स्वर्ण-युग की दुनिया में जाते हुए धनवान बने (ध्यान टिप्पणियों सहित)
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इस ग्रंथ में सूचित किए गई क्रिया आपके आध्यात्मिक विकास, वित्तीय और निर्वाह दशा सुधारने हेतू सहायता करता हैं!
इस ग्रंथ में, आप वित्तीय या आध्यात्मिक स्तर पर धनवान कैसे बने, और स्वर्णिम युग (होलोग्राफिक विश्व के माध्यम से) में चलते हुए आपकी इच्छाको पूर्ण करता हैं| हमारे जीवन के लक्ष्य को साध्य करने हेतू ईश्वर और उनके ज्ञान का किस पद्धती से उपयोग करना हैं, इसे प्रस्तुत ग्रंथ में स्पस्ष्ट किया हैं:
1. जो चमत्कारी शक्तीयॉं (सिद्धी) और विशेषताए आपको चाहिये वह इस ग्रंथ में दिए गई हैं|
2. आकर्षण का सिद्धांत धन और खुशिया क्यो लाता हैं ई.|
3. विज़ुअलाइज़ेशन क्यों और कैसे भौतिक हो सकते हैं|
4. उच्च आयाम के करीब जाना, जहां आकाशिक रिकॉर्ड मौजूद हैं, वह आपको अपने सपनों को आसानी से महसूस करने में मदद करेगा।
5. आपको जो चाहिये वह प्राप्त करने हेतू अआप्न ब्रह्मलोक से किस प्रकार से निर्माता (ब्रह्मा) की भूमिका अदा कर सकते हैं|
6. जब आप ब्रह्मा की दुनिया में होते हैं, तो ईथर ब्रह्मा की भूमिका भी निभाते हैं और आपको जो इच्छित हैं वह बना सकते है।
7. आप आपके आत्मा के भीतर गहरी ऊर्जा का उपयोग कैसे करते हैं, आप स्वयं ब्रह्म हैं और इसलिए आप अपनी इच्छाओं और जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होंगे।
8. सामग्री को फ्रिक्वेन्सी (आवृत्ती) और अनुनाद (रेझोनन्स) के जरीए कैसे उपयोग में लाया जाता हैं|
9. अब, धन, समृद्धि और चमत्कारी क्षमताओं को पुनः प्राप्त करने के बारे में
10. स्वर्णिम युग में रहने वाले और स्वर्णिम युग में चलनेवाले अभिभावक को क्वाँटम उर्जा, वैश्विक नाटक, प्रकृति किस प्रकार सहायता करती हैं|
11. स्वर्णिम युग मी चलने कें लिए परिपूर्ण शरीर (परफेक्ट बॉडी) का निर्माण कैसे होता हैं|
12. धरती और संसार किस प्रकार से उच्च&
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स्वर्ण-युग की दुनिया में जाते हुए धनवान बने (ध्यान टिप्पणियों सहित) - Brahma Kumari Pari
विषय सूची
––––––––
लेखिका के बारे में
अध्याय १ : परिचय
अध्याय २ : ब्रह्मा कुमारियों के सात दिवसीय पाठ्यक्रम का परिचय
अध्याय ३ : आत्मा (बीके सात दिवसीय पाठ्यक्रम का पहला दिन)
अध्याय ४ : ईश्वर (बीके सात दिवसीय पाठ्यक्रम का दूसरा दिन)
अध्याय ५ : तीन संसार (बीके सात दिवसीय पाठ्यक्रम का दूसरा दिन)
अध्याय ६ : काल-चक्र, स्वस्तिक,और विश्व घटनाचक्र (बीके सात दिवसीय पाठ्यक्रम का तीसरा दिन)
अध्याय ७ : विश्व वृक्ष (बीके सात दिवसीय पाठ्यक्रम का चौथा दिन)
अध्याय ८ : विश्व सीढ़ी (बीके सात दिवसीय पाठ्यक्रम का पांचवा दिन)
अध्याय ९ : कर्म का कानून (बीके सात दिवसीय पाठ्यक्रम का छठा दिन)
अध्याय १० : आत्मा की शक्तियाँ एवं दूसरी मूल विशेषताएँ (बीके सात दिवसीय पाठ्यक्रम का सातवां दिन)
अध्याय ११ : साइलेन्स
अध्याय १२ : साकार मुरली
अध्याय १३ : अव्यक्त मुरली
अध्याय १४ : होलोग्राफ़िक यूनिवर्स की बनावट
अध्याय १५ : यूनिवर्स के भीतर का उच्च यूनिवर्स एवं निचला यूनिवर्स
अध्याय १६ : प्रकाश और अंधकार
अध्याय १७ : अशुद्ध क्यू.ई. प्रकाश के साथ मेरे अनुभव
अध्याय १८ : क्यू.ई. प्रकाश मन और ईथर
अध्याय १९ : निचला स्वयं, उच्च स्वयं, गहरा स्वयं, दैवीय स्वयं और देवता-स्वयं
अध्याय २० : चक्र (उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली विशेषताओं एवं सिद्धियों सहित)
अध्याय २१ : आभा क्षेत्र
अध्याय २२ : श्वेत छिद्र और काल छिद्र
अध्याय २३ : विश्व नाटक के माध्यम से प्रकटीकरण
अध्याय २४ : क्यू.ई. प्रकाश एवं क्वांटम ऊर्जाएं आत्माओं को अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं
अध्याय २५ : कुंडलिनी
अध्याय २६ : कॉस्मिक चेतना एवं सामूहिक विश्वव्यापी चेतना
अध्याय २७ : कांपनिक आवृत्तियाँ
अध्याय २८ : आकर्षण का कानून
अध्याय २९ : प्रचुरता की आवृत्तियाँ
अध्याय ३० : प्रतिरोध और बाधाएँ
अध्याय ३१ : लोक (विश्व / आयाम)
अध्याय ३२ : स्वर्ग-लोक और इंद्र-लोक
अध्याय ३३ : महर्लोक, जनलोक और तपोलोक
अध्याय ३४ : ब्रह्मलोक
अध्याय ३५ : लोक में विशेषताओं और सिद्धियों का उपयोग
अध्याय ३६ : वैकुण्ठ
अध्याय ३७ : ब्रह्मज्योति
अध्याय ३८ : संगम युग का प्राण
अध्याय ३९ : सूर्य वंश और चंद्र वंश
अध्याय ४० : मध्य-संगम युग के लोक
अध्याय ४१ : मध्य-संगम युग का वैकुण्ठ
अध्याय ४२ : चलकर जाने की प्रक्रिया के दौरान सात चक्रों/लोकों का उपयोग
अध्याय ४३ : चलकर जाने वालों के लिए क्यू.ई. प्रकाश शरीर और उनके आभा क्षेत्र
अध्याय ४४ : स्वर्ण-युग का वैकुण्ठ, ब्रह्मलोक, सत्यलोक और द्वारका
अध्याय ४५ : उत्थान
अध्याय ४६ : संगम-युग में चक्रों, आभा क्षेत्र और होलोग्राफ़िक शरीर का उपयोग
अध्याय ४७ : स्वर्ण-युग में चलकर जाते हुए उच्च लोकों का उपयोग
अध्याय ४८ : निचले ब्रह्माण्ड में उपयोग होने वाले लोक
अध्याय ४९ : कारण महासागर
अध्याय ५० : आध्यात्मिक आकाश (परव्योम) और उसके लोक
अध्याय ५१ : ईश्वर स्वर्ण-युग में जाने वालों की सहायता एवं मार्गदर्शन करते हैं
अध्याय ५२ : ध्यान अभ्यास
अध्याय ५३ : स्वर्ण-युग में प्रकृति अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं
रेखा-चित्र १
रेखा-चित्र २
रेखा-चित्र ३
रेखा-चित्र ४
ब्रह्मा कुमारी परी द्वारा लिखी अन्य पुस्तकें
लेखिका के बारे में
इस पुस्तक की लेखिका स्वर्ण-युग की दुनिया में चलकर जाने की प्रक्रिया में हैं। उनके द्वारा प्राप्त किये गए अनुभवों और ज्ञान के आधार पर, इस पुस्तक के माध्यम से वे:
1. दूसरों का स्वर्ण-युग की दुनिया में चलकर जाने के लिए मार्गदर्शन कर रहीं हैं।
2. कैसे कोई व्यक्ति आर्थिक और दूसरी परेशानियों से बाहर निकल सकता हैं, यह सिखा रहीं हैं।
पुस्तकें लिखने से पहले, लेखिका अपने स्वर्ण-युग के अनुभवों पर लेख लिखा करती थीं। वह इन पर भी लेख और किताबें लिख रही हैं:
1. होलोग्राफ़िक ब्रह्माण्ड,
2. उनके विभिन्न प्रकार के आध्यात्मिक अनुभव,
3. वे क्वांटम ऊर्जाएं जो स्वर्ण-युग की दुनिया सहित, संसार प्रदान करने में शामिल हैं,
4. तरह-तरह का प्राचीन धार्मिक ज्ञान,
5. ब्रह्मा कुमारियों का राज योग, ध्यान प्रथाएं, इतिहास, इत्यादि।
लेखिका व्यापक रूप से हिन्दू शास्त्रों, ध्यान एवं योग प्रथाओं, आदि के बारे में तब से पढ़ रहीं हैं, जबसे वे एक छोटी बालिका थीं। १९९४ में, उनका ब्रह्मा कुमारियों के ज्ञान से परिचय हुआ था। १९९६ में, उन्होंने लेख लिखना शुरू कर दिए थे। उनकी पहली पुस्तक होलोग्राफ़िक यूनिवर्स: एन इंट्रोडक्शन
, जनवरी २०१५ में प्रकाशित हुई थी। उनकी पुस्तक ग्रो रिच व्हाइल वाकिंग ईंटो द गोल्डन एज्ड वर्ल्ड (विथ मैडिटेशन कमेंट्रीज़)
अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित हुई थी। २०१७ की शुरुआत के आस-पास, उन्होंने एक्सपैंशन ऑफ़ द यूनिवर्स
शीर्षक वाली अपनी तीसरी पुस्तक लिखने की शुरुआत कर दी थी।
अध्याय १ : परिचय
ब्रह्मा कुमारियों के ज्ञान के अनुसार, हर काल-चक्र के अंत में, लोग स्वर्ण-युग में मौजूद नए, परिपूर्ण, दैवीय संसार में जाते हैं। स्वर्ण-युग, काल-चक्र का पहला युग हैं। समय किस प्रकार चक्रीय तरीके से निम्नलिखित क्रम में प्रवाहित होता हैं, काल-चक्र इसके बारे में हैं:
1. स्वर्ण-युग या सत्य-युग
2. रजत युग या त्रेतायुग
3. मध्य-संगम युग (रजत युग और ताम्र युग के बीच का संगम)
4. ताम्र युग या द्वापरयुग
5. लोह युग या कलियुग
6. संगम युग (कलियुग और स्वर्ण-युग के बीच का संगम)
स्वर्ण-युग की दुनिया धरती पर स्वर्ग हैं। सभी लोग देवताओं की तरह स्वर्ग का जीवन व्यतीत करते हैं, क्योंकि सारी आत्माएं आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली होती हैं। स्वर्ण-युग की दुनिया में, किसी को भी हानि नहीं पहुँचती हैं, और व्यक्ति धन-संपत्ति सहित जो भी चाहता हैं, वह पा लेता हैं|
