मेरी पहचान (काव्य-लेख संग्रह)
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मेरी पहचान (काव्य - लेख संग्रह) में कवि अपने, अनुभवों के समिधा साहित्य यज्ञ कुण्ड में आहुति समर्पित कर एक विशिष्ट सामाजिक ढांचा और संघर्षरत समिष्टि प्रज्ज्वलित किया हुआ है।
सामाजिक प्रगाढ़ता, आडम्बर धारियों पर किलिष्ट प्रहार किया हुआ है, तो जन चेतना में प्रेम अंकुरण पुष्प खिला दिया है।
नव युवा पीढ़ियों के जन मानस के पटल पृष्ठ परिधि पर कर्त्तव्य पूर्ण सानिध्य समर्पण से सजा तार्किक परिणति पर कसा हुआ प्रतीत होता है।
कवि ने आध्यात्मिक धरातल से जुड़ा हुआ, सामाजिक परि ढांचा का अभिकल्पन से परिपूर्ण आदर्श स्तंभ स्थापित किया है।
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मेरी पहचान (काव्य-लेख संग्रह) - Navaneet Pandey (Chunky)
समर्पण
स्वच्छंद काव्य धारा ही प्रेषित करता हूँ
मन के कलुषित भाव ही हर्षित करता हूँ
साहित्य की पूजा को ही रक्षित करता हूँ
राष्ट्र विधा पर जीवन अपना अर्पित करता हूँ
- लेखक
नवनीत पाण्डेय सेवटा (चंकी)
प्राक्कथन
निम्न गरीब कृषक परिवार में जन्मा मैं अपने जीवन में गरीबी और दु:ख को बहुत ही नज़दीक से देखा हूँ, जीवन में अनेक उतार चढ़ाव देखने और महसूस करने को मिला हैं, इसी उतार चढ़ाव भरे दिनों में जटिल से जटिल समस्याओं से जूझते हुए, लड़-खड़ाते कदमों में संभलते हुए, आप सभी के समक्ष अपने अनुभवों प्रयासों की समिधा साहित्य कुण्ड में आहुति देकर जीवन का साहित्य यज्ञ सम्पूर्ण करना चाहता हूँ, मैं कोई बहुत बड़ा कवि या लेखक नहीं हूँ, न मेरा कोई नई पहचान हैं, बस थोड़ा सा प्रयास आप सभी का प्रेम मुझे साहित्य में ला खड़ा कर दिया।
जीवन में प्रेम वह साधना हैं जिसमे व्यक्ति या तो गलत मार्ग पर अग्रसर होता हैं या वह अपने साधना में सफल हो अपने प्रेम साधना को अमर कर जाता हैं, मेरे साथ भी वहीं घटित हुआ कि जिससे प्रेम किया उससे कभी कह भी नहीं सका की मैं तुमसे अथाह प्रेम करता हूँ, जब उससे हमेशा के लिए बिछड़े तो मन एक जगह नहीं रुकता कभी कुछ अलग करना चाहता था, सोचता था कि नशा करने से मन को चैन मिलेगा, लेकिन कर्त्तव्यता और परिवार से प्रेम ने मुझे अनुचित मार्ग पर अग्रसर नहीं होने दिया, लेकिन प्रेम विक्षोह ने मन में अंतर ज्वाला अग्नि प्रवाहित करता ही रहा, तभी कलम और मेरी डायरी ने मानों मुझे एक नया जीवन दे दिया हो, शायरी लिखते लिखते मन में थोड़ा संतोष धारण हुआ फिर धीरे धीरे त्रुटि पूर्ण काव्य रचना लिखना आरम्भ किया, जिससे मैं एक सही मार्ग पर अग्रसर हो पाया, यह घड़ी काफी असहनीय थी, लेकिन साहित्य साधना ने सब सहज कर दिया, साहित्य साधना कमजोर से कमजोर व्यक्ति को भी दृढ़ संकल्पित
बना देता हैं।
