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शिवा गौरी: दिव्य प्रेम का जादू: शिवा गौरी, #1
शिवा गौरी: दिव्य प्रेम का जादू: शिवा गौरी, #1
शिवा गौरी: दिव्य प्रेम का जादू: शिवा गौरी, #1
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शिवा गौरी: दिव्य प्रेम का जादू: शिवा गौरी, #1

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About this ebook

प्रस्तुत कृति एक मनभावन भगवान और उनकी सुन्दर सहचरी के मध्य उनके रमणीय निवास, कैलाश में बिताए मोहक पलों को चित्रित करती है। मंत्रमुग्ध करने वाली उनकी लीलाओं को कथा और कविता, दोनों से अत्यंत रोचक बनाते हुए जीवंत करती है। इसका ध्येय उनके दिव्य प्रेम के माध्यम से अध्यात्मिकता के मार्ग को प्रेमपूर्वक रूप से दर्शाना है। भगवान शिव और उनकी सबसे बड़ी भक्त गौरी के बीच प्रेम की अभिव्यक्ति करते हुए यह भक्त और भगवान के एकाकार होने की प्रेम यात्रा भी है।

Languageहिन्दी
Release dateNov 30, 2019
ISBN9781393972747
शिवा गौरी: दिव्य प्रेम का जादू: शिवा गौरी, #1
Author

Dr Manjusha Mohan

Dr Manjusha is a dental surgeon (endodontist) by profession residing in Lucknow. She is an ardent devotee of Lord Shiva. Writing both prose & poetry for the love of the Great Lord is her passion. She also loves singing for Him & is currently learning Indian classical music. Spreading the divine love of Lord Shiva & His consort Gauri is the highest aim of her life; which she has been doing through her web pages, specially dedicated to this Divine Couple on Facebook & Google. She aspires to keep spreading pure love & devotion towards God to as many souls as possible, in her own unique way of writing & devotional singing for her Beloved Lord.

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    Book preview

    शिवा गौरी - Dr Manjusha Mohan

    डॉ मंजूषा

    डॉ0 मंजूषा द्वारा प्रकाशित © 2019

    सर्वाधिकार सुरक्षित डॉ0 मंजूषा

    इस पुस्तक का कोई भी भाग लेखक की पूर्व लिखित अनुमति के बिना फोटोकॉपी, रिकॉर्डिंग, टेपिंग या किसी भी सूचना भंडारण पुनर्प्राप्ति प्रणाली सहित किसी भी रूप में, ग्राफिक, इलेक्ट्रानिक या मैकेनिकल द्वारा उपयोग या पुनः प्रस्तुत या संशोधित नहीं किया जा सकता है। 

    अनुमति के अनुरोधों को डॉ मंजूषा को सम्बोधित किया जाना चाहिए।

    (lovesguddababa@yahoo.co.in)

    अंग्रेज़ी पुस्तक Shiva Gauri: Magic of Divine Love  का हिंदी रूपांतरण

    अनुवादक – माँ भगवती का एक सुपुत्र

    विषय सूची

    भूमिका         

    समर्पण       

    धन्यवाद ज्ञापन      

    1. महान ईश्वर को अभिवादन         

    मेरे भगवान शिव ...

    2. प्रिय पाठकों को     

    3. वास्तविक उपासना       

    4. आध्यात्मिक प्रेम की असीम तरंगें      

    5. अपने प्रभु के लिए गौरी की विशेष आराधना  

    6. प्रेम की वर्षा में साथ-साथ   

    7. प्रेम की गहनता की अनुभूति   

    8. उनका अलौकिक मिलन   

    9. उसके समर्पित गायन की शक्ति    

    10.    प्रभु की गोद में एक श्रेष्ठ दिन     

    11.  उसकी आनंददायक योजनाओं ने उन्हें  

    उल्लासित किया 

    12.  भगवान शिव के प्रेम की उष्णता   

    13.    गौरी ने अपने विशुद्ध प्रेम को व्यक्त किया   

    14.   प्रिय दर्शन की उत्कण्ठा      

    15.  ईश्वरीय प्रेम की जादुई यात्रा पर   

    16.   महाशिवरात्रि (भगवान शिव की पवित्र रात्रि)     

    17.  नन्हा गणेश एवं उसकी मधुर लीलायें         

    18.  गौरी के हृदय से ...       

    प्रिय के प्रेम में उद्बोधित कवितायें 

    प्रेम का नृत्य   

    मेरे मन की आकांक्षाएँ ...   

    तुम्हारे अनन्त प्रेम की गहराई ...  

    ध्यान के शीतल मौन में 

    प्रियवर, तुम्हें देखूँ मैं हर जगह!  

    ऐसा होता है क्यों प्रभु जी?  

    कितना करती हूँ तुमको मैं याद    

    असह्य वियोग  

    प्रेम करो ना मुझसे पिया ...  

    जब भी देखूँ मैं आँखों में तुम्हारी  

    तुम्हारा दिव्य आलिंगन ...  

    मेरे हृदय कमल पर ...  

    खो दिया मैंने स्वयं को तुममें!  

    मैं भी तो रहती हूँ तुममें ...  

