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Raj - Leela (Novel) राज - लीला (उपन्यास)
Raj - Leela (Novel) राज - लीला (उपन्यास)
Raj - Leela (Novel) राज - लीला (उपन्यास)
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Raj - Leela (Novel) राज - लीला (उपन्यास)

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About this ebook

श्री मुख्तार अब्बास नक़वी भारतीय संस्कृति, साहित्य एवं सियासत के संगम का ऐसा व्यक्तित्व हैं जिन्होंने तमाम व्यस्तताओं के बावजूद साहित्य एवं लेखन से अपने को जोड़ कर रखा है। सादगी, मिलनसार एवं संस्कारी व्यक्तित्व के धनी श्री मुख्तार अब्बास नक़वी समय-समय पर अपनी धारदार लेखनी से देश-दुनिया के रोमांचक, सामाजिक सरोकार के अनछुए पहलुओं को अपनी रचनाओं की सुन्दर माला में पिरोकर पाठकों के सामने लाते रहे हैं। उपन्यास 'राज-लीला', लेखक की अद्भुत रचना है, आप के सामने उनका यह नया उपन्यास प्रस्तुत है।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateDec 21, 2023
ISBN9789356846647
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    Raj - Leela (Novel) राज - लीला (उपन्यास) - Mukhtar Naqvi

    राज-लीला

    (उपन्यास)

    मुख़्तार नक़वी

    eISBN: 978-93-5684-664-7

    © लेखकाधीन

    प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.

    X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II

    नई दिल्ली- 110020

    फोन : 011-40712200

    ई-मेल : ebooks@dpb.in

    वेबसाइट : www.diamondbook.in

    संस्करण : 2023

    Raj-Leela

    By - Mukhtar Naqvi

    इलाहाबाद के बिहार एवं झारखंड की सीमा से सटे गाँव ‘चन्द्रपुर’ में रामलीला का मंचन चल रहा है। एक आम तौर पर गुजरने वाली सांझ चन्द्रपुर के लोगों के लिए आज कुछ खास थी। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गाँव में रामायण की कथा मंचन की व्यवस्था की गई है। गाँव के लोग अपनी चटाई, बोरा लेकर बैठने की व्यवस्था खुद कर के रामलीला देखने आए हैं, मगर यह रामलीला शुरू होने से पहले ही स्थानीय विधायक एवं मंत्री जनकराम जी का कारवाँ मंच की तरफ़ आता है। मंत्री जी सामान्य से सफ़ेद कुर्ते पायजामे में फूलों की मालाओं से लदे हुए, वहाँ पहुंच कर हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन कर रहे हैं। उनके पीछे-पीछे चेले-चपाटों की भीड़ चल रही है, जो ज़ोर-ज़ोर से नारे लगा रही है। मंत्री जी खुद मुसहर जाति से ही हैं और सादगी ईमानदारी से काम करने वाले शरीफ़ नेता के रूप में जाने जाते हैं, तीन बार एम.एल.ए. का चुनाव भी जीत चुके हैं, इस बार रामलीला के आयोजन का पूरा खर्चा अपने ज़िम्मे लिया है। मंत्री जी जैसे ही मंच के पास आते हैं, रामलीला कमेटी का मैनेजर रामसिंह, मंत्री जी को फूलों का हार पहनाकर उनका स्वागत करता है। फिर मंत्री जी मंच के ऊपर जा कर, माइक के आगे खड़े होकर अपना भाषण शुरू करते हैं-

    "मेरे प्यारे भाइयो और बहनो!

    आज फिर एक बार आप लोगों के सामने आपका अपना सेवक जनकराम खड़ा है और आप सब को दशहरे एवं इस रामलीला के मंचन की बधाई देता है। मुझे बड़ी खुशी होती है जब मैं अपने लोगों के बीच आ कर इतना प्यार पाता हूँ।

    आप सब जानते हैं कि हमारी जाति गरीबी का दर्द दशकों से झेल रही है, आज भी हम शरीर पर आधा कपड़ा और पेट में आधी रोटी के सहारे ज़िन्दा हैं।