वर्तमान में, लोग लोह-युग या कलियुग में रह रहे हैं। कलियुग में, आत्माएं आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर अवस्था में होती हैं, और इसलिए उन्हें कष्टों का सामना करना पड़ता हैं। जब तक लोग कलियुग में हैं, तब तक जो वे चाहते हैं उसे पाना उनके लिए बहुत कठिन होगा। जो लोग इस पुस्तक में दिए गए अभ्यासों का उपयोग करेंगे वे स्वर्ण-युग में चलकर जाने के माध्यम से, स्वयं को कलियुग की इस बुरी स्थिति से बाहर निकाल पाएंगे। भले ही कोई व्यक्ति स्वर्ण-युग में जाने का इच्छुक नहीं हैं, तब भी वह इस पुस्तक में दिए गए अभ्यासों का प्रयोग, धन-संपत्ति सहित, वह जो भी चाहता हैं उसे पाने के लिए कर सकता हैं।
स्वर्ण-युग की दुनिया में जाते हुए, व्यक्ति वर्तमान कलियुग की दुनिया से बाहर निकल रहा होता हैं और स्वर्ण-युग की दुनिया में रहना शुरू कर रहा होता हैं। यह स्वर्ण-युग के सूक्ष्म आयाम में रहने के साथ शुरू होता हैं। फिर, जैसे स्वर्ण-युग की दुनिया अस्तित्व में आती हैं, वैसे ही व्यक्ति स्वर्ण-युग के होलोग्राफ़िक संसार में और स्वर्ण-युग की वास्तविक दुनिया में रहने लगता हैं।
ब्रह्मा कुमारियों के ज्ञान (इसके बाद 'बीके ज्ञान' के रूप में संदर्भित) के अनुसार, चक्र के पहले आधे भाग में अमीर लोग, उन राजसी लोगों की सहायत करेंगे जो दुनिया पर राज करते हैं, और व्यापार एक खेल की तरह किया जायेगा।
यह अमीर लोग ही हैं, जो स्वर्ण-युग में जाकर उस व्यापार प्रणाली की स्थापना करेंगे, जो स्वर्ण-युग में प्रयोग की जाएगी। यह व्यापार व्यवस्था एक खेल की तरह होगी, जो चक्र के पहले आधे भाग में लोगों का मनोरंजन करता हैं।
जीवन एक खेल की तरह हैं जिसका आनंद लिया जाना चाहिए था। यदि आपके पास ज़्यादा धन हैं, तो आपके पास खेलने के लिए ज़्यादा चीज़ें हैं। इस पुस्तक को पढ़ें, और इसी मनोभाव के साथ, सुझाये गए अभ्यासों का प्रयोग करें। फिर, आप लालच में नहीं फसेंगे, जो की एक दोष हैं। दोष आपको श्रेष्ठ प्राप्त करने नहीं देंगे। मैं ऐसा क्यों कह रही हूँ, यह आप तब समझेंगे जब आप बाकी की पुस्तक पढ़ेंगे।
जो भी स्वर्ण-युग में आते हैं, वे भी यहाँ की सरकार की स्थापना करने में मदद करेंगे। तो वे एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना करेंगे, जहाँ राजसी लोग, अमीरों के साथ मिलकर, दुनिया में जो होने हैं, उन कामों को करते हैं।
बहुत से धनवान लोग स्वर्ण-युग में, साम्राज्य, व्यापार प्रणाली, आदि की स्थापना करने के लिए जायेंगे। आप भी स्वर्ण-युग में एक धनवान व्यक्ति की भूमिका निभाने के लिए, इन धन-वान लोगों में से एक हो सकते हैं। आप अपनी संपत्ति अभी से जमा करना शुरू कर सकते हैं, और आपकी भूमिका अभी से ही शुरू हो जाएगी।
स्वर्ण-युग में जाने वाले लोग उस संपत्ति का उपयोग कर सकते हैं जो उन्हें, स्वर्ण-युग में चलकर जाने की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त हुई हैं, जब तब वे कलियुग के संसार में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जब स्वर्ण-युग की दुनिया अस्तित्व में आएगी, तब वे अपनी संपत्ति का वहाँ उपयोग करेंगे।
यहां तक की मध्य-संगम युग के दौरान, चक्र के दूसरे आधे भाग के कार्य पूरे करने के लिए, धनवान लोगों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यही धनवान लोग अपने अगले जन्म में, स्वर्ण-युग में जाने की प्रक्रिया के दौरान, चक्र के अंत में एक भूमिका निभाएंगे। मध्य-संगम युग के उन धनवान लोगों की आत्माओं ने, अभी तक नया जन्म ले लिया होगा, जो अब स्वर्ण-युग में जाने की प्रक्रिया में शामिल होगा। यह जन्म उनका इस काल-चक्र में आखिरी जन्म होगा। स्वर्ण-युग में जाने की प्रक्रिया के दौरान, उनके वर्तमान जन्म में, वे अपने मध्य-संगम युग के पिछले जन्म से भी प्रभावित होंगे, जो उनके आने वाले जन्मों में उनकी भूमिका निभाएगा। यह आत्माएं अपनी वह संपत्ति जो उनके पास मध्य-संगम युग में थी, उसे पुनः प्राप्त कर लेंगी, क्योंकि इन्होंने अपने आने वाले जन्मों में अपनी संपत्ति का इस्तेमाल करने के लिए आराधना की थी। इन पूजा प्रथाओं में, व्यक्ति की संपत्ति को उसके शव के साथ दफ़न करना शामिल था। इस संपत्ति का इस्तेमाल कर, अब, आत्मा स्वर्ण-युग की दुनिया में जो कुछ भी आवश्यक हैं उसे स्थापित कर पाने में सक्षम होगी। वे सरकार बनाने, इमारतों का निर्माण करने, व्यापार प्रणाली को जीवन के खेल के हिस्से की तरह स्थापित करने, आदि में सहायता करेगी। जब तब स्वर्ण-युग की दुनिया अस्तित्व में आती हैं, वे अपनी संपत्ति का उपयोग कलियुग की दुनिया में भी कर सकते हैं। यह भी संभव हैं कि आप भी उन मध्य-संगम युग की आत्माओं में से एक हो, जो अब अपनी संपत्ति पुनः प्राप्त करने वाले हों। यदि आप थे, तो आप पाएंगे की इस पुस्तक में दिए गए अभ्यासों का प्रयोग कर आपको संपत्ति प्राप्त करने में आसानी होगी।
जो लोग स्वर्ण युग में, धनवान लोगों की तरह जायेंगे, वे शाही या शासन करने वाले कुल का हिस्सा भी बन सकते हैं। वैज्ञानिक भी उनके साथ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। उनके वर्तमान जीवन में ही ये लोग, नए स्वर्ण-युग के साम्राज्यों के विकास में भाग लेने के माध्यम से, नाम, प्रसिद्धि, धन आदि प्राप्त कर सकते हैं।
स्वर्ण-युग संसार में संपन्न साम्राज्य होंगे क्योंकि बहुत से धनवान लोग, साम्राज्य में बहुत-सा धन लाने के लिए राजाओं के साथ मिलकर कार्य करेंगे। इनमें से कुछ धनवान लोग, राजा भी होंगे। असल में, राजा भी धनवान होंगे।
इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता की आप किसी साम्राज्य से ताल्लुक रखते हैं या नहीं, क्योंकि आप स्वर्ण-युग में बस प्रवेश कर, जैसे चाहे अपना जीवन अपने घर या अपने साम्राज्य में व्यतीत कर सकते हैं। विशाल राज्यों के बाहर बहुत-सी ज़मीन होगी, जहाँ पर आप जैसे चाहे वैसे रह सकते हैं। नए स्वर्ण-युग संसार में पूर्णतः स्वतंत्रता होगी। अगर आपके पास व्यापार हैं, तो लोग आपको संपर्क करेंगे।
ब्रह्मा कुमारियाँ ९००,००० आत्माओं को प्रशिक्षित करने ने लगी हुई हैं, जिन्हे संसार को स्वर्ण-युग संसार में परिवर्तित करने के लिए तैयार रहना होगा (इसके बाद 'विश्व परिवर्तन' के रूप में संदर्भित)। जब वे तैयार होंगे, विश्व परिवर्तन होगा। फिर, आप अस्तित्व में आ चुके स्वर्ण-युग में चलकर जा पाएंगे। तब-तक के लिए, आप चलकर जाने की प्रक्रिया में शामिल होंगे।
चलकर जाने की प्रक्रिया के माध्यम से, आप जो भी चाहे उसे बस एक विचार-मात्र से पा लेने की क्षमता प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि इस पुस्तक में दिए गए अभ्यासों का उपयोग करने से आपकी आध्यात्मिक शक्तियाँ बढ़ जाएँगी, इस वजह से आपकी एक विचार-मात्र से जो चाहे उसे पाने की क्षमता भी बढ़ जाएगी। इसी कारण से, आपकी कल्पनाएं, इच्छाएं, लक्ष्य, आदि भी आसानी से अस्तित्व में आ जायेंगे। यदि आपने ईश्वर से कुछ माँगा था, तो ईश्वर भी आपको वो प्रदान करेंगे। इस पुस्तक में, मैंने समझाया हैं की, किस तरह ईश्वर, कुंडलिनी, विश्व घटनाचक्र, कॉस्मिक चेतना, सामूहिक चेतना, क्यू.ई. प्रकाश, इत्यादि आपकी मदद उसे पाने में करेंगे जो आप चाहते हैं या जिसकी कल्पना करते हैं।
