गर्म गोश्त: देह व्यापार से जुड़ी हकीकत
By अनिल अनूप
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पुस्तक के संदर्भ में
जेलखाना हो या महिला छात्रावास ,कॉलेज होस्टल हो या होटल ,रेलवे स्टेशन हो या बस अड्डा ,सड़क किनारे स्थित ढाबा ,लाइन होटल हो या फिर बालिका गृह ,महिला आवास गृह सभी जगहों पर देह व्यापार ने अपनी जड़ें जमा ली हैं ।बहुत जगहों पर तो सेक्स वर्करों को लाइसेंस तक होता है लेकिन इन लाइसेंसी सेक्स वर्करों से कई गुना ज्यादा गैर लाइसेंसी और हाई फाई सेक्स वर्कर हैं । लेखक ने अपनी पुस्तक के माध्यम से जिन समस्याओं को उभारा है,उस पर सरकार और समाज को गंभीरता से विचार करना चाहिए ।व्यापक सुधार के प्रयास होना चाहिए अन्यथा इस देश की संस्कृति नष्ट होने के कगार पर पहुंच जाएगी ।
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गर्म गोश्त - अनिल अनूप
गर्म गोश्त
देह व्यापार से जुड़ी हकीकत
BY
अनिल अनूप
pencil-logo
ISBN 9789354581601
© अनिल अनूप 2021
Published in India 2021 by Pencil
A brand of
One Point Six Technologies Pvt. Ltd.
123, Building J2, Shram Seva Premises,
Wadala Truck Terminal, Wadala (E)
Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA
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W www.thepencilapp.com
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Author biography
लिखने का शौक वृत्ति बन गया
Contents
मेरी जैसी कई औरतों को अपना शरीर बार-बार बेचना पड़ता है’’
डांस की आड़ में देह का ब्यापार
एक वैडिंग डांसर की दासतान
'होश संभाला तो खुद को कोठे पर पाया, मां-बाप ने मुझे बेच दिया था'
महिला शोषण के सच
जमीर से तो बेहतर है जिस्म बेचें
संभव है बलात्कार की प्रवृत्ति का उन्मूलन
बाल वेश्यावृत्ति की बढ़ती विभीषिका
स्त्री की भावना को समझना आवश्यक है
एक गरीब लड़के के लिए बाप की दौलत छोड़ भागी
गरीबी की खेत में पनपा मानव तस्करी का पौधा
मेरी जैसी कई औरतों को अपना शरीर बार-बार बेचना पड़ता है’’
एक औरत की जुबान से पहली बार ऐसा सुन कर मैं झिझक गया। सपना ने बेझिझक आगे कहा, ‘‘पेट के लिए करना पड़ता है। इज्जत के लिए घर में बैठ सकती हूं। लेकिन…’’ इसके बाद वह चुपचाप एक गली में गयी और गुम हो गयी।
देश के कोने-कोने से हजारों मज़दूर सपनों के शहर मुंबई आते हैं। लेकिन उनके संघर्ष का सफर जारी रहता है। इनमें से ज्यादातर मज़दूर असंगठित क्षेत्र से होते हैं। सुबह-सुबह शहर के नाकों पर मज़दूर औरतें भी बड़ी संख्या दिखाई देती हैं। इनमें से कइयों को काम नहीं मिलता। इसलिए कइयों को ‘सपना’ बनना पड़ता है। तो क्या ‘‘पलायन’’ का यह रास्ता ‘‘बेकारी’’ से होते हुए ‘‘देह-व्यापार’’ को जाता है?
शहर के उत्तरी तरफ, संजय गांधी नेशनल पार्क के पास दिहाड़ी मज़दूरों की बस्ती है। यहां के परिवार स्थायी घर, भोजन, पीने लायक पानी और शिक्षा के लिए जूझ रहे हैं। लेकिन विकास योजनाओं की हवाएं यहां से होकर नहीं गुजरतीं। इन्होंने अपनी मेहनत से कई आकाश चूमती इमारतें बनायी हैं। ख़ास तौर से नवी मुंबई की तरक्की के लिए कम अवधि के ठेकों पर अंगूठा लगाया है। इन्होंने यहां की कई गिरती ईमारतों को दोबारा खड़ा किया है।
यहां आमतौर पर औरत को 1,00 रुपए और मर्द को 1,30 रूपए/दिन के हिसाब से मज़दूरी मिलती है। ठेकेदार और मज़दूरों के आपसी रिश्तों से भी मजदूरी तय होती है। एक मज़दूर को कम से कम 2,000 रुपए/महीने की ज़रूरत पड़ती है। मतलब उसका 1 दिन का खर्च 66 रुपए हुआ। इतनी आमदनी पाने के लिए परिवार की औरत भी मज़दूरी को जाती है। उसे महीने में कम से कम 20 दिन काम चाहिए। लेकिन 10 दिन ही काम मिलता है। इस तरह एक औरत के लिए 1,000 रुपए/महीना कमाना मुश्किल होता है।
यह मलाड नाके का दृश्य है। थोड़ी रात, थोड़ी सुबह का समय है। सड़क के कोने और मेडिकल के ठीक सामने मज़दूरों के दर्जनों समूह हैं। यहां औरत-मर्द एक-दूसरे के आजू-बाजू बैठ कर बतियाते हैं। यह काम पाने की सूचनाओं का अहम अड्डा है। यहां सुबह 11 बजे तक भीड़ रहती है। उसके बाद मज़दूर काम पर जाते हैं। जिन्हें काम नहीं मिलता वह घर लौट आते हैं।
लेकिन सेवंती खाली नहीं लौट सकती। इसलिए उसकी सुबह, रात में बदल जाती है। उसे नाके से जुड़ी दूसरी गलियों में पहुंच कर देह के ग्राहक ढूंढने होते हैं।
आज रविवार होने के बावजूद उसे 3 घंटे से कोई ख़रीदार नहीं मिल रहा है। इस व्यापार में दलाल कुल कमाई का बड़ा हिस्सा निगल जाते हैं। इसलिए सेवंती दलाल की मदद नहीं चाहती। सेवंती जैसी