चलो कुछ जाग जाएं
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अभी भी वक़्त है कुछ बिगड़ा नहीं है अभी भी चलो कुछ जाग जाएं
अगर सोते रहे अभी भी तो हो सकता है कि कभी संभला ना जाये इसलिए चलो कुछ जाग जाएं
बहुत हो चुकी देर जागने में हो गई दोपहर चलो कुछ जाग जाएं
यूँ ही चलता रहा अगर, सफ़र ख़त्म हो जाएगा बिना जागे ही इसलिए चलो कुछ जाग जाएं
तुम जागे तभी दूसरों को भी जगा पाओगे सोते रहे अगर तो कभी संभल न पाओगे इसलिए चलो कुछ जाग जाएं
रास आता है बड़ा सोते रहना बस सोते ही चले जाना पर अब वक़्त है कि चलो कुछ जाग जाएं ये पुस्तक याद दिलाती है एक एहसास कि जीत तब तक़ अधूरी है जब तक सब साथ न हों।
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चलो कुछ जाग जाएं - नितिन श्रीवास्तव
चलो कुछ जाग जाएं
BY
नितिन श्रीवास्तव
pencil-logo
ISBN 9789354580420
© नितिन श्रीवास्तव 2021
Published in India 2021 by Pencil
A brand of
One Point Six Technologies Pvt. Ltd.
123, Building J2, Shram Seva Premises,
Wadala Truck Terminal, Wadala (E)
Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA
E connect@thepencilapp.com
W www.thepencilapp.com
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DISCLAIMER: The opinions expressed in this book are those of the authors and do not purport to reflect the views of the Publisher.
Author biography
नितिन श्रीवास्तव
योग्यता: KNIT सुल्तानपुर से यांत्रिकी अभियंत्रण में पोस्ट ग्रेजुएट।
जन्मतिथि: 09/03/1978
पता: 836 के, गाँधी नगर, रायबरेली
फोन: 9935572133
ईमेल: nitinsri982@gmail.com
व्यवसाय: सहायक प्राध्यापक, F.G.I.E.T. रायबरेली, मोटिवेशनल स्पीकर एवं लेखक।
लेखक के रुप में कार्य:
द गॉड फैक्टर फ़ॉर सक्सेस एंड कॉन्टेन्टमेंट
2015 जनवरी में पब्लिश हुई ये पुस्तक, जोकि तमाम ऑनलाइन स्टोर्स में उपलब्ध है, अध्यात्म और विज्ञान का एक अनूठा संगम है।
(2) आई एम नॉट नितिन
अप्रैल 2015 में पब्लिश होने वाली ये पुस्तक भी सभी ऑनलाइन स्टोर्स में उपलब्ध है। ये पुस्तक एक व्यक्ति की असली पहचान को खोजने की एक कोशिश है।
(3) एंगर मसनजमेंट: मेक योर एंगर आ मेडिटेशन
2016 में रिलीज़ की गई ये पुस्तक सिर्फ एक ईबुक के फॉरमेट में उपलब्ध है। ये पुस्तक क्रोध को समझने में एवं उसका निराकरण करने में सहायक है।
(4) आर्डिनरी
एक छोटा कविता संग्रह जो कि अध्यात्म को कवि हृदय में डुबोने की कोशिश करता है।
Contents
।। स्याही ।।
।। जो लिखते हैं दो टूक ।।
।। ऐसे ही मत चले जाना ।।
।। याद रखा जाएगा ।।
।। सावधान ।।
।। वो चले थे लड़ाने ।।
।। विवाद ।।
।। इतिहास ।।
।। न बस न ट्रेन ।।
।। तुम हार मत मानना ।।
।। विकास या विनाश ।।
।। अधूरी कहानी ।।
।। ज़मीर ।।
।। वजह ।।
।। चलो कुछ जाग जाएं ।।
।। कभी तो दूर रहा जाए ।।
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।। आखिर घर हमारा है ।।
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।। न तुम ये हो न वो हो ।।
।। हो सकता है मै जीत जाऊं ।।
।। सुनना भी ज़रूरी होता है ।।
।। भीड़ ।।
।। कभी न कभी ।।
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कभी तो पंहुचेगी ये आग तुम तक भी
जो लगाई है तुमने
कभी तो उसका फ़ैसला मेरे हक़ में आएगा
और जले हैं जितने भी मकान इस आग में
धुँआ तो एक न एक दिन तेरे घर से भी आएगा
आएगा तू भी एक दिन ज़द में इसी आग के
के पैगाम मेरा ज़रूर उस रब तक़ जाएगा
तूने सोचा था कि भाग जाएगा तू