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Kya Karegi Hawa
Kya Karegi Hawa
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Ebook154 pages43 minutes

Kya Karegi Hawa

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ग़ज़ल कविता की वह विधा है जिससे मोहब्बत करते हुए उम्र का आइना नहीं देखा जाता। ग़ज़ल रेशम के द्वारा काँटों को फूल बनाने का ऐसा मुश्किल काम है जिसके लिए जवान ख़ून और आँखों की तेज़ रौशनी की ज़रूरत पड़ती है। डॉ. प्रवीण शुक्ल नये ख़ून, नई शब्दावली और नये लहज़े के कवि हैं। उन्होंने अपने शे’रों में जिंदगी के खट्ट्टे-मीठे अनुभवों को शामिल करके ख़ूबसूरत ग़ज़लों के रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी ग़ज़लों में जिंदगी जीती हुई दिखाई देती है। अपने समय और समाज से हटकर कोई भी शायर बड़़ी शायरी नहीं कर सकता। डॉ. प्रवीण शुक्ल की शायरी पूरी तरह ज़मीन से जुड़ी हुई है और हमारी शायरी की रिवायतों पर खरी उतरती है। घर, समाज और जीवन की कड़वी सच्चाइयों को सलीके से अपनी ग़ज़लों की फूलमाला में पिरोने के लिए मैं डॉ. प्रवीण शुक्ल को मुबारकबाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि वह ग़ज़ल के ख़ज़ाने में अपने शे’रों से और भी इज़ाफा करेंगे
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateAug 25, 2021
ISBN9788128816741
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    Kya Karegi Hawa - Dr. Praveen Sukl

    क्या करेगी हवा!

    (ग़ज़ल-संग्रह)

    Icon

    eISBN: 978-81-2881-674-1

    © लेखकाधीन

    डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.

    X-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II

    नई दिल्ली-110020

    फोन: 011-40712100, 41611861

    फैक्स: 011-41611866

    ई-मेल: ebooks@dpb.in

    वेबसाइट: www.diamondbook.in

    संस्करण: 2016

    Kya Karegi Hawa

    लेखक : Dr. Praveen Shukl

    (स्व.) अल्हड़ बीकानेरी जी

    की

    स्मृतियों को...

    लेखक परिचय

    डॉ. प्रवीण शुक्ल की ग़ज़लें प्रेम की ख़ुशबू

    और विसंगतियों के दर्द का आलेख हैं

    लगभग 175 पुस्तकों की भूमिकाएँ लिखने के बाद, आज जब मैं देश-विदेश में अपने नाम को हास्य-व्यंग्य के कवि के रूप में रोशन करने वाले गीतकार, ग़ज़लकार डॉ. प्रवीण शुक्ल के ग़ज़ल-संग्रह की भूमिका लिखने बैठा हूँ, तो अचानक मेरे मन में एक प्रश्न उठा है कि आख़िर यह भूमिका शब्द है क्या? सोचा तो यह बात एकदम समझ में आ गई कि यह ‘भूमिका’ शब्द रंगमंच से आया है। रंगमंच पर पात्र अपना-अपना अभिनय करके जो प्रदर्शन करते हैं उसी को उनकी भूमिका निभाना कहा जाता है। अगर सच कहा जाए तो भूमिका-लेखक को किसी भी पुस्तक की भूमिका लिखते समय उक्त पुस्तक को रंगमंच मानकर और उसमें जो रचनाएँ हैं उन्हें इस रंगमंच का पात्र मानकर, उनके अभिनय अर्थात भूमिकाओं की गुणवत्ता और उनके विविध रूपों की सार्थकता की खोजबीन करनी पड़ती है। कविताओं में आए ‘शब्द’ और उनकी ‘कहन’ उन कविताओं-रूपी

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