    हमारा समुदाय आज़ादी के 70 साल बाद भी हाशिये पर है। यहाँ तक कि दलित समुदाय के लोग भी हमें अपने से नीचे मानते हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और देश के अन्य हिस्सों में मुसहरों की एक बड़ी आबादी रहती है। मगर फिर भी हम लोगों में से ज़्यादातर दिन में 30 रुपये से भी कम की आमदनी पर ज़िंदा हैं। हम गरीबों में भी सबसे ज़्यादा गरीब लोग हैं और किसी सरकारी योजना के हम तक पहुंचने की कहानी दुर्लभ है। दिन भर हम बैठे रहते हैं, हमारे पास कुछ करने को नहीं है। कभी-कभी हमें खेतों में काम मिल जाता है या किसी की डोली उठाने का जिम्मा। मगर अगले दिन फिर भूखे रहते हैं या फिर चूहे, गिलहरी पकड़ते हैं और उसे थोड़ा-बहुत जो अनाज है या घास-फूस उसके साथ खाते हैं। सरकारें बदलती हैं, लेकिन हमारे लिए कुछ नहीं बदलता। हम अब भी अपने पूर्वजों की तरह ही खाते, जीते और रहते हैं। मेरा समुदाय इतना पिछड़ा है कि सरकारी आंकड़ों में भी यह ठीक से दर्ज नहीं है कि उनकी जनसंख्या कितनी है। जबकि बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि पूरे देश में इस समुदाय के 80 लाख से ज़्यादा लोग हैं। मगर मेरे भाइयों-बहनों अब समय बदलेगा। अब आपका ये भाई आप लोगों के हक़ के लिए सरकार में मजबूती से बात उठा रहा है। अब हम मुसहर जाति के दिन बदलेंगे। अब सबको रोज़गार, घर और शिक्षा मिलेगी। पर उसके लिए आप लोग जागरूक बनो, सरकारी योजनाओं का लाभ लो, बच्चों को स्कूल भेजो, खुद भी अपना छोटा-मोटा धन्धा खोलो, सरकार पूरी मदद करेगी, मुख्यमंत्री जी मुसहर समाज के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं, कर भी रहे हैं, और आज हम इस दशहरे के दिन मिलकर अपने समाज की अशिक्षा, गरीबी, बेरोज़गारी के रावण को दहन करने का प्रण लें।"

    मंत्री के इतना कहते ही तालियाँ बजती हैं। मंत्री जी अपना भाषण खत्म करके मंच से उतरते हैं और अपने कारवाँ को वापस ले कर चले जाते हैं। मैनेजर रामसिंह भी मंत्री के जाते ही, मंच के पीछे अपने छोटे से टैन्ट की तरफ़ चला जाता है। मंच पर सीताहरण का दृश्य शुरू हो जाता है। रामलीला मंच पर बैठे चार पांच लोग सीता हरण काण्ड ढोल-हरमुनियम संगीत के साथ लय में गा रहे हैं,

    अपहृत्य शची भार्या शक्यमिन्द्रस्य जीवितुम्।

    नहि रामस्य भार्या मामानीय स्वस्तिमान् भवेत्।।

    ये गायक इसका अर्थ भी समझाते हुए बताते हैं, सीता मैया रावण से कहती हैं कि इन्द्र देवता की आर्या शची का अपहरण करने पर जीवित रह जाना सम्भव है, परन्तु राम की (मुझे) आर्या को ले जाकर कोई कुशल से रह सके यह सम्भव नहीं। तात्पर्य यह है कि राम द्वारा उसका विनाश अवश्यंभावी है।

    दर्शक भी मंत्रमुग्ध होकर दृश्य देख और सुन रहे हैं। चूँकि ‘मुसहर’ जाति के लोग रामायण के पात्रों को पूरे जोश व जुनून के साथ निभाते हैं। अतः उनका कला प्रदर्शन दर्शकों को भी अनूठा आनंद प्रदान करता है। यहाँ राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, सुग्रीव, सुर्पणखा, रावण आदि सभी पात्र मुसहर जाति के ही लोग निभाते हैं।

    रामायण का मंचन पूरे ज़ोरों पर है। सीता हरण का दृश्य चल रहा है। रावण संन्यासी का वेश बनाए हुए, सीता से भिक्षा मांगने आता है।

    जातिरूपेण हितं दृष्ट्रवा रावण मागतम्।

    सर्वेरतिथि सत्कारैः पूजयामास मैथिली।।

    उपानीयासनं पूर्ण पाघेनमिनिमन्त्रय च।

    अब्रवीत् सिद्धमित्येव तदा तं सौम्यदर्शनम्।।

    श्लोक वाचक इसका अर्थ बताते हुए कहते हैं, उस रावण को ब्राह्मण वेश में आया देख सीता मैया ने आतिथ्य-सत्कार की सभी विधियों से उसका पूजन किया और सीता मैया और रावण में संवाद शुरू होता है।

    देवी, तनिक हमका भिक्षा तो देदेई, हम तोहार चौखट पर खड़े हैं। रावण वहाँ की भाषा में संवाद करता है।

    ना महाराज… ना, हमार पति अऊर देवर घर मा नाहीं है। हम तोका घर सी बाहर आई भिक्षा ना देवे सकइ। सीता भी उसी भाषा में जवाब देती हैं।

    तो फिर तोका पाप लागिहै, तू जल के भसम हुई जावेगी। रावण क्रोध में बोलता है।

    ना महाराज…, अइसन ना कीजे…, लात है भिक्षा, तनिक उहा ठहिरो। -सीता।

    रावण सीता से घर से बाहर आ कर भिक्षा देने को कहता है, पर सीता लक्ष्मण रेखा से बाहर नहीं आती। रावण क्रोधित हो कर एक ब्राह्मण भिक्षुक का अपमान करने का आरोप लगाता है, सीता जी ब्राह्मण भिक्षुक का सम्मान करते हुए लक्ष्मण रेखा पार करती हैं और रावण सीता जी का अपहरण करने की कोशिश करता है।

