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८० दिनों में दुनिया का चक्कर
८० दिनों में दुनिया का चक्कर
८० दिनों में दुनिया का चक्कर
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८० दिनों में दुनिया का चक्कर

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प्रस्तावना:  यह उन सभी लोगो की एक आपबीती का प्रमाण है कि हमारा ग्रह पृथ्वी पर ७.५ बिलियन निवासियों में से एक, मेरी तरह, लोगो एक महामारी का सामना करना पड़ रहा है, जिसके लिए बहुत कम या कुछ भी तैयार नहीं किया गया है कि कैसे जिया जाये अपनी दुनिया में और पर्यावरण में। अगर कोई ऐसी चीज़ है जिसने इंसान को पहली बार एक जैसा महसूस कराया है, तो वह यही वायरस है, जिसने दुनिया के किसी भी नागरिक के बीच कोई अंतर नहीं किया है। गरीब हो या अमीर, सफेद हो या काले, पीले या तांबे, ईसाई, मुस्लिम, यहूदी या नास्तिक, शिक्षित या अशिक्षित, लंबा या छोटा, मोटा या पतला, युवा या बूढ़ा, पुरुष हो या महिला, समुद्र या पहाड़ों से आदि किसी में भी नहीं । इसने हम सभी को एक समान रूप से प्रभावित किया है और हम सभी को अप्रत्याशित और छोटी समझ की स्थिति के कारण पीड़ा, वीरानी, ​​दर्द, भय और यहां तक ​​कि आतंक के दिनों को जीने के लिए मजबूर किया है। न जाने कैसे यह सब ख़त्म होने वाला है? और हम कैसे जीने वाले हैं? यदि यह समाप्त होता है ...

Languageहिन्दी
PublisherBadPress
Release dateFeb 10, 2021
ISBN9781071587324
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    ८० दिनों में दुनिया का चक्कर - JULIO ANDRADE LARREA

    ८० दिनों में दुनिया का चक्कर 

    खुलिओ आंद्रादे लार्रेरा

    क्योटो इक्वाडोर

    जून २०२०

    भूमिका

    यह एक गवाही है मेरी तरह बहुत से लोगो की, जो की हमारी धरती 7500 मिलियन निवासियों में से एक हैं, मुझे एक महामारी का सामना करना पड़ा और उसमे जीना भी पड़ा, जिसके लिए मैं शायद बहुत कम या बिलकुल भी तैयार नहीं किया गया था , जैसा की मैंने अब तक की मेरी अपनी दुनिया और परिवेश में जिया हैं।  अगर कोई ऐसी चीज़ है जिसने इंसान को पहली बार एक जैसा महसूस कराया है, तो वह यही वायरस है, जिसने दुनिया के नागरिकों में कोई फर्क नहीं किया है। गरीब या अमीर, सफ़ेद या काला, पीला या भूरा, ईसाई, मुस्लिम, यहूदी या नास्तिक, शिक्षित या अशिक्षित, उच्च या निम्न, मोटा या पतला, जवान या बूढ़ा, पुरुष या महिला, समुद्र या पहाड़ आदि आदि। इसने हम सभी को समान रूप से प्रभावित किया है और इस तरह की अप्रत्याशित और दूरगामी परस्थिति का सामना करने के लिए हम सभी को व्यथा, अकेलापन, दर्द, भय और यहां तक ​​कि खौफ के दिनों को जीने के लिए रहनुमाई की है। इसके खत्म हो जाने के बाद हम कैसे जीने वाले हैं? अगर यह ख़त्म होता हैं—-अब यहाँ से हमारी जीवनशैली कैसे बदलने वाली है? जवाब हमें एक आघात के बाद कि स्व-अनिश्चितता की स्थिति से नहीं रोकते हैं।

