खुशी का भ्रम
By Ken Luball
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About this ebook
खुशी का भ्रम; डर के बजाय प्यार को चुनना द अवेकनिंग टेट्रालॉजी की किताब 4 है। यह पुस्तक यह उजागर करती है की कैसे हम जीवन मे कई झूठे रास्तों को अपना सकते हैं और कैसे हम अपने जीवन में वास्तविक आंतरिक शांति और उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं।
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खुशी का भ्रम - Ken Luball
विश्व के बच्चों को समर्पित
हम यह पुस्तक विश्व के बच्चों को समर्पित कर रहे हैं। हमारी आशा है कि आपके माता-पिता, और अन्य जो आपसे प्यार करते हैं, इस पुस्तक को पढ़ेंगे और ऐसा करके, समझदारी से आपके जीवन के मार्ग को चुनने मे आपकी मदद करेंगे। हमारी इच्छा है कि आपका सफर प्यार, खुशी और आश्चर्य से भरा हो।
प्रस्ताव (Above heading in hindi)
दुनिया के बच्चों के लिए (Above heading in hindi)
Text Description automatically generated(Description of above image- जैसे ही आप पैदा होते हैं आपको एक नाम, एक धर्म, एक राष्ट्रीयता और एक जाति दी जाती है। आप अपना शेष जीवन एक काल्पनिक पहचान की रक्षा में बिताते हैं)
––––––––
जैसे-जैसे आप बड़े होते जाओगे,
आप देखोगे कि जीवन कैसा बहुत चुनौतीपूर्ण रूप ले सकता है।
––––––––
दुनिया रहने के लिए हमेशा बहुत अच्छी जगह नहीं होती।
आप बहुत सारी ऐसी चीजें देखोगे जो आपको हैरान कर देंगी,
इतने लोगों के साथ बुरा क्यों होता है।
आप ऐसे लोगों को देखोगे जिनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है,
या रहने की जगह, और अन्य,
जो किसी को इसलिए पसंद नहीं करते क्योंकि वे अलग हैं।
ऊपर की तस्वीर के विपरीत, आपकी त्वचा का रंग चाहे जो भी हो,
आप जिस देश मे रहते हैं, आपका नाम, धर्म,
या कोई अन्य मतभेद हैं,
यह महत्वपूर्ण है कि आप विश्वास नहीं
करें कि
कोई भी बेहतर है या
किसी और से ज्यादा महत्वपूर्ण।
सभी का जीवन समान रूप से महत्वपूर्ण है
,
किसी भी कथित मतभेद के बावजूद जो हमारे बीच हैं।
एक अच्छे जीवन का आपकी नौकरी से कोई संबंध नहीं है,
आप कितना पैसा कमाते हो,
आप प्रसिद्ध हो या जो भी आप बड़े होते हुए सुनते हो।
बल्कि, महत्वपूर्ण बात केवल यह है कि आप एक अच्छे
व्यक्ति हो।
दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखने वाला बनो,
जब भी आपको मौका मिले उनकी मदद करना,
सबके साथ दया और प्रेम से पेश आना,
भले ही वे आपके साथ वैसा व्यवहार ना करें।
आपको दुनिया मे ऐसे कई लोग मिलेंगे जो दुखी हैं,
सिर्फ अपने लिए डरते और चिंता करते हैं ।
कृपया, उनके जैसा मत
बनना।
केवल सुनकर
ही आप दुनिया को बदल सकते हो,
अपने दिल की आवाज को शांत करने के लिए
इस संदेश को सभी के साथ साझा करें।
जीवन को भय के साथ अपनाओ।
सबके प्रति दयालु रहें।
अपने दिल की अच्छाइयों को उन लोगों के साथ साझा करें जो अलग हैं या संघर्ष कर रहे हैं।
