Koi Deewana Kehta hai: कोई दीवाना कहता है
()
About this ebook
His songs depicts cultural philosophy, emotions, harmony. His effortless way of narrating songs is remarkable. Hi wonderfully crafts his poetry which is a pleasantry surprise.
This presence in the stage increases its glamor. Hawing melodious voice, unique style, poet and ghazalkar of high class make his apart from others. Along with poetry, his style of reciting his poems spell bound the audience.
If any poet, after Gopal Das Neeraj, Who has proved himself an the stage is none other than Dr. Kumar Vishwas.
Related to Koi Deewana Kehta hai
Related ebooks
रूमी का काव्य (अंग्रेजी से अनुवाद) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsGhar Aur Bhahar (घर और बहार) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJaishankar Prasad Kavita Sangrah : Prem Pathik - (जय शंकर प्रसाद कविता संग्रह: प्रेम पथिक) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsहृदय की देह पर Rating: 5 out of 5 stars5/5Chanakya Neeti in Hindi Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsRangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPath Ke Davedar (Hindi) Rating: 5 out of 5 stars5/5Rigveda in Hindi Rating: 0 out of 5 stars0 ratings@ Second Heaven.Com (@ सैकेंड हैवन.कॉम) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPremchand Ki Jabtsuda Kahaniyan - (प्रेमचन्द की ज़ब्तशुदा कहानियां) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsYogi Kathaamrt : Ek Yogi Ki Atmakatha Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsRamayan Ke Amar Patra : Mahasati Sita - रामायण के अमर पात्र : महासती सीता: Mythology Novel, Fiction Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsSrimad Bhagwad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता : सरल व्याख्या-गुरु प्रसाद) Rating: 5 out of 5 stars5/5Karmyog (कर्मयोग) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsपाप-पुण्य (In Hindi) Rating: 4 out of 5 stars4/5PREMCHAND KI PRASIDH KAHANIYA (Hindi) Rating: 5 out of 5 stars5/5CHANAKYA NITI EVAM KAUTILYA ARTHSHASTRA (Hindi) Rating: 4 out of 5 stars4/5SHRESTH SAHITYAKARO KI PRASIDDH KAHANIYA (Hindi) Rating: 5 out of 5 stars5/5Ashtavakra Gita (अष्टावक्र-गीता) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsShrimad Bhagwat Puran Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsTijori Ka Rahasya: Jasusi Dunia Series Rating: 5 out of 5 stars5/5Bahurupiya Nawab Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsSparsh Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBrida - Hindi Rating: 3 out of 5 stars3/5Do Log Rating: 4 out of 5 stars4/5Titli (तितली) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsSAMASYAYO KA SAMADHAN - TENALI RAM KE SANG (Hindi) Rating: 2 out of 5 stars2/5Seva Sadan - (सेवासदन) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKhullam Khulla: Rishi Kapoor Dil Se Rating: 5 out of 5 stars5/5Anandmath - (आनन्दमठ) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related categories
Reviews for Koi Deewana Kehta hai
0 ratings0 reviews
Book preview
Koi Deewana Kehta hai - Dr. Kumar Vishwas
है
तुमने इतना सब लूटा है,
हर गायन में कुछ छूटा है…
बाँसुरी चली आओ
तुम अगर नहीं आयीं, गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोड़ेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमन्त्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
शाम की उदासी में याद संग खेला है
कुछ गलत न कर बैठे, मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ, चोट का निमन्त्रण है,
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमन्त्रण है
तुम अलग हुई मुझ से साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से, वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कँचनी कसौटी को, खोट का निमन्त्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमन्त्रण है
मन तुम्हारा हो गया
मन तुम्हारा
हो गया तो हो गया।
एक तुम थे जो सदा से अर्चना के गीत थे,
एक हम थे जो सदा ही धार के विपरीत थे।
ग्राम्य-स्वर कैसे कठिन आलाप, नियमित साध पाता,
द्वार पर संकल्प के लखकर पराजय कँपकँपाता।
क्षीण-सा स्वर
खो गया तो खो गया।
मन तुम्हारा
हो गया तो हो गया।
लाख नाचे मोर-सा मन, लाख तन का सीप तरसे, कौन जाने किस घड़ी, तपती धरा पर मेघ बरसे।
अनसुने चाहे रहे तन के सजग शहरी बुलावे,
प्राण में उतरे मगर जब सृष्टि के आदिम छलावे।
बीज बादल
बो गया तो बो गया
मन तुम्हारा
हो गया तो हो गया।
मैं तुम्हें ढूँढने
मैं तुम्हें ढूँढ़ने, स्वर्ग के द्वार तक
रोज़ जाता रहा, रोज़ आता रहा
तुम ग़ज़ल बन गयीं, गीत में ढल गयीं
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा…
ज़िन्दगी के सभी रास्ते एक थे
सबकी मंज़िल तुम्हारे चयन तक रहीं
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद
मन की गोपन-कथाएँ नयन तक रहीं
प्राण के पृष्ठ पर प्रीति की अल्पना
तुम मिटाती रही, मैं बनाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गयीं, गीत में ढल गयीं
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा…
एक ख़ामोश हलचल बनी ज़िन्दगी
गहरा-ठहरा हुआ जल बनी ज़िन्दगी
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ
उर्मिला का कोई पल बनी ज़िन्दगी
दृष्टि-आकाश में आस का इक दिया
तुम बुझाती रही, मैं जलाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गयीं, गीत में ढल गयीं
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा…
तुम चली तो गयीं मन अकेला हुआ
सारी यादों का पुरज़ोर मेला हुआ
जब भी लौटी नई खुशबुओं में सजी
मन भी बेला हुआ, तन भी बेला हुआ
खुद के आघात पर, व्यर्थ की बात पर
रूठती तुम रही, मैं मनाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गयीं, गीत में ढल गयीं
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा….
मैं तुम्हें ढूँढने, स्वर्ग के द्वार तक
रोज़ जाता रहा, रोज़ आता रहा….
प्यार नहीं दे पाऊँगा
ओ कल्पवृक्ष की सोनजूही
ओ अमलतास की अमल कली
धरती के आतप से जलते
मन पर छायी निर्मल बदली
मैं तुमको मधुसद्गन्ध युक्त, संसार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ़, तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा
तुम कल्पवृक्ष का फूल और
मैं धरती का अदना गायक
तुम जीवन के उपभोग योग्य
मैं नहीं स्वयं अपने लायक
तुम नहीं अधूरी ग़ज़ल शुभे!
तुम साम-गान सी पावन हो
हिमशिखरों पर सहसा कौंधी
बिजुरी-सी तुम मनभावन हो
इसलिए व्यर्थ शब्दों वाला, व्यापार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ़, तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा
तुम जिस शय्या पर शयन करो
वह क्षीर-सिन्धु सी पावन हो
जिस आँगन की हो मौलश्री
वह आँगन क्या वृन्दावन हो
जिन अधरों का चुम्बन पाओ
वे अधर नहीं गंगा तट