क्वांटम ऊर्जा का प्रकाश (इसके बाद क्यू.ई. प्रकाश के रूप में संदर्भित), क्वांटम ऊर्जाओं का आध्यात्मिक प्रकाश हैं। क्वांटम ऊर्जाओं के पास आत्मा की बजाय क्यू.ई. प्रकाश होता हैं। भौतिक संसार में लोगों के लिए क्या करना हैं इसकी पहल क्यू.ई. प्रकाश करता हैं। क्यू.ई. प्रकाश की पहल से क्वांटम ऊर्जाएं, वास्तविक संसार (भौतिक संसार) में जो भी हैं उसे प्रदान करतीं हैं। स्वर्ण-युग में, क्यू.ई. प्रकाश अच्छी तरह लोगों को अपनी सेवाएं प्रदान करता हैं। तो, जो भी स्वर्ण-युग के लोग चाहते हैं वो वास्तविक संसार में अस्तित्व में आ जाता हैं। जो लोग स्वर्ण-युग की दुनिया में चलकर जा रहे हैं, वे भी इस सुविधा का आनंद ले सकते हैं जब उनका आध्यात्मिक स्तर अधिक होगा।
इस पुस्तक के अध्यायों में, इसके बारे में स्पष्टीकरण भी हैं:
1. आकर्षण का कानून, आवृत्तियों (frequencies), आभा, क्यू.ई. प्रकाश आदि की प्रतिध्वनि के माध्यम से, आपके लिए धन और समृद्धि की प्रचुरता लाने के लिए कैसे काम करता हैं।
2. कैसे किसी के विचार आदि, उन शुद्ध आवृत्तियों के माध्यम से अस्तित्व में आते हैं, जो वास्तविक संसार में जो हैं उसका सृजन करती हैं।
3. जब हम प्रचुरता की आवृत्तियों (frequencies) से घिरे होते हैं, तब हम जो भी चाहते हैं उसे इन आवृत्तियों की गूंज के माध्यम से, क्यों प्राप्त कर पाते हैं। यह सब संभव हैं क्योंकि मानव आत्मा में क्यू.ई. प्रकाश और क्वांटम ऊर्जाओं के साथ सह-रचनाकार बनने की क्षमता होती हैं। काल-चक्र के पहले आधे भाग में, लोगों के पास जागरूक अवस्था में सह-रचनाकार की तरह कार्य करने की क्षमता थी। हालाँकि, चक्र के दूसरे आधे भाग के लोगों में जागरूक अवस्था में होने पर भी यह क्षमता नहीं हैं। जो लोग स्वर्ण-युग में चलकर जा रहे हैं, वे इस क्षमता को पुनः प्राप्त कर रहे हैं। तो वे सचेत अवस्था में भी, सह-रचनाकार की तरह कार्य करना शुरू कर देते हैं। इस किताब को पढ़ते हुए आप समझेंगे की ऐसा क्यों हैं।
इस पुस्तक में, मैंने यह भी समझाया हैं की किस तरह आपकी कल्पनाएं, विचार आदि अस्तित्व में आते हैं, आत्मा के भीतर मौजूद घटना चक्र और होलोग्राफ़िक ब्रह्माण्ड में मौजूद २डी सूक्ष्म विश्व नाटक के माध्यम से। २डी सूक्ष्म विश्व नाटक एक होलोग्राफ़िक फिल्म की तरह हैं, जिस पर आधारित सब कुछ होलोग्राफ़िक ब्रह्माण्ड में मौजूद हैं। क्वांटम ऊर्जा के तरंग-कण द्वैतता पहलू के कारण, होलोग्राफ़िक ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी मौजूद हैं, वो वास्तविक संसार में भी मौजूद हैं। होलोग्राफ़िक ब्रह्माण्ड में मौजूद, क्यू.ई. प्रकाश और क्वांटम ऊर्जा, २डी सूक्ष्म विश्व नाटक में जो भी हैं उसे पृथ्वी के विश्व घटनाचक्र के रूप में, अमल में ले आते हैं। पृथ्वी पर जो कुछ भी हो रहा हैं वह ठीक वैसा ही हैं जैसा २डी सूक्ष्म विश्व नाटक में हैं। इस पुस्तक को पढ़ते हुए, आप २डी सूक्ष्म विश्व नाटक को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। आप यह भी सीखेंगे की किस तरह आत्मा की गहराईयों में मौजूद विश्व घटनाचक्र और २डी सूक्ष्म विश्व नाटक, आपको वो प्रदान करने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं जिसकी आप कल्पना आदि करते हैं।
भौतिक संसार में सभी आत्माएं २डी सूक्ष्म विश्व नाटक के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इस प्रकार, अगर किसी व्यक्ति को कुछ चाहिए या वो किसी को कुछ प्रदान करना चाहता हैं, तो भौतिक संसार में दूसरे लोग यह जानने में सक्षम होंगे और वो इसी के अनुसार कार्य करेंगे। हालाँकि, २डी सूक्ष्म विश्व नाटक के माध्यम से, इस तरह से मिल-जुल कर केवल चक्र के पहले आधे भाग के लोग रहा करते थे। इसलिए, उन्हें पता होता था की दूसरे क्या चाहते हैं; अगर दूसरे जो चाहते हैं उसे प्रदान करने में वे भी शामिल हैं, तो वे दूसरों को संपर्क करेंगे या दूसरे उनको संपर्क करेंगे (क्योंकि दोनों २डी सूक्ष्म विश्व नाटक के माध्यम से जुड़े हुए हैं)। २डी सूक्ष्म विश्व नाटक द्वारा, वे उन सभी प्रासंगिक परिस्थितियों के बारे में जागरूक हो जाते हैं जो भौतिक संसार में चल रहे विश्व घटनाचक्र में उनकी भूमिका निभाने में उनकी मदद करेंगी। क्योंकि, कलियुग के संसार में, आत्माओं की आध्यात्मिक ऊर्जा कमज़ोर हैं। इसलिए लोगों को नहीं पता की दूसरे क्या चाहते हैं, और उन्हें ये भी नहीं पता की अगर उन्हें कुछ चाहिए तो वे किसके पास जाएँ। २डी सूक्ष्म विश्व नाटक द्वारा, लोगों को जोड़े रखने के लिए मानसिक दृश्य (visualizations) देखना और ध्यान आवश्यक हैं। इस पुस्तक में दिया गया ज्ञान, इन सभी चीज़ों को और अच्छे से आगे समझाता हैं, और पाठक को २डी सूक्ष्म विश्व नाटक द्वारा दूसरों से जुड़ने में मदद करता हैं। इस पुस्तक में जो भी लिखा गया हैं उसका उपयोग करके, व्यक्ति २डी सूक्ष्म विश्व नाटक में उस तरह से हिस्सा लेने में सक्षम हो जायेगा, जिस तरह उसे सम्मिलित होना चाहिए।
हम जिस ब्रह्माण्ड में रहते हैं वह एक देवता की तरह हैं। सहूलियत के लिए, मैं ब्रह्माण्ड के इस पहलू को ब्रह्माण्ड देवता के रूप में संदर्भित करने जा रही हूँ। ब्रह्माण्ड देवता में सम्मिलित हैं:
1. आत्मा की वे ऊर्जाएं जो क्यू.ई. प्रकाश से लिपटी हुई हैं,
2. ब्रह्माण्ड में मौजूद सारी क्यू.ई. प्रकाश ऊर्जाएं,
3. ब्रह्माण्ड में मौजूद सारी क्वांटम ऊर्जाएं, और
4. ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करने वाले सारे कानून।
आत्मा की ऊर्जाएं ब्रह्माण्ड देवता का हिस्सा हैं क्योंकि जब-तक हम भौतिक संसार में रह रहे हैं, हम हर दिन क्यू.ई. प्रकाश और क्वांटम ऊर्जाओं के साथ सह-रचनाकार की भूमिका निभाते हैं, हालाँकि हमे पता नहीं हैं की हम ऐसा कर रहे हैं। हम इस बारे में अवगत नहीं हैं क्योंकि आत्मा की वे ऊर्जाएं जो स्वयं चेतना के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं, वे क्यू.ई. प्रकाश ऊर्जाओं से सह-निर्माण के लिए लिपटी हुई नहीं हैं। यह आत्मा की गहरी ऊर्जाएं हैं जो सह-निर्माण के लिए क्यू.ई. प्रकाश ऊर्जाओं से उलझी हुई हैं, और यह गहरी ऊर्जाएं ही हैं जो क्यू.ई. प्रकाश और क्वांटम ऊर्जाओं के साथ सह-रचनाकार की भूमिका निभा रही हैं। उस विशाल जटिल प्रणाली, जो हमे वो संसार प्रदान करने में सम्मिलित हैं जिसमे हम रहते हैं, के कारण ब्रह्माण्ड देवता को समझना आसान नहीं हैं। हम शायद सिर्फ इसके एक पहलू को समझ गए हों, लेकिन बाकी पहलुओं को नहीं। इस पुस्तक में, मैं संक्षेप में वो समझा रही हूँ जो अभी तक मुझे समझ आया हैं। बाकी का स्पष्टीकरण बाद की पुस्तकों में दिया जायेगा।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए की, उन सभी 'क्यू.ई. प्रकाश और क्वांटम ऊर्जाएं जो निर्माण प्रक्रिया में ईश्वर की तरह कार्य करती हैं' की चर्चा करते वक़्त, मैंने 'क्वांटम देवता' की संकल्पना का इस्तेमाल किया हैं। दरअसल, ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में क्वांटम देवता के पास एक बिंदु हैं और उसमे सम्मिलित हैं:
1. क्यू.ई. प्रकाश ऊर्जाओं का बिंदु स्त्रोत।
2. क्वांटम ऊर्जाओं का बिंदु स्त्रोत।
क्वांटम देवता के अंतर्गत निर्माण प्रक्रिया के दौरान आत्मा की ऊर्जाओं की भूमिका सम्मिलित नहीं हैं। 'ब्रह्माण्ड देवता' की संकल्पना में क्यू.ई. प्रकाश और क्वांटम ऊर्जाओं के साथ निर्माण प्रक्रिया के लिए भूमिका निभाती मानव आत्माओं की ऊर्जाएं शामिल हैं।
क्यू.ई. प्रकाश, भौतिक संसार में सभी चीज़ों को जोड़ता हैं। इसके माध्यम से, आप धन, ज़मीन, सफलता इत्यादि सहित जो भी चाहते हैं उसे पाने में सक्षम होंगे। यह इस पुस्तक में आगे विस्तार से बताया गया हैं।
इस पुस्तक में, मैंने यह भी समझाया हैं की चक्रों, सिद्धियों (शक्तियों), विशेषताओं, साइलेन्स, आदि के बारे में आपका क्या जानना आवश्यक हैं, ताकि आप समझ सके की क्यों और कैसे आप अपने विचारों और कल्पनाओं के माध्यम से वो पाने में सक्षम हैं जो आप चाहते हैं।