    इसी बीच श्लोक गाने वाले पूरे लै, संगीत के साथ गाते हैं…

    लंका नाम समुद्रस्य मध्ये मम महापुरी।

    सागरेण परिक्षिप्ता निविष्टा गिरि मूर्धनि।।

    तत्र सीते मया सार्ध वने विचरिस्यति।

    न चास्य वनवासस्य स्पृहयिष्यति भामिनि।।

    रावण के इस कथन का अर्थ भी समझाते हैं, चारों ओर फैले जल से घिरी और पर्वत शिखर पर अवस्थित समुद्र के मध्य में लंका नाम की पुरी है। हे मामनी, वहाँ मेरे साथ तुम वनों-उपवनों में विहार करोगी और इस वनवास के जीवन की तुम्हें इच्छा ही नहीं रह जाएगी।

    इसी के साथ श्लोक वाचक दूसरा श्लोक, जो सीता माता, रावण को जवाब में कहती हैं, गाते हैं,

    "पूर्णचन्द्राननं रामं राजवत्सं जितेन्द्रियम्।

    पृथुकीर्ति महाबाहुमहं राममँनुब्रता।।

    त्वं पुनर्जम्बूकः सिंही मामिच्छसि दुर्लमाम्।

    नांह शाक्या त्वया स्प्रष्टुमादित्यस्य प्रभा यथा।।

    इसका अर्थ बताते हुए श्लोक वाचक कहते हैं, सीता मैया रावण को कड़ा उत्तर देते हुए कहती हैं,

    अरे रावण, राजकुमार राम का मुख पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह सुन्दर है, वे जितेन्द्रिय और महान यशस्वी हैं, ऐसे महाबाहु राम में ही मेरा मन लगा है। तुम तो महज़ गीदड़ हो जो दुर्लभ सिंहनी को पाने की इच्छा रखता है। समझ लो कि जैसे सूर्य के प्रकाश को कोई हाथ नहीं लगा सकता, वैसे ही तुम मुझे छू भी नहीं सकते।

    सीताहरण का दृश्य सब को अपनी ओर बांधे हुए है। कोई रावण की हरकत पर गुस्सा करता है, तो कोई दु:खी मन से सीता का दर्द महसूस कर रहा है। भीड़ के साथ-साथ, थाने के दरोगा भी कुर्सी पर बैठे सीता हरण का पूरा आनंद ले रहे हैं। भीड़ में बैठे दरोगा साहेब से, विडीओ बनाने वाला मुरारी शंकर चुटकी लेता है।

    काहे दरोगा जी… आज तो पूरे रस में हो, बड़े ध्यान से रावण-सीता मैया संवाद सुन रहे हो।

    अरे! नहीं भाई…, ई साला…, बुधुआ को देखो तो तनिक…, कोई नहीं कह सके कि…, ई साला…, आदमी है। पतली कमर, छरहरा बदन, पैनी-सी नाक, उस पर होठों पे लगी लिपस्टिक अऊर बिंदी लगाकर तो एक दम लुगाई लगता है। …कसम सीता मैया की। -दरोगा जी सीने पे हाथ मलते हुए बोलते हैं।

    साहेब, कहो तो दशहरे के बाद इसका डांस करा दें, थाने में। -मुरारी

    चुप बुड़बक…, साला…, सुसार ऊ कपड़ा का अंदर तो वही निकलबे ना…, हाँड-मांस का पुतला…, बुधुआ। डांस दिखाना है, तो कोई आइटम गर्ल ला साले…।

    मुरारी मुस्कुराते हुए दरोगा जी की ओर देखता हुआ अपनी आगे की रिकॉर्डिंग में लग जाता है। साथ ही दरोगा जी भी मंचन का आनंद लेने में व्यस्त हो जाते हैं। इधर मंच के पीछे के पण्डाल में कमेटी के मैनेजर रामसिंह, छह फुट लम्बे, काला रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, चौड़ी मूंछे, टांग पर टांग धरे बैठे हैं। सामने मेज़ पर एक देसी शराब की बोतल और एक प्लेट में कुछ नमकीन पड़ी है। नशे में धुत्त रामसिंह अपने नौकर कलुआ को आवाज़ लगाते हैं-

    कलुआ…, कलुआ…, औरे छेदी…, कहाँ मर गए…, सबके सब… मैनेजर चिल्लाता है।

    मैनेजर के सभी नौकर रामलीला देखने में मस्त हैं।

    जी…, जी…, हुजूर…।

    पीछे खड़ी रज्जो, सहमी-सी आवाज़ में उत्तर देती है। रज्जो अपने पति बुधुआ के लिए रात की रोटी लेकर आई है। मैनेजर रामसिंह पीछे मुड़कर अपनी नशे में धुत अधखुली निगाहों से रज्जो को देखता है। रामसिंह ऊपर से नीचे तक रज्जो को निहारता है। रज्जो की जवानी, उसका गठीला बदन, साँवला रंग, कजरारी आँखें, मैनेजर साहब को और मदहोश बना देती हैं।

    "अरे रज्जो…, आ…आ… इधर आ, तू

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