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चाहत: चाहत कभी किसी की पूरी नहीं होती ।
चाहत: चाहत कभी किसी की पूरी नहीं होती ।
चाहत: चाहत कभी किसी की पूरी नहीं होती ।
Ebook81 pages40 minutes

चाहत: चाहत कभी किसी की पूरी नहीं होती ।

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About this ebook

About the book:
मेरी किताब का नाम है " चाहत "। मैने इस किताब मे सरल हिंदी भाषा का प्रयोग किया है ताकि किसी को पढ़ने यां समझने में कोई भी परेशानी ना हो ।मेरी इक कहानी का किसी व्यक्ति के साथ कोई संबंध नहीं है यह एक काल्पनिक कथा है जो मैंने अपने दिमाग की सोच से लिखी है। इस कहानी के माध्यम से मैंने यह बताने का प्रयत्न किया है की हमें अपनी " चाहतों " पर विराम लगाना चाहिए , क्योंकि हमेशा ज्यादा "चाहतें "हमे विनाश की तरफ लेकर जाती है और उस मोड पर खड़ा कर देती है यहां पर हम सिर्फ अकेले ही रह जाते हैं और हमारे साथ कोई नहीं होता ।
About the author:
मेरा नाम निशा जोशी है। "चाहत " मेरी दूसरी किताब है इससे पहले मैंने " कोख " नाम की एक E book लिखी है ।मैं एक पढ़ी लिखी गृहिणी हूं । मुझे पेंटिंग करना बहुत पसंद है आज भी मुझे जब भी समय मिलता है तो मैं पेंटिंग जरूर करती हूं ।मुझे किताबे लिखने का शौक है । मुझे सामाजिक और इतिहासिक किताबे पढ़ना अच्छा लगता है ।मुझे जातिबाद से बहुत नफ़रत है मुझे समाज में हो रहे औरतों के ऊपर अत्याचार से भी बहुत नफ़रत है आज भी हमारे समाज में औरतों को सम्मान नहीं मिल पा रहा ।जिसके पिछे हमारे समाज की छोटी सोच है जो की हमेशा औरतों को पिचे ही रहना सिखाती है औरतों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए।

Languageहिन्दी
PublisherPencil
Release dateMar 14, 2022
ISBN9789356100930
चाहत: चाहत कभी किसी की पूरी नहीं होती ।

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    चाहत - निशा जोशी

    चाहत

    चाहत कभी किसी की पूरी नहीं होती ।

    BY

    निशा जोशी


    pencil-logo

    ISBN 123456789012345

    © Nisha Joshi 2022

    Published in India 2022 by Pencil

    A brand of

    One Point Six Technologies Pvt. Ltd.

    123, Building J2, Shram Seva Premises,

    Wadala Truck Terminal, Wadala (E)

    Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA

    E connect@thepencilapp.com

    W www.thepencilapp.com

    All rights reserved worldwide

    No part of this publication may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise), without the prior written permission of the Publisher. Any person who commits an unauthorized act in relation to this publication can be liable to criminal prosecution and civil claims for damages.

    DISCLAIMER: The opinions expressed in this book are those of the authors and do not purport to reflect the views of the Publisher.

    Author biography

    आज जो कहानी मैं आपको बताने जा रही हूं उसका नाम है चाहत । चाहत कभी भी किसी की पूरी नही हो  पाई ,यह एक सच है , और जिन लोगो की चाहत पूरी होती है यकीन मानो वो लोग बहुत कुछ गंवाते भी है ।     

    दिल्ली शहर के एक बहुत ही बड़े उद्योगपति थे  नाम था मानिकचंद उनकी पत्नी का स्वर्गवास हुए दो साल हो चुके थे उनके एक बेटा और बेटी थी । बेटे का नाम था आदित्य और बेटी का नाम था रूही ।  बेटे की उम्र 15 साल थी और बेटी की उम्र 12 साल थी । पत्नी के गुजरने के बाद मानिकचंद हमेशा अपने आप को अकेला महसूस करते थे ।उन्हे अपनी पत्नी की कमी हमेशा ही महसूस होती थी।

    मानिक चंद के दार्जिलिंग में भी चाय पती के बागान थे । वह कभी कभी वहां चले जाया करते थे वहा जाकार कुछ दिन वहा रहना उन्हे  अच्छा लगता था । मानिक चंद एक दिन बाग में टहल रहे थे  उसकी नजर एक लड़की पर पड़ती है  जो वहां बाग में पतिया चुन रही थी । मानिक चंद ने जैसे ही उसे देखा  उसे देखता ही रह गया , इतनी सुंदर लड़की उसने कभी भी नहीं देखी थी मानो जैसे साक्षात् अप्सरा जमीन पर उतर आई हो चांदी जैसा रंग  बादलों  जैसी काली आंखें इतनी सुंदर की जो भी देखे बस देखता ही रह जाए। 

    कुछ देेर बाद वो लड़की वहां से चली गई ओर मानिकचंद एक टक उसे  देखता ही रह गया  वापिस आकार वह उसी के ख्यालों मे खोया रहा ,सारी  रात  बस उस लड़की के बारे में सोचता रहता है उसी लड़की का चेहरा उसके सामने  बार- बार   आ रहा था ।

    जैसे ही सुबह हुई मानिकचंद उसी जगह पर  चला गया जहां उसने कल वो लड़की देखी थी और  इधर उधर लड़की को ढूंढ़ने लगा लेकिन वह लड़की नहीं दिखी । तभी मुंशी आ जाता है मानिक चंद   मुंशी से पूछता की वह लड़की आज  नहीं आई  जो कल इसी जगह पर पतिया चुन रही थी।

    मुंशी कहता है की कहीं आप गोरी की बात हो नहीं कर रहे हैं कल वही इस जगह पर पतियां चुन रही थी वो शायद आज नही आई।

    मानिकचंद कहता हैअच्छा गोरी नाम है उसका वह कहां रहती है ?

    मुंशी कहता है," जहां पास के गांव मे ही रहती है। बेचारी के मां - बाप नहीं है अपनी बुढी दादी के पास रहती है । 

    मानिकचंद मुंशी को साथ लेकर गोरी

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