आशामंजरी (सृजन-संग्रह)
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About this ebook
दिल में सोए जज़्बात का समन्दर कब हिलोरें लेने लगा, जान ही न सका। बहरहाल, उसी की परिणति है, "आशामँजरी", जिसमेँ गीत, ग़ज़लें, कविताएँ, कहानी सभी कुछ है, साथ मेँ इश्क़ और ज़िन्दगी के फ़लसफ़े से रूबरू कराते चन्द क़तआत और रूबाइयात भी।
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आशामंजरी (सृजन-संग्रह) - Dr. Asha Kumar Rastogi
समर्पण
-स्व0 बाबूजी को, जिन्होंने हर परिस्थिति मैँ ख़ुश रहना सिखाया।
-स्व0 अम्मा जी को जिनके ममतायी आँचल की छाँव ने हर बला से महफ़ूज़ रखा।
आभार
परमपिता परमात्मा का, साथ ही सारे परिवार, यथा पूनम, अविजित, प्रतिष्ठा, सचिन, प्रिया एवं कुशाग्र, अथर्व व नयना का, जिनके सम्मिलित योगदान के फलस्वरूप आशामँजरी
को वर्तमान कलेवर मिल सका।
- डा0 आशाकुमार रस्तोगी
शुभकामना सन्देश
Text, letter Description automatically generatedशुभकामना सन्देश
शुभकामना सन्देश
दिल की बात
ईश्वर की असीम कृपा है कि आशामँजरी
के रुप में मेरा पहला सृजन संग्रह
आपके सम्मुख है।
चिकित्सा जगत से जुड़ा कोई भी व्यक्ति, छोटा या बड़ा, अत्यधिक व्यस्तता के कारण बहुधा अपने कार्य से इतर कुछ सोच ही नहीं पाता। मैंनें कभी कल्पना भी नहीं की थी कि कभी लेखन जैसे कार्य की ओर उद्यत होने का सुअवसर प्राप्त होगा। मानवीय सम्वेदनाओं का उद्गार कब इतना प्रबल हो पड़े कि चिकित्सक भी लेखनी उठाने को मजबूर हो जाए, कहना बड़ा मुश्किल है।
बहरहाल, पिछले 3-4 वर्षों की साहित्यिक यात्रा में जो कुछ बन पड़ा है, चाहे गीत, भजन, कविता, ग़ज़ल, कहानी अथवा क़ता, रूबाइयात आदि ही क्यों न हों आशामँजरी
में पिरोने की कोशिश की है।
आपसे अनुरोध है कि आशामँजरी
कैसी लगी, यह बताने की अनुकम्पा अवश्य कीजिएगा, चाहे ई-मेल से, फोन से अथवा पत्र-व्यवहार से।
साभार।
(डा0 आशा कुमार रस्तोगी)
एम0 डी0 (मेडिसिन), डी0टी0सी0डी0
भूतपूर्व सँयुक्त निदेशक, उ0प्र0 राजकीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं एवं वरिष्ठ परामर्शदाता, ज़िला चिकित्सालय, मुरादाबाद।
सम्प्रति - फिज़ीशियन एवं हृदय रोग विशेषज्ञ,
श्री द्वारिका हास्पिटल, निकट भारतीय स्टेट बैंक, मोहम्मदी,
ज़िला लखीमपुर खीरी (उ0प्र0) 262604
फोन - 9415559964
ई मेल - dr.ashakumar777@rediffmail.com
(A)
गीत
نغمات
Shape Description automatically generated with medium confidence1. 'बीज की अभिलाषा'
चाह नहीं, नृप-महलों मेँ, शोभित हो, उपवन कहलाऊँ,
चाह नहीं, ऊँचे प्रासादों, का गौरव बन, इठलाऊँ।
चाह नहीं, रानी के, वैभव का, साज़ो-सामान बनूँ,
चाह नहीं, सरमायेदारों का, मस्तक बन इतराऊँ।
चाह, थके से किसी पथिक को, कुछ राहत तो दिलवाऊँ,
किसी परिन्दे का घर भी, अपने तन पर ही बनवाऊँ।
धूल-धूसरित, बच्चे खेलें, नीचे मेरे, देर तलक,
स्वेद-युक्त, बेहाल, श्रमिक का कोई सहारा बन जाऊँ।
चाह, किसी निर्धन कुटिया की, शीतलता, मैं कहलाऊँ,
बन सहस्र दाने, जीवों का, जीवन ख़ुद मैं बन जाऊँ।
बनकर फल, रसदार, तृप्त मानव मन को, मैं कर जाऊँ,
करूँ प्रदूषण दूर, जगत का, कुछ तो मँगल कर जाऊँ।
बात सुनो यदि मेरे मन की, तब तो मैं भी कह जाऊँ,
स्पन्दन है, मुझमेँ भी, कुछ देश के लिए कर जाऊँ।
मुझे फेंक आना, उस पथ पर, जहाँ जा रहे वीर अनेक,
रक्त-स्राव से व्यथित, किसी सैनिक का, सम्बल बन जाऊँ..!