    प्रेम का स्वरूप  

    हमारे सबसे प्यारे शिव भगवान   

    भूमिका

    भगवान शिव एवं गौरी के बीच का आध्यात्मिक प्रेम केवल मात्र एक ईश्वरीय युगल का प्रेम नहीं है बल्कि यह निश्चित रूप से ईश्वर एवं उनके भक्त के बीच का प्रेम है। यहाँ पर गौरी केवल भगवान शिव की अर्द्धांगिनी नहीं हैं बल्कि वे शिव-भक्तों में महानतम भक्त हैं। अपनी इस प्रेम यात्रा द्वारा वे हम सभी को एक संदेश देती हैं कि जो भी विशुद्ध हृदय एवं विशुद्ध प्रेम से उन्हीं के जैसा (गौरी के जैसा) निष्काम प्रेम ईश्वर से करेगा, वह निश्चित रूप से उनकी (भगवान शिव की) कृपा एवं प्रेम का पात्र बनेगा, ठीक गौरी की तरह चूंकि वो (ईश्वर) हम सभी के हृदय में विराजमान हैं। वो सभी आत्माओं की आत्मा हैं।

    केवल आवश्यकता है उनके प्रति प्रेम की तीव्रता की, ठीक उसी प्रकार की जिस प्रकार से हम अपने प्रियजनों को प्यार करते हैं, अपने निकटतम प्रियजन को। जब उनके प्रति हमारा प्रेम हमें इतना उत्कण्ठित कर देता है कि हम उनके लिए रुदन करने लगते हैं, उनसे मिलने की तीव्र आकांक्षा होती है, वास्तव में तभी भक्त के हृदय में प्रभु के प्रति भक्ति उत्पन्न होती है। भक्ति जो उन्हीं के द्वारा प्रदत्त है, जो हमें उनकी दिशा में ले जाती है - उस सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य की ओर।

    गौरी, एक साधारण मानवी से एक देवी बन गईं, उनकी शक्ति बन गईं केवल भगवान शिव के प्रति अपने प्रेम की तीव्रता से। क्योंकि, उनके अलावा कुछ भी सत्य नहीं है ... उनके प्रेम से अधिक पवित्र, कोई भी प्रेम नहीं है। अतः यदि हम वास्तव में ईश्वरीय प्रेमानुभूति चाहते हैं तो हमें सीधे उन्हीं से सम्पर्क स्थापित करना होगा, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार हम संबंध स्थापित करते हैं, उस व्यक्ति से जिससे हम सर्वाधिक प्रेम करते हैं।

    यह वास्तविक रूप में सत्य है कि जब हृदय पूर्णरूपेण ईश्वरीय प्रेम से परिपूर्ण होता है तभी सरलता से ईश्वरीय प्रेम की अनुभूति होती है; ऐसी अनुभूति जिसे ईश्वर में सर्वदा अटूट आध्यात्मिक विश्वास द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हो! पूर्ण समर्पण एवं निष्काम प्रेम का भाव तभी जागृत होता है, ईश्वर के प्रति, जो मानवीय जीवन को सही अर्थ प्रदान करता है।

    समर्पण

    मेरे लिए हैं सब कुछ वही, मेरे प्रेमी, मेरे पति,

    एकमात्र संबंधी मेरे एवं सभी संबंधों से परे ...

    हर श्वास मेरी उनमें समाकर, तीव्र अवलम्बन मैं उनका लेकर,

    हूँ साहचर्य की इच्छा करती, मैं उनके आलिंगन की उत्कण्ठा करती ...

    मेरे भगवान शिव व मेरे माता-पिता को समर्पित

    अपने प्रिय के ईश्वरीय रूप को हृदय में स्थापित करते हुए,

    उनका सुमधुर नाम लेते हुए, प्रेमपूर्वक मैं उन्हें पुकारूँ;

    अपना जीवन व आत्मा भगवान शिव को समर्पित करते हुए,

    अटूट विश्वास, विशुद्ध प्रेम एवं श्रद्धा के साथ चलती हूँ

    भयमुक्त हो मैं, उनके द्वारा दिखाये आध्यात्मिक पथ पर ...

    धन्यवाद ज्ञापन

    मेरे पास भगवान शिव को धन्यवाद देने के लिए शब्द नहीं हैं, जो एकमात्र प्रेरणा हैं मेरे सभी प्रयासों के। यह रचना उनकी परिकल्पना है मेरी नहीं, क्योंकि उनके विषय में लिखते हुए मैं उनकी उपस्थिति महसूस करती हूँ। यह उनकी दिव्य शक्ति ही है जिसने मुझसे यह लिखवाया, इसलिए सारा श्रेय उन्हीं को जाता है, जिन्होंने मेरे माध्यम से लिखा।

    मेरी यह पुस्तक, मेरे माता-पिता के निरन्तर एवं अटूट संबल के बिना संभव नहीं थी। मेरे माता-पिता मेरे सभी निर्णयों में मेरे साथ रहे एवं मुझ पर पूर्ण विश्वास रखा। उनके प्रेमयुक्त प्रोत्साहन के बिना मेरे लिए

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