और, सबसे महत्वपूर्ण बात,
दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करें,
जैसे आप अपने लिए उनसे चाहते हो।
अगर आप ऐसा करोगे तो आप खुश रहोगे।
रहने के लिए ऐसी दुनिया को मत
चुनो जहां हर कोई डरता हो,
सिर्फ अपनी चिंता करता हो।
इसकी जगह, दूसरों की परवाह करें, उदार बनें, सहानुभूतिपूर्ण, प्रेमपूर्ण, सम्मानजनक,
विनम्र, धैर्यवान, ईमानदार, दयालु, सकारात्मक, आभारी,
आशावान और जीवन के प्रति आशावादी बनें।
साहसी बनो और दूसरों की भावनाओं की कदर करो,
मित्रतापूर्ण रहें और अगर वे अलग हैं या उनको ज़रूरत है तो उनकी मदद करें।
अगर आप ऐसा करोगे तो आपका जीवन सुखी और सार्थक होगा।
जीवन मे आप जो रास्ता चुनते हो वही दुनिया का भविष्य
तय करेगा।
हमारे ग्रह और एक दूसरे की देखभाल करने मे
पुरानी पीढ़ियों ने बहुत अच्छा काम नहीं
किया है।
इसलिए, जीवन मे सही
रास्ता चुनकर,
इसमे जो बदलाव होने चाहिए,
वे आप पर निर्भर है।
आपका दृष्टिकोण साफ हो जाएगा
केवल तब जब आप देख पाओगे
अपने दिल मे।
जो बाहर देखता है, वह सपना देखता है।
जो अंदर देखता है, वह जागृत है "।
कार्ल जुंग
अध्याय 1 (Above heading in hindi)
अपनी रोशनी को ढूँढना (Above heading in hindi)
––––––––
अपनी रोशनी को ढूँढने के लिए जो उत्तर हम खोजते हैं,
अपने जीवन मे आंतरिक शांति, प्रेम और अर्थ को अपनाने मे हमें सक्षम बनाता है,
वह इस दुनिया मे बाहर देखने से कभी नहीं
मिलेगा।
वह केवल अंदर
देखने से ही मिल सकता है जहाँ आत्मा मौजूद है।
हम मे से कई लोग इसे सहज रूप से समझते हैं।
अपनी आत्मा को स्वीकार और मार्गदर्शन करने की अनुमति देना।
हालांकि, आपके जीवन का सफर काफी चुनौतीपूर्ण होता है।
इसका कारण, अहंकार (स्व) का प्रभुत्व है।
हमे जन्म के बाद से ही सिखाया
और विश्वास
दिलाया गया था की अहंकार ही सबकुछ है।
जागृति
तब शुरू होती है जब हम हर उस चीज़ पर सवाल उठाना शुरू करते हैं जो हमने
सीखा
है।
ज्ञानोदय
तब होता है जब हम सत्य को स्वीकार
करते हैं।
हमने जो भी सीखा वह सब गलत
था।
सफर लंबा, कठिन और अक्सर अकेला होता है।
जीवन का अर्थ
इस यात्रा को आगे बढ़ाना है,
आपके भीतर आपकी रोशनी को,
निःस्वार्थ रूप से अन्य सभी के साथ बांटना
।
हम जीवित क्यों हैं
? जीवन का अर्थ क्या है"? ये प्रश्न सहस्राब्दियों से पूछे जाते रहे हैं; आपको आश्चर्य होगा कि उत्तर वास्तव मे कितना सरल है। जब हम पैदा होते हैं तो इनके जवाब पहले से ही हमारे भीतर होते हैं। वास्तव मे, इन सवालों के जवाब जन्म के बाद जीवन मे हम सभी के सामने आने वाली कई चुनौतियों मे खो जाते हैं।
हर बच्चे के जीवन के पहले पांच साल सबसे महत्वपूर्ण होते हैं
