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Ottereki (Vyang Sangrah) ओत्तेरेकी (व्यंग संग्रह)
Ottereki (Vyang Sangrah) ओत्तेरेकी (व्यंग संग्रह)
Ottereki (Vyang Sangrah) ओत्तेरेकी (व्यंग संग्रह)
Ebook275 pages2 hours

Ottereki (Vyang Sangrah) ओत्तेरेकी (व्यंग संग्रह)

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About this ebook

हिन्दी काव्य मंचों की प्रतिष्ठित एवं लोकप्रिय कवयित्री डॉ. कीर्ति काले किसी परिचित की मोहताज नहीं हैं। विगत तीस वर्षों से निरन्तर देश विदेश में अपने मौलिक गीतों, ग़ज़लों, छन्दों एवं अन्यान्य विधाओं की कविताओं से असंख्य श्रोताओं का दिल जीतने वाली डॉ. काले एक मात्र ऐसी कवयित्री हैं जो सभी रसों में लिखती हैं एवं मंचों से प्रस्तुत भी करती हैं। शिष्ट एवं विशिष्ट शैली में मंच संचालन करने में भी इन्हें महारथ हासिल है। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से इन्होंने गद्य व्यंग्य के संसार में दृढ़तापूर्वक कदम रखा है। इनके व्यंग्य लेख विशिष्ट से लेकर जन सामान्य में लोकप्रियता प्राप्त कर चुके हैं।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateJun 3, 2022
ISBN9789355991294
Ottereki (Vyang Sangrah) ओत्तेरेकी (व्यंग संग्रह)

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    Ottereki (Vyang Sangrah) ओत्तेरेकी (व्यंग संग्रह) - Kirti Kale

    1. धरना

    सफलता की सीढ़ी भीड़ के कन्धे पर खड़ी होती है।

    भीड़ जुटाने का सामान बनो, बाद में भीड़ को ही धुनो।

    धरना देने जा रहे थे कि धर लिए गए। धरा भी पुलिस ने होता तब ठीक था लेकिन हमाई ऐसी किस्मत कहाँ! पुलिस धरती, धारा लगाती, एकाध धर भी देती तो क्या? हम मीडिया की नजर में तो आते। मीडिया की नजर में आते तो चौबीसों घण्टे टीवी के पर्दे पर हमई हम छा जाते। मीडिया की नजर में हम न्यूज़ होते। इसलिए जब तक वो कोई दूसरी न्यूज़ उत्पन्न नहीं कर पाते तब तक एक्शन रीप्ले कर करके चौबीसों घण्टे यूज़ होते।

    खेद रहित रचना वापस भेजने तक की जहमत न करने वाले अखबारों के फ्रन्ट पेज पर हमाई फोटू छपती। छपती तो वो भी देखती। देखती तो मुस्कुराती। मुस्कुराते हुए सीने से लगाती और सो जाती। सुनहरे सपनों में खो जाती। और हम आए हाए..

    अखबार तो उसका बाप भी पढ़ता। हमाई फोटो छपी देखता और उसका हाथ हमाए हाथ में देने के लिए कुलबुलाने लगता।

    हम रातों-रात स्टार बन जाते। गली स्तरीय सड़ियल सभा से झाड़ू मारकर बाहर कर दिए गए हम निखट्टू को केई शाह अपने कर कमलों से ससम्मान पार्टी का टिकट देने के लिए लम्बायमान होकर आते।

    कोई सन्देह नहीं कि बड़े-बड़े फिलिम निर्माता हमाई जिन्दगी पे फिलिम बनाने के लिए बदबदाती हुई नालियों के बीच बने हामाए अमीरखाने के बाहर लाइन लगाते। हम किसी को भाव नहीं देते। तुम जैसे केई चपड़घिन्नू तो घण्टों खड़े रहकर हमारा ओटोग्राफ लेते।

    हमाई लिखी सायरी को चवन्नी छाप बताने वाले केई छद्मविभूषण हमें महान बताते। हम पे कहानियाँ रचते, उपन्यास निकलवाते। कच्छा पाँचवीं डबल फेल हम। हमाए साहित्य पर पीएचडियाँ बँटतीं। विश्वविद्यालयों के मेन गेट पे हमाई फोटू लगती। हम यूथ आइकोन कहे जाते।