स्वर्ण-युग की दुनिया के लोग देवता हैं। इन देवताओं को, जो भी ये चाहते हैं उसे अस्तित्व में लाने के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ता हैं। प्रकृति, विश्व घटनाचक्र, क्यू.ई. प्रकाश एवं क्वांटम ऊर्जा और बाकी सभी चीज़े उन्हें अच्छी तरह अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं। स्वर्ण-युग की दुनिया में, देवता और क्यू.ई. प्रकाश, साथ में, सृजनकर्ता की भूमिका निभाते हैं। तो देवता जिस भी चीज़ की इच्छा करेंगे, वह अस्तित्व में आ जाएगी। जो भी सवर्ण-युग की दुनिया में जाते हैं वे भी इन क्षमताओं को चलकर जाने की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त कर लेते हैं और स्वर्ण-युग की दुनिया में पहुंचने के बाद उनमे यह क्षमताएं होंगी। इसलिए, अपनी अभिलाषाओं को अमल में लाना उनके लिए बहुत ही आसान हो जायेगा। वर्तमान के ज़्यादातार लोग जागरूक अवस्था में कमज़ोर ऊर्जाओं के कारण, क्यू.ई. प्रकाश के साथ सृजनकर्ता की भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। इस कारण से, उनकी इच्छाएं आसानी से पूरी नहीं हो पाती हैं। जब आप इस पुस्तक को पढ़ना जारी रखेंगे तो आप यह बेहतर समझ पाएंगे।
चक्र के अंत में, संगम-युग के माध्यम से विश्व परिवर्तन होता हैं। इस प्रकार, यह अभी संघटित हो रहा हैं। जो भी चलकर जाने की प्रक्रिया में शामिल हैं उन्हें संगम-युग में होना ज़रूरी हैं। संगम-युग में आने के लिए, व्यक्ति को बीके ज्ञान से परिचित करवाना होगा। ईश्वर की साइलेन्स की ध्वनि बीके ज्ञान के साथ चलती हैं। यह आपकी ईश्वर से जुड़ने में सहायता करेगी ताकि आपको संगम-युग में लाया जा सके और आप स्वर्ण-युग में चलकर जा सकें। परिणामस्वरूप, इस पुस्तक में (अध्याय २ से अध्याय १० तक), आपका परिचय उस ज्ञान से करवाया जायेगा जो ब्रह्मा कुमारियों के सात दिवसीय पाठ्यक्रम में दिया जाता हैं। ब्रह्मा कुमारियों में, आने वाले नए लोग, ईश्वर से जुड़ पाते हैं, जब उन्हें यह सात दिवसीय पाठ्यक्रम दिया जाता हैं। सात दिवसीय पाठ्यक्रम के दौरान दिए जाने वाले ज्ञान को स्वीकारने से, आप स्वतः ही ईश्वर से जुड़ने में सक्षम हो जायेंगे। स्वर्ण-युग में चलकर जाने की प्रक्रिया के बारे में पढ़ने से पहले, इस ज्ञान को जान लेने से, यह सुनिश्चित हो जायेगा की आप ईश्वर के संपर्क में हैं ताकि आप इस पुस्तक को पढ़ते हुए अपनी चलकर जाने की प्रक्रिया को आरम्भ कर सकें। आपको चलकर जाने की प्रक्रिया के दौरान ईश्वर से जुड़े होना ज़रूरी हैं क्योंकि आपको उच्च ब्रह्माण्ड में जहाँ नया स्वर्ण-युग संसार निर्मित हैं, तक उठाकर ले जाने के लिए ईश्वर की सहायता की ज़रूरत हैं। उच्च ब्रह्माण्ड में, आप लोकों (विश्व/आयाम) का इस्तेमाल करेंगे, जब आप ऐसी अवस्था में होंगे जहां आप जादुई क्षमताओं से सशक्त होंगे। जब-तक आप उन लोकों में हैं, आप जो भी चाहते हैं उसे आसानी से पा सकेंगे। हालांकि जो लोग चलकर जाने की प्रक्रिया में हैं वह उच्च ब्रह्माण्ड में लोकों और आयामों का इस्तेमाल कर रहे हैं, परन्तु उनका भौतिक शरीर तब भी निचले ब्रह्माण्ड (जहां कलियुग का संसार मौजूद हैं) में ही रहेगा जब-तक उच्च ब्रह्माण्ड में स्वर्ग-युग अस्तित्व में नहीं आ जाता। इस पुस्तक में, मैंने यह सब आगे समझाया हैं। इन लोकों, इनके उचित चक्रों और आभा क्षेत्र, आदि के बारे में जानने से, आपको यह समझने में सहायता मिलेगी की चलकर जाने की प्रक्रिया के दौरान आपके साथ क्या हो रहा हैं, और आप जो भी चाहते, सोचते, कल्पना करते हैं उसे क्यों हासिल कर सकते हैं।
मध्य-संगम युग के देवताओं ने लोक प्रणालियों, पूजा प्रणालियों की स्थापना की थी और बहुत सारा ज्ञान पीछे छोड़ दिया था जिसका उपयोग उनके अगले जन्म (अब) के दौरान होना था। ये मध्य-संगम युग के देवता, सूर्य वंश में चलकर जाने वाली आत्माओं का पिछला जन्म हैं। इस प्रकार, जो भी ज्ञान पीछे छोड़ दिया गया हैं उससे स्वर्ण-युग में चलकर जाने वाले लोगो को अत्यधिक लाभ मिलेगा और वे आसानी से अपने उच्च आयाम का इस्तेमाल करने में सक्षम होंगे। पुस्तक के बाद के अध्यायों में, इस सम्बन्ध में और अधिक समझाया गया हैं।
इस पुस्तक के अध्याय १२ और अध्याय १३ में, मैंने मुरलियों (ब्रह्मा कुमारियों में ईश्वर के वर्ग) को भी प्रस्तुत किया हैं जिससे ब्रह्मा कुमारियों को परिचित करवाया जाता हैं, सात दिवसीय पाठ्यक्रम प्राप्त करने के बाद। इन मुरलियों के ज्ञान का मनन करने से, आपको आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनने में मदद मिलेगी। जैसे ही आप आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बन जायेंगे, आपकी क्षमताएं (जो चाहते हैं उसे पाने की) बढ़ जाएँगी। ऐसा इसलिए क्योंकि आप स्वर्ण-युग में चलकर जाने की प्रक्रिया में हैं।
चलकर जाने के लिए, व्यक्ति को बीके ज्ञान का इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिए। कम-से-कम, व्यक्ति को मेरे द्वारा इस पुस्तक में प्रदान किये गए बीके ज्ञान का इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिए। इस पुस्तक की अंतर्वस्तु आपको उचित बीके ज्ञान प्रदान करती हैं, जिसकी आपको ईश्वर से संपर्क करने के लिए आवश्यकता होगी।
यह पुस्तक विश्व परिवर्तन के लिए ईश्वर की सेवा के भाग के रूप में लिखी गयी थी। इस प्रकार, ईश्वर इस पुस्तक को पढ़ने वाले सभी लोगों की मदद करने के लिए नज़र रखे हुए हैं। इसलिए, वे लोग ईश्वर से जुड़ पाते हैं और स्वर्ण-युग में चलकर जाने का अपना सफ़र आरम्भ कर पाते हैं।
ब्रह्मा कुमारियों में, बीके ज्ञान को धन माना जाता हैं। लगातार बीके ज्ञान का मनन करने से, आप धन जमा करने के अपने अधिकारों को प्राप्त करने में सक्षम होंगे, जिसका आनंद आप चक्र के पहले आधे भाग में ले पाएंगे। हालांकि, जो स्वर्ण-युग में चलकर जा रहे हैं वे इस जन्म में भी अपनी संपत्ति का आनंद ले सकते हैं।
चूंकि इस पुस्तक में दिए गए अभ्यास चलकर जाने की प्रक्रिया के लिए हैं, ईश्वर सिर्फ उन्ही लोगों के लिए माँ की भूमिका निभाते हैं जो इस पुस्तक के अभ्यासों का प्रयोग करते हैं। इसका मतलब हैं की:
1. आपसे उन सभी सख़्त मर्यादाओं का पालन करने की उम्मीद नहीं जाती हैं जिसका पालन ब्रह्मा कुमारियाँ करती हैं। आप जैसे चाहे, वैसे अपना जीवन जी सकते हैं।
2. आप तब-तक सीधे तौर पर ईश्वर की बहुत सारी ऊर्जा के संपर्क में नहीं आएंगे, जब-तक बीके ज्ञान का प्रयोग कर, लगातार और गंभीरता से आध्यात्मिक प्रयास करने के माध्यम से आपका ईश्वर से संपर्क मज़बूत नहीं हो जाता। यदि आप बीके ज्ञान का उपयोग कर गंभीरता से आध्यात्मिक प्रयास नहीं करते हैं, तो आप संगम-युग के प्राण के माध्यम से ईश्वर का बहुत सारा कम्पन अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करेंगे। इस प्रकार, आप आसानी से आनंदमय स्तर को महसूर कर पाएंगे और उसमे बने रहेंगे।
3. ईश्वर हमेशा एक माँ की तरह जो अपने बच्चे से नज़रें नहीं हटा पाती, आपकी मदद और मार्गदर्शन करने के लिए मौजूद रहेंगे।
उपर्युक्त सभी कुछ उन सभी लोगों की आसान प्रयासों द्वारा आसान जीवन व्यतीत करने में सहायता करेगा जो चलकर जाने की प्रक्रिया में हैं, ताकि वे आनंद और ख़ुशी का लुफ़्त उठा सकें, और ताकि आसानी से वो प्राप्त कर सके जिसकी उन्हें अभिलाषा हैं।
