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सोडली महाकाव्य-अफ्रीका की रेत
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सोडली महाकाव्य-अफ्रीका की रेत

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प्रस्तुत कवि बहुत सौभाग्यशाली है कि माँ शारदा की असीम कृपा से उसे गुरु पद रज सिर धारण कर साहित्य की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। कवि के अन्तःकरण से ध्वनि स्फुटित हुई कि हिन्दी साहित्य की एक नई विधा का सृजन किया जाये, और वह नव विधा ‘सोडली’ के रूप में सुधी पाठकों व विद्वान भाषाकारों के सम्मुख रखना, अपार हर्ष का विषय है।
सर्व प्रथम इस नई विधा का परिचय कराना उचित रहेगा। कुण्डली के समान सोडली भी छह पंक्तियों की पद्य है। कुण्डली और सोडली में भिन्नता, जिससे से काव्य सौदर्य में बढोत्तरी हुई है, मात्र यह है कि दोहा के उपरान्त रौला के स्थान पर दो सोरठे हैं। सोडली के दूसरे सोरठे का प्रारम्भ कवि के उपनाम से किया गया है। सोरठे की परिभाषा के अनुसार प्रथम चरण का तुकान्त मिलान तीसरे चरण से होता है, किन्तु सोडली में समाहित सोरठों में दूसरे चरण का तुकान्त मिलान चौथे चरण से भी किया गया है। सोडली का प्रारम्भ दोहे से किया गया है, आदि और समापन समान शब्द या शब्द-युग्म से ही होता है। दोहे के अन्तिम चरण की पुनरावृत्ति प्रथम सोरठा के प्रथम चरण में की गई है।
कुण्डली और सोडली में समानता एवं भिन्नता को निम्नलिखित उदाहरणों से भी समझा जा सकता है-
कुण्डलीः-
पायगा ना यों ही मिला कुण्डलियों के तार।
पहले दोहा आयगा पुनि रौला की धार।।
पुनि रौला की धार आदि से अन्त मिलाना,
छह पंक्ती में ही पूरा मतलब समझाना।
महारथी दोहा का अन्तिम चरण गायगा,
रौला का वो प्रथम कुण्डली मिला पायगा।।कुण्डली।।
सोडलीः-
सोडलियां लिखना कठिन नहीं बहुत आसान।
रौला में दो सोरठा रखें काफिया ध्यान।।
रखें काफिया ध्यान, कुण्डली एक बनाओ।
मिलता पूरा मान, जहाँ जी चाहे गाओ।।
महारथी यह लीक, प्रथम सीखो कुण्डलियां।
करो काफिया ठीक, बने सुन्दर सोडलियां।।सोडली।।
जहाँ तक इस ग्रन्थ में कवि की भाषा का प्रश्न है, प्रायः खड़ी बोली का उपयोग किया गया है लेकिन चूंकि आवास, समाज एवं पर्यावरण का प्रभाव कवि की भाषा पर स्वाभाविक रूप से पड़ता है सो ब्रजभाषा की उपस्थिति भी बृहद रूप से पद्य में समाहित है। काव्य सौन्दर्य को बनाए रखने के लिए अन्य भाषाओं जैसे उर्दू, अंग्रेजी, अरबी या टिग्रीनिया आदि के शब्द भी नैसर्गिक रूप से यदा-कदा जुड़ गये हैं। शुद्ध भाषा रचनाकारों से इस नादानी के लिए क्षमा प्रार्थित है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में कवि ने अपनी भावनाओं की चित्रकारिता प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। सोडलियों का प्रत्येक प्रसंग कवि की कल्पना मात्र है, तथापि कोई प्रसंग जाने या अनजाने किसी वास्तविकता से मेल खा जाता है तो वह महज एक संयोग मात्र ही है। किसी व्यक्ति, समाज या संस्था को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आहत करना कवि का कदापि अंश मात्र भी उद्देश्य नहीं है। फिर भी यदि कोई आहत होता है तो कवि सहृदय क्षमा प्रार्थी है।

Languageहिन्दी
Release dateAug 19, 2018
ISBN9780463788806
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    सोडली महाकाव्य-अफ्रीका की रेत - डॉ. अवधेश किशोर ‘महारथी’

    आमुख

    प्रस्तुत कवि बहुत सौभाग्यशाली है कि माँ शारदा की असीम कृपा से उसे गुरु पद रज सिर धारण कर साहित्य की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। कवि के अन्तःकरण से ध्वनि स्फुटित हुई कि हिन्दी साहित्य की एक नई विधा का सृजन किया जाये, और वह नव विधा ‘सोडली’ के रूप में सुधी पाठकों व विद्वान भाषाकारों के सम्मुख रखना, अपार हर्ष का विषय है।

    सर्व प्रथम इस नई विधा का परिचय कराना उचित रहेगा। कुण्डली के समान सोडली भी छह पंक्तियों की पद्य है। कुण्डली और सोडली में भिन्नता, जिससे से काव्य सौदर्य में बढोत्तरी हुई है, मात्र यह है कि दोहा के उपरान्त रौला के स्थान पर दो सोरठे हैं। सोडली के दूसरे सोरठे का प्रारम्भ कवि के उपनाम से किया गया है। सोरठे की परिभाषा के अनुसार प्रथम चरण का तुकान्त मिलान तीसरे चरण से होता है, किन्तु सोडली में समाहित सोरठों में दूसरे चरण का तुकान्त मिलान चौथे चरण से भी किया गया है। सोडली का प्रारम्भ दोहे से किया गया है, आदि और समापन समान शब्द या शब्द-युग्म से ही होता है। दोहे के अन्तिम चरण की पुनरावृत्ति प्रथम सोरठा के प्रथम चरण में की गई है।

    कुण्डली और सोडली में समानता एवं भिन्नता को निम्नलिखित उदाहरणों से भी समझा जा सकता है-

    कुण्डलीः-

    पायगा ना यों ही मिला कुण्डलियों के तार।

    पहले दोहा आयगा पुनि रौला की धार।।

    पुनि रौला की धार आदि से अन्त मिलाना,

    छह पंक्ती में ही पूरा मतलब समझाना।

    महारथी दोहा का अन्तिम चरण गायगा,

    रौला का वो प्रथम कुण्डली मिला पायगा।।कुण्डली।।

    सोडलीः-

    सोडलियां लिखना कठिन नहीं बहुत आसान।

    रौला में दो सोरठा रखें काफिया ध्यान।।

    रखें काफिया ध्यान, कुण्डली एक बनाओ।

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