...Tum Kisase Kahti Hogi
By Adarsh Jain
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About this ebook
कविताएँ सामान्यतः एक कवि के जीवन में सच्चे मित्र की भूमिका निभाती हैं जिनके साथ न केवल वो अपनी ख़ुशियाँ जाहिर कर सकता है बल्कि उनकी संगति में अपना जी हल्का करने में भी सहज अनुभव करता है। निजी जीवन की विडंबनाओं से लेकर सामाजिक प्रसंगों पर उसके विचारों तक, न जाने कितने संवाद वो अपनी कविताओं से करता है। इस पुस्तक के शीर्षक "...तुम किससे कहती होगी" में 'तुम' एक कवि का उसकी कविताओं के प्रति संबोधन है। ये विभिन्न विषयों पर लिखी गई कविताओं का संकलन है जिसमें समसामयिक मुद्दों का अवलोकन भी है और कल्पनाओं का प्रतिबिंबन भी। हास्य-व्यंग्य की सरलता है तो जीवन की गहनता भी। श्रृंगार के रंग हैं तो वीर रस की झलक भी है। ये संग्रह एक प्रयास है अनेकों भावनाओं की काव्य यात्रा की निश्छल प्रस्तुति का।
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आई.आई.टी, धनबाद (IIT Dhanbad) से कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग में दोहरी डिग्री (B.Tech+M.Tech) में अध्ययनरत युवा हिन्दी लेखक आदर्श जैन ग्वालियर, मध्य प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। आदर्श जी आई.आई.टी, धनबाद (IIT Dhanbad) की हिन्दी साहित्यिक समिति, चयनिका संघ के छात्र संयोजक भी रहे हैं एवं कॉलेज स्तर पर आयोजित काव्य पाठ, वाद-विवाद, मोनोएक्ट जैसी कई प्रतियोगिताओं में पुरूस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं। कुछ प्रतियोगिताओं में इन्होंने कॉलेज का प्रतिनिधित्व भी किया है। साथ ही देश के कुछ प्रतिष्ठित कवियों के साथ मंच साझा करने का अवसर भी इन्हें प्राप्त हुआ है। वर्तमान में कॉलेज के आखिरी (10th) सेमेस्टर में हैं और अभी मल्टीनेशनल कंपनी के शोध संस्थान में इंटर्नशिप भी कर रहे हैं। जुलाई 2020 से पूर्णकालिक नियुक्ति का ऑफर भी इन्हें, इस कम्पनी द्वारा पहले ही दिया जा चुका है।
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Book preview
...Tum Kisase Kahti Hogi - Adarsh Jain
ISBN : 978-9388202893
Published by :
Rajmangal Publishers
Rajmangal Prakashan Building,
1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road
Aligarh-202001, (UP) INDIA
Cont. No. +91- 7017993445
www.rajmangalpublishers.com
rajmangalpublishers@gmail.com
sampadak@rajmangalpublishers.in
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प्रथम संस्करण : मई 2020
प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन
राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,
सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,
अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत
फ़ोन : +91 - 7017993445
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First Published : May. 2020
eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)
Cover Design : Rajmangal Arts
Copyright © आदर्श जैन
This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India
माता-पिता एवं
चयनिका संघ को
सादर समर्पित
~~
प्रस्तावना
