इश्क जहर है: जज़्बातो की मौत
By मुकेश कुमार
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About this ebook
प्रस्तुत पुस्तक, इश्क ज़हर है: ज़ज़्बातों की मौत एक आत्मकथात्मक पुस्तक है जिसमें रुबाई, गज़ल, नज़्म और शेरो-शायरी जैसी कविताएँ शामिल हैं। अधिकांश कविताएँ व्यक्तिगत जीवन पर आधारित हैं और बाकी सामाजिक अनुभवों पर आधारित हैं। जब आप कविताओं से गुजरेंगे तो आपको लेखक के असली दर्द का एहसास होगा जो आपके जीवन से जुड़ता हुआ नजर आता है।
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Book preview
इश्क जहर है - मुकेश कुमार
ग़ज़ल
हिज़्र
कितने तेज़ भागते होंगे कितने मुस्कुराते होंगे
जाने कैसे लफ़ंगे होंगे जो उसके पास आते होंगे।
यूँ फ़िराक में उसके और तो ज़्यादा क्या होता होगा
यूँ ही मेरे गाल हैं गीले और गीले हो जाते होंगे।
रात होते ही जुगनूँ मुझे देखने के लिए ठहरने लगे
मेरी मख़मूर आँखों में जलती लौ देखने आ जाते होंगे।
एक शख़्स था जिसका बेसब्री से इंतज़ार करते थे
औरों से मुझे क्या मतलब हो आते हो आते होंगे।
मेरे दिल के दरवाज़े खुले रहे बंद होने की मत पूछे
भीत के रंग उड़े होंगे आँगन सूने रह जाते होंगे।
मेरे मरने के बाद कुछ तो रोएँगे कुछ हसेंगे
यानी मेरे मरने के बाद भी जी लिए जाते होंगे।
ऐसे इश्क़ में खोके मैंने ख़ल्वत–ए–ग़म से तौबा कर ली
मैं बेचैन हूँ ख़ुद को देख के उनके दम न जाते होंगे।
दोस्तों कुछ तो रहम करो यूँ हिज़्र से दुखी रूहों पर
वो दो बिछड़ते होंगे एक दूजे से वो तो मर जाते