जिसका अध्ययन का उत्कृष्ट करियर है।  संजयभाई की बचपन से ही व्यवसाय में बहुत रुचि रही है, इसलिए उसने अपनी खुद की  नामांकित आयुर्वेदिक कम्पनी औधधि वेलनेस प्राइवेट लिमिटेड  की स्थापना की।  अपने व्यवसाय और पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता के कारण एक सफल उद्यमी के रूप में ख्याति प्राप्त की।

    जब कोई व्यक्ति एलोपैथी (चिकित्सा उपचार पद्धति) से हार जाता है या असंतुष्ट हो जाता है, तो वह आयुर्वेदिक उपचार पद्धति की ओर मुड़ जाता है जो प्राचीन काल से प्रचलित है।  डॉ।  संजयभाई ने 100% शुद्ध, साइड इफेक्ट और रासायनिक मुक्त आयुर्वेदिक उत्पादों का उत्पादन करके आयुर्वेद के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के आयुर्वेदिक उत्पादों को सफलतापूर्वक विकसित किया।  इस प्रकार, अपने जुनून, समर्पण और व्यवसाय के प्रति समर्पण के कारण, उन्होंने अपने व्यवसाय में अद्वितीय सफलता प्राप्त की।

    डॉ। संजयभाई के पिता श्री छगनभाई और माता श्री जयाबेन के तीन पुत्र हैं, और तीनों पुत्रों ने डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की हैं।  सबसे बड़ा बेटा नेत्र सर्जन बना, दूसरा बेटा  चिकित्सक (एम.डी.) और सबसे छोटा बेटा संजयभाई ने आयुर्वेद में एम. डी  की उपाधि प्राप्त की. बन गया।  डी।  डिग्री।  उस समय तीन बेटों को डॉक्टर बनाना एक असाधारण काम था।  इस प्रकार डॉ.  संजयभाई भी अपने माता-पिता के आनुवंशिक लक्षणों के कारण बहुत बुद्धिमान, उद्यमी, ईमानदार और शांत हैं।

    अनुक्रमणिका

    प्राक्कथन

    परिचय

    पल का जीवन संदेश

    पल की प्रेरणादायक उपलब्धियां

    रामायण का संक्षिप्त आलेखन

    १। रामायण - बालकाण्ड

    २। रामायण - अयोध्या काण्ड

    ३। रामायण - अरण्यकाण्ड

    ४। रामायण - किष्किन्धाकाण्ड

    ५। रामायण सुंदर कांड

    ६। रामायण लंका कांड

    ७। रामायण उत्तर कांड

    फोटो गेलरी

    प्रस्तावना

    ऐसे देखा जाए तो पल जैसी जिंदगी की कोई प्रस्तावना ही नहीं होती। हालाँकि, मगर ईतना तो जरुर कह सकते है की यह कम समय में खिला हुआ एक ऐसा विशाल व्यक्तित्व था की जिसमे धरती जैसी सत्वशीलता, हवा से भी ज्यादा हल्कापन, सूरज जितनी  चमक और आकाश जितनी विशालता। और यही कारण है कि प्रकृति की नज़र ऐसे पूर्ण रूप से खिले हुए फूल पर पड़ी।  भगवान को भी कमजोर पसंद ही नहीं हैं। सब कुछ उत्कृष्ट की ही अच्छा लगता है। इसीलिए ही उन्होंने ऐसे तेज पुंज को अपनी ओर बुला लिया।

    लेकिन धन्यवाद इस उत्कृष्ट आत्मा की माँ को की जिसने अपने व्यस्त जीवन में से पूर्ण समय निकालकर ऐसा एक उत्तम  चरित्र का निर्माण किया और भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया। गीता में कहा गया है कि, भगवान कभी किसी का बकाया नहीं रखते। समर्पित से ज्यादा ही वापस देता है। इसलिए हे प्रभो! तुम भी इसका ध्यान रखना।