ब्रह्मा कुमारियों में, प्रारम्भ में ईश्वर उन लोगों की माँ की भूमिका निभाते हैं जिन्होने अभी-अभी बीके ज्ञान प्राप्त किया हैं। फिर, ईश्वर पिता की भूमिका निभाते हैं ताकि वे लोग आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बन जाएँ। इसका मतलब हैं की शुरुआत में ब्रह्मा कुमारियाँ आसान प्रयासों द्वारा अच्छा समय व्यतीत करती हैं। ईश्वर उनकी आसानी से अच्छा स्तर प्राप्त करने में मदद करेंगे और उन्हें अनुभव प्रदान करेंगे ताकि उनका मनोरंजन हो सके। वे उन लोगों पर अपने कम्पन की बरसात करते हैं, भले ही वे लोग गंभीरता से आध्यात्मिक प्रयास नहीं कर रहे हों। हालांकि, वक़्त के साथ, ईश्वर इन ब्रह्मा कुमारियों के पिता की भूमिका निभाने लगेंगे। इसलिए, इन ब्रह्मा कुमारियों से, ईश्वर से जुड़ने के लिए गंभीर आध्यात्मिक प्रयास करने की उम्मीद की जाती हैं, ताकि वे आनंदमय स्तर का लुफ़्त से सकें और शुद्ध हो जाएँ। ब्रह्मा कुमारियों से बीके मर्यादाओं का सख़्ती से पालन करने की भी उम्मीद की जाएगी। हालांकि, ईश्वर कभी भी उन लोगों के पिता की भूमिका नहीं निभाते जो स्वर्ण-युग में चलकर जाते हैं। ईश्वर उन लोगों के लिए सिर्फ प्यार करने वाली माँ की भूमिका निभाते हैं। अन्य चीज़ों में, 'माँ और बच्चे' के बारे में जो मिथक हैं वो ईश्वर की भूमिका अपने बच्चे की तरफ माँ की तरह दर्शाता हैं (वे जो स्वर्ण-युग की दुनिया में चलकर जा रहे हैं)। यह दर्शाता हैं की कैसे ईश्वर उन लोगों की अच्छी तरह देखभाल करते हैं जो चलकर जा रहे हैं (जैसे एक माँ अपने बच्चे की देखभाल करती हैं)। वे मिथक उसका प्रतिबिम्ब थे जो अंत में होता हैं, स्वर्ण-युग संसार के निर्माण के दौरान।
ब्रह्मा कुमारियाँ उपासना को प्रोत्साहित नहीं करती हैं क्योंकि उन्हें अपने सदस्यों को शक्तिशाली आत्माएं बनने के लिए तैयार करना हैं, क्योंकि ईश्वर ने उन्हें यह सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा हैं की ९००,००० सबसे शक्तिशाली संगम-युग की आत्माएं वास्तविक दुनिया को स्वर्ण-युग की वास्तविक दुनिया ने परिवर्तित करने के लिए तैयार हैं। विश्व परिवर्तन आत्म-परिवर्तन के माध्यम से होता हैं। 'स्वयं को परिवर्तित' करके विश्व को परिवर्तित करना आसान नहीं हैं। जैसा की ब्रह्मा कुमारी में ईश्वर ने अपनी शिक्षा में कहा हैं: यह आपकी मौसी के घर जाने जैसा नहीं हैं। इसलिए, ब्रह्मा कुमारियाँ अपने सदस्यों को भक्ति/पूजा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती हैं। हालाँकि, जो लोग स्वर्ण-युग में चलकर जा रहे हैं, उनका कार्य यह सुनिश्चित करना नहीं हैं की वे विश्व परिवर्तन के लिए तैयार हैं। इस प्रकार, जो लोग चलकर जा रहे हैं वह ईश्वर की आराधना करके, धन-संपत्ति सहित जो भी चाहते हैं उसे पा सकते हैं।
कलियुग के संसार में, लोग धन को कमाते और जमा करते हैं ताकि वे उसे अच्छा समय बिताने और खुशियों का आनंद लेने के लिए प्रयोग कर सकें। इस तरह से अनुभव की जाने वाली ख़ुशी, अस्थायी ख़ुशी हैं। आप अपने धन का इस्तेमाल किये बिना भी खुश रह सकते हैं। आपको बस अपनी आत्मा की गहराईयों में मौजूद खुशियों वाले अपने गुणों को प्रकट करना होगा। दैवीय ऊर्जाओं को प्रकट करने के माध्यम से, आप आसानी से ईश्वर से मज़बूत संपर्क स्थापित कर सकते हैं। फिर, आपके ईश्वर से संपर्क के माध्यम से, आप परमात्मा से खुशियों का महासागर और आनंद प्राप्त करेंगे, और इस तरह आप खुशियों और आनंद से समृद्ध हो जायेंगे। इसका मतलब हैं: आप धन के इस्तेमाल पर निर्भर हुए बिना भी खुश रह सकते हैं। आप दुनिया के स्वामी बन जाते हैं, सभी गुणों और शक्तियों के देवता और स्वामी। इस प्रकार, आप हर वक़्त खुश रहने में सक्षम होंगे।
इसके अलावा, क्योंकि आप स्वर्ण-युग संसार में चलकर जाने की प्रक्रिया में शामिल हैं, आप आसानी से उच्च आयामों में रहते हुए ख़ुशी अनुभव करने में सक्षम होंगे। ईश्वर की ऊर्जाएं, जो उन उच्च आयामों में हैं, खुश रहने में आपकी मदद करेंगी।
स्वर्ण-युग संसार में, आप निरंतर आनंद और ख़ुशी का अनुभव करेंगे क्योंकि आप निरंतर आत्म-जागरूक अवस्था में होंगे। आप इस समय चलकर जाने की प्रक्रिया के दौरान यह क्षमता प्राप्त कर रहे हैं। तो चलकर जाते हुए आप पाएंगे की आपके लिए ख़ुशी, आनंद, आदि का लुफ़्त उठाना बहुत आसान हैं और यह उससे भी ज़्यादा कीमती हैं जो पैसे से ख़रीदी जाती हैं।
स्वर्ण-युग में चलकर जाने की प्रक्रिया को आरम्भ करने के लिए, मैंने इस पुस्तक में जो लिखा हैं उसका इस्तेमाल करें। इस पुस्तक में सुझाये गए अभ्यासों का प्रयोग करना तब-तक जारी रखें जब-तक आप पूरी तरह स्वर्ण-युग संसार में चलकर न पहुंच जाएँ। अपने दिमाग में निरंतर यह विचार बनाये रखें की आप स्वर्ण-युग की दुनिया ने चलकर जा रहे हैं, और आप स्वर्ण-युग में चलकर जाने लगेंगे। आप होलोग्राफ़िक ब्रह्माण्ड में विभिन्न उच्च लोकों का प्रयोग करेंगे, क्योंकि संसार का उत्थान एक ऐसे आयाम में हो रहा हैं जो वर्तमान भौतिक संसार के परे हैं। यह सभी कुछ इस पुस्तक में समझाया गया हैं ताकि आप समझ पाए की जैसे आप स्वर्ण-युग संसार की तरफ़ चलकर जा रहे हैं तो आपको क्या हो रहा हैं। उच्च आयाम में आनंद का अनुभव करना बहुत आसान होगा और जब आप इस पुस्तक को पढ़ना जारी रखेंगे, तब आप समझेंगे की ऐसा क्यों हैं।
इस पुस्तक के अभ्यासों के माध्यम से, आप धन, संपत्ति, लम्बी आयु, अच्छे स्वस्थ, ख़ुशी, आनंद, इत्यादि से समृद्ध हो जायेंगे (भले ही आप स्वर्ण-युग में चलकर जा रहे हैं या नहीं)। इस पुस्तक में दिए गए स्पष्टीकरणों को पढ़ने से, आप समझेंगे की इस पुस्तक में दिए गए अभ्यास काम क्यों करेंगे।
इस पुस्तक में, मैंने ध्यान-दिशानिर्देश प्रदान किये हैं जिनका प्रयोग आप स्वर्ण-युग संसार में जाने और जो आप चाहते हैं उसे पाने के लिए कर सकते हैं। जितना ज़्यादा आप इन ध्यान अभ्यासों का प्रयोग करेंगे, उतनी ही ज़यादा आपकी क्षमता होगी वह प्राप्त करने की जो आप चाहते हैं, केवल एक विचार मात्र से या मानसिक तस्वीर देख कर, और उतना ही आसान आपके लिए उन समाधानों को प्राप्त करना होगा जिनके माध्यम से आप जो चाहते हैं उसे हासिल कर पाएंगे।
भले ही इस पुस्तक में मैंने ज्ञान और अभ्यास प्रदान किये हैं, आप जो करना चाहता हैं उसका चुनाव कर सकते हैं। आपके पास अपने चुनावों को करने की स्वतंत्रता हैं, चलकर जाने की प्रक्रिया के दौरान।
इस पुस्तक में, मैंने विश्व घटनाचक्र, होलोग्राफ़िक ब्रह्माण्ड, चक्र, आभा क्षेत्र, आदि के बारे में अपने स्पष्टीकरणों को सरल कर दिया हैं। यदि आप इस बारे में और जानना चाहते हैं, मेरी पुस्तक 'होलोग्राहिक यूनिवर्स: एन इंट्रोडक्शन' पढ़ें।
अध्याय २ : ब्रह्मा कुमारियों के सात दिवसीय पाठ्यक्रम का परिचय
बीके ज्ञान, जिसे ज्ञान के रूप में भी संदर्भित किया जाता हैं, यह उन मुरलियों से हैं जो ईश्वर की प्रत्यक्ष शिक्षा हैं। ब्रह्मा कुमारियों में, नए छात्र मुरलियों को सुन सके उससे पहले, उनका एक आरंभिक सात दिवसीय पाठ्यक्रम द्वारा बीके ज्ञान से परिचय करवाया जाता हैं। सात दिवसीय पाठ्यक्रम निम्नलिखित के बारे में बुनियादी ज्ञान प्रदान करता हैं:
1. आत्मा।
2. सर्वोच्च-आत्मा / परमात्मा (ईश्वर)।
3. तीन संसार।
4. काल-चक्र और विश्व घटनाचक्र।
5. विश्व वृक्ष।
6. विश्व सीढ़ी।
7. कर्म का कानून।
8. आत्मा की शक्तियाँ एवं उसके दुसरे मूल गुण।
9. ब्रह्मा कुमारियों के राज योग का उपयोग करने के फ़ायदे, ब्रह्मा बाबा के द्वारा ब्रह्मा कुमारियों की स्थापना कैसे हुई थी, आदि।
जब आपका बीके ज्ञान से परिचय करवाया जाता हैं, जो सात दिवसीय पाठ्यक्रम के दौरान दिया जाता हैं, आप ईश्वर से संपर्क में आ जाते हैं। इसलिए, इस अध्याय से दसवें अध्याय तक, आपका परिचय बीके ज्ञान से करवाया जा रहा हैं जो ब्रह्मा कुमारियों के सात दिवसीय पाठ्यक्रम के दौरान दिया जाता हैं। क्यू.ई प्रकाश और क्वांटम ऊर्जा, आदि पर मेरे स्पष्टीकरण भी इनमें से कुछ अध्यायों में संक्षेप में शामिल हैं, ताकि पाठकों को मेरे बाद वाले अध्यायों के स्पष्टीकरणों को इन अध्यायों में जो कहा गया हैं उससे जोड़ने में आसानी हो। हालाँकि, मैंने इन अध्यायों में सिर्फ और सिर्फ बीके ज्ञान देने की पूरी कोशिश की हैं।
सात दिवसीय पाठ्यक्रम में दिया जाने वाला ज्ञान, मुरलियों में जो कहा गया हैं उस पर आधारित हैं। मुरलियों में क्या कहा गया हैं यह आप तब-तक नहीं समझेंगे जब-तक आप इस सात दिवसीय पाठ्यक्रम में भाग नहीं ले लेते। इसलिए, केवल अध्याय १२ और अध्याय १३ में ही, आपको मुरलियों (ब्रह्मा कुमारियों में ईश्वर की शिक्षा) के उद्धरण (extracts) दिए गए हैं।