    मेरा नाम खूलियो है और मैं इस कहानी का नायक हूं। मेरी उम्र ५४ साल है और मैं अपने पूरे जीवन में कुछ भी अनुभव नहीं कर पाया हूं, इतना भयावह जैसा नहीं ना ही इतना हैरतजदा जो कि हम जी रहे है। अब मैं कुछ समझ  सकता हूं, कि दूसरी अन्य पीढ़ियों के लोगों के अनुभव जिन्होंने युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं, महामारियाँ जिसने इन्हीं परिसथितियों के बीच उन्हें रहना सीखने के लिए मजबूर किया, कैसे रहे होंगे। हमें अपनी दुनिया का पुनर्निर्माण करने और बेहतर होने की कोशिश करने और उसे सभी मानव जाति के लिए एक बेहतर घर बनाने के लिए मनुष्य की क्षमता में विश्वास रखना होगा। मुझे बिल्कुल यकीन नहीं है कि इंसानों ने सदियों से सीखा है, और आज की तरह विनाशकारी परिस्थितियों का सामना करने से, बेहतर होने के लिए हैं। और यह बात मुझे बहुत दुःख देती है। क्या ऐसा है कि, असंख्य भयावह युद्धों के बाद, असंख्य प्राकृतिक आपदाओं, इतने सारे क्रांतियों और इतने वैचारिक टकरावों के बाद, क्या हमने एक-दूसरे का सामना करना बंद कर दिया है? क्या हमने नस्लीय, धार्मिक या सामाजिक घृणा छोड़ दी है? मुझे ये यकीन नहीं। इस समय जब कि हम 80 दिनों के संगरोध (क्वारंटाइन) में हैं, जिसमें हमने देखा कि कैसे दुनिया व्यावहारिक रूप से घूम चुकी है, और अब से कुछ भी ऐसा नहीं होगा, मैं आशावादी होना चाहता हूँ, और सोचना चाहता हूँ कि, जैसा कि मैंने इस लॉकडाउन में सीखा है, केवल एक चीज इस जीवन में महत्व रखती है, केवल एक चीज जो मूल्यवान है, वह है अपने प्रियजनों का प्यार। बाकी और किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। यह अकेलापन, उदासीनता, भूख, व हताशा सब कुछ बाद में सामान्य हो जाएगा, लेकिन यह सब मैं केवल अपनी पत्नी, बेटी और प्रियजनों के प्यार की बदौलत ही झेल पाने में सक्षम हो पाया हूं।  बाकी और किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। यह अकेलापन, उदासीनता, भूख, व हताशा सब कुछ बाद में सामान्य हो जाएगा, लेकिन यह सब मैं केवल अपनी पत्नी, बेटी और प्रियजनों के प्यार की बदौलत ही इससे गुजर पाने में सक्षम हो पाया हूं। 

    एक डॉक्टर के रूप में, मुझे इस वायरस का सामना सबसे पहली पंक्ति में खड़े रहकर करना पड़ा है और सच्चाई आसान नहीं रही है। रोगी की वह पीड़ा- कि जो साँस नहीं ले सकते हैं, उनकी हवा की कमी, जिसकी वजह से वह वह मर सकते है - का दर्द, और इसी संक्रमित हवा में सांस लेने से या अपने नथुनों में घुस जाने जाने से, संक्रमित होने का जोखिम सबसे ज्यादा है। रोगी के साथ तकलीफदेह काम की परिस्थिति, एक के ऊपर एक, अनेको सुरक्षा के सूट, चेहरे का मास्क और सुरक्षा के कपड़े चुभते है और घुटन पैदा करते है, और आपको सांस नहीं लेने देते हैं, हकीकत में यह वास्तिविकता से भयानक अनुभव से कही ज्यादा है। हाँ, आपको इसकी तुलना लड़ाई के लिए तैनात सैनिक जो महसूस करते है, से कर करनी चाहिए। मुझे विश्वाश ​​है कि दुनिया के सभी डॉक्टर और नर्स वास्तव में इस युद्ध में नायक रहे हैं और मुझे उम्मीद है कि इससे स्वास्थ्य कर्मियों की और हमारे  इस पेशे के प्रति हाल के वर्षों में खोया हुआ सम्मान और विचारशीलता फिर से स्थापित हो जाएगी।  कितना महान है चिकित्सा का यह कार्य ! हम सभी योद्धाओं  के जैसी बहादुरी और मजबूती से लबालब हैं। और इस नई बीमारी को पढ़ने, समझने, जानने, पहचानने और अनुकूल बनाने के लिए, मात्र ८० दिनों में हममे ऐसी क्या क्षमता आ गयी है। वास्तव में, मुझे एक डॉक्टर होने और मुख्यतः ज्ञानेन्द्रिय-विज्ञान (एनेस्थिसियोलॉजी) का विशेषज्ञ होने पर गर्व है। बहुत से साथियों की मौत हो गई है। और युद्ध के मोर्चों पैर भी यही होता है, इसलिए यह किताब उन्हें समर्पित है, जो कि वास्तव में वैज्ञानिक तथ्य नहीं है, बल्कि एक प्रामाणिक विवरण है। यह अपने आप में एक इतिहास है कि कैसे सिर्फ 80 दिनों में दुनिया को एक वायरस विचलित कर गया, और मेरा शहर संगरोध (कवरंटीन) में चला गया है।