    इस नन्ही सी जान की नस नस में रामायण दौड़ रही थी। रामायण के आदर्श गुण निहित थे। इसीलिए उसका व्यक्तित्व मिटते ही एक उत्कृष्ट विचार आया कि आज की नई पीढ़ी के सामने रामायण को एक नए अंदाज में प्रस्तुत की जाए। साथ ही, हमने इस नई रामायण को लोगों के सामने पेश करने के लिए हर संभव प्रयास किया है। यदि कोई त्रुटि मिलती है तो क्षमा करें। यह प्रश्नोत्तरी के रूप में लिखी गई संपूर्ण रामायण, 'पल' की दिवंगत आत्मा की स्मृति में प्रकाशित किया है।

    ढेर किताबों पढ़ने के बाद भी दो लाइनें नहीं लिखी पाते। जब की एक ही दर्दनाक अनुभव एक पूरी किताब लिखवा सकता है। इसका स्वयं अनुभव हुआ।

    पल का जीवन संदेश

    पल प्रेरणा-पुष्प थी। वो एक ऐसा फूल थी, जिसने कई लोगों के जीवन में उसकी खुशबू फैला दी थी। कम उम्र में, उसने कई उपलब्धियां हासिल कीं। और मेरे जैसे 80-वर्षीय बड़ो को भी बहुत कुछ शिखा के गई। हालाँकि, मानवीय वृत्ति के कारण पल  नहीं है उसका दुःख कुछ दिनों के लिए हुआ। लेकिन आज, थोडे दिनों के बाद, मन दृढ़ता से स्वीकार कर रहा है कि पल का अस्तित्व हमारे जीवन में है ही। उसके अस्तित्व के एहसास से ही  हम रिश्तेदारों को कई कार्य करने हैं। उसके मनपसंद कार्य करके उसकी उपस्थिति की वास्तविकता का अनुभव करना है।

    जब पल छोटी थी तब से उसे कहानियों को सुनने का  बहुत शौक। सोते वक़्त नानी ’के साथ हो या मम्मी पिताजी हो या उसके दादा-दादी के साथ हो  लेकिन सभी के साथ एक ही शर्त रखती  कि आप मुझे दो कहानियाँ सुनाएँ और फिर सो जाएँ। और ये सभी आत्मीयज़न उसकी इस शर्त को पूरा करते।

    धीरे-धीरे, जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई, उसका बुद्धिचातुर्य भी बढ़ता गया।

    कोई भी कहानी सुनाओ मगर उसको सभी दोहराई हुई ही लगे। इसलिए मैंने उससे कुछ धर्मों के बारे में सवाल पूछना शुरू कर दिया, इसलिए  पल को भी धर्म के बारे में नया नया जानने की उत्सुकता जगी।  इसलिए अब अक्सर सोते समय मुझे कहती कि नानी मुझे दस सवाल पूछिये। मैंने भी धर्म से जुड़े सवालों की तलाश शुरू कर दी। और पल को मैं पूछती गई और वह उन सवालों का जवाब देती गई। अचानक एकबार पल ने मुझसे कहा कि तुम अब 'ऐसा कुछ करो ना और उसका यह बहुत बुद्धिमान से भरे होना सुझाव ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया और पल  मेरे लिए प्रेरणा का मार्ग बन गई।

    पल तेरे इस नेक और प्रेरणादायक विचार के लिए तुमको लाख लाख बधाई। और मैंने हर दिन दस सवाल लिखने का फैसला किया। ऐसे फैसले से पॉल बहुत खुश होंगी। पल मेरी खुशी की हेली थी। और समझ की झील थी। भले ही आज भौतिक अस्तित्व से मेरे साथ नहीं है, फिर भी  इसकी यादों का खजाना आजीवन खत्म नहीं होगा। कुछ समय के लिए  जीवन में खालीपन व्याप्त हो गया था। बहुत दुख हुआ था। कई रातों तक पल की यादो ने रुलाई। अविरत आंसुओं से जीवन बेहाल हो गया। रोना ये दुःख का इलाज नहीं है इस सनातन  विचारधारा ने आंखे खोल दी और ऐसा सोचा कि अगर हम पल के पसंद का कोई कार्य करेंगे जिससे वो भी खुश होगी और मुझे भी एक उत्कृष्ट कार्य  मिलेगा। इस तरह के धर्म के बारे में सवाल से कई छोटे बच्चों में धर्म के प्रति रुचि पैदा करेंगे।