प्रयागराज में रहते हुए चंद्रशेखर आज़ाद पार्क की क्रान्ति, स्वराज ब्रिटिश से संग्राम पूर्ण स्मृतियां कहानियाँ महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी प्रयागराज संगीत सीमित आदि प्रतीकों ने मुझे साहित्य तरफ कब आकर्षित कर लिया मुझे इसका भान भी नहीं हो पाया लेकिन जिस तरह मैं विकल था उस समय मानों साहित्य साधना ने मुझे एक नया जीवन दान प्रदान किया।
मेरे परिवार में एक के बाद एक अप्रिय घटना घटित हुआ, जिससे मुझे अपने समस्याओं से लड़ने और व्यक्ति परख सामाजिक ढांचा का परिधि रेख दृष्टि गोचर होने लगा, यहीं दृष्टि गोचर कर्म अपने अनुभवों से समाहित प्रसाद आप सभी के समक्ष मिश्रित साहित्य प्रसाद लेकर आया हूँ, अपने जीवन में घटित घटनाओं से प्रेरणा सीख, समाज सेवा जन जागरण पुनर्जागरण पथ हेतु एक प्रयास कर रहा हूँ, अपनी अभिव्यंजना आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।
ग्राम्य समीप में महापण्डित राहुल सांकृत्यायन जी के बारे में जानने पर उन्हें पढ़ने पर मानों एक गर्व महसूस हुआ, आजमगढ़ में वह कलमकार जिसका साहित्य में एक उचित स्थान हैं, एशिया महाद्वीप भ्रमण अनेक रचनाए छत्तीस भाषाओं के ज्ञाता हैं, जिन्हें मैं पढ़ा तो मुझे साहित्य में रुचि होने लगा।
ग्राम्य के कवि यदुनाथ जदुराई जी ने मेरा मार्ग प्रशस्त किया, और फेसबुक से जुड़ने वाली आदरणीया श्री मती मनोरमा जैन पाखी
जी ने मेरा मार्ग दर्शन किया, मैं इन सभी लोगों का आभारी हूँ कि इनकी प्रेरणा से मैं आज आप सभी के समक्ष अपनी भाषा हिंदी भोजपुरी में लेख प्रस्तुत कर पा रहा हूँ।
जीवन में साहित्य साधना वह ब्रह्मास्त्र है, जो विकट परिस्थितियों में भी मनुष्य में एक उर्मि प्रवाह प्रवाहित कर देता हैं, समस्याओं से भागने वाला कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाया हैं, समस्या से लड़ने वाला खड़ा होने वाला ही मंजिल शिखर पर पहुंच पाता हैं, आत्म हत्या करना समस्या का निष्कर्ष नहीं हैं, यह समस्या विकराल पहाड़ बन परिवार पर गिरता हैं, अतः आत्म विश्वास से भरकर मन को अपने कर्म पर विश्वास रखते हुए कार्य करने पर ही व्यक्ति सफलता की कुंजी प्राप्त करता हैं।
सेवटा ग्राम्य भैंसहीं नदी के समीप स्थित हैं, आजमगढ़ जनपद में कुल छोटी बड़ी सत्रह नदिया प्रवाहित है, ग्राम्य आँचल में पला बड़ा और ग्राम्य से होते हुए शहर तक भ्रमण ने आज साहित्य में रुचि और कर्त्तव्यता ने अपने आदर्श पर स्वाभिमान पर अडिग रहने हेतु सदैव से प्रोत्साहित किया हैं।
मेरे लेख में कोई त्रुटि हो तो मुझे क्षमा करना क्योंकि मैं कोई बड़े स्तर का काव्य लेखक नहीं हूँ बस अपना थोड़ा सा प्रयास आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।
धन्यवाद।
- नवनीत पाण्डेय सेवटा (चंकी)
कविताएं
अभिवादन अभिनन्दन
अभिवादन अभिनन्दन देखों, मंच तुम्हारा करता हूँ
लघु वाक्यों के मधु वाणी से, परिवेशा स्वतः सवरता हूँ
आदि शक्ति भाई बंधु की, आज्ञा सिर धर रखता हूँ
आजमगढ़ के पावन धरणी को, प्रणाम सवा सौ बार करता हूँ