ब्रह्मा कुमारियों के सदस्यों को एक सख़्त जीवन शैली का निर्वाह करना होता हैं, उन अनुशासनों का पालन करते हुए जिन्हे मर्यादा कहते हैं। क्योंकि स्वर्ण-युग में चलकर जाने की प्रक्रिया में बीके जीवन-शैली का उपयोग नहीं होगा, इसलिए मैं इस पुस्तक में बीके जीवन-शैली या मर्यादाओं के बारे में बात नहीं करुँगी। इस पुस्तक में, बीके सात दिवसीय पाठ्यक्रम, उन लोगों के लिए उपयुक्त बनाया गया हैं जो स्वर्ण-युग में चलकर जा रहे हैं क्योंकि उन्हें उस चलकर जाने की प्रक्रिया के लिए तैयार किया जा रहा हैं। स्वर्ण-युग संसार में जाने वाले लोगों को एक स्वतंत्र जीवन-शैली जीना चाहिए और उनके पास जो वो चाहे उसे करने की आज़ादी होना चाहिए। हालाँकि, इस पुस्तक में कर्म का कानून सिखाया गया हैं क्योंकि जो चलकर जा रहे हैं वे अभी भी दोषों का इस्तेमाल करने में सक्षम हैं। वे सभी जो दोषों का इस्तेमाल करने में सक्षम हैं, वे कर्म के कानून के अधीन हैं।
इस पुस्तक में प्रदान किया गया बीके ज्ञान, आपके ईश्वर के संपर्क में आने और जुड़ने के लिए काफ़ी हैं। यदि आप बीके ज्ञान के बारे में और जानना चाहते हैं, अपने पास के बीके सेंटर पर जाएँ। सभी बीके कक्षाएं मुफ़्त में दी जाती हैं। यदि आप ये न भी करें, तो भी ठीक हैं। इस पुस्तक में जो लिखा गया हैं उसका प्रयोग करने के माध्यम से भी आप ईश्वर से संपर्क बना पाएंगे और चलकर जाने की प्रक्रिया आरम्भ कर पाएंगे। इस पुस्तक में दिया गया ज्ञान, बीके ज्ञान, मेरे अनुसंधनों, अनुभवों और विश्लेषण पर आधारित हैं।
यदि आप ७ दिनों का समय निकाल कर सिर्फ इस पुस्तक में दिए गए ज्ञान के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करें, तो आपको ईश्वर से अपने संपर्क को अनुभव करने और दूसरे अनुभवों को महसूस करने में आसानी होगी। जब आपका मन बीके ज्ञान से तर हो जाता हैं, आप ईश्वर से अपने संपर्क को महसूस करना शुरू कर देते हैं और आपको और भी दूसरे आध्यात्मिक अनुभव होंगे, क्योंकि आपके मन में ज्ञान की परिपूर्णता आपकी बुद्धि को दैवीय बनने के लिए प्रभावित करती हैं, यानी की वो दैवीय बुद्धि बन जाती हैं।
ब्रह्मा कुमारियों का राज योग, जिसका प्रयोग व्यक्ति का ईश्वर से संपर्क स्थापित करने के लिए किया जाता हैं, उसमे मन और विचारों पर नियंत्रण शामिल हैं। ध्यान साधना के लिए प्रयोग होने वाली बीके विधि मूल रूप से निम्नानुसार हैं:
चरण १: विश्राम। सुनिश्चित करें की आप आरामदायक, शांतिपूर्ण अवस्था में हैं बिना किसी तनाव या परेशानी के।
चरण २: एकाग्रता। अपना मन दूसरी सभी चीज़ों से हटा लें और उसे वहां ले जाएँ, जहाँ आपने धयान केंद्रित करने का निर्णय लिया हैं। अपने मन को एकाग्र करते हुए इन पर ध्यान केंद्रित करना शुरू करें:
-ध्यान टिप्पणियों के शब्दों पर।
-बीके ज्ञान पर।
-विचारों और मानसिक-दृश्यों पर, जिन्हे आपने प्रयोग करने का निर्णय लिया हैं, जो बीके ज्ञान पर आधारित हैं।
चरण ३: चिंतन-मनन। इसमें गहराई से बीके ज्ञान के बारे में सोचना शामिल हैं, जिस पर आप ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इसपर चिंतन करने से आपको इसे समझने और अनुभव करने में मदद मिलती हैं।
चरण ४: अनुभूति / अनुभव / प्रबोधन। यह तब होता हैं जब आप बीके ज्ञान पर एक लम्बे समय तक चिंतन-मनन करते हैं।
अध्याय ३ : आत्मा (बीके सात दिवसीय पाठ्यक्रम का पहला दिन)
प्रत्येक जीवित मानव शरीर के भीतर, एक आत्मा हैं। भले ही आपको महसूस हो की आप शरीर हैं, लेकिन आप नहीं हैं; वास्तव में आप शरीर के अंदर मौजूद आत्मा हैं। आत्मा किसी चालक की तरह हैं जबकि शरीर आत्मा के रथ की तरह हैं। आत्मा सभी काम करने के लिए शरीर का उपयोग करती हैं। आप (आत्मा) अपनी आँखों को देखने के लिए, मुँह को बोलने के लिए और कानों को सुनने के लिए उपयोग करते हैं।
आत्मा सदा मौजूद रहती हैं लेकिन शरीर नष्ट को जाता हैं। इसलिए, जब एक व्यक्ति की मृत्यु होती हैं, आत्मा शरीर छोड़ देती हैं। आत्मा का न सृजन किया जा सकता हैं न उसे नष्ट किया जा सकता हैं। केवल शरीर का सृजन और क्षय होता हैं।
मानव शरीर क्यू.ई. प्रकाश और क्वांटम ऊर्जा द्वारा निर्मित हैं। आप क्यू.ई प्रकाश और क्वांटम ऊर्जा भी नहीं हैं। आप आत्मा हैं जो उस भौतिक शरीर का उपयोग करते हैं जिसे इन ऊर्जाओं द्वारा अस्तित्व में लाया गया हैं।
आत्मा सफ़ेद जीवित प्रकाश का एक बिंदु हैं और यह माथे के मध्य (केंद्र) में मौजूद हैं जहाँ इसकी गद्दी स्थापित हैं। भले ही आत्मा का स्थान दिमाग में हैं, लेकिन आत्मा दिमाग का हिस्सा नहीं हैं। दिमाग कंप्यूटर की तरह हैं जबकि आत्मा प्रोग्रामर (क्रमादेशक) की तरह हैं। आत्मा एक ड्राइवर की तरह हैं जो अपनी गाड़ी (शरीर) के नियंत्रण कक्ष (दिमाग) में अपनी सीट (गद्दी) पर बैठा हैं। वहां से, शरीर को नियंत्रित करने के लिए दिमाग का उपयोग किया जाता हैं। आत्मा दिमाग का प्रयोग सोचने, याद रखने, फैसला लेने, आदि के लिए करती हैं। आत्मा दिमाग के अंदर रहते हुए भी यह कर पाने में सक्षम हैं क्योंकि आत्मा की ऊर्जाएं घनिष्ट रूप से उन क्यू.ई प्रकाश की ऊर्जाओं से लिपटी हुई हैं जो दिमाग प्रदान करती हैं। यह क्यू.ई प्रकाश आत्मा के साथ प्रवाहित होता हैं जब आत्मा स्थान परिवर्तित करने, इत्यादि का इरादा रखती हैं। इस प्रकार, वास्तव में आत्मा शरीर को चला रही हैं क्योंकि शरीर की हर हरकत आत्मा के इरादों, आदि पर आधारित होती हैं। यहाँ तक की आत्मा शरीर के माध्यम से ख़ुशी, आदि अनुभव करती हैं। आत्मा उसके शरीर के बिना नहीं रह सकती।
क्योंकि आत्मा आध्यात्मिक हैं, उसे भौतिक आँखों से देखा नहीं जा सकता। आत्मा न पुरुष हैं न महिला।
आप (आत्मा) शरीर का इस्तेमाल सोचने, मनन करने, महसूस करने, कल्पना करने, जीने, पीड़ा अनुभव करने, इत्यादि के लिए करते हैं। आप अपने शरीर के माध्यम से खुद की भावनाओं को व्यक्त भी करते हैं। शरीर के बिना, आप (आत्मा) खुद को व्यक्त करने में सक्षम नहीं होंगे।
आप प्रेम, आनंद, शांति, ख़ुशी, आदि मेहसूस कर सकते हैं क्योंकि आत्मा गुणों एवं शक्तियों से भरी हुई हैं। गुण और शक्तियाँ आत्मा की मूल विशेषताएं हैं। इसलिए, आत्मा इन्हे तलाश करेगी अगर वो इन्हे अनुभव नहीं पाती हैं तो। जब आप खुद के पहचान शरीर में रूप में करते हैं, तब आप आत्मा के गुणों और शक्तियों को अनुभव करने की अपनी क्षमता को सीमित कर रहे होंगे। ब्रह्मा कुमारियों का राज योग आपकी मदद करता हैं ताकि आप:
1. खुद को आत्मा के रूप में अनुभव कर सकें, और
2. आत्मा की मूल विशेषताओं का अनुभव कर सकें।
स्वयं और दूसरों को आत्मा की तरह देखने की ब्रह्मा कुमारियों की प्रथाओं का उपयोग करने से, आपको आसानी से आत्म-जागरूक अवस्था प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। जब आप आत्म-जागरूक अवस्था को अनुभव करते हैं:
1. आप शुद्ध उच्च स्तर पर हैं।
2. आप (आत्मा) ईश्वर के संपर्क में हैं और, इस संपर्क के माध्यम से, आप ईश्वर के कम्पन को खुद (आत्मा) में अवशोषित कर रहे हैं।
3. आत्मा शुद्ध हो जाती हैं और इस शुद्धिकरण प्रक्रिया के माध्यम से आत्मा दैवीय अवस्था में परिवर्तित होने की प्रक्रिया में हैं।
4. आप खुद को शरीर नहीं बल्कि आत्मा के रूप में अनुभव करते हैं। आप अनुभव करेंगे की आप आत्मा हैं जो अपने भौतिक शरीर का उपयोग कर रहे हैं।
5. आप विभिन्न प्रकार के ख़ूबसूरत सूक्षम अनुभव करते हैं।
6. आप आत्मा के प्राकृतिक मूल गुणों का अनुभव कर पा रहे होंगे।
7. आप एक आनंदमय जीवन जी रहे होंगे।
8. आप सब कुछ एक पृथक प्रेक्षक की तरह देखते हैं।
9. आप शारीरिक रूप से जागरूक नहीं होते हैं।