    इस किताब में मैंने अपने हर दिन के अनुभवों का ही वर्णन किया है कि जो कि मैं हर दिन जीता रहा हूं। किस्सों, विचारों, सपनों, दुःस्वप्नों, गीतों, खुशियों, दुखों और यहां तक ​​कि खाना पकाने के तरीको से भरे हुए वर्णन ...। 

    नववर्ष की पूर्वसंध्या

    31 दिसंबर, 2019 मेरे लिए एक विशेष दिन होने वाला था। दो साल अस्पताल के एनेस्थिसियोलॉजी सेवा के प्रमुख के रूप में सेवा देने के बाद, उस रात प्रमुख के रूप में अंतिम रात थी और अगले दिन की सुबह सेवा के एक और सदस्य के रूप में जाने वाले थे। यह दो बहुत ही कठिन वर्ष थे मेरे लिए, लेकिन साथ ही यह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण भी थे।  इस पेशे से जुड़े लोगों के ऐसे मूल्यवान समूह की सेवा और नेतृत्व करने में सक्षम होने की वजह से, मैं अपने आप पर गर्व के करने से खुद को नहीं रोक सकता हूँ । दो सप्ताह पहले, चिकित्सा निदेशक ने मुझसे कहा था: यह इस पेशे को सेवा की ऑक्सीजन देने का समय है। और उनकी बात अपनी जगह बिल्कुल ठीक ही थी ।  सच तो यह है की मुझे भी यही लगता है कि मैं एक और दिन भी  इस तरह से नहीं जी सकता था। मुखिया की जिम्मेदारी निभाते - निभाते मैं तो इसे एक कंपनी के रूप में देखने लगा था जिसके लिए मैं पहले से ही बहुत थका हुआ था अब और आगे बढ़ने के लिए ताकत नहीं रह गयी थ।  वह हमेशा अपने काम में सफल होते है जो एक अच्छा इंसान बनाने के मूल्यों से निहित होकर अपना काम करते है।  निष्पक्ष, विवेकपूर्ण, मजबूत और संयमी बनें रहते है।  और इस तरीके और राश्ते पर सबको ख़ुशी बिल्कुल जरुरी नहीं।  अस्पताल के अधिकारियों ने हमसे बहुत माँग की और हम इन माँगों को सीमित करना चाहते थे। मैंने साफ़ तौर पर पुरे विवेक में यह महसूस किया कि कई बार मेरा मन हुआ यह काम छोड़ दूँ ,जबकि मैं अपने पिछले वर्ष के उप प्रमुख मैनुअल के साथ काम केर रहा था।