    इस तरह मुजे भी जीवन में कुछ किया उसका  संतोष मिलेगा। थोड़ी बहुत सामाजिक सेवा की गतिविधि भी होगी और शुरुआत की ऐसा एक सकारात्मक प्रयास से। प्रथम शुरुआत रामायण के प्रश्नों के साथ करने का निर्णय लिया। क्यों कि पल सात साल की थी तब से उसको पूरी रामायण कंठस्थ थी। 

    जन्म और मृत्यु शरीर को हैं, आत्मा को नहीं। परम कृपालु परमात्मा का सबसे अच्छा जो कोई उपहार हो , कोई आशीर्वाद हो, तो वो है मृत्यु। जीवन की सही समझ मौत को माप निकालने में ही है। यदि हम मृत्यु को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानते हुए अपना जीवन बिताते हैं, तो न तो आदि-व्याधि और न ही उपाधि हमें छू सकती है। यही रामायण जैसे शास्त्र सिखाते हैं।

    तो पल की मृत्यु के लिए इतना दुःख और पश्चाताप क्यों? पल ने तो सिर्फ बदन ही बदला है उसका आत्मा तो सदैव अमर ही रहने वाला है। पल तो संपूर्ण रामायण निगल गई थी , ऐसी दिव्य आत्मा का शरीर दुनिया में कम रहता है, लेकिन यह कभी  मरता नहीं है।

    पल को हर चीज रंगीन ही अच्छी लगती थी। उसके पास बहुत सारी रंगीन पेन भी थी। मैंने कई रंगों के कलमों का संग्रह देखा और इस रंगीन कलम के साथ ही पल के विचारों को व्यक्त करने के विचार आया। पडी हुई कलम की स्याही सूख जाएगी, लेकिन अगर उसी कलम का अच्छा उपयोग होगा तो पल बहुत खुश होंगी। इसीलिए मैंने रामायण के प्रश्न और उत्तर को अलग-अलग रंगीन कलम से लिखने का फैसला किया। अपने शेष जीवन में भी  जितना हो सके उतना पल के पसंदीदा रंगीन कार्य करना।

    पल, तुम बहुत कम उम्र में इतना अच्छा जीवन जी गई कि तुम्हारी मृत्यु के बाद कई लोगों के मुह से सुना गया है कि पल को फिर से जीवन मिलेगा। पल की कि हुई प्रगति उसका हर एक क्षेत्र को फिर 'फिरसे एक बार' (once more) की विश्वास दे गई है।

    इस छोटी उम्र की ग्यारह साल की बेटी के सुनहरे सुझाव ने मेरे जैसे 60 साल की उम्र तक पहुंचे हुए व्यक्ति को कुछ करने के लिए आशा और उत्साह को जगा दिया, उसमे पल की ही वैचारिक ताकत का एहसास होता है। आदमी किसी भी समय और किसी भी उम्र में कुछ भी नया कर सकता है उसका भरोसा पल ने दिलाया है। लौकिक दुःख से टूट के बाकी जिंदगी को रोते रोते जीना, नहीं मर जाने के कारण जीना इससे बेहतर है कि जिंदगी के तूफ़ानों को भुला के उत्कृष्ट कार्यो के पिछे लग जाना। 60 साल की उम्र में भी ऐसा ख्याल आना उसमे भी यह छोटी बेटी 'पल' की ही  प्रेरणा है। खुद तो चली गई लेकिन वो मुझे गति दे के गई। निष्क्रियता मृत्यु के समान है और सक्रियता जिंदा होने की निशानी है यह गीता મેં से मिलती हुई प्रेरणा है। और तुम्हें तेरी जिंदगी के अंत में भी गीताजी पढ़ने की अभिलाषा थी यही अभिलाषा हमको कर्मष्ठ बना के गई। सलाम है बेटा! तेरा ये ग्यारह साल के जीवनकाल को।