यह याद करते हुए की आप आत्मा हैं, आत्मा के मूल गुणों को याद रखे और इन गुणों को अपने मन में एक उभरे हुई अवस्था में रखें। यह आपको आत्म-जागरूक बनने एवं बने रहने में मदद करेगा। अगर व्यक्ति आत्म-जागरूक नहीं था तो वह शारीरिक रूप से जागरूक हैं।
व्यक्ति शारीरिक रूप से जागरूक होता हैं जब वह दोषों का पालन करने की स्थिति में होता हैं। दोषों में गुस्सा, वासना, लालच, घमंड, अहंकार, आदि शामिल हैं। जब कोई शारीरिक रूप से जागरूक होता हैं:
1. उसे लगता हैं वह भौतिक शरीर हैं।
2. उसका स्तर अच्छा नहीं होता हैं। वह सामान्य स्तर पर होता हैं और इसलिए वह दोषों का पालन करने में सक्षम होता हैं।
जब आप शारीरक रूप से जागरूक होते हैं, आप खुद को सीमित पहचान में बांध लेते हैं, यानी आप खुद की पहचान शरीर, पेशे, लिंग, जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, परिवार आदि के साथ करते हैं। यह जो आप, आत्मा, कर सकती हैं उसे सीमित करता हैं। आत्मा के रूप में, आप अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए, शरीर और परिवार का ध्यान रखने आदि के लिए अपने शरीर का उपयोग करते हैं। आपको सचेत रहना होगा की आप आत्मा हैं जो यह कर रही हैं।
जब कोई शारीरिक रूप से जागरूक होता हैं, वह आत्मा के बाहर खुशियां तलाशता हैं और वह बाहरी चीज़ों पर शांति एवं ख़ुशी के लिए निर्भर हो जाता हैं। व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को भी ख़ुशी और दूसरे गुणों को अनुभव करने के लिए उपयोग करने की कोशिश करता हैं। भौतिक संसार में जो कुछ भी मौजूद हैं वह किसी को भी स्थायी ख़ुशी प्रदान नहीं करता हैं क्योंकि परिस्थितियां और भावनाएं बदलती रहती हैं।
शारीरिक रूप से सचेत अवस्था में, व्यक्ति दोषों का भी उपयोग कर सकता हैं बिना यह महसूस किये की इससे उसे दोषों का उपयोग करते रहने की आदत पड़ जाएगी। जब कोई दोषों का उपयोग करना जारी रखता हैं, तो वह अपनी खुश एवं शांतिपूर्ण स्थिति से दूर हो जाता हैं। इसके बारे में जागरूक हुए बिना, व्यक्ति दोषों का इस्तेमाल करने की कोशिश कर सकता हैं यह देखने के लिए की क्या ख़ुशियों और शांति का आनंद लेने के लिए अवसर मौजूद हैं। जब किसी को वो नहीं मिलता हैं जो उसे चाहिए, वह अपनी ख़ुशियाँ खो देता हैं क्योंकि दोष उस पर काबू कर लेते हैं। जब व्यक्ति को थोड़ा मिलता हैं, वह लालची हो जाता हैं और, और अधिक की इच्छा करने लगता हैं; व्यक्ति इसके द्वारा अपनी ख़ुशियाँ खो सकता हैं।
शारीरिक रूप से जागरूक अवस्था के दौरान, व्यक्ति कोई और ही बनने की कोशिश कर सकता हैं, या फिर वह शायद किसी से ईर्ष्या कर सकता हैं क्योंकि उसे लगता हैं की दूसरे व्यक्ति के पास वो मौजूद हैं जिससे उसे ख़ुशियाँ प्राप्त हो सकती हैं। वास्तव में, हर मानव आत्मा अद्वितीय हैं क्योंकि उसकी आध्यात्मिक ताकत, व्यक्तित्व लक्षण, विश्व घात्माचक्र में भूमिका आदि सब कुछ अलग हैं। इसलिए, व्यक्ति को विश्व घटनाचक्र में अपनी भूमिका को स्वीकारना सीखना चाहिए। इसके अलावा, व्यक्ति को बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर रहने की जगह अपनी आत्मा के भीतर की ख़ुशियों को अनुभव करना सीखना चाहिए।
मानव आत्माएं केवल मानव शरीर में ही पुनः जन्म ले सकती हैं, जानवरों के शरीर में नहीं। यदि आप पिछले जन्मों में या इस जन्म में ऐसा मानते थे की मानव आत्माएं जानवरों के शरीर में पुनः जन्म ले सकती हैं, तो फिर, उस विश्वास के आधार पर, आपको शायद ऐसा अनुभव हो की आप अपने पिछले किसी जन्म में कोई पशु थे।
आत्मा के रूप में, आपने अपने शरीर के भीतर तब प्रवेश किया होगा जब वह आपकी माता के गर्भ में ४ से ५ महीने का था। जब आप भ्रूण में प्रवेश करते हैं, उसे जीवन मिल जाता हैं। आप इस नए जीवन की शुरुआत नए सिरे से करते हैं, अपने वर्तमान जन्म की यादों के लिए नए श्यामपट्ट के साथ।
आत्मा के तीन कार्य या संकाय हैं: मन, बुद्धि और संस्कार (यादें या स्मृति कोष)। संस्कार वो हैं जहां सारी यादें आत्मा के भीतर इकट्ठा होती हैं। ऐसा भी कहा जा सकता हैं की आत्मा मन, बुद्धि और संस्कारों को अपने सेवकों या मंत्रियों की तरह प्रयोग करती हैं। मन, बुद्धि और संस्कार निम्न प्रकार से इस्तेमाल किये जाते हैं:
१. मन (सचेत मन):
- आत्मा मन में नए विचारों, भावनाओं, इच्छाओं, योजनाओं, चित्रों या मानसिक तस्वीरों का निर्माण करती हैं।
- व्यक्ति को अपनी ५ इन्द्रियों (देखना, सुनना, आदि) द्वारा जो भी जानकारी प्राप्त होती हैं वह आत्मा के देखने के लिए मन के भीतर आती हैं।
- मन के भीतर यादों को लाया जाता हैं (स्मृति कोष से), ताकि आत्मा उन्हें देख सके, उन पर विचार कर सके या उनका इस्तेमाल कर सके।
२. बुद्धि:
- बुद्धि जो कुछ भी मन में हैं उसे स्मृति कोष में लाकर रख देती हैं।
- बुद्धि यादें इत्यादि प्रकट करती हैं जो संस्कार संकाय (स्मृति कोष) में मौजूद हैं और उन्हें मन में लेजाकर रख देती हैं।
- आत्मा बुद्धि का प्रयोग समझने, निर्णय लेने, भेद करने, तर्क करने, आंकलन करने आदि के लिए करती हैं।
- आत्मा बुद्धि के माध्यम से आसानी से ईश्वर और दूसरों से संपर्क बना पाती हैं (मन में विचारों, इच्छाओं आदि का सृजन हो जाने के बाद)।
- आत्मा बुद्धि का इस्तेमाल जो कुछ भी मन में हैं उसे अमल में लाने के लिए करती हैं क्योकि बुद्धि की ऊर्जाएं क्यू.ई प्रकाश ऊर्जाओं से उलझी या लिपटी हुई हैं। इस उलझी हुई अवस्था के कारण, क्यू.ई प्रकाश आत्मा के मन में जो भी हैं उसके आधार पर अमल में लाने की प्रक्रिया की शुरुआत करता हैं और क्वांटम ऊर्जाएं वास्तविक संसार में उसे अमल में ले आती हैं।
३. स्मृति कोष (संस्कार):
- संस्कारों को जमा करते हैं, यानी की वर्तमान और पिछले जन्मों की यादें, स्वाभाविक बुद्धि, आदतें, प्रवृत्तियाँ, भावनाएं, स्वभाव, व्यवहार, व्यक्तिगत लक्षण, इच्छाएं, विश्वास, मूल्य, अनुभव, व्यक्ति द्वारा प्राप्त की गयी जानकारियाँ, आदि।
जब भी आप (आत्मा) पुनः जन्म लेते हैं, आपके पिछले जन्मों की पुरानी सभी यादें आपके स्मृति कोष में मौजूद रहती हैं। हालाँकि, वे आपके स्मृति कोष में बहुत गहराई में चली जाएँगी। तो आपकी उन तक उस प्रकार पहुंच नहीं होगी जिस प्रकार आपकी पहुंच आपके वर्तमान जन्म में निर्मित हुई यादों पर होगी।
क्योंकि मन, बुद्धि और स्मृति कोष सभी आत्मा के हिस्से हैं, तो जब मन, बुद्धि या संस्कारों का प्रयोग होगा तब आपको अनुभव होगा की आप कुछ कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, जब आपको कोई अनुभूति होती हैं, आपकी बुद्धि आपके लिए जानकारी प्राप्त करने हेतु उड़ान भरती हैं; लेकिन आपको अनुभव होगा की आप जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने भौतिक शरीर को छोड़ कर जा रहे हैं। वास्तव में, आप भौतिक शरीर को नहीं छोड़ रहे हैं। अगर आप (आत्मा) भौतिक शरीर को त्याग देंगे, तो आप मर जायेंगे। इसलिए, केवल आपकी बुद्धि की कुछ ऊर्जा ही बाहर भेजी जाती हैं। ऐसा महसूस होगा की आप भौतिक शरीर को त्याग रहे हैं क्योंकि मन, बुद्धि एवं संस्कारों की ऊर्जाएं सभी आपका (आत्मा) हिस्सा हैं। वे आपकी ऊर्जाएं हैं।
जब भी आप कुछ याद करना चाहते हैं, आपकी बुद्धि उसे आपके स्मृति कोष से उठाकर आपके मन में रख देती हैं ताकि आप (आत्मा) उसे देख सकें। इस तरह, वह आपको याद रहता हैं। यदि अब आप उस स्मृति या जानकारी को और याद नहीं रखना चाहते हैं, तो आपकी बुद्धि उसे वापस आपके स्मृति कोष में भेज देती हैं। जब आपके मन में कोई स्मृति प्रकट होती हैं, तो आपको लगेगा की उसे आपने याद किया हैं क्योंकि यह आपकी अपनी आत्मा की ऊर्जाएं हैं जिन्होंने स्मृति कोष से यह जानकारी पुनः प्राप्त की हैं।