    भोर में मैं सोच भी नहीं सकता था कि इस नए साल 2020 के 1 जनवरी की पहली अंतर्राष्ट्रीय खबर यह होगी कि एक चीनी शहर वुहान में, जो की वास्तविकता में कहाँ, किस कोने में है कोई नहीं जानता था , में निमोनिया के कुछ मामलों सामने आये थे जो शायद किसी वायरस की वजह से हुए थे। शायद एक वायरस जिसके बारे में संदेह है की वह कि वह मनुष्यों के बीच भी फ़ैल सकता है और वह शहर में एक अनोखे और समुद्री जीवो के बाजार में उत्पन्न हुआ है।  मुझे नहीं लगता कि कोई भी इस ख़बर और इसके अर्थ की वास्तिविकता का अंदाजा लगा लगाने में सक्षम है और साफ तौर पर यह बता सकता है की आने वाले दिनों के लिए इसका क्या तातपर्य है।  सिर्फ दस दिनों के बाद ही , चीन ने इस निमोनिया के साथ अपने पहले मृत रोगी की सूचना दी, जो कि संभवतः कोरोना परिवार के एक वायरस के कारण होता है, और हवा के संपर्क से फैलता है। चीन ने तुरंत ही चेतावनी जारी कर दी और इसके साथ ही जनवरी के अंत तक डब्ल्यूएचओ  द्वारा दुनिया भर में स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी गयी ।

    टेलीविज़न पर छवियां देखी जाने लगीं जिसने धीरे-धीरे विश्व समुदाय को प्रभावित किया। वुहान शहर पूरी तरह से बंद कर दिया गया। वुहान के सरे अस्पताल रोगियों से पट गए । कुछ ही दिनों में मरने वालों की संख्या सैकड़ों में पहुंच गई। आपातकाल की स्थिति में लोग सड़क पर बिमारी से दम तोड़ने लगे और चिकित्सा व्यस्था आपातकाल की स्थिति में। 

    आँखों और कानों को विश्वास नहीं होता है यह सुनकर कि चीन ने मात्र 10 दिनों में ही 400 से अधिक बिस्तर का, गंभीर रोगियों के लिए एक बिलकुल नए अस्पताल का निर्माण करेगा। हम सभी चीन की विशाल आर्थिक शक्ति और प्रौद्योगिकी के बारे में बात विमर्श करते रहे हैं,इस वक़्त भी उनके इस प्रयास की उच्च स्तर पर चर्चा की ताकि उन्हे प्रोत्साहन मिल सके । और इस वक़्त तह विश्व स्वाथ्य संगठन ने वायरस को एक नाम दे दिया था। इसे कोविद - 19 नाम दिया गया, यानी कि कोरोनावायरस रोग जो 2019  साल में हुआ । निश्चित रूप से यह दिसंबर 2019 में सामने आया। और इस एक खबर ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी । एक चीनी चिकित्सक, नेत्र रोग विशेषज्ञ, ने कुछ सप्ताह पहले ही इस एक नई बीमारी के बारे में चीनी अधिकारियों को सूचित किया था ।  पर अधिकारीयों ने उन्हें सतर्कता फैलाने के लिए उनके आग्रह को अनुमति नहीं दी।  उनका नाम: डॉक्टर ली। और थोड़े समय बाद इस बात ने हमको अचंभित कर दिया कि जल्द ही उन्हें सच बोलने के लिए जेल में डाल  दिया गया  !! यह कोरोना वायरस से भी अत्यधिक संक्रामक बीमारी थी और चीनी अधिकारियों द्वारा तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता थी। लेकिन उन्होंने उनकी गिरफ्तारी से कुछ भी हासिल नहीं किया और कुछ ही दिनों बाद शरीर के बहुत सारे अंगों के जवाब देने दे जाने के कारण, अपने ही अस्पताल के एक कमरे में उनकी मृत्यु हो गई। डॉक्टर ली आपके साहस को श्रद्धांजलि !!! 

    जनवरी के अंत में आई एक खबर ने पूरे इक्वाडोर को भी हिला दिया था ।यूजेनियो एस्पेजो अस्पताल में, निमोनिया के लक्षणों वाले एक चीनी  मरीज को भर्ती कराया गया था। इस खबर से पूरे शहर और चिकित्सा समुदाय में आंतक फैल गया। जैसा कि अपेक्षित था, यहाँ भी अधिकारियों ने इस सभी मामले को और मरीज के स्वास्थ्य की स्थिति को नकारने और छिपाने का ख्याल पूरा इंतजाम रखा। लोगो को झूठी और भयावह खबरों पर ध्यान न देने के लिए कहा गया। बेचारा चीनी मरीज़ खबरों

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