इस सभा में काव्य कला कर, स्वयं फूल सा खिलता हूँ
अभिवादन अभिनन्दन देखों, मंच तुम्हारा करता हूँ
आदर्श ग्राम्य सेवटा
पराकाष्ठा अपरूप लिए, ग्रामीण सजा हैं भव्य
प्राण प्रतिष्ठा बसे हमारे, ग्राम्य (सेवटा) धर्म कर्त्तव्य
अमूल्य निधि अरुणोदय की, चित चितवन सब धन्य
आदर्श ग्राम्य आँचल ओढ़े, धन्य गात चैतन्य
कार्य प्रगति पर हुए हमारे, मौन वचन से बंधा हुआ
अपने ही कुटुम्ब के तरु से, शूल वाणी से सधा हुआ
दर्पण दिखलाने वाले पर, हंसे चोचले जन्य
आदर्श ग्राम्य आँचल ओढ़े, धन्य गात चैतन्य
साध रहे हित अपने, दिए प्रगति का नाम
कलंक लगा कर कुल पर, चारु अशिष्टिक धाम
परिधान स्वच्छ सौन्दर्य में, विष हुआ नगण्य
आदर्श ग्राम्य आँचल ओढ़े, धन्य गात चैतन्य
देव भूमि बगीचों में, खिला हुआ हर पुष्प
ताल सरोवर खग वृंदों से, प्रकृत सजी अनुप्प
पुरखों के सद्भावों से, छवि ग्राम्य (सेवटा) की सौम्य
आदर्श ग्राम्य आँचल ओढ़े, धन्य गात चैतन्य
अहम त्वं में बंधे हुए हैं, शनि राहु संग केतू
निष्ठुरता के सुमन खिलाए, मंगल क्षुब्ध बन सेतू
सुफल सार हम बसे हुए हैं, परम ज्योति के सैन्य
आदर्श ग्राम्य आँचल ओढ़े, धन्य गात चैतन्य
जिला प्रसिद्ध बड़ैला ताल, अपूर्व सरोरूह नाव
समीप भैंसहीं स्रोतस्विनी, सांकृत्यायन का गाँव
किलकारी से हर्षित गुंजित, कामिनी वृद्ध व्यौम्य
आदर्श ग्राम्य आँचल ओढ़े, धन्य गात चैतन्य
आदर्श गुरु का दर्जा में, सिद्ध प्रसिध्द सेऊटा गाँव
पुलकित प्रकृति चित्रण, यक्ष गंधर्व अतिथि भाव
कहे कवि सुनों श्रोता जन, आज जन्म मेरों धन्य
आदर्श ग्राम्य आँचल ओढ़े, धन्य गात चैतन्य
आज़ाद हिन्द फौज के आज़ाद सिपाही
बढ़ता गया टोली, चलती रहीं लड़ाई
स्वतंत्रता की मंजिल, करीब थी आई
हर कठिन डगर से, गुजरे मेरे सिपाही
आजाद हिन्द, फ़ौज के, आजाद सिपाही
शौर्य गाथा, क्रांति का, परिणाम बन गया
भारत माँ के, लाल पर, ईनाम रख गया
नेता जी ने, त्याग दी, पोशाक भी शाही
आजाद हिन्द, फ़ौज के, आजाद सिपाही
शोलों की, उठ पड़ी थी, आवाज वह भारी
जंजीर में, जकड़ी पड़ी, आजादी हमारी
आजादी के, मंजिल के लिए, चल पड़े राहीं
आजाद हिन्द, फ़ौज के, आजाद सिपाही
चला रहे थे शासन, अंग्रेज शैतानी
नेता जी के, हौशलों की, सुन लो कहानी
वन्देमातरम लिखेगी, रक्त की स्याही
आजाद हिन्द, फ़ौज के, आजाद सिपाही
तुम मुझे खून दो, मैं दूँ तुम्हे आजादी
बोले कवि के बाबा, शेरों की थी, वह वादी
टोली में, एक से बढ़ कर, एक थे माही
आजाद हिन्द, फ़ौज के, आजाद सिपाही
भूख प्यास को लिए, लड़ते रहे सेनानी
नाकों चन्ना चबवाए, आयी थी याद नानी
इतिहास आज मेरा, जो दे रहा गवाही
आजाद हिन्द, फ़ौज के, आजाद सिपाही
साजिश में ही, शहीद हो गए, सुभाष बाबू
आजादी के अग्नि पर, फिरंगी कर न पाए काबू
हिन्दुस्तान के, दिल में, अमर हुआ ए राही
आजाद हिन्द, फ़ौज के, आजाद सिपाही
हिन्द के, सागर के, तूफ़ान भी बोले
हिमालय के, चोटी का, शान भी बोले
गंगा यमुना,