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चलो कुछ जाग जाएं
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चलो कुछ जाग जाएं
Ebook166 pages51 minutes

चलो कुछ जाग जाएं

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About this ebook

अभी भी वक़्त है कुछ बिगड़ा नहीं है अभी भी चलो कुछ जाग जाएं


अगर सोते रहे अभी भी तो हो सकता है कि कभी संभला ना जाये इसलिए चलो कुछ जाग जाएं


बहुत हो चुकी देर जागने में हो गई दोपहर चलो कुछ जाग जाएं


यूँ ही चलता रहा अगर, सफ़र ख़त्म हो जाएगा बिना जागे ही इसलिए चलो कुछ जाग जाएं


तुम जागे तभी दूसरों को भी जगा पाओगे सोते रहे अगर तो कभी संभल न पाओगे इसलिए चलो कुछ जाग जाएं


रास आता है बड़ा सोते रहना बस सोते ही चले जाना पर अब वक़्त है कि चलो कुछ जाग जाएं ये पुस्तक याद दिलाती है एक एहसास कि जीत तब तक़ अधूरी है जब तक सब साथ न हों।

Languageहिन्दी
PublisherPencil
Release dateJun 30, 2021
ISBN9789354580420
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    चलो कुछ जाग जाएं - नितिन श्रीवास्तव

    चलो कुछ जाग जाएं

    BY

    नितिन श्रीवास्तव


    pencil-logo

    ISBN 9789354580420

    © नितिन श्रीवास्तव 2021

    Published in India 2021 by Pencil

    A brand of

    One Point Six Technologies Pvt. Ltd.

    123, Building J2, Shram Seva Premises,

    Wadala Truck Terminal, Wadala (E)

    Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA

    E connect@thepencilapp.com

    W www.thepencilapp.com

    All rights reserved worldwide

    No part of this publication may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise), without the prior written permission of the Publisher. Any person who commits an unauthorized act in relation to this publication can be liable to criminal prosecution and civil claims for damages.

    DISCLAIMER: The opinions expressed in this book are those of the authors and do not purport to reflect the views of the Publisher.

    Author biography

    नितिन श्रीवास्तव

    योग्यता: KNIT सुल्तानपुर से यांत्रिकी अभियंत्रण में पोस्ट ग्रेजुएट।

    जन्मतिथि: 09/03/1978

    पता: 836 के, गाँधी नगर, रायबरेली

    फोन: 9935572133

    ईमेल: nitinsri982@gmail.com

    व्यवसाय: सहायक प्राध्यापक, F.G.I.E.T. रायबरेली, मोटिवेशनल स्पीकर एवं लेखक।

    लेखक के रुप में कार्य:

    द गॉड फैक्टर फ़ॉर सक्सेस एंड कॉन्टेन्टमेंट 

    2015 जनवरी में पब्लिश हुई ये पुस्तक, जोकि तमाम ऑनलाइन स्टोर्स में उपलब्ध है, अध्यात्म और विज्ञान का एक अनूठा संगम है।

    (2) आई एम नॉट नितिन

    अप्रैल 2015 में पब्लिश होने वाली ये पुस्तक भी सभी ऑनलाइन स्टोर्स में उपलब्ध है। ये पुस्तक एक व्यक्ति की असली पहचान को खोजने की एक कोशिश है।

    (3) एंगर मसनजमेंट: मेक योर एंगर आ मेडिटेशन

    2016 में रिलीज़ की गई ये पुस्तक सिर्फ एक ईबुक के फॉरमेट में उपलब्ध है। ये पुस्तक क्रोध को समझने में एवं उसका निराकरण करने में सहायक है।

    (4) आर्डिनरी

    एक छोटा कविता संग्रह जो कि अध्यात्म को कवि हृदय में डुबोने की कोशिश करता है।

    Contents

    ।। स्याही ।।

    ।। जो लिखते हैं दो टूक ।।

    ।। ऐसे ही मत चले जाना ।।

    ।। याद रखा जाएगा ।।

    ।। सावधान ।।

    ।। वो चले थे लड़ाने ।।

    ।। विवाद ।।

    ।। इतिहास ।।

    ।। न बस न ट्रेन ।।

    ।। तुम हार मत मानना ।।

    ।। विकास या विनाश ।।

    ।। अधूरी कहानी ।।

    ।। ज़मीर ।।

    ।। वजह ।।

    ।। चलो कुछ जाग जाएं ।।

    ।। कभी तो दूर रहा जाए ।।

    ।। यही मेरा नज़रिया है ।।

    ।। घर पे पड़े रहेंगे ।।

    ।। आखिर घर हमारा है ।।

    ।। ये शहर राजधानी है ।।

    ।। मुमकिन है तुम समझोगे ।।

    ।। न तुम ये हो न वो हो ।।

    ।। हो सकता है मै जीत जाऊं ।।

    ।। सुनना भी ज़रूरी होता है ।।

    ।। भीड़ ।।

    ।। कभी न कभी ।।

    ।। तो क्या हो जाएगा ।।

    ।। गिद्ध ।।

    ।। मामूली ।।

    ।। बेतरतीब सी ज़िन्दगी ।।

    ।। इंक़लाब ।।

    ।। इंतेज़ार ।।

    ।।ये विस्तार तेरा।।

    ।। मंज़िल और रास्ता ।।

    ।। दीप जलाया रौशनी का ।।

    ।। एक छोटी कहानी ।।

    ।। कोई आया ही नहीं ।।

    ।। चुनाव का नतीजा ।।

    ।। खास ।।

    ।। इन नफ़रतों के बीच ।।

    ।। बिखरना ।।

    ।। बड़े समझदार होते हैं कुछ लोग ।।

    ।। कब देखा है आपने झूठ को सच से लड़ते ।।

    ।। नकाबों का पहनना ।।

    ।। कभी शिद्दत से मिलना ।।

    ।। अक्ल देखिये जी ।।

    ।।कौन दिलाता आज़ादी।।

    ।। मंदिरों ने मस्ज़िदों से बात की ।।

    ।। ज़्यादातर ।।

    ।। कुछ कविताएं लिखी जाएं ।।

    ।। वो खुद अपने पर्दे हटाने लगे हैं ।।

    ।। मुझे तेरे शहर से क्या लेना ।।

    ।। बेबाक़ ।।

    ।। नज़रें झुकाओ तो पता चले ।।

    ।। ज़रा क्रोनोलॉजी समझिए ।।

    ।। औरत ।।

    ।। रात भर ।।

    ।। सागर ।।

    ।। मज़दूर नहीं है वो ।।

    ।। लहजा दर लहजा कुछ कहते थे तुम ।।

    ।। जीती शराब ।।

    ।। राजतंत्र ।।

    ।। स्याही ।।

    कभी तो पंहुचेगी ये आग तुम तक भी 

    जो लगाई है तुमने

    कभी तो उसका फ़ैसला मेरे हक़ में आएगा

    और जले हैं जितने भी मकान इस आग में

    धुँआ तो एक न एक दिन तेरे घर से भी आएगा

    आएगा तू भी एक दिन ज़द में इसी आग के

    के पैगाम मेरा ज़रूर उस रब तक़ जाएगा

    तूने सोचा था कि भाग जाएगा तू

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