मेरी बाल कहानियां
By रवि लायटू
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About this ebook
बच्चों के बीच वैज्ञानिक चेतना जगाने के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई एवं लोकप्रियता के आधार पर बिक्री के नए आयाम स्थापित करने वाली '101 साइंस गेम्स', '101 मैजिक ट्रिक्स' व '101 साइंस एक्सपेरिमेंट्स' जैसी पुस्तकों के लेखक आइवर यूशिएल (वास्तविक नाम : रवि लायटू ) ने केवल और केवल बच्चों के बीच पिछले 40 वर्षों में अपने द्वारा रचित एवं चित्रित 75 से ऊपर की संख्या में प्रस्तुत पुस्तकों के माध्यम से ज्ञान-विज्ञान को चीनी चढ़ी दवाई की तरह जिसतरह पहुंचाया, वह अपने आप में एक सराहनीय व अनुकरणीय उदाहरण है l
विज्ञान व गणित जैसे शुष्क व उबाऊ लगने वाले कठिन विषयों को खेल-खेल में इस नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत कर इन विषयों के साथ दोस्ती का भाव पैदा कर देंना लेखक की अपनी विशेषता रही है जिसकी वजह से ही देश-विदेश के लाखों बाल-पाठकों का प्यार बटोरने में लेखक सफल हो पाया है lइससे इतर अपवाद स्वरुप यह पुस्तक इनकी बाल कहानियों का एक संकलन है i
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मेरी बाल कहानियां - रवि लायटू
रवि लायटू
ज्ञाशिम
gyashim@gmail.com
अनुक्रम
आकाश नीला क्यों
सौम्या बुआ की स्कूटी
दीपावली की वह रात
अनोखी छड़ी
बैसाखी
चींपो का छल-कपट
चंट चूहा और सीधा-सादा सांप
दादा जी का जादू
मूर्तिकार सूरजमणि
सूझबूझ
उपहार
अनिसाइज़र
कल्पना की उड़ान
अनिमलेरियम की सैर
सद्भावना भोज
लालच से मिला सबक़
असली दोस्त कौन
किस्सा कॉपी का
आकाश नीला क्यों
ब्रह्मा जी ने पृथ्वी की रचना पूरी कर ली है यह समाचार जब नारद जी को मिला तो उन्हें ब्रह्मा जी की इस रचना को देखने का कौतुहल जागा। घूमते-घूमते वीणा पर नारायण-नारायण करते एक दिन पहुंच गये पृथ्वी पर। सारी पृथ्वी घूम डाली पर उनके आश्चर्य की सीमा न रही यह देखकर कि काले और सफ़ेद, इन दो रंगों के अलावा तीसरा रंग सारी धरती पर कहीं प्रयोग में लाया ही नहीं गया था। इतने सुन्दर-सुन्दर पेड़-पौधे, फूल-फल, पहाड़-मैदान व नदी-नाले रंगों के अभाव में उन्हें बेजान से लगे। बड़ी निराशा हुई। आख़िर क्या कारण है पृथ्वी के साथ बरती गयी ब्रह्मा जी की इस उपेक्षा का। यही जानने के विचार से जा पहुंचे उन के समक्ष। ‘पृथ्वी इस वक्त भी कम आकर्षक नहीं है। मैं यदि अन्य रंगों का उपयोग कर देता तो इसकी सुन्दरता सबके लिए अहितकर हो जाती। तब इस पर पैदा होने वाले प्राणी अपने ध्येय से भटक कर इसके आकर्षण में ही खो जाते। अतः प्राणी मात्र के कल्याण के लिए ही मैंने ऐसा किया है।‘ ब्रह्मा जी ने स्पष्ट किया ‘पर यह तो पृथ्वी के साथ सरासर अन्याय है भगवन! मैं आपसे निवेदन करता हूं कि पृथ्वी को रंगों से वंचित न रखिये। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कहीं तो स्वर्ग की झलक मिलनी ही चाहिए और वह पृथ्वी पर मिल सकती है यदि उसमें रंगों का समावेश हो जाय।’ नारद जी ने विनती की। ‘तुम्हारी इच्छा है तो ऐसा ही होगा।’ ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को आश्वस्त किया। उसी समय उन्होंने एक मानव की रचना की और उसमें रंगों का सही उपयोग करने की अदभुत शक्ति भर दी। इस मानव को नाम मिला कलाकार रंगास्वामी का और फिर ब्रह्मा जी ने उसे आदेश दिया कि यह पृथ्वी पर जाकर वहां की छोटी से छोटी चीज़ को भी पूरी कुशलता एवं कलात्मकता के साथ रंगे।