* * *
2. 'अलबेली'
उसे, बखानू कैसे
वो थी अद्भुत, अलबेली।
सँग रहती थी उसके,
अविरल, इक अमिट सहेली।
थी यौवन मेँ, मादकता,
लगती पर, कुशल चितेरी।
रूप, दमकता सोना,
थीं ज़ुल्फें स्याह, घनेरी।।
थी चाल अजब मतवाली,
हर चीज़, सम्हाल, सहेजी।
कितनों ने होश गँवाए,
जब थी मुस्कान बिखेरी।।
बचपन मेँ, वो मेरे,
थी साथ, भले ही खेली।
पर न निभाया मुझको,
लगती थी, कठिन पहेली।।
बड़ी चाह थी, मिलती,
इक बार कभी, वो अकेली।
याद दिलाता उसको,
वो गाँव, ईख व परेली।।
लगी आग, बतलाने,
आई जो बहन फुफेरी।
है उसे ब्याहने आया,
टोले का गँगू तेली।।
मिली तो थीं, बहुतेरी,
पर नज़र, उसी ने फेरी।
आशा
, जो कहानी मेरी,
लगता है वही है तेरी..!
* * *
3. नौकरी
अजब कहानी नौकरी,
देती दिल को मार।
भले रात दिन खपि रहे,
मिलती लेट पगार।।
लखै न कोऊ आपुनो,
भले दोस्त या यार।
ऊपर से पड़ती विकट,
मँहगाई की मार।।
ज़रा देर हो जाए गर,
दफ़्तर मेँ तकरार।
भले कोई परिवार मेँ,
हो कितना बीमार।।
कोई बताए, किस तरह,
रक्खूँ मृदु व्यवहार।
घर मेँ बीवी डाँटती,
आफ़िस, बॉस सवार।।
सेहत की अब कौन विधि,
होए सहेज सम्हार।
आशा
जीवन अब लगे,
है सचमुच बेकार..!
* * *
4. 'करेला'
भले स्वाद मेँ कड़वा, कुछ बकठा, कुछ लगे कसैला,
किन्तु गुणों की खान, आ गया फिर से, मित्र, करेला।
रक्त शर्करा मेँ उपयोगी, हरे व्याधि, अलबेला,
अपच, कब़्ज़ सब दूर, भले दिखता, ज्योँ नाग विषैला।
कोई बेचे, सिर पर रखकर, कोई लगावे ठेला,
लगता सबसे अलग, भले सब्ज़ी का रेलमपेला।
एन्टीआक्सीडेंट्स, विटामिन्स से भरपूर अकेला,
कैप्सूल, गोली का, अब ना, कोई रहे, झमेला।
रोग और दोषों का, तन मेँ, लगा भले हो मेला,
पित्त हरे, कफ़नाशक, खाए गुरू हो चाहे चेला..!
* * *
5. 'कह जाने दो'
बुरा लगे, तो भी सुन लेना, मित्र मेरे,
मन की पीड़ा, आज मुझे, कह जाने दो।
राजाओं, महलों की बातें, ख़ूब कहीँ,
कविता को, झोपड़ियों मेँ भी, जाने दो।
साथ खेल लूँ, जी भर, धूप मेँ, गर्मी मेँ,
बरगद को भी, कुछ तो स्नेह, जताने दो।
कलुषाई, मन की अब, सारी मिट जाए,
धूल-धूसरित, तन मेरा, हो जाने दो।
बारिश मेँ भीगूँ, टोली मेँ साथ चलूँ,
कागज़ की, कश्ती भी ज़रा, चलाने दो।
बच्चों के सँग, मैं भी बच्चा, बन जाऊँ,
बिना बात के, मुझको भी, हर्षाने दो।
गिरे पसीना, टप-टप, उसके यौवन से,
क्रीम, पाउडर को बेशक, बह जाने दो।
प्रेमचंद भी लिख बैठें, तरुणाई पर,
गवई वह सौंदर्य, निखर कर आने दो।
अमराई महकी, टेसू रक्ताभ हुआ,
यादों की ख़ुशबू, इन मेँ बस जाने दो।
भ्रमरों के मदमस्त, मिलन के गुँजन सँग,
साँसोँ का सँगीत, अमर हो जाने दो।
धारदार, बाली गेहूँ की, हो आई,
आज स्वर्ण को जी भरके, शरमाने दो।
नहीं समझना आशा
, बोझिल सत्य मुझे,
मन को कभी, मुझे भी तो, भरमाने दो..!
* * *
6. 'प्रेमालाप'
चिड़िया गाती, चूँ-चूँ करती,
उसको आज, सँवरना है।
छोड़ विरह का गीत, उसे अब
मिलन-राग, मेँ रमना है।।
नहीं चाहिए, चाँदी-सोना,
नहीं महल मेँ रहना है।
अपनी तो, कुटिया है प्यारी,
सजनी के सँग, सजना है।।
अहा, चतुर्दिक दिखता जो,
मदमस्त झूमता गन्ना है।
गेहूं का आगोश प्रबल,
सरसों, खेतों का गहना है।।
हुआ भ्रमर गुन्जार, मनोहर,
पुष्पोँ सँग, उलझना है।
नृत्य तितलियों का, मनभावन,
कलियों सँग, बहकना है।।
अमराई के, झुरमुट मेँ,
मनुहार सरस, फिर करना है।
जाओ मत, यूँ रूठ प्रिये
,
हौले से बस, कुछ कहना है।।
गया क्षोभ, नैराश्य मिट गया,
आशा
सँग विचरना है।
प्रेम-भाव है,