।यह वो वक्त होता है जब बच्चे ये सीखते हैं कि उनसे क्या उम्मीद रखी जाती है और दुनिया की विभिन्न परिस्थितियों मे उनकी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए। इस दौरान, दूसरों के साथ उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए और दुनिया के बारे मे उनका एक समग्र दृष्टिकोण विकसित होता है। उनकी राय, पूर्वाग्रहों, विश्वास और आकांक्षाएं अक्सर इन प्रारंभिक वर्षों के दौरान बन जाती हैं और वे अपने पूरे जीवन मे कैसे कर्म करेंगे और दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करेंगे इसके आधार का निर्माण भी इसी वक्त होता है।
––––––––
अगर इन वर्षों के दौरान, बच्चे को दुनिया और दूसरों को एक अंधेरे नकारात्मक चश्मे के माध्यम से देखना सिखाया जाता है, जहां डर
प्यार
पर हावी है, तो जो चुनौतियाँ उनके सामने आएँगी वो बहुत बड़ी होंगी। दुनिया को इस तरह से देखकर, वे केवल अपने लिए चिंतित होना सीखेंगे, नाकि सब के लिए। इस दृष्टिकोण को अपनाने से, उनके जीवन का सफर अधिकतर अकेला होगा और उसमे संघर्ष प्रचुर मात्रा मे होगा।
हालांकि, अगर इन शुरुआती वर्षों के दौरान, वे डर के बजाय प्यार
के दृष्टिकोण को अपनाते हैं तो उनका जीवन बहुत अलग दिशा लेगा। प्रेम को प्राथमिक महत्व देने से वे जीवन को अलग तरह से जानेंगे जहां केवल अपने लिए नहीं, बल्कि सबके लिए
चिंता और करुणा है। ऐसे बच्चे डर और नफरत के बजाय दूसरों को समझना और सम्मान के साथ व्यवहार करना सीखते हैं और जीवन को आश्चर्य और प्यार से देखते हैं।
जीवन के इन पहले पांच वर्षों के दौरान बच्चा जो भी सीखता है, वो उसके पूरे जीवन को प्रभावित करता है।
जितने भी संघर्ष हम हमारे पूरे जीवन मे करते हैं, वे अधिकतर इन शुरुआती, प्रभावशाली वर्षों के दौरान विकसित किए गए विश्वासों का परिणाम होता है। हम इन वर्षों के दौरान दुनिया के साथ अपने संबंधों के बारे मे सीखते हैं और फिर अपना बाकी का जीवन उस नुकसान को ठीक करने की कोशिश मे बिता देते हैं जो हुआ था। यह नुकसान तब होता है जब हम दुनिया के साथ अपने संबंधों के बारे मे सीखते हुए कई झूठे आत्म-केंद्रित अहंकारी संदेशों को सत्य मान के अपना लेते हैं। जब तक बच्चे का स्कूल शुरू करने का समय आता है, तब तक ये संदेश बच्चों के भीतर काफी हद तक गहरे हो चुके होते हैं, जो उनके बाकी जीवन मे कई बार उनके विचार और कार्य को प्रभावित करते हैं।
मैं चाहता हूँ कि आप एक खुले सूटकेस की तस्वीर लो । हमारे पैदा होने से पहले, सूटकेस खाली होता है। हमारे जन्म के साथ, हालांकि, स्व
(या अहंकार), जो भी हम सीखते हैं
, और जिसे सच मानते हैं
, उससे हमारा सूटकेस भरना शुरू हो जाता है। हम अपने जीवन मे प्रत्येक बातचीत के साथ जो भी सीखते हैं उससे हमारा सूटकेस भारी हो जाता है, क्योंकि यह हमारे द्वारा जमा किए गए सही या गलत चीजों से भरने लगता है। सूटकेस जितना भारी होता जाता है, हमारी रोशनी उतनी ही मंद होने लगती है और जब हम जागते हैं तो ज्ञानोदय की ओर अपनी यात्रा शुरू करने के लिए हमे उतनी ही चीज़ें वापस निकालनी पड़ती हैं।
––––––––