आज्ञा की देर थी कि रंगास्वामी ब्रह्मा जी द्वारा दिये हुए ब्रुश-रंग आदि सारा सामान लेकर पृथ्वी की ओर चल पड़ा। अपनी ही धुन में मस्त आसपास के वातावरण से बेख़बर वह आकाश मार्ग से पृथ्वी की ओर चला जा रहा था। दुर्भाग्यवश वह उधर से आ रहे सूर्यदेव के रथ से टकरा गया और उसका सारा सामान बिखर गया। सिर्फ़ बिखरा ही नहीं बल्कि नीले रंग के डिब्बे का तो ढक्कन ही खुल गया और नीला रंग सारे आकाश मे फैल गया। रंगास्वामी इससे चिन्तित हो उठा। फिर कुछ अन्य रंगों के ब्रुश मारकर नीले रंग को और आकर्षक बनाने की बात उसके दिमाग में कौध गयी।
रथ से उसके टकराने पर सूर्यदेव ने अपना रथ रोक लिया और उसका परिचय पूछा ‘मैं कलाकार रंगास्वामी हूं। ब्रह्मा जी की आज्ञा से पृथ्वी पर जा रहा हूं। रंगों से उसका श्रृंगार करने’ उसने बताया। सूर्यदेव को पहली बार कोई कलाकार मिला था अतः उन्हें भी उत्सुकता हुई। ‘कलाकार अपने रंगों से पहले मुझे सजाओ’ ‘पर बह्माजी ने मुझे जिस कार्य के लिए भेजा है उसमें आपका कहीं ज़िक्र नहीं है।’ स्पष्टभाषी रंगास्वामी ने उत्तर दिया और लाल रंग का डिब्बा खोलकर आकाश के एक ओर से इसके बुरुश मारने का काम शुरु कर दिया। सूर्यदेव ने इसे अपना अपमान समझा और वे क्रोधित हो उठे। इतना अधिक कि क्रोध की गर्मी से उनके मुख से अग्नि की लपटें निकलने लगीं। रंगास्वामी एक तो कलाकार था दूसरे अपना कर्तव्य निभा रहा था। फिर किसी से डरता क्यों? ऐसे व्यक्तियों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। पर कलाकार कि लिए चित्त की एकाग्रता भी तो बहुत ज़रूरी होती है। ऐसी स्थिति में रंगास्वामी के लिए कार्य जारी रखना मुश्किल हो गया। वैसे भी सारी पृथ्वी पड़ी थी रंगने को अतः उसने अपना सामान उठाया और वहां बिखरे रंगों को छोडकर पृथ्वी की ओर चल पड़ा।
यहां पहुंचकर उसने पूरी कुशलता से हर एक चीज़ को बारीकी से रंगना शुरू कर दिया। एक-एक फूल-फल को वह पूरी कलात्मकता के साथ रंग रहा था। यहां तक कि कभी किसी एक वस्तु को रंगने में ही उसे कई-कई दिन लग जाते। दिनभर रंगने का कार्य चलता और रात भर विश्राम।
उधर सूर्यदेव का क्रोध शान्त नहीं हुआ। वह रोज़ सवेरे ही आकाश में पहुंच जाते ओर दिनभर गुस्से से भरे वहां की निगरानी करते क्योंकि उन्हें पता था कि कलाकार आकाश रंगने ज़रूर पहुंचेगा और यह ठीक भी था। सारी दुनिया को रंगों से खूब सजाकर जब कलाकार का, यहां का कार्य पूरा हो गया तो उसे ध्यान आया कि अभी उसे आसमान को रंगने का कार्य भी पूरा करना है। पर फिर वही कठिनाई सामने आयी। सूर्यदेव विघ्न डालने के लिए वहां पहले से मौजूद थे। वह कई घण्टों की मेहनत से जो रंगता, सूर्यदेव गीले रंग पर अपना रथ दौड़ाकर कुछ ही क्षणों में उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर देते। रंगास्वामी में बला का धैर्य था। विचलित होना तो उसने जैसे सीखा ही नहीं था। उधर सूर्य देव का क्रोध भी शान्त होने को नहीं आ रहा था। दोनों अपनी-अपनी जिद पर अड़े थे। रंगास्वामी रोज़ बहुत सवेरे रंगने का अपना कार्य शुरू कर देता पर सूर्य देव जैसे ही वहां पहुंचते तो सारा रंग मिटाकर उसके श्रम को व्यर्थ कर देते। इसी तरह शाम को जब वह रंगों के इस खेल को बिगाड़कर चल देते तो कलाकार फिर रंगने का कार्य शुरू कर देता पर कुछ ही देर में रात्रि की कालिमा उसके रंगों को निगल जाती। पर हार मानने को दोनों में से कोई तैयार नहीं था। आज भी केवल ऊषा एवं