कहा जाता है कि किसी भी कलाकार के लिए उसकी कृतियाँ उसकी सबसे प्रिय मित्र होती हैं। जैसे कोई सच्चा मित्र न केवल अपने साथी के गूढ़तम रहस्यों को जानता है बल्कि उसके जीवन में एक आईने की भूमिका भी निभाता है, वैसे ही किसी रचनाकार के लिए उसकी रचनाओं में या किसी कवि के लिए उसकी कविताओं में उसके निजी जीवन के अनुभव या अवलोकन का प्रतिबिंबित हो जाना स्वाभाविक है। कई दफ़ा एक प्रेक्षक की दृष्टि से अपने जीवन को देखना बड़ा दिलचस्प होता है। मेरे लिए अपनी कविताओं को पढ़ना ठीक वैसी ही अनुभूति है। '...तुम किससे कहती होगी' में 'तुम' यहाँ कविताओं के लिए प्रयोग किया गया सर्वनाम है।
"आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य।"
प्रख्यात गीतकार स्वर्गीय गोपालदास नीरज जी की ये पंक्तियाँ सचमुच कितनी सार्थक हैं। कविताओं का मन की भाव भूमि पर उतर आना यक़ीनन सौभाग्य का ही विषय है। मैंने अक्सर अपनी कविताओं को अपनी सोच की गहराई में चमत्कृत ढंग से आकार लेते हुए महसूस किया है। ये अहसास मेरे लिए विस्मित एवं रोमांचित कर देना वाला होता है जो मुझे अपनी कविताओं के प्रति आस्था से भर देता है। मैं हमेशा ऋणी रहूँगा अपनी कविताओं का जिन्होंने झाँकने के लिए मुझे चुनकर धन्य किया।
घर में मौजूद धार्मिक वातावरण के कारण मेरा नाता हिन्दी पुस्तकों से बाल्यावस्था में ही जुड़ गया था। शायद बचपन में बोये गए हिंदी के बीजों का ही प्रभाव है कि कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ने के बावजूद, जहाँ अंग्रेज़ी में बातचीत करना अनिवार्य होता है, मैंने मन में हिलोर लेने वालीं तमाम भावनाओं को हिन्दी में ही कलमबद्ध करने का चुनाव किया।
कविताओं की मेरी यात्रा स्कूली दिनों में फ़िल्मी गानों की पैरोडी लिखने से प्रारंभ हुई। गानों के बोल में फेरबदल करके अपने दोस्तों को हँसाना और उनका मनोरंजन करना मेरा शौक था। इसी का प्रतिफल है कि मैंने अपनी पहली कविता भी हास्य रस में ही लिखी। विनोदी स्वभाव के होने की वजह से हास्य रस में लिखना मेरे लिए थोड़ा सहज था, इसीलिए अधिकतर शुरुआती कविताएँ हास्य रस में हीं लिखीं गईं। एक चीज़ जो मुझे हास्य-व्यंग्य कविताओं के विषय में विज्ञान का विद्यार्थी होने के तौर पर सबसे अधिक आकर्षित करती है, वो है हर नयी कविता लिखने के लिए, नए एवं अनोखे विषयों की खोज, जो रचनात्मकता को विस्तृत होने का भरपूर अवसर प्रदान करती है।
कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद भी कविताएँ लिखने का क्रम चलता रहा। मैं आई.आई.टी(आई.एस.एम) धनबाद की हिन्दी साहित्यिक संस्था, चयनिका संघ का बहुत आभारी हूँ कि जिसने मुझे वैचारिक एवं साहित्यिक रूप से परिपक़्व होने में मदद की। इसी का परिणाम है कि मैंने हास्य-व्यंग्य के अतिरिक्त भी दूसरे विषयों पर लिखना प्रारंभ किया। मैं हिन्दी–उर्दू के समकालीन विशिष्ठ एवं लोकप्रिय रचनाकारों एवं साहित्यकारों, ख़ास तौर पर डॉ. राहत इंदौरी, डॉ. हरिओम पंवार, प्रो. अशोक चक्रधर, डॉ. कुमार विश्वास, श्री अरुण जेमिनी आदि के प्रति भी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ जिन्हें इस काव्य यात्रा के दौरान निरंतर सुनना और पढ़ना बेहद सुखद रहा और जिनकी काव्यशैली मेरी कुछ कविताओं की प्रेरणा भी बनी।
'...तुम किससे कहती होगी' विभिन्न शैलियों एवं विषयों पर लिखीं गईं कविताओं का संकलन है जिनमें अनुभव और अवलोकन दोनों की ही झलक है।
- आदर्श जैन
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अनुक्रमणिका
शीर्षक
प्रस्तावना
...तुम किससे