    पैरों को सच्चा पंथ दिखाया गया था। इसीलिए is क्षण ’मुझसे एक क्षण के लिए भी दूर नहीं है। इतनी बड़ी प्रेरणा, अच्छी सोच आपको वर्तमान का एहसास कराती है।

    'पल' तुम तो हमारे प्यार का सागर थी। हमारे पास इस महासागर की गहराई को मापने की ताकत नहीं थी। इसलिए उसको बहा दिया। आंसू रूपमें खारे पानी में, पल तेरी याद कभी-कभी रोम-रोम को विह्वल बना देती है, इसलिए जीवन में एक रिक्तता है और तभी एक असहाय इंसान की तरह आंख से आंसू का समुद्र बहने लगता है और थोड़ी देर के लिए एक रिक्तता का सर्जन हो जाता है।

    इसके साथ ही दिल की आवाज़ के साथ भगवान से प्रार्थना करने का मन होता है कि हे प्रभु! कभी भी किसी के बच्चे को उसके माता-पिता से नहीं ले लेना। भले ही व्यक्ति को कर्म का फल भोगना पड़े इस जन्म का या पिछले जन्म का यह एक सनातन सत्य का स्वीकार करना ही पड़े यह तथ्य है। तेरे गीता ग्रंथ में भी इसका स्पष्ट उल्लेख है। लेकिन प्रभु, मनुष्य के पाप कर्मों का फल किसी और रूप में देना वो  स्वीकार्य है, लेकिन माता-पिता के पास से उसके दिल की धड़कन समान बच्चे को तुम ले लेते हो, तब उस माता-पिता और  उनके रिश्तेदारों की क्या दशा होती है ये तो तुम देखते ही हो, भगवान। जिस तरह हमारा बच्चा हमारे अस्तित्व का एक हिस्सा है, उसी तरह हम भी तुमसे अलग हुए हिस्से हैं।

    जब हमारा हिस्सा हमसे दूर हो जाता है, तब कलियुग का मनुष्य रूप में हमें इतनी पीड़ा होती है। अतः हे प्रभो! आप सत्य, प्रेम और करुणा के सागर हो, क्या आप हमें दुखी देखकर दुखी नहीं होते? इसमें भी

    पूरी तरह से खिले हुए  'पल’ जैसे फूल को ले लेने के लिए तुम्हारी हिम्मत कैसे चली। कई बुजुर्गों के जीवन में उछलते हुए उजास को अंधकारमय  बना दिया। चलती फिरती जिंदगी को  बेजान 'रोबोट' बना दिया। पल हमारी आँखों की अमी थी। बस अब उसकी यादों को ही उसका अस्तित्व बना के जीना यही  एक बड़ी प्रतिज्ञा है।

    भगवान! पल तो एक बहुत ही निर्मोही जीव था। इतनी कम उम्र में भी उन्हें किसी भी भौतिक वस्तु से कोई विशेष लगाव नहीं था। कभी भी कोई चीज़ ले देने का बोलते थे तो उसकी ना ही होती थी, चाहे वो कपड़े हों या सुवर्ण की चीज़ या सौंदर्य प्रसाधन हो। मैंने अक्सर पल से पूछा है कि पल तुम्हें क्या लेना है तुम्हारे जन्मदिन के लिए? तब उसका एक ही जवाब होता था कि, नानी, मुझे एक अच्छी किताब ले दो। कितना निर्मोही आत्मा! हम भी, 'पल' तुमको पहचानने में विफल रहे। इस बात का अब अफ़सोस है। पल तेरा यह  किताब के प्रति प्यार ही तेरी दिव्यता की एहसास कराता है। इतनी कम उम्र में इतना पढ़ने का शौक यही तेरी आंतरिक सात्विकता को दर्शाता है। पल ने 350 से अधिक पुस्तकें पढ़ी थी, जिनमें रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ

    Enjoying the preview?
    Page 1 of 1