    सनसनीखेज़ टॉपिक जानकर कविगण हमाए नाम पे लम्बी-लम्बी कविताएँ हाँकते। अपने बारे में जैसा हम भी नहीं जानते वैसा थाँपते। श्रोता उनके लच्छेदार जुमलों के तालाब में लगाते गोते पर गोता। कवि सम्मेलनों में तालियों का पाण्डाल फाड़ू महोत्सव होता।

    जेई मैंने कही कि कैसी भी तिकड़म भिड़ाओ। चोरी करो, बैंक लूटो, डाका डालो या अश्लील ठुमके लगाओ। कुछ भी करके एक बार फेमस हो जाओ। फिर जिन्दगी भर चाँदी काटो और शहद चाटो। सफलता की सीढ़ी भीड़ के कन्धे पर खड़ी होती है। भीड़ जुटाने का सामान बनो, बाद में भीड़ को ही धुनो।

    मजमा जमाने का सामान बनने के लिए टीवी पर दिखना, अखबारों में छपना, फेसबुक, वॉटसप, यूट्यूब पर छाना चाहिए। उसके लिए बेशर्मी से, पूरे आत्मविश्वास के साथ झूठ बोलना आना चाहिए। ये गुण तो हममें कूट-कूटकर भरा है। बस एक बार मीडिया की नजर में आना है फिर तो दुनिया मुट्ठी में और ठोकर में जमाना है।

    लेकिन…

    धरना देने जा रहे थे कि हमें हमाए जालिम बाप ने ही धर लिया। और हम स्टार बनते-बनते रह गए।

    काश हमें पुलिस धरती, हमाई फोटू टीवी पर दिखती, अखबार में छपती तो आज हम भी एक स्टार होते। स्टार साथ देते तो एक मिनट भी नहीं खोते। आश्चर्य नहीं कि हम आज राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे होते।

    **

    2. रोजगार का बाजार

    बेवकूफ हैं वो लोग जो रोजगार के लिए रोते हैं। हम तो जहाँ भी नज़र डालते हैं, रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न होते हैं। कौन कहता है कि हमारा देश रोजगार के मामले में लाचार है। तिकड़मी बुद्धि और जुगाड़ू दृष्टि हो तो चारों तरफ रोजगार ही रोजगार है।

    कौ न कहता है कि हमारा देश रोजगार के मामले में लाचार है। तिकड़मी बुद्धि और जुगाड़ू दृष्टि हो तो चारों तरफ रोजगार ही रोजगार है। लकड़ी के बुरादे से जीरा बनाओ, लाल मिर्च पाउडर में ईंटों का चूरा मिलाओ, धनिया पाउडर में गधे की लीद मिक्स करो और सुबह से शाम तक भन्नाट इन्कम फिक्स करो। डिटर्जेंट से दूध बनाने का कारोबार आजकल जोरों पर है। इसलिए सबसे अधिक पैसा इन मिलावटखोरों पर है।

    एक युवक से पूछा कहाँ नौकरी करते हो? उसने ठसके से उत्तर दिया- नौकरी की आस रखना बेकार है। अपना तो खुद का कारोबार है। मैंने पूछा कैसा कारोबार? वो बोला- उत्तर थोड़ा ट्रिकी है। दरअसल मेरी काजू बनाने की फैक्ट्री है। अन्य देशों में अभी भी काजू पेड़ों पर उगाए जाते हैं लेकिन हमारा देश विश्व गुरु है। यहाँ बाकायदा फैक्ट्री में बनाए जाते हैं। आजादी के इतने वर्षों में हमने आत्मनिर्भरता की नित नई ऊँचाइयाँ छुई हैं। यही वो रत्नगर्भा धरती है जहाँ काजू के अलावा पत्ता गोभी, चावल, आदि बनाने की सैकड़ों फैक्ट्रियाँ उत्पन्न हुई

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