जब आप कुछ देखते, सुनते, बोलते, सूंघते, या छूते हैं, तब आपके मन के भीतर आत्मा की ऊर्जा पर एक छाप छूट जाती हैं। आत्मा के रूप में, जो आपके मन में आया हैं आप उसे समझते हैं। फिर, आपकी बुद्धि, इन छापों (जो भी आपके मन में हैं उसकी छाप) को लेकर स्मृति कोष में जाकर रख देती हैं। यह छाप आपके स्मृति कोष में स्मृतियों की तरह संग्रहीत की जाती हैं जब तक आपको उनके उपयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं।
जब आप किसी चीज़ के बारे में सोचते हैं, तो बुद्धि उसके अनुरूप सभी उचित स्मृतियों को स्मृति कोष से उठाकर मन में रख देती हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप एक अनानास के बारे में सोचते हैं, तो उसकी छवि सहित उसके स्वाद, आकर, बनावट आदि की सभी यादें आपकी बुद्धि द्वारा आपके मन में रख दी जाती हैं। यदि अनानास के सम्बन्ध में आपको कोई बुरा अनुभव हुआ था, वह भी आपके मन में रख दिया जायेगा जब तक की आप उसे भूलना नहीं चाहते हो।
आप अपने मन का उपयोग कर सोचते, कल्पना करते, और योजनाओं का निर्माण करते हैं। आप अपने मन में जिस चीज़ का निर्माण करते हैं एवं जो कुछ भी आप सीखते हैं उसकी छाप भी आपकी बुद्धि (आपके मन से) द्वारा इकट्ठा करके आपके स्मृति कोष में भेज दी जाती हैं। यह वहां पर भविष्य में उपयोग करने के लिए भी संग्रहित किये जायेंगे।
जब आप कुछ करते हैं, एक नए संस्कार की रचना होती हैं। यह एक आदत की शुरुआत कर सकता हैं। जैसे-जैसे आप इसे करते जाते हैं, वैसे-वैसे यह आदत को प्रबल करता जाता हैं। इस प्रकार, यह एक शक्तिशाली आदत बन जाती हैं।
जब आप एक भावना को अनुभव करते हैं, यह सबसे पहले आपके मन में आती हैं। आप उस भावना को तब अनुभव करते हैं जब वो आपके मन में मौजूद होती हैं। क्योंकि छाप (या प्रभाव) कम्पन हैं, वो दूसरों को या पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए, दूसरे इस बात से अवगत हो जाते हैं की हम कैसा महसूस करते हैं, हम क्या चाहते हैं, वगैरह।
स्मृति कोष में जितनी भी छापें (impressions) हैं, वह कम्पन के रूप में मौजूद हैं। आवश्यकता पड़ने पर, वे मन में, एक छवि की होलोग्राफ़िक छवि को प्रोजेक्ट कर सकते हैं।
आप अपनी बुद्धि का इस्तेमाल, आपके स्मृति कोष में मौजूद या बाहर से प्राप्त किये अवलोकन और तथ्यों के आधार पर निर्णय लेने के लिए भी करते हैं। उदाहरण के लिए, जब आप एक निर्णय लेने के लिए सभी प्रासंगिक तथ्यों पर मनन करने का सोचते हैं, आपकी बुद्धि उन सभी प्रासंगिक तथ्यों को आपके स्मृति कोष से उठाकर आपके मन में रख देती हैं। जब सभी जानकारियां और स्मृतियाँ आपके मन में रख दी जाती हैं, आप आपकी बुद्धि का उपयोग करते हैं यह निर्णय लेने में की, आपके मन में मौजूद तथ्यों में से कौन से तथ्यों को एक अच्छा निर्णय लेने के लिए महत्त्व देना चाहिए। जब आप निर्णय लेने, ज्ञान को समझने, आदि के लिए अपनी बुद्धि का प्रयोग करना जारी रखते हैं, तब अपनी बुद्धि का उपयोग करने की आपकी क्षमता बेहतर हो जाती हैं।
यदि आपके पास ऐसी बुद्धि हैं जिसे आपके स्मृति कोष से बाहर की जानकारियां लाने के लिए प्रशिक्षित किया गया हैं, तो जब आप एक निर्णय लेने की कोशिश करेंगे तब भी आपकी बुद्धि बाहर से जानकारियां लाएगी। जब आपकी बुद्धि आपके भौतिक शरीर से बाहर जाती हैं, जानकारियां लाने के लिए, तब वो आपकी सूक्ष्म तीसरी आँख की तरह होती हैं क्योंकि वो आपको आपके शरीर के बाहर जो हैं उसे देखने में मदद करती हैं। बाहर से प्राप्त सभी जानकारियां:
1. आत्मा के देखने के लिए, मन के भीतर आ सकती हैं। यदि ऐसा होता हैं, तो आत्मा को याद रहेगा की उसने शरीर के बाहर क्या देखा हैं। हालाँकि, कभी-कभी, व्यक्ति को कुछ समय के लिए यह याद नहीं रहता अगर उसने अभी-अभी अपने उस आध्यात्मिक स्तर को बदला हैं जिसे वह उपयोग कर रहा था। इसे याद रखने के लिए, व्यक्ति को इसे याद करते रहना चाहिए जब उसका स्तर परिवर्तित हो रहा होता हैं, या फिर इसे लिख लेना चाहिए जब आपका स्तर अच्छा हैं। यह कुछ वैसा ही हैं जैसे उठने के बाद किस तरह आपको अपने सपनों को याद रखना होता हैं; अगर नहीं, तो शायद आपको अपना सपना याद नहीं रहेगा।
2. सीधे स्मृति कोष में जा सकती हैं। यदि यह होता हैं, तो व्यक्ति को वह अनुभव याद नहीं रहेगा क्योंकि उसने अपने मन में उसे नहीं देखा हैं। हालाँकि, कभी-कभी, जो देखा गया था वह प्रकट हो सकता हैं, या फिर कुछ वक्त बाद बुद्धि उसे मन में लेजाकर रख सकती हैं। यदि ऐसा होता हैं, तो व्यक्ति को कुछ समय बाद वह याद आ जायेगा।
3. स्मृति कोष में जाने से पहले, आत्मा के देखे बिना, अस्थायी तौर पर कुछ समय के लिए मन में रह सकती हैं। यह तब होता हैं जब व्यक्ति अपना स्तर उस समय खो रहा होता हैं जब जानकारी को मन में लाया जाता हैं। हालाँकि, क्योंकि जानकारी व्यक्ति के मन में आ चुकी थी, इसलिए शायद उसे यह अस्पष्ट रूप से याद रहेगी। अगर व्यक्ति उसे अच्छी तरह से याद करने की कोशिश करता हैं, तो बुद्धि आत्मा के देखने के लिए पुनः उस जानकारी को मन में लाकर रख देगी। फिर, व्यक्ति को वह याद रहेंगी। आपको आध्यात्मिक रूप से अच्छी तरह से विकसित और एक शुद्ध स्तर पर होना चाहिए, ताकि आपकी बुद्धि वो करे जो आप चाहते हैं। अगर नहीं, तो जब आप यह याद करने की कोशिश करते हैं की आपने क्या देखा था, तब दोष आपको भ्रमित करने के लिए किसी और ही चीज़ का दृश्य दिखा सकते हैं।
चक्र के दूसरे आधे भाग में, दोष शासन करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देंगे। इस प्रकार, दोष कोशिश करेंगे की:
1. आपको एक उच्च शुद्ध स्तर प्राप्त करने से रोकें।
2. आपको अप्रसन्न महसूस करवाए।
3. आपको भ्रमित करें।
वे शायद आपके मन में संदेह उत्पन्न करें या आपका ध्यान किसी ऐसी चीज़ की तरफ़ आकर्षित करें जिससे आपका स्तर नीचे आ जाये, वे आपको शुद्ध आनंदमय स्तर से दूर करने की कोशिश करें। उदाहरण के लिए, एक अनुभव के दौरान, जब मैं शक्तिशाली स्तर पर बने रहने के लिए ध्यान साधना कर रही थी, मेरे दोषों की ऊर्जा मेरे मन में (इंसानी रूप में बिलकुल मेरी ही तरह दिखते हुए, हाथ में तरबूज़ पकड़े हुए) प्रकट हुई थी और वह वाक्य बना रही थी जैसे देखो! तरबूज़! बहुत स्वादिष्ट! क्या तुम्हें एक चाहिए?
मैंने उस तरबूज़ को देखा जो उसने पकड़ा हुआ था और मुझे ऐसा लग रहा था की एक तरबूज़ खाना अच्छा रहेगा। फिर, मुझे एहसास हुआ की माया (दोष) मुझे ध्यान साधना से दूर खींचने की कोशिश कर रही थी। तो मैंने अपनी अनुभूति में, उस सूक्ष्म इंसानी रूप को ज़ोर से एक लात मारी, और वह बिखरते हुए मेरे मन/अनुभूति से बाहर निकल गया। वास्तव में, इस अनुभव में, बहुत से इंसानी रूप थे जो मेरी तरह दिख रहे थे और उनके पास हर तरह के फल थे। वो इंसानी रूप, जो बिलकुल मेरी तरह दिख रहे थे, वह इस बात का प्रतिबिंब थे की मेरी स्वयं की ऊर्जा 'मोहक फलों' की छवि मेरे स्मृति कोष से मेरे मन में ला रही थीं। मुझे फल खाना पसंद हैं और इसलिए ये छवियां, जो मेरे मन में आ रही थीं, मुझे ललचा रही थीं। क्योंकि दोष आत्मा की ऊर्जाएं हैं, इसलिए अगर हम एक कमज़ोर स्तर पर थे, तो वे बुद्धि की कमज़ोर ऊर्जाओं के साथ एक भूमिका निभा सकते हैं। यही कारण हैं की दोष (बुद्धि की ऊर्जाओं के साथ) मेरे मन में फल ला रहे थे जब मैं ध्यान करने की कोशिश कर रही थी। कभी-कभी, आत्मा के कमज़ोर स्तर के कारण, स्मृतियाँ अपने आप ही मन में प्रकट हो जाती हैं और बुद्धि उन्हें मन में नहीं ला रही हैं। क्योंकि स्मृतियाँ आत्मा की ऊर्जाओं पर अंकित होती हैं, ऐसा प्रतीत होगा की हमारी ऊर्जाएं इन छवियों (फल आदि) को हमारे मन में ला रही हैं।
क्योंकि अनुभूति और छापों में मौजूद छवियों का निर्माण आत्मा की ऊर्जा के माध्यम से इन छवियों की आवृत्तियों को ग्रहण करके होता हैं, इसलिए जब मैंने छवियों को ज़ोर से लात मारी, तो इन कम्पनों ने छवियों की जानकारी को खो दिया