सूटकेस मे वे सभी झूठे आत्म-केंद्रित सत्य होते हैं जिन्हें बच्चा बड़ा होते वक्त खुद से सीखता है और स्वीकार करता है। हालांकि सूटकेस को भरने में ज्यादा समय नहीं लगता, लेकिन अपनी रोशनी को फिर से ढूंढ़ने
, उस आंतरिक शांति और समझ तक पहुंचने के लिए, जो वे सूटकेस के भरने से पहले जानते थे और बड़ा होते वक्त उन्होंने कई असत्यों को सच मानकर सीखा और स्वीकार कर लिया, इसके लिए उन्हें सूटकेस को फिर से खाली करना होगा जिसमे उनका शेष जीवन लग सकता है। उनका सूटकेस जितना भारी होगा उतना ही मुशकिल उनके जीवन का सफर होगा और अपनी रोशनी को फिर से ढूँढना उतना ही कठिन होगा। इसलिए आइए हम अपने बच्चों के सूटकेस को हल्का करके उनके जीवन को खुशहाल बनाने का प्रयास करें ताकि वे अपने भीतर की रोशनी को जीवन की शुरुआत मे ही ढूँढ सकें"।
हमारा अधिकांश सूटकेस बच्चे के जीवन के शुरुआती वर्षों में, उनके जन्म से लेकर 5 वर्ष की आयु तक भर जाता है। उसके बाद, जो भी हमने भरा है उसे निकालने की कोशिश मे हमारा बाकी का जीवन लग जाता है।
जैसे ही हम अपनी रोशनी को खोजते हुए इन वर्षों के दौरान जो कुछ भी हमें सिखाया गया था, उसकी सच्चाई पर सवाल उठाना शुरू करते हैं तो हम जागृत
होने लगते हैं और अपने सूटकेस को खाली करने का कठिन कार्य शुरू कर देते हैं। जैसे ही हमारा सूटकेस खाली होने लगता है तो हर गुजरते दिन के साथ हमारी रोशनी और तेज होने लगती है। हालांकि, भीतर की रोशनी फिर से मिलेगी और ज्ञानोदय
की खोज फिर से होगी। चूँकि ‘स्व’ हमेशा हमारी मृत्यु तक हमारे साथ रहेगा इसलिए सूटकेस कभी भी पूरी तरह से खाली नहीं होगा, हालाँकि हमारी रोशनी अब उतनी चमकदार नहीं होगी जितनी जन्म से पहले थी।
हम अपना पूरा जीवन उस सूटकेस को खाली करने की कोशिश मे बिता देते हैं जिसे हमने अपने जीवन के पहले 5 वर्षों के दौरान भरा था। इन प्रारंभिक वर्षों के दौरान सूटकेस जितना अधिक भरेगा और भारी होगा, जीवन उतना ही अधिक चुनौतीपूर्ण होगा। जैसे-जैसे हम बूढ़े होते जाएँगे जीवन मे कठिनाइयों का सामना करना और सूटकेस को खाली करना उतना ही कठिन होता जाएगा। जब हम बालिग होते हैं, तो अक्सर हम दुनिया मे जीवन जीने के लिए आत्म-केंद्रित मार्ग को अपनाते हैं जिसकी वजह से सूटकेस को खाली करना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
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कल्पना कीजिए कि बड़े होते वक्त अगर हमारे बच्चे का सूटकेस ज्यादातर खाली रह जाता है और दुनिया मे कैसे जीवित रहना चाहिए के बारे मे समाज के रीति-रिवाजों से ज्यादा सीखता है। तो हमारे बच्चों का पालन-पोषण क्या इस तरह करना संभव है इसलिए उन्हें जीवन भर अपनी रोशनी को उज्जवल रखने के लिए सूटकेस को हल्का रखना चाहिए। हालांकि,इसके लिए, बच्चों को सिखाने के हमारे तरीके मे बदलाव होना चाहिए, विशेष रूप से उनके जीवन के शुरुआती वर्षों के दौरान, डर
के बजाय प्यार
को अपनाएँ।
इसलिए यह आवश्यक है कि इस नुकसान को कम करने के लिए